
घुड़सवार आगे चला (kahani)
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एक आलसी आम के पेड़ के नीच पड़ा था। ऊपर से टूटकर एक पका आम उसकी छाती पर गिरा पर इतनी मेहनत कौन करे कि उसे उठाये और चूसे। इस बात की प्रतीक्षा कर रहा था कि कोई आये और सहायता देकर आम मुँह में निचोड़ दे।
थोड़ी देर बाद एक घुड़सवार उदार से निकला उसने सहायता के लिए उसे पुकारा। घुड़सवार सज्जन था वह रुक गया और उस पुकारने वाले के पास पहुँचा जब सभी बात मालूम हुई तो वह आग-बबूला हो गया और उसमें दो लात जमाई। मूर्ख इतना भी नहीं कर सकता।
इतने में पास ही पड़े हुए दूसरे आलसी ने इस पर प्रसन्नता की और कहा दो लातें और लगा दें। दूसरे के मुँह को कुत्ता चाट रहा था। इसी प्रकार से वह कुत्ते को भगाने के लिए तैयार नहीं हुआ।
इन आलसियों को कोसता हुआ घुड़सवार आगे चला गया।