
Magazine - Year 1980 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
महामानवों से सम्बद्ध उपकरण
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
यह एक मान्यता युगो-युगो से चली आ रही है कि महामानवों , देव पुरुषों के सर्म्पक में आने वाली हर वस्तु उनकी दैवी शक्ति से ओत-प्रोत होने के कारण श्रद्धास्पद पूजनीय हो जाती है । कथा-पुराणों में ऐसे कई आख्यान आते हैं जिनमें देवमानवों के अनुयायी उनके र्स्पश किये हुए पदार्थों को उनकी शक्ति सामार्थ्य से ओतप्रोत मानकर उसे ही प्रतीक मान पूजा करते रहे है । भरत जब राम द्वारा वन से लोटा दिये गये तो अपने साथ भगवान की खडाऊ लेते आये, जो उन्हे आत्मिक सम्बल, मार्गदर्शन देते रहे । इन सबके पीछे र्स्पशजन्य सामर्थ्य की महत्ता छिपी पडी है , साथ ही श्रद्धा की अपार शक्ति भी उसमें जुडती है ।
परस पत्थर अपने समीपवर्त्ती लोहे के कणों को र्स्वण बना देता है । चन्दन का वृक्ष आसपास के बाता वरण को भी सुवासित कर देता है । इसी तरह महामानवों की प्राण विद्युत न केवल उनके अंग-प्रतयंग से बल्कि हाव-भाव , प्रत्ये क क्रिया-कलाप एवं वेधकदृष्टि के माध्यम से निरन्तर उत्सर्जित होती रहती है ।
ईसामसीह के कफन के साथ भी कुछ इस प्रकार के तथ्य जुडे हैं। काफी समय तक इन्हें किंबदन्ती माना जाता रहा । सन् 1868 में सेकोन्दोपिया नामक छविकार ने उक्त वस्त्र में ईसामसीह का चित्र नेगेटिव के रुप् में अंकित कर ईसाईयों के इस श्रद्धा आधार को बहुत बडा सम्बल प्रदान किया । यह छायाँकन कैसे अभरा यह वैज्ञानिको के लिये एक अचम्भा ही बना हुआ है ।
यह वस़्त्र 14 फीट लम्बा एवं 311 फीट चौडा है । हाथ से बुने गये हल्के पीले रंग का यह कफन अब किसी को देखने के लिये उपलब्ध नहीं है । केवल इसकी नकल ही दर्शनार्थ उपलब्ध है ।
यह पवित्र धरोहर उत्तरी इटली के ट्यूरियन कस्बे में स्थित चर्च में चाँदी की एक छोटी पेटी में विशेष प्रार्थनाग्रह की वेदी पर 14 वीं शताब्दी से रखा है । पहली शताब्दी में चरुशलम से भागने वाले ईसाई अपने साथ इसे लाये थे। पिछले 300 वर्षा में 12 बार ही जनता को इसके दर्शन कराये गये हैं। इसे पाँचवा ‘इन्जील’ मानकर इसकी पूरा ईसाई समाज श्रद्धा से पूजा करता है ।
देवदूत ईसा के महान उर्त्सग की प्रत्यक्ष गवाही देने वाले इस वस्त्र पर स्वर्गीय आत्मा की छवि किस प्रकार उभरी, इसके सम्बन्ध में बहुतों ने खोज की है । उन्ही खोजियों में से एक ब्रिटिश लेखक ज्याफ्रेएश कहते हैं कि मृतक के शरीर से फूटने वाला विकिरण ही वस्त्र पर आकृति के उभर आने का कारण है। क्योंकि मृतात्मा देवदूत स्तर की थी विकिरण का प्रभाव इतना अधिक था कि उसकी आकृति उनके परिधान पर स्वयमेव उतर आयी । अमेरिकी अन्तरिक्ष वैज्ञानिक डा. जैन जैक्सन ने कम्प्यूटर एनासिसिस के बाद इस चित्र को त्रिआयामीय बताया है । यह अपने आप में एक ऐसा आर्श्चय है जिसकी वैज्ञानिकता खोजने पर भी मिल नहीं सकती
हजरत साहब का बाल जो जम्मू की एक मस्जिद में रखा है एवं बुद्ध का दाँत जो रंगून के एक पूजागृह में रखा गया है , अपने-अपने मतावलम्बियों के लिये वे प्रेरणा स्त्रोत बने हुए हैं। मुस्लिम मूर्ति पूजा को नहीं मानते पर सहज उपजने वाल श्रद्धा किसी भी मतभेद से परे हैं। यह श्रद्धा उस महामानव के प्रति प्रकट होती है जो अपने समय में अपने सुकर्मो से असंख्यो को प्रेरणा दे जाते है ।
उत्कृष्ट व्यक्तित्व असंख्यों को अपने तेजोवलय से प्रभावित करते हैं। उन्हीं प्रभावितों में उनके सर्म्पक में आने वाले पदार्थो को भी यह सौभाग्य मिलता है कि उन ज्योति पुज्जों की ऊर्जा अपने में संग्रह करें और चिरकाल तक अनेकों की श्रद्धा एवं दिव्य क्षमता जगाने में सहायता करते रहें । प्रायः दो हजार वर्ष पुराने ईसा का कफन इस तथ्य को प्रत्यक्ष साक्षी देता है । इस प्रभाव शक्ति का एक अतिरिक्त प्रमाण है कफन पर ईसा की वैसी छवि का उभरना जिसमें किसी भी रासायनिक पदार्थ का उपयोग नहीं हुआ है ।