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Magazine - Year 1986 - Version 2

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अन्य लोकों में भी जीवन है।

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हमारी आकाश गंगा में प्रायः एक करोड़ नक्षत्र हैं। ऐसी अगणित आकाश गंगाएँ विराट् ब्रह्मांड में हैं। प्रत्येक आकाश गंगा में प्रायः इतने ही नक्षत्रों की सम्भावना है जितनी कि अपनी आकाश गंगा में। इतने ग्रह नक्षत्रों को सर्वथा निर्जीव नहीं माना जा सकता। अनुमान है कि समूचे ब्रह्मांड में प्रायः एक हजार तो ऐसे नक्षत्र होने चाहिए जैसे कि पृथ्वी की विकसित सभ्यता है। उनमें से कितने ही अविकसित स्तर के प्राणी हो सकते हैं पर कितनों में ही मनुष्य की तुलना में अधिक बुद्धिमान प्राणी हो सकते हैं।

दक्षिण अमेरिका के सेरो डिपास्को क्षेत्र के प्लूरियोरिकन कस्बे में एक शक्तिशाली रेडियो दूरबीन लगाई गई है, जिसका व्यास एक हजार फुट है। इसके शक्तिशाली लेन्सों द्वारा देखे जाने पर ब्रह्मांड की स्थिति सम्बन्धी बहुत कुछ जानकारियाँ मिलती हैं। मिली सूचनाओं में से एक यह भी है कि सम्भवतः मनुष्य की तुलना में कहीं अधिक बुद्धिमान प्राणी अन्य लोकों में विद्यमान है। इतना ही नहीं, वे अन्य ग्रहवासी बुद्धिमानों के साथ अपने सम्बन्ध बनाने के लिए, उनकी जानकारियाँ प्राप्त करने के लिए निरन्तर अपने विकसित साधनों के सहारे प्रयत्न करते रहते हैं।

सुप्रसिद्ध खगोल शास्त्री कार्ल एडवर्ड साँगा ने खगोल विज्ञान सम्बन्धी नई शोधें की हैं और इस निश्चय पर पहुँचें हैं कि ब्रह्मांड में अन्यत्र भी जीवन है और वह मनुष्य से कहीं अधिक बुद्धिमान तथा साधन सम्पन्न हैं।

कहा जाता है कि अन्य ग्रहों में भी पृथ्वी जैसी परिस्थितियों न होने से वहाँ विकसित स्तर का जीवन होने में सन्देह है। इस सन्देह का निवारण शिकागो विश्व-विद्यालय के विज्ञानी स्टेनले मिलर ने अपनी प्रयोगशाला में अन्यान्य परिस्थितियों में जीवन को विकसित करके दिखाया है। रूस के वैज्ञानिक इयोशेफ्लेवलीवस्की ने अपने ग्रन्थ “द इन्टेलिजेण्ट लाइफ इन द यूनीवर्स” में इस तथ्य की पुष्टि की है कि अकेले पृथ्वी पर ही बुद्धिमान प्राणी नहीं रहते।

अमेरिकन ऐसोसिएशन फार द एडवान्समेण्ट ऑफ साइंसेज (ए. ए. ए. एस) नामक संस्था ने उड़न तश्तरियों के सम्बन्ध में अपना अभिमत “साइन्स” पत्रिका में व्यक्त किया है कि वे दृष्टिभ्रम अथवा प्रकृति प्रवाह का मायाजाल नहीं है। इनमें से अनेकों में जीवनधारी प्राणियों और खोजी उपकरणों का प्रमाण पाया गया है। अमेरिका की यू. एफ. ओ. ऐसोसिएशन तो बाकायदा ऐसे कई प्रामाणिक तथ्यों का संकलन कर चुकी है।

कहा जाता है कि शीत या ताप की अधिकता में जीवन विकसित नहीं हो सकता। किन्तु पाया गया है कि 160 अंश फा. तक के उबलते हुए तापमान में भी जीवन अपना अस्तित्व बनाये रखता है। साथ ही शून्य से 100 डिग्री फा. कम वाली ठण्डक में भी वे हो सकते हैं। उनकी शारीरिक संरचना ऐसी होती है कि असह्य शीत या ताप के मध्य भी अपना क्रिया-कलाप जारी रख सकते हैं।

सौर मण्डल के अन्य ग्रहों के सम्बन्ध में भी जो नवीनतम खोजें हुई हैं, उनसे सिद्ध होता है कि उनमें भी विकसित जीवन रहा है और वह सिकुड़े हुए रूप में अभी भी स्वाभाविक स्थिति में अपना अस्तित्व बनाये हुए हैं। जीवन तत्व (प्रोटोप्लाज्म) अन्तरिक्ष की घातक किरणों से केवल मूर्च्छित होता है, नष्ट नहीं। पानी को जीवन का आधार माना गया है। वह ऑक्सीजन और हाइड्रोजन के सम्मिश्रण से बनता है, किन्तु उसके दूसरे विकल्प भी हैं। पृथ्वी के आरम्भिक काल में जब जीवन का प्रादुर्भाव हो रहा था, तब यहाँ के वायुमण्डल में हाइड्रोजन, अमोनिया, मीथेन आदि गैसीय तत्वों का बाहुल्य था। पानी इस रूप में नहीं था। पानी की आवश्यकता अमोनिया से भी पूरी होती रह सकती है, ऐसा ब्रह्मांड वैज्ञानिकों का मत है।

चन्द्रमा, मंगल और शुक पृथ्वी के निकटतम पड़ौसी हैं। इनके बीच कितनी ही तरंगों का आदान-प्रदान चलता रहता है। इस आधार पर अभी भी वैज्ञानिक क्षेत्र की यह मान्यता है कि इन ग्रहों से पृथ्वी पर या पृथ्वी से इन ग्रहों पर भी जीवन तत्व का आदान-प्रदान होता रहता होगा। इससे निष्कर्ष निकलता है कि वहाँ किसी न किसी प्रकार का ऐसा जीवन होगा जो अपने क्षेत्र में न पाई जाने वाली सामग्री को एक दूसरे के अनुदानों के सहारे उपलब्ध करता होगा।

सेविले (स्पेन) में सम्पन्न हुए जीव विज्ञान के 24 वें अन्तरिक्षीय सम्मेलन (कास्मो बायोलॉजीस्टर कान्फ्रेन्स) में विश्व के प्रमुख वैज्ञानिकों ने इस तथ्य को मान्यता प्रदान की कि ब्रह्मांड में विकसित स्तर का जीवन मौजूद है। उसके साथ संपर्क बढ़ाकर हमें अपने ज्ञान एवं सुविधा साधनों की अभिवृद्धि करना चाहिए।

मेरी लैण्ड यूनिवर्सिटी (यू. एस. ए.) के विकास विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डा. सिरिल पेरुमान ने कहा कि परिस्थितियां जीवन को सीमित नहीं कर सकतीं। जीवन तत्व की यह विशेषता है कि वह हर प्रकार की परिस्थितियों के अनुरूप ढांचे में ढालकर अपनी सत्ता बनाये रह सकता है।

इस मान्यता को यू.सी.एल.ए. के मैलकिन कालनन शिकागो यूनिवर्सिटी के डॉ. हैराल्ड पूरे, मियामी यूनिवर्सिटी के सिडनी फाक्स आदि ने अपने-अपने ढंग से व्यक्त किया है। एल्डुअस हक्सले ने अपने ग्रन्थ “दि ब्रेव न्यू वर्ल्ड” में यह अनुमान लगाया है कि किस ग्रह की कैसी परिस्थितियों में वहाँ किस प्रकार के, किस आकृति-प्रकृति के जीवधारी हो सकते हैं और वे किस प्रकार प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना कर सकते हैं।

पृथ्वी पर उल्कापात का सिलसिला बराबर चलता रहता है। जैसाकि सभी जानते हैं, आयन मण्डल रूपी छत्र के कारण कुछ तो वायुमण्डल में प्रवेश करते ही जल जाती हैं। लेकिन कुछ कभी-कभी जमीन तक आ पहुँचती है। ऐसे कितने ही खण्ड अभी तक पाये गए हैं, उनसे पता चलता है कि उल्का क्षेत्र में खनिजों, गैसों तथा रसायन का ऐसा बाहुल्य है, जिनमें किसी न किसी प्रकार के जीवन का उद्भव हो सकता है। जीवन विकास के मूल-भूत सिद्धान्तों के आधार पर अन्य लोकों में जीवन विकास की पूरी-पूरी गुँजाइश है।

आज तो हम मनुष्य-मनुष्य के बीच सद्भाव-सहकार का क्रम तक चलता रहता नहीं देखा जाता। मनुष्यों और पालतू पशुओं के बीच तक यह तारतम्य नहीं बना है, जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि समानता और एकता के सिद्धान्तों का निर्वाह बन पड़ा है। एक दूसरे शोषण की आपाधापी ही इन दिनों चल रही है। किन्तु वह दिन दूर नहीं कि प्रस्तुत अनगढ़पन का अन्त होगा और स्नेह सहयोग न्यायोचित निर्वाह का क्रम चल पड़ेगा। नवयुग की यही विशेषता होगी कि पदार्थों को ही सब कुछ न मानकर आदर्शों को व्यवहार में उतारा जायेगा।

इससे भी एक कदम आगे बढ़कर सच्चे विज्ञान की प्रगति हमें यह भी सिखायेगी कि ग्रह नक्षत्रों के बीच भी जीवधारी आदान-प्रदान की शैली अपनायें और अपनी उपलब्धियों से अन्य लोकवासियों को उसी प्रकार का लाभ पहुंचायें जैसा कि जीवात्मा की गरिमा के अनुरूप पहुँचाया जाना चाहिए।

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