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Magazine - Year 1980 - Version 2

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जीवन से भागिये नहीं उसे स्वीकार कीजिए

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जीवन में कई उतार-चढ़ाव आते रहते है। कभी सुखद और अनुकूल परिस्थितियाँ रहती हैं तो कभी दुःखद और प्रतिकूल यह उतार-चढाव ही जीवन को रसमय बनाते है। रात के अन्धकार से दिन का प्रकाश विविधता उत्पन्न करता है ता पतझड के मौसम से बसन्त की बहार का पता चलता है। इसी प्रकार दःख् और कष्टों से सुख तथा आनन्द का रस आता है। यदि जीवन में दु’ःख और कष्ट हो ही नहीं तो सुख और सुविधाओं में कोई रस ही न आये । मीठा खाते-खाते जब अरुचि हो जाती है तो स्वाद बदलने के लिए नमकीन भी खाना आवश्यक हो जाता है उसी प्रकार सुख-सुविधाओं की एकरसता तोड़ने के लिए कष्ट, कठिनाइयाँ भी आवश्यक हो जाती है।

मनस्वी तथा विचारशील व्यक्ति यही सोचकर दुःख परेशानियों को भी उसी प्रकार हँसी-खुशी सह लेते है जिस प्रकार सुख-सुविधाओं का उपभोग करते है, परन्तु कमजोर और दुर्बल मनःस्थिति के लोग दुःखो तथा कष्टों से इस प्रकार घबड़ा जाते हैं, जैसे उनके सामने आग के कुण्ड में कूद पड़ने की स्थिति आ गयी हो । ऐसाी स्थिति में उनके पास वास्तविकता से आँख-मूँद लेने और सथार्थ से भागने का ही उपाय सूझता है और वे तरह-तरह से इस उपाय को अपनाते हैं।

सर्वविदित है कि अनुभूतियों और सम्वेदनाओं का केन्द्र मनुष्य का मस्तिष्क है। सुख-दुःख का , कष्ट-आनन्द का , सुविधा और अभावों का अनुभव मस्तिष्क को ही होता है तथा मस्तिष्क ही प्रतिकूलताओं को अनुकूलता में बदलने के जोड-तोड बिठाता हैं कठिनाइयों से न घबराने और प्रतिकूलताओं से संघर्ष करने की इसी क्षमता का नाम मनोबल है। मनोबल सम्पन्न मनस्वी व्यक्ति कष्ट-कठिनाइयों में रास्ता और उत्पन्न समस्याओं के समाधान खोजने में जरा भी परेशानी अनुभव नहीं करते । लेकिन मनोबल की दृष्अि से कमजोर व्यक्ति उन परिस्थितियों से भागने की ही बात सोचते हैं।

यह कोई आवश्यक नहीं है कि समस्याये आर्थिक या भौतिक ही हों । समस्याओं का स्वरुप कुछ भी हो सकता है और वे व्यक्ति के निजी , पारिवारिक सामाजिक तथा व्यावसायिक जीवन में किसी भी तरह उठ खड़ी हो सकती है। उचित तो यह है कि उन्हें सुलझाने के लिए धैय्र और सूझबूझ से काम लिया जाय । परन्तु लोग प्रायः उनसे भागने की बात सोचते हैं। घर में यदि आग लगी हो तो उसमें से भागकर कहीं निकला भी जा सकता है, पर समस्या जीवन के किसी ऐसे क्षेत्र में उत्पन्न हुई है जहाँ से न भागते बनता है तथा दुर्बल मनःस्थिति के कारण न उसका सामना ही करते बनता है तो ऐसी स्थिति में व्यक्ति उनसे आँख मूँदने, उनकी ओर से ध्यान हटा लेने अथवा किसी प्रकार उनके बोझ को फेंक देने की कोशिश करता है।

इसी का नाम जीवन से पलायन हैं । जीवन से पलायन का अथ्रजीवन को छोड़ देना तो नहीं होता । हालाँकि कई व्यक्ति इन समस्याओं से घबड़ा कर अपना जीवन ही नष्ट कर डालते है । परन्तु अधिकाँश व्यक्ति जीवन से पलायन करने के लिए कुछ ऐसे उपाय अपनाता है, जैसे शुतुरमुर्ग आसन्न संकट को देखकर अपना सिर रेत में छुपा लेता है । इस तरह की पलायनवादी प्रवृतियों में मुख्य है मादक द्रव्यों की शरण में जाना । शराब ,गाँजा ,भाँग ,चरस ,अफीम ,ताडी आदि नशे वास्तविक जीवन से पलायन करने की इसी मनोवृति के परिचायक है। लोग इनकी शरण में या तो जीवन की समस्याओं से घवडा जाते है अथवा अपने संगीसाथियों को देखकर इन्हें अपनाकर पहले से ही अपना मनोबल चौपट कर लेते है।’

वैसे आजकल मादक द्रव्यों का प्रचलन फैशन के रुप में बहुत अधिक बढ़ता जा रहा है। कोई समस्या या परेशानी न होते हुए भी लोग पार्टी, क्लबों अथवा अन्य स्थानों पर अपने चार दोस्तों के साथ बैठकर इन माध्यमों से अपने स्वास्थ्य तथा मानसिक शान्ति को नष्ट करते रहते है। मादक द्रव्यों की शरण में जाने से स्वास्थ्य की हानि तो होती ही है, उसके कारण सबसे बड़ी हानि जो होती है वह है मानसिक शाँति और शक्ति के नष्ट-भ्रष्ट हो जाने के रुप में । जीवन की सचाइयों से भाग कर आदिमी उन समस्याओं से छूट नहीं जाता और न ही कोई उनका समाधान पा लेता है । बल्कि होता यह है कि मादक द्रव्यों का जब तक प्रमवि रहता है तब तक व्यक्ति अपनी समस्याओं को भूते रहता है । उस समय वह कल्पना की अथवा बेहोशी की दुनिया में पहुँच जाता है तथा अनुभव करता है कि उसे वर्तमान समस्याओं के कारण होने वाली चिन्ता , घबड़ाहट तथा परेशानी से उतने समय के लिए मुक्ति मिल गयी ।

वस्तु ऐसा होता नहीं है बल्कि उतने समय के लिए मस्तिष्क का सम्वेदना केंद्र निष्क्रिय बेहोश हो जाता है। जब मादक द्रव्य का प्रभाव मिटता है तब समस्या पुनः और विकराल रुप में खड़ी दिखाई देती है। उनसे घबड़ाकर व्यक्ति फिर उसी दुनिया में भागती है और यह क्रम तब तक चलता रहता है जब तक कि वह अपनी अनुभूतियों , सम्वेदनाओं , तथा भावनाओं के साथ-साथ सामान्य समझ-बूझ और सोचने विचारने की क्षमता भी खो नहीं देता । मादक द्रव्यो के आदी लोगो में से अधिकाँश कई मनोरोगों के शिकार होते देखे गये है। आगरा के मानसिक चिकित्सालय द्वारा प्रसारित एक सूचना के अनुसार वहाँ के अनुसार वहाँ के 368 पागलो में से 100 तो ऐसे थे जो केवल मादक द्रव्यो के कारण ही पागल हुए । आदमी के मानसिक स्वास्थ्य की चौपट कर देने तथा उसे पागलपन तक पहुँचा देने में शराब,अफिम,कोकीन,हीरोइन, आदि का पहला स्थान है।

आजकल तो ऐसे-ऐसे नशे ईजार कर लिये गये है जिनकी एक खुराक लेते ही आदमी किसी दूसरे ही लोक में पहुँच जाता है। एल॰एस॰डी॰ कैनेविस , मारिजुआना, मैण्ड्रेक्स अिद इसी प्रकार के नशे हैं इन नशों को साथ लेकर पश्चिम का भटकी हुई युवा पीढी हमारे देश के युवको को भी मादक द्रव्यो के इस संसार का वासी बनने के लिए उकसाती जा रही है। ये मादक द्रव्य इतने उत्तेजक होते हैं कि सेवन करने वाले का तत्काल ही अपने आसपास की दुनिया से काट देते है और उससे विक्षिप्त से कर देते है । पिछले दिनो समाचार पत्रो में मादक द्रव्यों के कारण घटी दुघ्रटनाओं अथवा उनसे प्रभावित होकर अस्वाभाविक व्यवहार करने वाले व्यक्तियों के जो विवरण प्रकाशित हुए है वे बडे़ रोचक भी हे तथा दुःखद भी । रोचक इसलिए कि इनका सेवन करने के बाद व्यक्ति किस तरह की अव्यावहारिक कल्पनायें करने लगता है और दुःखद इसलिए कि उन कल्पनाओं में व्यक्ति किस कदर रम जाता है कि वह अपना घात करने से भी नहीं चूकता ।

कैलीफोनियों के एक एल॰एस॰डी॰ प्रेमी को नशे की झोंक में यह सनक सवार हो गयी कि वह पक्षियों की तरह हवा में उड़ सकता है। इसी सनक को पूरा कर दिखाने के लिए वह एक इमारत की दसवी मंजिल पर चढ़ा और वहाँ से कूँद पडा । उसने उड़ने के लिए बहुत हाथ पैर फड़ँफड़ाये परन्तु जो होना थ हुआ । वही के एक होस्टल में र रहे दूसरे विद्यार्थी की यह समझ में आ गया कि वह अपने आकार से दुगुना हो गया है और उसके पैर छह फुट लम्बे हो गये हैं। छह फुट लम्बे पैर से उसने पास वाली मंजिल पर कूदने के लिए उसी अन्दाज से छलाँग लगायी और वह आठ मंजिल नीचे जमीन पर गिर पड़ा ।

डेक्साम्फेटाइन सल्फेट और बारबिरु चेट्स पिल्स’ के आदी व्यक्ति किस कदर मानसिक दृष्टि से विक्षिप्त और पागल हो जाते है, इसका विवरण लिखते हुए एक पत्रकार ने लिखा है कि वह मादक द्रव्यों का सेवन करने वाले लड़को के कैम्प में गया । वहाँ एक लड़का यकायक चीख उठा , मै मर रहा हूँ और देर तक यही शब्द दौहराता रहा । वहाँ जमा हुए दूसरे छात्र भी अपने इस काल्पनिक मृत्यु को प्राप्त हुए युवक को घेर कर बैठ गये और शोक प्रदर्शित करने लगे । आसपास बैठे युवकों ने कुद गोलियाँ निकालीं और गटकली । तभी वह लड़का जो अपने मरने की घोषणा कर रहा था , उठा और बोला अपने को निगम बोध घाट ले जा रहा हूँ । नगर निगम वाले लोगों से शव गाड़ी मँगवाई थी , उन्होने भिजवायी ही नहीं , अब खुद ही अपने को ले जाना पड़ रहा है। वह लड़का इतना कहकर फिर लेट गया । थोडी देर में वह चिड़िया के पंख की तरह अपने हाथ फड़फड़ाने लगा और फिर बोला अब मैन चिंड़िया के रुप में फिर से जन्म ले लिया है।

यह विवरण एक ऐसी जमात का लिखा गया है जिसके सभी सदस्य तेज मादक द्रव्यों के डोज लेने के आदि थे । उनमें से कोई अनर्गल प्रलाप कर रहा था । कोई नाच रहा था , कोई हँस रहा था , कोई काल्पनिक गिटर बजा रहा था , कोई चुपचाप बैठा था, कोई अपने ही हाथ उलट पुलट कर देख रहा था यानी वे सब मानसिक विक्षिप्तता की निशानी थे । यह तो कुछ तेज मादक द्रव्यो का असर हुआ । कम तेज या सामान्य उत्तेजक मादक द्रव्य भी मन मस्तिष्क के सन्तुलन को इसी प्रकार छिन्न भिन्न कर देते हैं तथा व्यक्ति को अपनी ही काल्पनिक दुनिया में इस प्रकर धकेल देतेह हैं कि उसे वास्तविक दुनिया का कुछ भी पता नहीं लगता ।

यद्यपि मादक द्रव्यों के बढ़ते हुए प्रचलन के लिए आधुनिक संभ्यताओं भी जिम्मेदार ठहराया जाता है जिसमें व्यक्ति यान्त्रिक जीवन व्यतीत करता हुआ भीड में इस कदर खो गया कि उसे अपने संगी साथियों को बात तो दूर रही अपने परिवार के लोगो का भी ध्यान नहीं रहता । जो भी हो आधुनिक सभ्यता से उत्पन्न हुई समस्याओ के समाधान का एकमात्र यही रास्ता नहीं है। कहा जा चुका है कि किसी भी समस्या के समाधान का सही-सही रास्ता तो यह है कि उससे सीधें मुकाबला किया जाय, वास्तविकता से आँख न मूँदी जाय और जो जिस रुप में हैं उसे उसी रुपी में स्वीकार करने तथा परिस्थितियों में परिवर्तन लाने के लिए सशक्त मनोबल से काम लिया जाय।

मंिस्तष्क मनुष्य शरीर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग हे और जीवन क्रम को सुचारु रुप से चलाने में वही मुख्य भूमिका निवाहता है। मस्तिष्क को सक्रिय रखने अथवा प्रभावित करने में कुछ रसायन बहुत महत्वपूर्ण काम करते है। आवश्यकतानुसार शरीर संस्थान उन नशों की व्यवस्था अपने आप ही करता है। लेकिन मादक पदार्थो में प्रयुक्त किये जाने वाले रसायन मस्तिष्क के कुछ अंगो को उत्तेजना देते है तो कुछ को निष्क्रिय कर देते हैं। उन रासायनिक प्रभावों के कारण मस्तिष्क के विभिन्न केन्द्रो में आवश्यक तालमेर बिगड़ जाता है । मस्तिष्क आवश्यकता से अधिक सतर्क अथवा प्रसुत हो जाता है। और साधारण सी बात भी असाधारण तथा बड़ी बात भी बहुत मामूली लगने लगती है। यही स्थिति पागलपन की निशानी है।

इस प्रकार लोग झंझटो परेशानियों से मुक्त होने के लिण् नशों का सहारा लेते हैं और उसके सहारे चलते चलते पागलपन की स्थिति में भटक जाते है । अतः किसी भी स्थिति में मानसिक शान्ति प्राप्त करने के लिए चिन्ताओं और समस्याजव्य परेशानियों से छुटकारा प्राप्त करने के लिए किसी भी प्रकार नशे का सेवन तो करना ही नहीं चाहिए । समस्याओं से सीधा सामना और अपने बुद्धि विवेक से उनका समाधान खोजना ही जीवन जीने का सही मार्ग हैं। इसके साथ ही समस्याओं को इतने बढ़े-बढें और अस्वाभाविक ढंग से देखना भी नहीं चहिए कि उसके कारण यह जीवन ही भार स्वरुप लगने लगे ।

सहायक और अनुकूल परिस्थितियों की तरह कष्टप्रद तथा प्रतिकूल परिस्थितियों को भी उपयोगी मानते हुए उन्हें सहज स्वाभाविक मानकर चला जाय तो मनःस्थिति को शान्त और सन्तुलित रखते हुए जीवन मार्ग पर आगे बढ़ते रहा जा सकता है। उसके लिए फिर जीवन से पलायन करने अथवा कोई अस्वाभाविक आचरण करने की आवश्यकता नहीं रह जाती ।

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