
बनें उत्कृष्ट बुद्धिवादी
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बुद्धि एक महान ईश्वरीय विभूति है। उस विभूति का उपयोग करना उचित है और आवश्यक भी। किन्तु उसकी दशा बदली जानी चाहिए तभी वह कल्याणकारी सिद्ध होगी। परम्परापरक बुद्धिवाद को उत्कृष्टतापरक बनाना आवश्यक है।
बुद्धिवादियों की दिशा के अनुसार ही उनकी बुद्धि का उपयोग होने लगता है। रूसीवासियों के हृदय में रूढ़िग्रस्त धार्मिकता के प्रति विरोध की भावना भरी हुई थी। इस कारण उसके नेतागण कठमुल्लाओं को तलवार के घाट उतार देना चाहते थे। ऐसा कुछ रूस में हुआ था। पुराना बुद्धिवादी अपने को क्रान्तिकारी तो कहता है, किन्तु साथ ही अपना एक नया संप्रदाय किसी अन्य नाम से खड़ा कर लेता है। यह सब समाजोत्थान के लिए किया जा रहा है ऐसा कहते हुए भी ऐसी प्रतिक्रियाएँ समाज को पतन की ओर ले जाती है।
इसके विपरीत उत्कृष्ट बुद्धिवादी विकास पथ का यात्री है। वह घोषणा करता है कि विश्व में शान्ति का मार्ग भेद बुद्धि फैलाने में नहीं मेल कराने में है। हमने कभी भी बैठकर यह नहीं सोचा कि हममें समता अधिक बातों में है और भेद कम विषयों में, किन्तु हम भेदों पर ही सदा जोर देते रहे। उदाहरण के लिए स्त्री और पुरुष में समानताएँ बहुत हैं, अन्तर बहुत थोड़ी बातों में है। फिर भी हमने लाखों वर्षों से इसी भेद के कारण स्त्री जाति पर महान अत्याचार किए हैं, और कभी भी उनके समानाधिकार को स्वीकार नहीं किया। विभिन्न धर्मों में आपस में समानताएँ बहुत हैं भेद जरा-सा है। किन्तु उन्होंने इन नगण्य से भेदों के कारण ढेरों खून–खराबा किया है।
उत्कृष्ट बुद्धिवादी कहता है कि भेद को दूर भगाइये और परस्पर मेल के प्रसंग तलाश करिए। जिन सिद्धान्तों में हम प्रायः एक दूसरे से मिलते हैं उनमें मिलकर काम कीजिए और जिन विषयों में मतभेद हैं उसे दूर करने का प्रयास कीजिए। पुराना बुद्धिवादी पिछले पैगम्बरों और मसीहाओं को ढोंगी कहता था, परन्तु उत्कृष्ट बुद्धिवादी और मसीहाओं को ढोंगी कहता था, परन्तु उत्कृष्ट बुद्धिवादी उन्हें महापुरुष कहकर मानव समाज के प्रति उनकी सेवाओं को स्वीकार करता है। किन्तु वह उनका अन्धानुकरण करने की बात से लोगों को रोकता है। वह कहता है कि पुराने पैगम्बरों ने हमेशा उसी समय की परिस्थितियों के अनुकूल मार्गदर्शन दिया है। नवीन युग में नवीन समस्यायें खड़ी होती हैं, उनका हल भी नए ढंग से सोचना पड़ता है। नवीन युग के नवीन कर्तव्य हो जाते हैं और जो समाज के अनुकूल अपने को नहीं बना पता वह कष्ट पाता है, नष्ट हो जाता है।
उत्कृष्ट बुद्धिवादी अनन्त पथ का यात्री हो जाने के कारण सदा अपना हृदय प्रकाश के लिए खुला रखता है और कभी यह नहीं कहता है कि उनने सब कुछ जाने लिया। सन्त सुकरात और वैज्ञानिक सर आइजक न्यूटन की तरह ज्यों-ज्यों वह ज्ञान में आगे बढ़ता है त्यों-त्यों उसे अपने अज्ञान का बोध होता जाता है। कठोपनिषद् के शब्दों में वह बार-बार कहता है-’यस्यामतं तस्य मतं, यतं यस्य न वेद सः’ अर्थात् “जो कहता है मैं नहीं न सका वह ज्ञानी है और जो कहता है मैं जान चुका वह अनजान है।” ऐसे विनयशील स्वभाव युक्त उत्कृष्ट बुद्धिवादी अपने पीछे आने वाले हर यात्री के प्रति सहानुभूति रखता है। न उस रौब दिखाता है और न अपना अहंकार प्रकट करता है।
आज हम यदि उत्कृष्ट बुद्धिवाद अपनालें, तो हमें अपनी सब समस्याओं का हल मिल जाये, हमारा दृष्टिकोण उदार और विशाल हो जाय। उत्कृष्ट बुद्धिवादी का मतलब है अत्यन्त प्रगतिशील, सहानुभूति से भरा हुआ। वह विकास के सिद्धान्त को मानने वाला पवित्र जीवन का पुजारी और कर्तव्य-परायण व्यक्ति है-जो यह मानता है कि मानव जीवनादर्श सद्ज्ञान की प्राप्ति है। जो इस आदर्श में योग देते हैं, सहायता करते हैं, उन्हें ही जीने का अधिकार है, वे ही मानवता के सच्चे हितैषी कहलाते हैं। हमें इस उत्कृष्टता का वरण करना है, ऐसा प्रयास होना चाहिए।