• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • साधक का आहार सात्विक हो
    • Quotation
    • सद्बुद्धि की अवधारणा
    • लानत है ऐसी दौलत पर
    • Quotation
    • निष्ठा आत्मशक्ति की निर्झरिणी
    • आत्म नियन्त्रण भी एकान्त में नहीं (Kahani)
    • ऐसी बची द्रौपदी की लाज
    • हिरन का पीछा (Kahani)
    • उपासना का स्वरूप और प्रतिफल
    • बादशाह बहादुरशाह (Kahani)
    • जीवितों में मृतक और मृतकों में जीवित!
    • दो अंक लिख दिये (Kahani)
    • ॥ सत्यमेव जयते॥
    • आत्मशोधन की संयम साधना
    • नमक और दाल छोड़ने की प्रतिज्ञा (Kahani)
    • छः घड़े सोना!
    • तस्मिन् ह तस्थुर्भुवनानि विश्वा
    • कुशसन और दुरावस्था (Kahani)
    • मानव जीवन इस जगती का सर्वोत्तम उपहार
    • अन्तर्मुखी आत्म निरीक्षण
    • आम्रवृक्ष से अनुरोध किया (Kahani)
    • ध्यान धारणा का लक्ष्य और प्रयोजन
    • Quotation
    • धर्म्माविरोधी यो धर्म्मःस धर्म्मः सत्यविक्रमः
    • सिद्ध पुरुषों का स्वरूप और अनुग्रह
    • उन्होंने मंदिर बना दिया (Kahani)
    • शिष्टाचार सज्जनता का प्रथम चरण
    • व्यक्तित्व परिष्कार का मूलभूत आधार
    • समष्टि के घटक ही हैं हम सब
    • सूक्ष्म शरीर का काया से बाहर विचरण एवं सम्प्रेषण
    • अन्तराल में निहित सिद्धि वैभव
    • मधुर घंटियों की झंकार (Kahani)
    • मनुष्य पदार्थों का पिटारा नहीं, भावनाओं का समुच्चय है।
    • देश की सेवा (Kahani)
    • विरोधी से भी शत्रुता न पालें!
    • होनहार वीरवान के होता चीकने पात
    • गायत्री और यज्ञ का तत्वज्ञान
    • बदमिजाज क शहद कड़वा होता है(Kahani)
    • सेवा धर्म एक योग साधना
    • सफलताएँ कर्मनिष्ठ के पीछे फिरती हैं।
    • गायत्री उपासक की सिद्धि
    • संकल्प और समर्पण का अभिनव संस्करणअन्तःकरण से उमड़ रही है प्रवाह परिवर्तन की आवाज
    • अपनों से अपनी बात - प्राणवान परिजन यह कर गुजरें!
    • इन दिनों कोई निष्क्रिय न रहे
    • Quotation
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • साधक का आहार सात्विक हो
    • Quotation
    • सद्बुद्धि की अवधारणा
    • लानत है ऐसी दौलत पर
    • Quotation
    • निष्ठा आत्मशक्ति की निर्झरिणी
    • आत्म नियन्त्रण भी एकान्त में नहीं (Kahani)
    • ऐसी बची द्रौपदी की लाज
    • हिरन का पीछा (Kahani)
    • उपासना का स्वरूप और प्रतिफल
    • बादशाह बहादुरशाह (Kahani)
    • जीवितों में मृतक और मृतकों में जीवित!
    • दो अंक लिख दिये (Kahani)
    • ॥ सत्यमेव जयते॥
    • आत्मशोधन की संयम साधना
    • नमक और दाल छोड़ने की प्रतिज्ञा (Kahani)
    • छः घड़े सोना!
    • तस्मिन् ह तस्थुर्भुवनानि विश्वा
    • कुशसन और दुरावस्था (Kahani)
    • मानव जीवन इस जगती का सर्वोत्तम उपहार
    • अन्तर्मुखी आत्म निरीक्षण
    • आम्रवृक्ष से अनुरोध किया (Kahani)
    • ध्यान धारणा का लक्ष्य और प्रयोजन
    • Quotation
    • धर्म्माविरोधी यो धर्म्मःस धर्म्मः सत्यविक्रमः
    • सिद्ध पुरुषों का स्वरूप और अनुग्रह
    • उन्होंने मंदिर बना दिया (Kahani)
    • शिष्टाचार सज्जनता का प्रथम चरण
    • व्यक्तित्व परिष्कार का मूलभूत आधार
    • समष्टि के घटक ही हैं हम सब
    • सूक्ष्म शरीर का काया से बाहर विचरण एवं सम्प्रेषण
    • अन्तराल में निहित सिद्धि वैभव
    • मधुर घंटियों की झंकार (Kahani)
    • मनुष्य पदार्थों का पिटारा नहीं, भावनाओं का समुच्चय है।
    • देश की सेवा (Kahani)
    • विरोधी से भी शत्रुता न पालें!
    • होनहार वीरवान के होता चीकने पात
    • गायत्री और यज्ञ का तत्वज्ञान
    • बदमिजाज क शहद कड़वा होता है(Kahani)
    • सेवा धर्म एक योग साधना
    • सफलताएँ कर्मनिष्ठ के पीछे फिरती हैं।
    • गायत्री उपासक की सिद्धि
    • संकल्प और समर्पण का अभिनव संस्करणअन्तःकरण से उमड़ रही है प्रवाह परिवर्तन की आवाज
    • अपनों से अपनी बात - प्राणवान परिजन यह कर गुजरें!
    • इन दिनों कोई निष्क्रिय न रहे
    • Quotation
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1988 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


सूक्ष्म शरीर का काया से बाहर विचरण एवं सम्प्रेषण

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 28 30 Last
कभी-कभी ऐसी घटनाएँ घटित होती देखी जाती है जिनसे यह सिद्ध होता है कि कोई आत्मा अपना शरीर छोड़कर किसी दूसरे के शरीर में प्रवेश कर जाती है और शरीर-धारी का व्यक्तित्व लुप्त होकर अधिकार करने वाली आत्मा जैसा ही आचरण उस शरीर से बन पड़ता है। इन उदाहरणों से सिद्ध होता है कि आत्मा का शरीर पृथक और स्वतंत्र अस्तित्व है। शरीर में सन्निहित प्राण चेतना उसमें घुली रहने पर भी अपना पृथक अस्तित्व बनाये रखती है।

पुराणों में सूक्ष्म शरीर का अस्तित्व सिद्ध करने वाली अनेक घटनाओं का सुविस्तृत वर्णन मिलता हैं। श्री आद्य शंकराचार्य की वह कथा प्रसिद्ध है जिसमें उनने अपना सूक्ष्म शरीर राजा के मृत शरीर में प्रविष्ट किया था और उद्देश्य पूरा होने पर फिर वापस अपने स्थूल काया में लौट आये थे। रामकृष्ण परमहंस ने महा-प्रयाण के उपरान्त भी विवेकानन्द को कई बार दर्शन तथा परामर्श दिये थे। पुराणों में तो पग-पग पर ऐसे कथानकों का उल्लेख हैं। प्रख्यात परामनोविज्ञानी “एडगर केसी” की कृति “लाइफ रीडिग्स” में भी सूक्ष्म शरीर के बारे में विस्तृत जानकारी हैं। राबर्ट ए॰ मोनरो ने “जर्नीज आउट आफ द बॉडी” नामक पुस्तक में प्राण शरीर सम्बन्धी अपने अनुभवों को लिखा है। उनके अनुसार सूक्ष्म शरीर को भौतिक शरीर की भाँति प्रयुक्त कर मनुष्य एक ही शरीर से दुहरे काम कर सकता हैं।

प्राणायाम विद्या में निष्णात कर्नल टाउन सेण्ड के बारे में प्रसिद्ध है कि वे अमेरिका की प्रख्यात अणु विज्ञानी श्रीमती जे0 सी0 ट्रस्ट की तरह अपने प्राण शरीर को स्थूल काया से अलग करने का प्रदर्शन किया करते थे। सूक्ष्म शरीर से यात्रा करके वे दूर रखे श्याम पट तक जाते और उस पर कुछ बातें स्पष्ट करके पुनः अपने शरीर में आ जाते। मूर्धन्य शरीर शास्त्री एवं चिकित्सक उनके शरीर का परीक्षण करके उसे मृत घोषित कर देते। यह प्रयोग वहाँ उपस्थित गण्यमान्य नागरिकों, पत्रकारों, बुद्धि-जीवियों एवं वैज्ञानिकों के समक्ष बार-बार दुहराया गया।

प्रकृति की गोद में भी कुछ ऐसे मानवेत्तर प्राणी पाये गये हैं जिन्हें परकाया प्रवेश की क्षमता जन्मजात मिली होती है। वे भी योगियों जैसे अपने स्थूल और सूक्ष्म शरीर को अलग-अलग करने की विद्या में पारंगत होते हैं। प्रशान्त महासागर में सेमाफ्रो द्वीप के निकट ‘पोलैलो’

नामक ऐसा जीव पाया जाता है जो वर्ष में दो बार-आश्विन एवं कार्तिक के महीनों में छोटे-छोटे ज्वारों के समय अपने घोंसले से बाहर निकलता है। इसी मध्य जल की सतह पर वह अपने अण्डे देता हैं। अपने साथ वह शरीर का केवल वही भाग लेकर आता है जितना उसके तैरने और अण्डा देने के काम आता है। शेष आधा शरीर मृत स्थिति में अपने घोंसले में ही सुरक्षित छोड़ आता है। अण्डे देकर जब पानी की सतह से वापस अपने घोंसले में पहुँचता है तो कुशल योगी भी भाँति अपने मृत शरीर से जुड़ जाता है और उसमें रक्त व प्राण का संचार चालू कर देता है। प्रकारान्तर से यह भी एक यौगिक प्रक्रिया है।

डा. वानडेन फेक ने परकाया प्रवेश से सम्बंधित अनेक तथ्यों की खोजबीन की थी और अन्त में इस निष्कर्ष पर पहुँचे थे कि भारतीयों द्वारा चोटी रखने का स्थान ऐसा जागृत केन्द्र है जिसका मनुष्य के प्राण शरीर से गहरा संबंध रहता है। संभवतः यही वह स्थान है जहाँ से सूक्ष्म शरीर का बहिर्गमन होता है। मनुष्य की मानसिक शक्तियों के विकास में भी इस स्थान का विशेष महत्व हैं।

अतीन्द्रिय क्षमता सम्पन्न कितने ही भारतीय योगियों, ऋषियों का उल्लेख मिलता है जो एक स्थान पर बैठकर समस्त विश्व की गतिविधियों एवं भावी घटनाक्रमों का न केवल पता लगा लेते थे, वरन् सूक्ष्म शरीर से सुदूर क्षेत्रों की यात्रा करके अपने प्रिय पात्रों को सहायता प्रदान करते एवं आवश्यक प्रेरणा भरे परामर्श देते थे। प्रख्यात योगी तैलंग स्वामी, स्वामी विशुद्धानंद, स्वामी निगमानन्द, मत्स्येन्द्रनाथ, गोरखनाथ, जालन्धरनाथ आदि के बारे में सूक्ष्म शरीर द्वारा यात्रा के ऐसे कितने ही वर्णन मिलते है जिनसे प्राण शरीर की प्रचण्डता और स्थूल काया से उसकी पृथक सत्ता की प्रामाणिकता सिद्ध होती हैं। इटली के विख्यात संत पादरी पियो ने इस तरह से कितने ही जरूरतमंदों की सहायता की थी। थियोसोफिकल सोसाइटी की जन्मदात्री मैडम व्लावटस्की के बारे में कहा जाता है कि वे अपने को कमरे में बन्द करने के उपरान्त भी जनता को सूक्ष्म शरीर से दर्शन और उपदेश देती थी। पाश्चात्य योग साधकों में से हैबर्टलमान, लिण्डार्स, एन्ड्रू जैक्सन, डा. माल्थस, कारिगंटन, डुरावेल मुलडोन, ओलिवर लॉज, पावर्स, डा. मेस्सर, ऐलेकजेण्ड्रा, डेविडनील, पॉल ब्रण्टन आदि के अनुभवों और प्रयोगों में सूक्ष्म शरीर की प्रामाणिकता सिद्ध करने वाले अनेकों प्रमाण प्रस्तुत किये गये है। जे0 मुलडोन अपने स्थूल शरीर से सूक्ष्म शरीर को पृथक करने के कितने ही प्रदर्शन भी कर चुके थे। उनने इस सबकी चर्चा अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “दी प्रोजेक्शन ऑफ एस्ट्रल बॉडी” में विस्तारपूर्वक की है। शरीर से प्राण भिन्न है। वह शरीर के साथ तो घुला ही रहता है, पर ऐसा भी कई बार देखा गया है कि प्राण निकल जाने पर भी शरीर काम करता रहता है। इसी प्रकार शरीर को सब परीक्षणों द्वारा मृत घोषित कर दिये जाने पर भी आत्मा का एक सूक्ष्म संभाग शरीर के साथ जुड़ा रहता है और वह उसी प्रकार काम करता रहता है मानो वह वस्तुतः जीवित है।

इस प्रकार की एक घटना का वर्णन सुप्रसिद्ध गुह्यविज्ञानी टी0 लाबसाँग रम्पा ने अपनी पुस्तक “यू फार एवर” में किया है। घटना फ्राँस की क्रान्ति के समय की है जिसमें एक फ्राँसीसी सैनिक के सिर से धड़ के अलग कर दिये जाने पर भी कटे सिर के मुँह से फुसफुसाहट भरी कुछ आवाज निकल रही थी। इसका रिकार्ड अभी भी फ्राँस के सरकारी कागजातों में मौजूद है। श्री रम्पा के अनुसार यह सूक्ष्म शरीर का ही कार्य है जो भौतिक शरीर के मृत हो जाने पर भी उसे चैतन्य बनाये रख सकता है।

प्राण की शरीर से पृथक इस सत्ता को अब वैज्ञानिक प्रयोग परीक्षणों द्वारा भी सही पाया गया है। स्थूल शरीर के न रहने पर भी इस सूक्ष्म शरीर के बने रहने के बारे में अनेकों प्रमाण जुटाए गये है।

एक व्यक्ति की प्राण चेतना दूसरे के शरीर में प्रवेश करके अपने अस्तित्व का परिचय देती है। शक्तिपात में यही प्रयोग चलता है। रामकृष्ण परमहंस ने अपनी प्राण चेतना विवेकानंद को हस्तान्तरित कर दी थी। उसी शक्ति के प्रताप से वे देवसंस्कृति का व्यापक प्रसार कर सकने में समर्थ हुए। सत्संग और कुसंग में यही प्रयोजन एक सीमित मात्रा में अनायास ही सम्पन्न होता है। बुरों की संगति में एक अच्छा मनुष्य भी बुरा बन जाता है, क्योंकि एक समुदाय की शक्ति एकाकी व्यक्ति को अपनी ओर खींच लेती है। यही बात बहुत सज्जनों के बीच रहकर एक दुर्जन के बदलने के रूप में भी देखी जाती है। माता-पिता के गुणों में से ही बहुतेरे गुण सन्तान में हस्तान्तरित होते हैं। यह भी एक प्रकार का प्राण परिवर्तन ही है।

पति-पत्नी के मध्यवर्ती विद्युत शक्ति एक दूसरे के साथ मिलकर दोनों पक्षों के लिए एक-एक ग्यारह का निमित्त कारण बनती है। इसी प्रकार दुराचारी-दुराचारिणियों का संपर्क उनकी कुटिलता को और भी भड़काता है। अपराधियों के गिरोह बन जाते हैं। नशेबाजों और जुआरियों की मंडलियाँ गठित हो जाती हैं। इन प्रत्यक्ष देखे जाने वाले अनुभवों से भी यही बात सिद्ध होती है कि बलवान प्राण दुर्बल प्राणों पर हावी हो जाता है और उन्हें वशवर्ती बना लेता है।

विभिन्न शारीरिक क्रियाएँ, हलचलें प्राण की सक्रियता पर ही निर्भर हैं। रात्रि को सो जाने के उपरान्त जो स्वप्न दीखते हैं, वह अनुभूतियाँ प्राण शरीर की ही है। दिव्य-दृष्टि, दूर-श्रवण, दूर-दर्शन, विचार-संचालन, भविष्य-ज्ञान, देव-दर्शन आदि उपलब्धियाँ भी सूक्ष्म शरीर के माध्यम से ही होती हैं। प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि की उच्चस्तरीय योग साधना द्वारा इसी शरीर को समर्थ बनाया जाता है। ऋद्धियों और सिद्धियों का स्रोत इस सूक्ष्म शरीर को ही माना जाना चाहिए एवं उसे विकसित कर देवोपम उपलब्धियाँ हस्तगत किये जाने का पुरुषार्थ किया जाना चाहिए। *

First 28 30 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • साधक का आहार सात्विक हो
  • Quotation
  • सद्बुद्धि की अवधारणा
  • लानत है ऐसी दौलत पर
  • Quotation
  • निष्ठा आत्मशक्ति की निर्झरिणी
  • आत्म नियन्त्रण भी एकान्त में नहीं (Kahani)
  • ऐसी बची द्रौपदी की लाज
  • हिरन का पीछा (Kahani)
  • उपासना का स्वरूप और प्रतिफल
  • बादशाह बहादुरशाह (Kahani)
  • जीवितों में मृतक और मृतकों में जीवित!
  • दो अंक लिख दिये (Kahani)
  • ॥ सत्यमेव जयते॥
  • आत्मशोधन की संयम साधना
  • नमक और दाल छोड़ने की प्रतिज्ञा (Kahani)
  • छः घड़े सोना!
  • तस्मिन् ह तस्थुर्भुवनानि विश्वा
  • कुशसन और दुरावस्था (Kahani)
  • मानव जीवन इस जगती का सर्वोत्तम उपहार
  • अन्तर्मुखी आत्म निरीक्षण
  • आम्रवृक्ष से अनुरोध किया (Kahani)
  • ध्यान धारणा का लक्ष्य और प्रयोजन
  • Quotation
  • धर्म्माविरोधी यो धर्म्मःस धर्म्मः सत्यविक्रमः
  • सिद्ध पुरुषों का स्वरूप और अनुग्रह
  • उन्होंने मंदिर बना दिया (Kahani)
  • शिष्टाचार सज्जनता का प्रथम चरण
  • व्यक्तित्व परिष्कार का मूलभूत आधार
  • समष्टि के घटक ही हैं हम सब
  • सूक्ष्म शरीर का काया से बाहर विचरण एवं सम्प्रेषण
  • अन्तराल में निहित सिद्धि वैभव
  • मधुर घंटियों की झंकार (Kahani)
  • मनुष्य पदार्थों का पिटारा नहीं, भावनाओं का समुच्चय है।
  • देश की सेवा (Kahani)
  • विरोधी से भी शत्रुता न पालें!
  • होनहार वीरवान के होता चीकने पात
  • गायत्री और यज्ञ का तत्वज्ञान
  • बदमिजाज क शहद कड़वा होता है(Kahani)
  • सेवा धर्म एक योग साधना
  • सफलताएँ कर्मनिष्ठ के पीछे फिरती हैं।
  • गायत्री उपासक की सिद्धि
  • संकल्प और समर्पण का अभिनव संस्करणअन्तःकरण से उमड़ रही है प्रवाह परिवर्तन की आवाज
  • अपनों से अपनी बात - प्राणवान परिजन यह कर गुजरें!
  • इन दिनों कोई निष्क्रिय न रहे
  • Quotation
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj