
विज्ञान की छलाँग मात्र शरीर तक ही क्यों?
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
बौद्धिक दृष्टि से आज का मानव प्राचीन काल की तुलना में कई गुना आगे है। प्रतिभा के चमत्कार सर्वत्र दिखायी पड़ रहे हैं। एक सदी की वैज्ञानिक उपलब्धियों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे मानवी प्रगति ने सदियों आगे की बड़ी छलाँग लगा ली हो। एक सदी पूर्व के मनुष्य जब बीते जमाने की तुलना आज के अन्तरिक्षीय युग से करते हैं तो उन्हें सब कुछ चमत्कारी प्रतीत होता है और सहज ही यह विश्वास नहीं होता कि बदले रूप में यह पुरानी ही दुनिया है। एक ओर बौद्धिक विकास और उसकी असाधारण उपलब्धियों को देखकर पुलकन होती है तथा मानवी पुरुषार्थ की अनायास ही प्रशंसा करनी पड़ती है। पर दूसरे ही क्षण मानव की वर्तमान स्थिति पर नजर जाती है तो उस प्रसन्नता के निराशा में बदलते देरी नहीं लगती।
बाह्य परिस्थितियों की दृष्टि से संसार में बहुत कुछ परिवर्तन-प्रतिकूलताओं का अनुकूल हुआ है। पर मनुष्य के साथ उल्टा ही हुआ है। मानसिक सन्तुलन की दृष्टि से बीसवीं सदी का आदमी एक सदी पूर्व के मानव की तुलना में अधिक असन्तुलित है। उसकी प्रसन्नता सरसता, प्रफुल्लता, सुख और चैन जाने कौन ले गया? उत्तेजित उद्विग्न, चिन्तित, विक्षिप्तों-अर्धपागलों की ही पीढ़ी बढ़ती और चहुँ ओर डोलती दिखायी पड़ रही है। श्मशान में जलते रहने वाले उद्विग्न भूतों की तरह बहुसंख्यक आबादी की मानसिक चिन्ता एवं असन्तोष की अग्नि में जलते सहज ही सर्वत्र देखा जा सकता है। ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे-जैसे साधन सुविधाएँ बढ़ रही हैं, उसी अनुपात में मनुष्य की सुख-शान्ति भी छिनती जा रही है। यह इस बात का परिचायक है कि प्रगति रूप में कहीं कोई भारी भूल हो रही है।
विगत कुछ दशकों में चिकित्सा के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। निदान एवं उपचार की नयी तकनीकें विकसित हुई हैं। अधिकतम वैज्ञानिक यन्त्रों ने वे कार्य सम्भव कर दिखाये हैं जो पहले असम्भव समझे जाते थे। एक्सरे द्वारा भीतरी अंगों की टूट-फूट तथा आन्तरिक अवयवों में आये व्यतिरेकों की जानकारी प्राप्त कर लेना अब बीते युग की बात हो गयी। उस प्रणाली में कितनी ही नयी तकनीकें जुड़ चुकी हैं। कम्प्यूटर युक्त एक्सियल टोमोग्राफी द्वारा उससे भी सूक्ष्म जानकारियाँ प्राप्त करना सम्भव हो गया है। एक्सरे को टी.वी. कैथोड के ट्यूब तथा कम्प्यूटर से संलग्न कर देने पर शरीर के भीतरी अंगों तथा प्रणालियों में आयी गड़बड़ियों, ब्रेन ट्यूमर, रक्त क्षति, पित्त वाहिनी की बाधाओं आदि का पता लगाया जा सकता है। चिकित्सक एलेक्ट्रानिक मानीटरिंग द्वारा तीन माह तक के गर्भस्थ भ्रूण को भी अब देख सकता है। अल्ट्रा साउण्ड सिस्टम पर आधारित प्रणाली द्वारा गर्भ में पल रहे भ्रूण का प्रगति क्रम मालूम किया जा सकता है।
‘कोरोनरी बाई-पास सर्जरी’ के विकास के रुग्ण हृदय धमनी वालों को नवजीवन मिला है। कृत्रिम हृदय आरोपण में आशातीत सफलता मिली है। आँखों के सफल प्रत्यारोपण के अन्धों को भी नेत्र ज्योति मिलने लगी है। अल्ट्रासोनिक तरंगों से सही निदान एवं समर्थ उपचार की विधियाँ खोज निकाली गयी हैं। अब अल्ट्रा साउण्ड स्कैन में हाइ फ्रीक्वेन्सी पर ध्वनि तरंगों द्वारा चिकित्सकों को सूक्ष्मतम जानकारियाँ प्राप्त करना सुलभ हो गया है।
क्रायो एवं माइक्रो सर्जरी के क्षेत्र में आशातीत सफलताएँ मिली हैं। तीन आयामीय दृश्य दर्शाने वाले माइक्रोस्कोपों के सहयोग से सर्जरी की पहुँच शरीर के उन मर्मस्थलों तक हो चुकी है जिसे पहले असम्भव समझा जा रहा था। पहले प्रायः मस्तिष्क के ट्यूमर, पिट्यूटरी ग्लैण्ड तथा रीढ़ के आपरेशन इस भय से नहीं किये जाते ये कि अधिक उग्र समस्याएँ न पैदा हो जायें। पर ऐसे नाजुक आपरेशन भी अब होने लगे हैं। उनमें सफलताएँ भी मिलने लगी है।
बायोमेडिकल क्षेत्र में हुई इन शोधों से नयी सफलताएँ वैज्ञानिकों को हस्तगत हुई हैं। कोलम्बिया प्रेस विटेरियन मेडिकल सेन्टर न्यूयार्क सिटी के प्रो. सी. एण्ड्रिव तथा एल. वैसेट ने टूटी हड्डियों को जोड़ने में इलेक्ट्रिक हिलिंग की नयी तकनीक विकसित की है। यह विलक्षण प्रयोग हजारों व्यक्तियों पर किया जा चुका है। इन वैज्ञानिकों का मत है कि खतरनाक सर्जिकल आपरेशनों की तुलना में यह प्रविधि कहीं अधिक सुरक्षात्मक तथा सफल है। क्लीण्टन कैम्पेयर नामक चिकित्सा शास्त्री का कहना है कि आर्थोरीडिक सर्जरी के क्षेत्र में यह नई खोज वरदान सिद्ध हुई है।
कम्प्यूटरों का प्रयोग विगत दिनों तक गणनाओं के लिए होता रहा है पर अब वे चिकित्सा के क्षेत्र में चिकित्सक जैसी भूमिका निभाने जा रहे हैं। इलेक्ट्रानिक डाक्टर्स के रूप में कम्प्यूटरों का विकास विशेषज्ञों द्वारा कर लिया गया है। पिट्स वर्ग विश्व विद्यालय के विशेषज्ञों ने ‘सेड्रेसियस’ नामक ऐसे इलेक्ट्रानिक कम्प्यूटर का निर्माण किया है जो अधिक तीव्रता तथा कुशलता से चार हजार रोगों का निदान, लक्षण, शारीरिक पहचान आदि कर सकता है। इस प्रकार के आविष्कारक डॉ. जैकमैयर का कहना है कि इसे पूर्णतया विकसित होने तथा प्रभावशाली बनने में कुछ वर्ष और भी लग सकते हैं। पर इस खोज से चिकित्सा जगत में एक क्रान्तिकारी शुरुआत होने जा रही है।
कुछ इलेक्ट्रानिक चिकित्साविदों ने सांख्यिकी विश्लेषण पद्धति के नये प्रयोगों द्वारा पेट के तीव्र दर्द के कारणों का पता लगाने में सफलता पायी है। जन्मजात हृदयरोग तथा आत्महत्या के इच्छुक रोगी की पहचान भी इस प्रणाली से हो सकती है। समय रहते आने वाले संकटों से सुरक्षा भी हो सकती है। प्रायः बड़े, सुविधा सम्पन्न चिकित्सालयों में अब तक कम्प्यूटर्स का अधिकतम उपयोग रोगी को प्रवेश दिलाने तथा खर्चे का बिल बनाने तक सीमित रहा था पर उनका कार्यक्षेत्र अब निदान एवं औषधि निर्धारण में भी होने की सम्भावनाऐं बन गयी हैं।
कम्प्यूटर अब मनोवैज्ञानिक परीक्षण का कार्य भी सम्भालेंगे। पिट्सवर्ग के वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक खोज निकाली है जिससे मिनेसोटा मल्टीफेजिक पर्सनालिटी इन्वेन्टरी (एम.एम.पी.आई.) जैसे समय साध्य मनोवैज्ञानिक परीक्षण भी अत्यन्त कम समय तथा खर्च में सम्पन्न हो सकेंगे। इस परीक्षण के लिए एक चिकित्सक को हजारों मनोवैज्ञानिक साहित्यों के सन्दर्भ ढूँढ़ने तथा याद रखने होते हैं जो उसके लिए कठिन है। पर कम्प्यूटर्स के लिए यह सब कठिन नहीं रहा।
सारा विवेचन यही तथ्य दर्शाता है कि आज के युग के मानव की शारीरिक देख-भाल एवं सुविधा विकास के लिए अगणित प्रकार के प्रयास चल रहे हैं। विज्ञान क्षेत्र की मूर्धन्य प्रतिभाएँ इस प्रयोजन में लगी हुई हैं। पर एक भयंकर भूल यह होती चली आ रही है कि मानवी व्यक्तित्व के सूक्ष्म घटकों- मन और अन्तःकरण की भारी उपेक्षा होती रही है। मनुष्य को विभिन्न इन्द्रियों से युक्त शरीर मात्र मान लेने की गलती ही है जिसने जीवन से जुड़ी अगणित समस्याओं को जन्म दिया है। मानसिक समस्वरता एवं गुणों के विकास पर ध्यान न देने- अन्तःकरण की भाव-सम्वेदनाओं को पोषण न मिलने से वे स्त्रोत खते चले जा रहे हैं जिसके कारण मनुष्य सही अर्थों में देव पुत्र माना जाता रहा है। अच्छा तो यह हो कि विज्ञान के प्रयास अध्यात्म विवेचनों से संगति बिठाते हुए भाव क्षेत्र में भी चल पड़ें। उसे मात्र मशीनी मानव नहीं सत्प्रवृत्तियों की पक्षधर सद्गुणों की समुच्चय इकाई बनाने हेतु अग्रसर हो।