
फसल उगाना है (kavita)
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युग की मनोभूमि में ऐसी फसल उगाना है।
जिनमें जन जीवन में स्वर्गिक-वैभव आना है॥1॥
युग सृष्टा ने डाल दिये है सद्विचार के बीज।
उन्हें अंकुरित करने की करनी है हर तजबीज॥
जन-मानस में फिर सुषुप्त-देवत्व जगाना है।
जिससे जन-जीवन में स्वर्गिक-वैभव आना है॥2॥
दुर्भावों के घास-पात को आओ! दूर करें।
सद्भावों के विरवों से जन-भू भरपूर करें।
सद्विचार को सदाचार का सलिल पिलाना है।
युग की मनोभूमि में ऐसी फसल उगाना है॥3॥
अपनी-अपनी क्षमताओं का खाद बिखेरें हम।
जन-मंगल के लिये आज जन-जन को प्रेरें हम॥
अपने-अपने अंशदान की रोप लगाना है।
युग मनोभूमि में ऐसी फसल उगाना है॥4॥
अपने युग में क्यों अभाव से कोई ग्रसित रहे।
जन मानस की उर्वर-भू क्यों भूखी त्रसित रहे॥
समता, स्नेह और सम्वेदन से लहराना है।
जिससे जन-जीवन में स्वर्गिक-वैभव आना है॥5॥
सुख, सन्तोष, शान्ति की फसलें भू पर खूब फलें।
अनुदानों से, उपहारों से शिव संकल्प पलें॥
श्रम, सहयोग, त्याग, तप से भू स्वर्ग बनाना है।
युग की मनोभूमि में ऐसी फसल उगाना है॥6॥
-मंगल विजय
*समाप्त*