
भक्ति भगवान स्वयं करते (kahani)
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नारद जी किसी शिला पर बैठे सुस्ता रहे थे। उन्हें आसमान में एक देवदूत कोई बड़ी पुस्तक ले जाते हुए देखा। नारदजी ने निगाह जाने पर उसे रोका और बुलाया। साथ ही पूछा कि इस पुस्तक में क्या लिखा है? देवदूत ने कहा-इनमें उन लोगों के नाम हैं जो भगवान की भक्ति करते हैं।
नाम पढ़े गये उसमें नारद का नाम नहीं था, उन्हें दुःख हुआ कि निरन्तर भगवान के काम में ही लगा रहता हूँ पर मुझे भक्तों की गिनती में भी सम्मिलित नहीं किया गया? वे खिन्न हो गये।
कई दिन बाद एक दूसरा देवदूत छोटी पुस्तक बगल में दबाये आसमान से गुजरता हुआ दिखाई दिया। नारद ने उन्हें भी बुलाया और पूछा, इस पुस्तक में क्या लिखा है? देवदूत ने कहा- इसमें उन लोगों के नाम हैं जिनकी भक्ति भगवान करते हैं। उनमें नारद का नाम प्रथम पंक्ति में था।
देवदूत ने समझाया कि जो लोग भगवान का काम करते हैं उनकी भक्ति भगवान स्वयं करते हैं।