• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • जो गलेगा, वही उगेगा
    • आवश्यक सूचना
    • मन का निरोध निग्रह
    • केषां न स्यादभिमतफला प्रार्थना ह्युत्तमेषु
    • Quotation
    • उत्थान और पतन में विचार-शक्ति की भूमिका
    • Quotation
    • तस्मे ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नमः
    • Quotation
    • डर (kahani)
    • भगवान जो इंसान बन गये
    • हम सब स्वरचित भाव लोक में रहते हैं।
    • Quotation
    • ध्यान योग की सर्वोत्तम साधना
    • Quotation
    • आभामण्डल रूपी विद्युत सम्पदा का सुनियोजन-सदुपयोग
    • Quotation
    • सूफी सन्त “सरमद”
    • Quotation
    • वास्तविक प्रगति और बलिष्ठता की कसौटी
    • Quotation
    • जो भी बनो आदर्श बनो (kahani)
    • हस्तरेखा और शरीर विज्ञान
    • Quotation
    • दृश्य आयामों से परे जीवन जीकर तो देखें
    • Quotation
    • अनुशासित जीवन ही श्रेयस्कर है।
    • Quotation
    • मोह के दल-दल से निकलें
    • स्वामी विवेकानन्द (kahani)
    • आनन्द खोजने अन्यत्र कहा जायें?
    • जीवन सत्ता की आधारभूत सात प्रवृत्तियां - 2
    • Quotation
    • कल्पना के फोटो (kahani)
    • मन का बुढ़ापा न आने दें
    • Quotation
    • ईसा के भारत में तीन वर्ष
    • Quotation
    • चमत्कारी सामर्थ्यों की पिटारी- अपने ही मस्तिष्क में
    • आत्मा किसी लिंग विशेष में रहने के लिए बाधित नहीं
    • Quotation
    • लोकांतरों के अन्तरिक्ष यान- भूलोक में
    • Quotation
    • अनोखी सूझ-बूझों का स्रोत
    • ज्योतिर्विज्ञान अन्तरिक्ष भौतिकी से समन्वित हो।
    • चार साधक (kahani)
    • परिस्थितियों पर जीवन विजय पाता रहा है।
    • Quotation
    • उठती उमंगों का उपयोग कहाँ करें?
    • बुद्धिमता सर्वोपरि सम्पदा
    • अनपढ़ व्यक्ति (kahani)
    • प्राण ही परमेश्वर है।
    • लुभाने वाली माया (kahani)
    • शब्द ब्रह्म की सिद्धि
    • Quotation
    • अन्तर्सत्ता का प्रचण्ड सूक्ष्मीकरण पुरुषार्थ
    • वर्चस् की सिद्धि एवं युग समस्याओं का समाधान
    • दृढ-विश्वास (kahani)
    • युग परिवर्तन- नियन्ता का सुनिश्चित आश्वासन
    • संसार का मालिक सर्वत्र संव्याप्त (kahani)
    • “महाप्राण से मिलन”
    • महाप्राण से मिलन (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • जो गलेगा, वही उगेगा
    • आवश्यक सूचना
    • मन का निरोध निग्रह
    • केषां न स्यादभिमतफला प्रार्थना ह्युत्तमेषु
    • Quotation
    • उत्थान और पतन में विचार-शक्ति की भूमिका
    • Quotation
    • तस्मे ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नमः
    • Quotation
    • डर (kahani)
    • भगवान जो इंसान बन गये
    • हम सब स्वरचित भाव लोक में रहते हैं।
    • Quotation
    • ध्यान योग की सर्वोत्तम साधना
    • Quotation
    • आभामण्डल रूपी विद्युत सम्पदा का सुनियोजन-सदुपयोग
    • Quotation
    • सूफी सन्त “सरमद”
    • Quotation
    • वास्तविक प्रगति और बलिष्ठता की कसौटी
    • Quotation
    • जो भी बनो आदर्श बनो (kahani)
    • हस्तरेखा और शरीर विज्ञान
    • Quotation
    • दृश्य आयामों से परे जीवन जीकर तो देखें
    • Quotation
    • अनुशासित जीवन ही श्रेयस्कर है।
    • Quotation
    • मोह के दल-दल से निकलें
    • स्वामी विवेकानन्द (kahani)
    • आनन्द खोजने अन्यत्र कहा जायें?
    • जीवन सत्ता की आधारभूत सात प्रवृत्तियां - 2
    • Quotation
    • कल्पना के फोटो (kahani)
    • मन का बुढ़ापा न आने दें
    • Quotation
    • ईसा के भारत में तीन वर्ष
    • Quotation
    • चमत्कारी सामर्थ्यों की पिटारी- अपने ही मस्तिष्क में
    • आत्मा किसी लिंग विशेष में रहने के लिए बाधित नहीं
    • Quotation
    • लोकांतरों के अन्तरिक्ष यान- भूलोक में
    • Quotation
    • अनोखी सूझ-बूझों का स्रोत
    • ज्योतिर्विज्ञान अन्तरिक्ष भौतिकी से समन्वित हो।
    • चार साधक (kahani)
    • परिस्थितियों पर जीवन विजय पाता रहा है।
    • Quotation
    • उठती उमंगों का उपयोग कहाँ करें?
    • बुद्धिमता सर्वोपरि सम्पदा
    • अनपढ़ व्यक्ति (kahani)
    • प्राण ही परमेश्वर है।
    • लुभाने वाली माया (kahani)
    • शब्द ब्रह्म की सिद्धि
    • Quotation
    • अन्तर्सत्ता का प्रचण्ड सूक्ष्मीकरण पुरुषार्थ
    • वर्चस् की सिद्धि एवं युग समस्याओं का समाधान
    • दृढ-विश्वास (kahani)
    • युग परिवर्तन- नियन्ता का सुनिश्चित आश्वासन
    • संसार का मालिक सर्वत्र संव्याप्त (kahani)
    • “महाप्राण से मिलन”
    • महाप्राण से मिलन (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1984 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


युग परिवर्तन- नियन्ता का सुनिश्चित आश्वासन

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 58 60 Last
प्रस्तुत समय की समस्याओं की तुलना समुद्र में बहते रहने वाले उस हिम खण्ड से की जा सकती है जिसका एक तिहाई से भी कम भाग ऊपर तैरता दिखाई देता है एवं शेष पानी में डूबा अदृश्य बना रहता है। जो नाविक इस तथ्य से अनभिज्ञ होते हैं, वे अनजाने विशाल समुद्र में अपने जहाजों को इनसे टकरा देते हैं एवं जीवन तथा सम्पदा खो बैठते हैं। आज जो दृश्यमान है, वही सब कुछ है, यह सोचने की आत्म-प्रवंचना हमें नहीं करना चाहिए। युद्धोन्माद , जघन्य स्तर के अपराध, पवित्र स्थलों का आश्रय लेकर धर्म के नाम पर हिंसा व अलगाववाद की दुहाई, सम्प्रदायवाद, जातीय आधार पर टिकी राजनीति के राज घरानों के जमाने के षडयंत्र एवं दुरभि सन्धियाँ बीसवीं सदी के इस सातवें-आठवें दशक की कुछ त्रासदी भरी महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हैं। इन्हें देखते-देखते गत पच्चीस वर्षों में हम मोटी चमड़ी के हो गये हैं। अब हमें ये समस्याएं नजर नहीं आतीं, जीवन का अभिन्न अंग लगती हैं। लेकिन जो भुक्त भोगी हैं, वे बहुसंख्य हैं एवं वे समस्याओं का समाधान किसी भी स्थिति में चाहते कि विश्व-वसुधा की नैया युग विभीषिकाओं के इस आइसबर्ग से टकरा-टकरा कर चूर-चूर हो जाए। नियन्ता भी यह नहीं चाहता। चाहता होता तो सृष्टि रचता ही क्यों? उस परमसत्ता की एक ही इच्छा है कि मानवी पराक्रम- आत्मबल स्वयमेव उभर कर आए और इन विध्वंसक शक्तियों से मोर्चा ले। श्रुति का कथन सच है कि आत्मबल का पूरक परमात्म बल है। वह परमसत्ता तभी अपनी भूमिका निभाने आगे आती है जब मनुष्य अपने सारे प्रयास कर थक जाता है एवं रक्षा हेतु गुहार लगाता है।

जो समझदार हैं, वे समय की इस विषमता को भली-भाँति समझते हैं। वे जानते हैं कि बड़े राष्ट्रों द्वारा अस्त्र एकत्र कर लेने का अर्थ है- सामूहिक आत्मघात। बढ़ती जनसंख्या एवं संव्याप्त प्रत्यक्ष एवं परोक्ष प्रदूषण की परिणति भी वे जानते- भली-भांति समझते हैं। वे इस तथ्य से भी अवगत हैं कि पूँजी के आधार पर विलासिता की पृष्ठभूमि पर एवं चिन्तन को विकृत कर देने वाले साधनों के बलबूते यह विश्व-तकनीकी दृष्टि से कितना भी बढ़ा-चढ़ा होने पर भी वस्तुतः विनाश को ही प्राप्त होगा। इस सम्बन्ध में द्वितीय विश्वयुद्ध के समय फ्राँस के आश्चर्यजनक पतन का प्रसंग उल्लेखनीय है। जर्मनी के खूंखार डिक्टेटर हिटलर ने जब नस्लवाद के नाम पर अपनी विनाश लीला का आरम्भ किया तब पोलैंड तो उसने पहले ही दाँव में धूर्तता से हथिया लिया। उसके समक्ष एक विस्तृत साम्राज्य फ्रांस का था जिसे हस्तगत करने पर विश्व विजय की सबसे बड़ी बाधा दूर हो जाती। विदेशी आक्रामकों के बर्बर इरादों से अनभिज्ञ फ्रांसीसी सुरक्षा के स्थान पर विलासिता के मद में चूर बने हुए थे। हिटलर ने अपनी शक्ति, सैनिक बल, धन इस कार्य में अधिक नष्ट करना उचित न समझा। सुरा-सुन्दरी के नशे में डूबे फ्रांसीसियों ने मात्र चौबीस घण्टे में आत्म समर्पण कर दिया और हिटलर फ्रांस में अपना झण्डा फहरा कर नये मोर्चे की तैयारी करने लगा। तत्कालीन विचारकों ने चिन्तन करने पर पाया कि आत्मबल की दृष्टि से हीन, खोखले नागरिकों को जीता नहीं गया, उन्होंने स्वयं आत्म समर्पण कर दिया।

जिन्हें भगवान ने थोड़ी भी समझ दी है वे भली-भाँति जानते हैं कि आज सारे विश्व की स्थिति लगभग वैसी ही है जैसी द्वितीय विश्व युद्ध के समय थी। राष्ट्रीयता, नैतिक अनुशासन मात्र किताबों में लिखने के लिये रह गया है। अश्लील साहित्य हमारे अपने ही देश में नहीं सारे विश्व में इतनी बड़ी मात्रा में छपता व नित्य पढ़ा जाता है जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती। नशीली दवाओं की खपत नित्य बढ़ती चली जा रही है। हशीश, कोकीन, चरस, गाँजा, हिरोइन जैसी घातक वस्तुओं की एक से दूसरे, दूसरे से तीसरे देश में तस्करी का ऐसा जाल बिछा हुआ है जो तोड़े नहीं टूटता। फिल्मों ने ऐसे अवसर पर एक उत्प्रेरक (केटेलिस्ट) की भूमिका निभाने का दायित्व उठाया है। वे अपराधों, कामुकता, व्यभिचार, उच्छृंखलता एवं आत्मघाती उन्मादी मनोवृत्ति को जन्म देने वाली प्रवृत्तियों को ही प्रश्रय देती नजर आती है।

समाचार पत्रों ने पत्र-पत्रिकाओं ने भी मानों नैतिक अनुशासन के पतन में भागीदार बनने का दायित्व अपने हाथों में ले लिया है। मात्र वे ही समाचार प्रकाश में आते हैं जिनसे अन्यों को, उन्हीं का अनुकरण करने की प्रेरणा मिले। राज्य प्रमुखों- राष्ट्राध्यक्षों- प्रशासनिक कर्मचारी वर्गों में ईमानदारी का अंश उतना ही है जितना कि पानी मिले दूध में घी का हो सकता है। ये एक ओर देश भक्ति की दुहाई देते हैं, दूसरी ओर क्षेत्रवाद जातिवाद का नारा लगाते हैं। आज एक दल में हैं तो कल अन्तरात्मा की पुकार पर दूसरे दल में पहुँच कर निष्ठावान होने की शपथ गीता पर हाथ रख कर लेते हैं। एक वर्ग उनका रह जाता है जिन्हें हम अर्थतन्त्र की बागडोर संभालने वाले पूँजीपति नाम दे सकते हैं। अपनी मनमर्जी से मिलावट, रिश्वतखोरी, का आश्रय लेकर चरित्रहीन व्यक्ति धन-कुबेर बन बैठे उन सभी को अंगूठा दिखाते नजर आते हैं जो दिन भर मेहनत कर आधा पेट भरने लायक रोटी भी नहीं कमा पाते।

लेकिन अब यह स्थिति अधिक दिन तक चलने वाली नहीं है। भले ही बहुसंख्यक व्यक्तियों की स्थिति उन बकरों की तरह हो, जिन्हें कसाई ग्रह ले जाने से पूर्व घास खिलायी जा रही हो व वे आगत के प्रति अनभिज्ञ हों, एक ऐसा वर्ग भी है जो भले-बुरे परिणामों को समझता व विश्व के नव निर्माण हेतु अपना पुरुषार्थ जुटाता है। भले ही इसमें उन्हें तात्कालिक हानि दिखाई पड़े वे विषम परिस्थितियों से जूझने हेतु विलम्ब न कर मोर्चा जुटाते एवं ऐसी रणनीति बनाते हैं जिससे अनीति अभाव एवं अज्ञान मिटे, सतयुगी प्रकाश धरती पर आए।

भारतभूमि सदा से युग परिवर्तन की महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आयी है। समय-समय पर पूर्वानुमानों एवं दिव्य दृष्टि के आधार पर अपना मत व्यक्त करने वाले देश-विदेश के मनीषियों ने कहा है कि जब-जब भी दैवी विपत्तियां बढ़ी हैं एवं मानव आसुरी आचरण में प्रवृत्त हुआ है, इस देवभूमि से उद्भूत दिव्यात्माओं ने ही युग परिवर्तन की महती भूमिका निभायी है। स्वतन्त्रता संग्राम में जितना श्रेय प्रत्यक्ष क्रियाशील क्रांतिकारियों एवं स्वाधीनता सैनिकों को दिया जाता है, उससे अधिक इन दिव्य दृष्टि सम्पन्न व्यक्तियों ने उन सिद्ध महापुरुषों को दिया है जिन्होंने वातावरण बनाने हेतु तप-साधना की, परोक्ष में क्रियाशील रहे एवं युग परिवर्तन की प्रचंड आंधियां ला सकने में समर्थ हुए। रामकृष्ण परमहंस, विवेकानन्द से लेकर रामतीर्थ, योगीराज अरविन्द, महर्षि रमण आदि का नाम इसी सन्दर्भ में लिया जाता है। जिनका नाम इस सूची में नहीं है, वे सदा से उत्तराखण्ड की कंदराओं में तप साधना में निरत हैं एवं सारे लीला संदोह को देख रहे हैं जो प्रत्यक्ष में दृश्यमान है, परोक्ष में घटने वाला है।

परिवर्तन शब्द कहने-सुनने में सरल है, रुचिकर भी है तथा अभीष्ट भी। किन्तु विडम्बना एक ही है कि लगभग असंभव तो नहीं किन्तु कष्टसाध्य इस प्रक्रिया को सम्पन्न करने के लिये न तो साधन जुटाने से काम चल सकता है, न ही अनथक परिश्रम से कोई प्रयोजन सध सकता है। इस प्रयोजन की पूर्ति हेतु तो आदर्शवादी श्रद्धा का उथला नहीं गहरा स्तर चाहिए। यह जब तक न होगा सारे बाह्योपचार निरर्थक हैं। युग बदल सकने में समर्थ इस बहूमूल्य पूँजी का भाण्डागार मानवी व्यक्तित्व के गहन अन्तराल में छिपा पड़ा है जिसे कुरेदने, उभारकर प्रखर बनाने भर की आवश्यकता है। यही समस्त समस्याओं का समाधान है। यदि आस्थाओं में आमूल-चूल परिवर्तन हो, उनका सुनियोजन हो गया तो मानना चाहिए कि श्रुति की मान्यतानुसार कलियुग चला गया एवं सतयुग का पदार्पण हो गया।

हम इसी आशावादी दृष्टिकोण के साथ उन चिरायु तपस्वी ऋषियों की युग साधना में सहभागी बने हैं कि नवयुग अवश्य आयेगा। वह श्रद्धायुग कहा जाएगा। आस्थाओं के स्तर के मीटर के आधार पर ही किसी की महानता-क्षुद्रता का मूल्यांकन किया जाएगा। महाप्रज्ञा का तत्वदर्शन जन-जन के मन-मन में प्रविष्ट होगा एवं विवेक का सारथी उन मूर्धन्यों की ज्ञानेन्द्रियों का संचालन करेगा जिनके हाथों में अर्थ, सुरक्षा, शासन एवं विचार तंत्र है। सूक्ष्मीकरण साधना के इस पुरुषार्थ के बलबूते ही हम यह कह सकते हैं कि छोटे-छोटे अकिंचन माने जाने वाले मनुष्य इतनी समर्थ भूमिका निभाएंगे कि पर्वत जैसी अवांछनीयताओं को उलट पाना एवं स्वाति वर्षा जैसी सत्प्रवृत्तियों का नन्दन वन उगा सकना सम्भव हो सके। जो समर्थ होता है, वही पुरुषार्थ कर दिखाने का दावा कर सकता है। विचार-क्रान्ति शब्द तो अच्छा है किन्तु व्यवहार में इसे प्रयुक्त कर दिखाने के लिये एक समर्थ, दैवी तन्त्र का संरक्षण चाहिए। हमारा दावा है कि असंभव को संभव कर दिखाने का यह पुरुषार्थ आगामी पन्द्रह वर्षों में सम्पन्न होकर रहेगा। विवेक और श्रद्धा के जिस समन्वित ऋतम्भरा रूप का- आद्य शक्ति का अवलम्बन कर लिया है, उसमें लाखों-करोड़ों को अपना सहयोगी बनाया है। प्रत्यक्ष जितना किया जा सकता था, हो चुका। वह पृष्ठ भूमि तैयार हो चुकी जो नियन्ता को अभीष्ट थी। अब राष्ट्रीय नहीं, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर “ग्लोबल क्राइसिस” के निवारणार्थ परोक्ष भूमिका ही अभीष्ट थी। मौन-नितान्त एकाकी पुरुषार्थ क्या कुछ कर सकेगा, अन्तः में श्रद्धा का बीजारोपण कर कैसे वाँछित प्रयोजन कर सकेगा, इसे विश्व स्तर पर देखा जा सकना अगले दिनों सम्भव होगा।

इतिहास भी इस तथ्य का साक्षी है कि जब-जब भी बिगाड़ बेकाबू हुआ है, उसे नियंत्रित करने हेतु महाकाल रूपी महावतों की मार ही सफल हो पाई है। प्रकारान्तर से इसे भगवान के अवतार की संज्ञा भी दी जा सकती है। अदृश्य युग प्रवाह का विनिर्मित होना ही प्रज्ञावतरण है। समझ जब काम नहीं करती, तब अदृश्य जगत से- परोक्ष के व्यवस्था उपक्रम से यह अपेक्षा की जाती है कि वह इस धरती को महाविनाश के गर्त में जाने नहीं देगा। जिसकी इच्छा से इस सृष्टि का प्रारूप बना व मानव रूपी युवराज जन्मा, उसे जगती का वर्तमान चोला ही पसन्द है यह सोचना नासमझी है। नियन्ता ने सदैव संतुलन स्थापित करने हेतु दौड़ लगाने का अपना वचन निबाहा है।

इन दिनों भले ही प्रत्यक्ष में तमिस्रा का व्यापक साम्राज्य संव्याप्त नजर आता हो। वह दैवी सत्ता निराकार रूप में देखते-देखते एक छोटा-सा सूरज उगाकर सारी परिस्थितियाँ उलट सकती है। हरीतिमा रहित ठूंठों पर वासन्ती बहार ला देना उसके लिए बाँये हाथ का खेल है। इसके लिए ऋषि-महामानव सदा-सदा से ही अवतरित होते रहे हैं। वर्तमान क्रिया-कलापों में उस दैवी चेतना के सक्रिय क्रियान्वयन को ज्ञान-चक्षुओं द्वारा देखा जा सकता है। अन्यथा यह उमंग कैसे उठती, जिसने इस दैवी मिशन को कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया। जो इतना समझते हैं, वे इस आश्वासन को भी सुनिश्चित समझें कि समय बदलेगा, नासमझी का स्थान विवेकशीलता लेगी और समग्र सूत्र-संचालन सोये मूर्धन्यों के हाथों से निकलकर जागृतात्माओं के हाथों में आएगा। हमारी अन्तर्मुखी एकाकी साधना को उसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है।

First 58 60 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • जो गलेगा, वही उगेगा
  • आवश्यक सूचना
  • मन का निरोध निग्रह
  • केषां न स्यादभिमतफला प्रार्थना ह्युत्तमेषु
  • Quotation
  • उत्थान और पतन में विचार-शक्ति की भूमिका
  • Quotation
  • तस्मे ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नमः
  • Quotation
  • डर (kahani)
  • भगवान जो इंसान बन गये
  • हम सब स्वरचित भाव लोक में रहते हैं।
  • Quotation
  • ध्यान योग की सर्वोत्तम साधना
  • Quotation
  • आभामण्डल रूपी विद्युत सम्पदा का सुनियोजन-सदुपयोग
  • Quotation
  • सूफी सन्त “सरमद”
  • Quotation
  • वास्तविक प्रगति और बलिष्ठता की कसौटी
  • Quotation
  • जो भी बनो आदर्श बनो (kahani)
  • हस्तरेखा और शरीर विज्ञान
  • Quotation
  • दृश्य आयामों से परे जीवन जीकर तो देखें
  • Quotation
  • अनुशासित जीवन ही श्रेयस्कर है।
  • Quotation
  • मोह के दल-दल से निकलें
  • स्वामी विवेकानन्द (kahani)
  • आनन्द खोजने अन्यत्र कहा जायें?
  • जीवन सत्ता की आधारभूत सात प्रवृत्तियां - 2
  • Quotation
  • कल्पना के फोटो (kahani)
  • मन का बुढ़ापा न आने दें
  • Quotation
  • ईसा के भारत में तीन वर्ष
  • Quotation
  • चमत्कारी सामर्थ्यों की पिटारी- अपने ही मस्तिष्क में
  • आत्मा किसी लिंग विशेष में रहने के लिए बाधित नहीं
  • Quotation
  • लोकांतरों के अन्तरिक्ष यान- भूलोक में
  • Quotation
  • अनोखी सूझ-बूझों का स्रोत
  • ज्योतिर्विज्ञान अन्तरिक्ष भौतिकी से समन्वित हो।
  • चार साधक (kahani)
  • परिस्थितियों पर जीवन विजय पाता रहा है।
  • Quotation
  • उठती उमंगों का उपयोग कहाँ करें?
  • बुद्धिमता सर्वोपरि सम्पदा
  • अनपढ़ व्यक्ति (kahani)
  • प्राण ही परमेश्वर है।
  • लुभाने वाली माया (kahani)
  • शब्द ब्रह्म की सिद्धि
  • Quotation
  • अन्तर्सत्ता का प्रचण्ड सूक्ष्मीकरण पुरुषार्थ
  • वर्चस् की सिद्धि एवं युग समस्याओं का समाधान
  • दृढ-विश्वास (kahani)
  • युग परिवर्तन- नियन्ता का सुनिश्चित आश्वासन
  • संसार का मालिक सर्वत्र संव्याप्त (kahani)
  • “महाप्राण से मिलन”
  • महाप्राण से मिलन (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj