• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • समग्र श्रेष्ठता विकसित करें
    • अभी कमी है देवि!
    • सूक्ष्म शरीर का दिव्यीकरण
    • जालन्धर का (kahani)
    • प्रेम एक - रूप अनेक
    • Quotation
    • आत्मोत्कर्ष के चार साधन....
    • Quotation
    • दृष्टिकोण का परिष्कार
    • Quotation
    • जीता कौन?
    • मनोनिग्रह और दिव्य शक्तियों का विकास
    • बुद्ध ने अपने ही मार्ग पर शिष्यों को भी चलाया (kahani)
    • प्रत्याहार साधना का स्वरूप और उद्देश्य
    • Quotation
    • आत्म साक्षात्कार - आत्मबोध
    • Quotation
    • विज्ञान ही नहीं अध्यात्म भी
    • Quotation
    • धर्म गाथाओं के साथ इतिहास न जोड़ें
    • चुम्बकत्व का असाधारण प्रभाव
    • धरती पर चेतना अंतरिक्ष से उतरी
    • मनुष्य की बलिष्ठ आत्म चेतना
    • मरणासन्न डार्विन (kahani)
    • भेड़ियों द्वारा पाले गये मनुष्य के बच्चे
    • जीवधारियों की विलक्षण चेतना शक्ति
    • रंगों की दुनिया का वैज्ञानिक विवेचन
    • स्वामी रामतीर्थ (kahani)
    • अन्य लोकों में भी जीवन है।
    • Quotation
    • प्राण विद्युत के भले-बुरे उपयोग - 1
    • Quotation
    • आयुर्वेद की पुरातन महिमा किस प्रकार जीवन्त हो
    • कवि वल्लातोल (kahani)
    • संगीत से सरसता की अभिवृद्धि
    • अपने पाप सबके सामने प्रकट करना (kahani)
    • इक्कीसवीं सदी की परिणति
    • विशेषज्ञ के पास पहुँचा (kahani)
    • गायत्री की महान महत्ता
    • महाभारत युद्ध में मरे योद्धा(kahani)
    • भोजन के साथ श्रद्धा और आनन्द जुड़ा रखें
    • बिगड़ती परिस्थितियों का एक मात्र उपचार
    • Quotation
    • शरीर की रुग्णता में मनोविकार प्रधान कारण
    • Quotation
    • अपनों से अपनी बात
    • तुम्हें अपने किये का फल मिल गया (kahani)
    • पंचकोशी-संपदा
    • पंचकोशी-संपदा (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • समग्र श्रेष्ठता विकसित करें
    • अभी कमी है देवि!
    • सूक्ष्म शरीर का दिव्यीकरण
    • जालन्धर का (kahani)
    • प्रेम एक - रूप अनेक
    • Quotation
    • आत्मोत्कर्ष के चार साधन....
    • Quotation
    • दृष्टिकोण का परिष्कार
    • Quotation
    • जीता कौन?
    • मनोनिग्रह और दिव्य शक्तियों का विकास
    • बुद्ध ने अपने ही मार्ग पर शिष्यों को भी चलाया (kahani)
    • प्रत्याहार साधना का स्वरूप और उद्देश्य
    • Quotation
    • आत्म साक्षात्कार - आत्मबोध
    • Quotation
    • विज्ञान ही नहीं अध्यात्म भी
    • Quotation
    • धर्म गाथाओं के साथ इतिहास न जोड़ें
    • चुम्बकत्व का असाधारण प्रभाव
    • धरती पर चेतना अंतरिक्ष से उतरी
    • मनुष्य की बलिष्ठ आत्म चेतना
    • मरणासन्न डार्विन (kahani)
    • भेड़ियों द्वारा पाले गये मनुष्य के बच्चे
    • जीवधारियों की विलक्षण चेतना शक्ति
    • रंगों की दुनिया का वैज्ञानिक विवेचन
    • स्वामी रामतीर्थ (kahani)
    • अन्य लोकों में भी जीवन है।
    • Quotation
    • प्राण विद्युत के भले-बुरे उपयोग - 1
    • Quotation
    • आयुर्वेद की पुरातन महिमा किस प्रकार जीवन्त हो
    • कवि वल्लातोल (kahani)
    • संगीत से सरसता की अभिवृद्धि
    • अपने पाप सबके सामने प्रकट करना (kahani)
    • इक्कीसवीं सदी की परिणति
    • विशेषज्ञ के पास पहुँचा (kahani)
    • गायत्री की महान महत्ता
    • महाभारत युद्ध में मरे योद्धा(kahani)
    • भोजन के साथ श्रद्धा और आनन्द जुड़ा रखें
    • बिगड़ती परिस्थितियों का एक मात्र उपचार
    • Quotation
    • शरीर की रुग्णता में मनोविकार प्रधान कारण
    • Quotation
    • अपनों से अपनी बात
    • तुम्हें अपने किये का फल मिल गया (kahani)
    • पंचकोशी-संपदा
    • पंचकोशी-संपदा (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1986 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


संगीत से सरसता की अभिवृद्धि

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 34 36 Last
सम्पन्नता, बलिष्ठता, सुन्दरता, विद्वता, प्रतिभा आदि विभूतियों की क्षमता से सभी परिचित हैं। जिनके पास यह विशिष्टताएँ जितनी अधिक मात्रा में हैं वह उतना ही अधिक गौरवान्वित होता और प्रसन्नता अनुभव करता है। इनमें से जो जितनी मात्रा में कम है, उन्हें उतना ही दरिद्र या पिछड़ा हुआ समझा जाता है।

पर यह सभी ऐसी हैं जो प्रयत्न और परिस्थितियों के तालमेल से हस्तगत होती हैं जिन्हें अवसर नहीं मिलता वे इच्छा रहते हुए भी उनमें से किन्हीं को भी प्राप्त नहीं कर पाते।

पर इन सबसे बढ़कर एक और सम्पन्न है, वह है प्रसन्नता। यह पूर्णतया अपने व्यक्तित्व पर निर्भर है। उसे प्राप्त करने के लिए सरसता की आवश्यकता है न कि साधनों की। उमंगें ही स्वभाव को भावनाशील बना कर इस विभूति को अभीष्ट मात्रा में उपलब्ध कराती हैं। अपनी परिस्थितियों, उपलब्धियों पर सन्तोष करके और पिछड़ों के साथ अपनी तुलना करते हुए यह सोचा जा सकता है कि जो असंख्यों को नहीं मिला, वह हमें मिला है। पूर्णतया तो किसी को भी नहीं मिली, पर जो जिसे जितना मिला है उसके लिए भी हो सकता है कि अनेकों तरसते हों। यह विचार सन्तुलन है, जो सहज ही प्रसन्नता प्रदान कर सकता है। अपने से सम्पन्नों के साथ अपनी तुलना की जायेगी तो सदा अपनी दरिद्रता का ही भान होता रहेगा और खिन्नता बनी रहेगी।

विचारणा से भी अन्तराल की गहराई में है- भावना। भावनाएँ प्रत्यक्ष विशेषताओं की तुलना में कहीं अधिक गहराई पर है। वे यदि उच्चस्तरीय हों तो संसार में जहाँ कहीं भी आनन्द है, उसमें से अपना भाग ले सकती हैं फूलों में प्रत्यक्ष नहीं, उनके अप्रत्यक्ष कलेवर में ऐसा मधुर रस होता है जिसे मधुमक्खी अपने मुख स्राव के साथ सम्मिलित करके मीठा बना लेती है। यों प्रत्यक्षतः फूल मीठे नहीं होते परन्तु वे जैसे भी कुछ हैं, मधुमक्खी के मुख में पहुँचने भर से मीठे बन जाते हैं।

अनेक सुखद वस्तुओं के साथ-साथ प्राकृतिक सौंदर्य भी ऐसा है कि यदि उसे भावनापूर्वक निहारते रहा जाय तो सब ओर आनन्द का निर्झर झरता दिखाई पड़ेगा। वन्य जीवन, घोंसले के पक्षी, एकान्तसेवी साधु इसी को भावनापूर्वक देखते और फूले नहीं समाते। बालकों को भी अपनी निश्छलता और निश्चिन्तता के कारण यह प्रकृति सौंदर्य लिपटने के लिए आमन्त्रित करता है और वे उसके निकट दौड़े चले जाते हैं।

आनन्द दायक अनेक प्रयोजनों में एक है- संगीत। वह यों वाद्य यन्त्रों और कण्ठ की मधुरता के साथ निस्सृत होता है। किन्तु बिना इनके भी आन्तरिक मस्ती के साथ अपने आपको लहराया जा सकता है। तरंगित करके उमंगों से भरा जा सकता है। प्रत्यक्ष साधनों से अपने अन्तरंग में उभरने वाले मस्ती अपने को ही नहीं, दर्शकों को भी तरंगित करती है। गायन, वादन, अभिनय तीनों को मिलाने से संगीत बनता है। इसका प्रयत्नपूर्वक अभ्यास भी किया जा सकता है। अथवा जहाँ इसका माहौल हो, वहाँ जाकर उस रस वर्षा का आनन्द लिया जा सकता है।

प्रसन्नता भरे अवसरों पर अक्सर संगीत का प्रबन्ध किया जाता है क्योंकि यह लागत की तुलना में लाभदायक अधिक है। भीतर से भावनापूर्वक संगीत की तरंगें उभारना निजी कौशल है। पर जिनमें यह स्वतः उद्भूत नहीं होता, वे संगीत के वातावरण में जाकर उसका आनन्द लाभ कर सकते हैं।

यों अमृत में भी विष मिलाया जा सकता है। दूध में खटाई डालकर उसे फाड़ा जा सकता है। रस में विष मिलाकर उसे मृत्युदूत बनाया जा सकता है। संगीत में कामुकता से मिलाकर उसे उत्तेजक तो बनाया जा सकता है, पर वह उत्तेजना ऐसी होती है, जैसी कि मद्यपान से मिलती है। क्षणिक उल्लास उत्पन्न करके मनुष्य की दशा वैसी हेय बना देती है जैसे नशे की खुमारी उतरने पर शराबी की होती है।

संगीत यदि निर्दोष हो तो उसमें मनुष्य की भावुकता भरी प्रसन्नता थिरकती है और वह नाड़ी समूह में सम्मिलित होकर एक ऐसा पोषण प्रदान करती है जो मन की हलका बनाने और उत्साह को जगाने में विशेष रूप से काम आता है।

थके हुओं की थकान उतारने के लिए विवाह शादियों में मंगल आयोजनों पर संगीत चलता है। लड़ाई में जाने वाले सैनिकों में उत्साह भरने के लिए बाजे बजाये जाते हैं। कथा के साथ कीर्तन जुड़ता है क्योंकि उत्तेजित भावनाओं में धर्मश्रद्धा का समावेश करना कहीं अधिक सरल पड़ता है। मध्यकालीन सन्तों ने अपनी प्रचार प्रक्रिया को सजीव,समर्थ और अन्तराल के मर्मस्थलों तक पहुँचाने के लिए संगीत का माध्यम अपनाया था। मीरा, सूर, कबीर आदि अधिकांश भाव जागृति के क्षेत्र में काम करने वालों ने संगीत का माध्यम अपनाया था। जो बड़ी मण्डली बना सकते थे वे चैतन्य महाप्रभु की तरह शानदार माहौल बनाते थे। जिन्हें उतना सरंजाम जुटाने की सुविधा नहीं थी, वे नारद की तरह एकाकी गायन वादन के दोनों कृत्य कर लेते थे।

शंकर का डमरू, सरस्वती की वीणा, कृष्ण की मुरली देवता और अवतारों के साथ भी आ जुड़ी थी। सच्चिदानन्द को, परब्रह्म की प्राप्ति में आनन्द का महत्वपूर्ण स्थान है और उसे जगाने बढ़ाने के लिए संगीत को भली प्रकार माध्यम बनाया जा सकता है।

शब्द ब्रह्म, नाद ब्रह्म की अध्यात्म तत्वज्ञान और साधना विधान में गहरी चर्चा है। इस साधना के प्रवीण पारंगत मेघ मल्हार गाकर वर्षा कराते और दीपक राग गाकर बुझी हुई ज्योति जलाते रहे हैं। यह प्रत्यक्ष भी हो सकता है और अलंकारिक भी। संगीत से शुष्क नीरस मनों में सरसता बरस सकती है और बुझे हुए उत्साह में नए सिरे से स्फूर्ति की ज्योति का उभार दृष्टिगोचर हो सकता है।

संगीत पर साँप लहराता है और हिरन चौकड़ी भरना भूल जाता है। यह उदाहरण मन की चंचलता और उद्दण्डता को भी नियन्त्रण में लाने के लिए प्रयुक्त हो सकता है। उद्विग्न, चिन्तित और असन्तुष्ट खिन्न विपन्न मनःस्थिति में संगीत का उपचार की तरह प्रयोग किया जा सकता है।

चिकित्सा विज्ञान के शोध संदर्भ में यह एक नया अध्याय जुड़ा है कि शारीरिक रोगों को संगीत की सहायता से सरलतापूर्वक अच्छा किया जा सकता है। इससे रक्त संचार और स्नायु शैथिल्य पर चमत्कारी प्रभाव प्रस्तुत होता देखा गया है। मानसिक रोगों में तो इसका प्रभाव और भी अधिक उत्साहवर्धक देखा गया है।

मन्दबुद्धि, विक्षिप्त, उद्विग्न, सनकी, आतुर आवेशग्रस्त लोगों को विशेष प्रकार की संगीत ध्वनियाँ सुनाकर रोगमुक्त किया गया है।

जापान में संगीत को बाल कक्षाओं में एक अनिवार्य विषय बना दिया गया है और बड़ी कक्षाओं में उसकी प्रवीणता प्राप्त करने के लिए कहा जाता है। सद्भावनाओं को उभारने और जीवन दिशा को आनन्द की ओर अग्रसर करने के लिए संगीत का महत्व सर्वत्र माना गया है।

First 34 36 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • समग्र श्रेष्ठता विकसित करें
  • अभी कमी है देवि!
  • सूक्ष्म शरीर का दिव्यीकरण
  • जालन्धर का (kahani)
  • प्रेम एक - रूप अनेक
  • Quotation
  • आत्मोत्कर्ष के चार साधन....
  • Quotation
  • दृष्टिकोण का परिष्कार
  • Quotation
  • जीता कौन?
  • मनोनिग्रह और दिव्य शक्तियों का विकास
  • बुद्ध ने अपने ही मार्ग पर शिष्यों को भी चलाया (kahani)
  • प्रत्याहार साधना का स्वरूप और उद्देश्य
  • Quotation
  • आत्म साक्षात्कार - आत्मबोध
  • Quotation
  • विज्ञान ही नहीं अध्यात्म भी
  • Quotation
  • धर्म गाथाओं के साथ इतिहास न जोड़ें
  • चुम्बकत्व का असाधारण प्रभाव
  • धरती पर चेतना अंतरिक्ष से उतरी
  • मनुष्य की बलिष्ठ आत्म चेतना
  • मरणासन्न डार्विन (kahani)
  • भेड़ियों द्वारा पाले गये मनुष्य के बच्चे
  • जीवधारियों की विलक्षण चेतना शक्ति
  • रंगों की दुनिया का वैज्ञानिक विवेचन
  • स्वामी रामतीर्थ (kahani)
  • अन्य लोकों में भी जीवन है।
  • Quotation
  • प्राण विद्युत के भले-बुरे उपयोग - 1
  • Quotation
  • आयुर्वेद की पुरातन महिमा किस प्रकार जीवन्त हो
  • कवि वल्लातोल (kahani)
  • संगीत से सरसता की अभिवृद्धि
  • अपने पाप सबके सामने प्रकट करना (kahani)
  • इक्कीसवीं सदी की परिणति
  • विशेषज्ञ के पास पहुँचा (kahani)
  • गायत्री की महान महत्ता
  • महाभारत युद्ध में मरे योद्धा(kahani)
  • भोजन के साथ श्रद्धा और आनन्द जुड़ा रखें
  • बिगड़ती परिस्थितियों का एक मात्र उपचार
  • Quotation
  • शरीर की रुग्णता में मनोविकार प्रधान कारण
  • Quotation
  • अपनों से अपनी बात
  • तुम्हें अपने किये का फल मिल गया (kahani)
  • पंचकोशी-संपदा
  • पंचकोशी-संपदा (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj