• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • ईश्वर की सत्ता हमारे रोम−रोम में संव्याप्त हो,
    • ज्ञान का अनुपान संवेदना
    • Quotation
    • उच्चस्तरीय विभूतियों की जननी:- श्रद्धा
    • Quotation
    • यान्त्रिकी और मान्त्रिकी का सुव्यवस्थित सुनियोजन
    • सिद्धि सर्वोपरि या सेवा?
    • VigyapanSuchana
    • क्या तृतीय नेत्र का जागरण संभव है?
    • श्रम निरर्थक (kahani)
    • आत्म वाडरे ज्ञातव्यः
    • Quotation
    • व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास अध्यात्म द्वारा ही संभव
    • उदारता और ईर्ष्या (kahani)
    • असंतोष को जन्म देती है, अनगढ़ महत्त्वाकाँक्षाएँ
    • आश्वासन दिया (kahani)
    • अहंकार मिटे तो व्यक्ति ग्रहणशील बने
    • भावनाओं की समझें (kahani)
    • सत्य केवल वही नहीं, जो निकट व दृश्यमान है
    • भक्ति भगवान स्वयं करते (kahani)
    • आदर्शवादी का कर्त्तव्य
    • नव-जागरण की धुरी-प्रकाशन व्यक्तित्व
    • सार्थक मनोरंजन वह जो चिंतन को ऊँचा उठाए
    • Quotation
    • क्या सुदूर अतीत का पुनरावलोकन संभव है?
    • फूहड़ तरीका (kahani)
    • लाख छिपायें, अन्दर के भाव छिप नहीं सकते
    • Quotation
    • विवेक के अवलंबन से बंधनमुक्ति
    • Quotation
    • पशु श्रेणी में रखे जाने योग्य (kahani)
    • महत्संग की साधना
    • कैसे जाने कि व्यक्तित्व रुग्ण है या स्वस्थ?
    • निरहंकारिता का पाठ (kahani)
    • विचार-क्रान्ति का तत्व दर्शन
    • Quotation
    • मन में निहित विकास की उच्चतर अवस्थाएँ
    • Quotation
    • बच्चों ने सूचना दी (kahani)
    • महाकाल की इच्छा, जिसे पूरा होना ही है
    • Quotation
    • परमार्थ प्रयोजनों (kahani)
    • नींद में अतिवाद न बरतें
    • ईश्वर से मिलने की बात (kahani)
    • कामना करें बसंती ज्वाला की
    • शरीर नहीं, सुन्दर तो है आत्म तत्व
    • बेगम चुप हो गई (kahani)
    • स्पष्ट का अनुदान-प्रखर प्रतिभा
    • बाढ़ का त्रास (kahani)
    • सृजन-संवेदना
    • सृजन-संवेदना (kavita)
    • सुख, समृद्धि और वर्चस् का विज्ञान
    • युग पुरुष पूज्य गुरुदेव पं. श्री राम शर्मा आचार्य - साधना जिनकी हर श्वास में संव्याप्त थी
    • अमंगल से मंगल कहीं अधिक
    • गायत्री उपासना
    • Quotation
    • अपनों से अपनी बात - परम पूज्य गुरुदेव का एक सामयिक सम्पादकीय - मानवी जीवन का सबसे बड़ा लाभ- प्रतिभा परिष्कार
    • सम्मानपूर्वक नहीं ठहर सकता (kahani)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • ईश्वर की सत्ता हमारे रोम−रोम में संव्याप्त हो,
    • ज्ञान का अनुपान संवेदना
    • Quotation
    • उच्चस्तरीय विभूतियों की जननी:- श्रद्धा
    • Quotation
    • यान्त्रिकी और मान्त्रिकी का सुव्यवस्थित सुनियोजन
    • सिद्धि सर्वोपरि या सेवा?
    • VigyapanSuchana
    • क्या तृतीय नेत्र का जागरण संभव है?
    • श्रम निरर्थक (kahani)
    • आत्म वाडरे ज्ञातव्यः
    • Quotation
    • व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास अध्यात्म द्वारा ही संभव
    • उदारता और ईर्ष्या (kahani)
    • असंतोष को जन्म देती है, अनगढ़ महत्त्वाकाँक्षाएँ
    • आश्वासन दिया (kahani)
    • अहंकार मिटे तो व्यक्ति ग्रहणशील बने
    • भावनाओं की समझें (kahani)
    • सत्य केवल वही नहीं, जो निकट व दृश्यमान है
    • भक्ति भगवान स्वयं करते (kahani)
    • आदर्शवादी का कर्त्तव्य
    • नव-जागरण की धुरी-प्रकाशन व्यक्तित्व
    • सार्थक मनोरंजन वह जो चिंतन को ऊँचा उठाए
    • Quotation
    • क्या सुदूर अतीत का पुनरावलोकन संभव है?
    • फूहड़ तरीका (kahani)
    • लाख छिपायें, अन्दर के भाव छिप नहीं सकते
    • Quotation
    • विवेक के अवलंबन से बंधनमुक्ति
    • Quotation
    • पशु श्रेणी में रखे जाने योग्य (kahani)
    • महत्संग की साधना
    • कैसे जाने कि व्यक्तित्व रुग्ण है या स्वस्थ?
    • निरहंकारिता का पाठ (kahani)
    • विचार-क्रान्ति का तत्व दर्शन
    • Quotation
    • मन में निहित विकास की उच्चतर अवस्थाएँ
    • Quotation
    • बच्चों ने सूचना दी (kahani)
    • महाकाल की इच्छा, जिसे पूरा होना ही है
    • Quotation
    • परमार्थ प्रयोजनों (kahani)
    • नींद में अतिवाद न बरतें
    • ईश्वर से मिलने की बात (kahani)
    • कामना करें बसंती ज्वाला की
    • शरीर नहीं, सुन्दर तो है आत्म तत्व
    • बेगम चुप हो गई (kahani)
    • स्पष्ट का अनुदान-प्रखर प्रतिभा
    • बाढ़ का त्रास (kahani)
    • सृजन-संवेदना
    • सृजन-संवेदना (kavita)
    • सुख, समृद्धि और वर्चस् का विज्ञान
    • युग पुरुष पूज्य गुरुदेव पं. श्री राम शर्मा आचार्य - साधना जिनकी हर श्वास में संव्याप्त थी
    • अमंगल से मंगल कहीं अधिक
    • गायत्री उपासना
    • Quotation
    • अपनों से अपनी बात - परम पूज्य गुरुदेव का एक सामयिक सम्पादकीय - मानवी जीवन का सबसे बड़ा लाभ- प्रतिभा परिष्कार
    • सम्मानपूर्वक नहीं ठहर सकता (kahani)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1993 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


नींद में अतिवाद न बरतें

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 42 44 Last
बुद्ध का एक शिष्य था-श्रोण। जब वह राजकुमार था, तो उसका जीवन अन्य कुमारों की भाँति ही विलासितापूर्ण था; किन्तु बाद में कुछ ऐसी प्रेरणा उमगी कि सारी सुविधा-सामग्री को लात मार कर वह तथागत की शरण में आ गया। आते ही कठिन तपश्चर्या आरंभ कर दी। ठाट-बाट में पले युवक द्वारा इतना कठिन तप! संघ के वरिष्ठ स्थविर भौंचक्के रह गये। धीरे-धीरे बात भगवान बुद्ध के कानों तक पहुँची। उन्होंने शिष्य को बुलाया और पूछा-”श्रोण! तुम्हारे वीणा-वादन की चर्चा बहुत सुनी है। शायद बहुत अच्छी वीणा बजा लेते हो? किंतु वह स्वर-लहरी उभर सकेगी, जो मनुष्यों को मोह लेती हैं।” अस्वीकृति में शिष्य का सिर हिल गया “और यदि अधिक कसे हों तो?” उत्तर में पुनः नकारात्मकता का पुट था। अब तथागत का समाधानकारक उत्तर निःसृत हुआ-”जीवन में भी ऐसी ही रीति-नीति अपनाओ। अति का अतिक्रमण न कर मध्यम-मार्ग का चयन करो। वही श्रेष्ठ व हानिरहित है।”

नींद के संबंध में अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिकों ने भी अब यही तथ्य ढूँढ़ा है कि इस बारे में बीच का रास्ता अपनाना ही ज्यादा उचित और निरापद है। सर्वविदित है कि यदि किसी व्यक्ति को निद्रा से वंचित कर दिया जाय, तो उसकी दशा पागलों जैसी हो जाती है। अब मनोविज्ञानियों ने इस संदर्भ में सर्वथा नवीन तथ्य खोज की है कि आवश्यकता से अधिक सोने वालों में अनेक शारीरिक अनियमितताओं के अतिरिक्त मानसिक गड़बड़ियाँ भी उत्पन्न हो सकती है। इस विषय पर शोध करने वाले आस्ट्रिया के मनःशास्त्री आस्टिन फा्रस्ट एवं सहयोगियों का कथन है कि जो व्यक्ति लम्बे समय तक सोता रहता है, उसमें चयापचय उदर, वृक्क संबंधी विकृतियों के अतिरिक्त अंतःस्रावी ग्रन्थियों के रस-स्रावों पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है। ज्ञातव्य है कि शरीर एवं मनःसंस्थान संबंधी महत्वपूर्ण क्रियाओं पर नियन्त्रण हारमोन ही करते है। अतः उनके संतुलन में किसी प्रकार का व्यतिरेक अगणित तरह की शिकायतें पैदा कर सकता है। अध्ययन दल का कहना है कि एक युवक के लिए 6-7 घंटे की रात्रि नींद पर्याप्त है। इतने से ही शरीर-मन की उस खुराक की पूर्ति होती रह सकती है, जो उसके लिए अभीष्ट आवश्यक है। उनके अनुसार इससे अधिक सोना एक प्रकार से अपने लिए व्याधियों को न्यौता-बुलाना है। वे एक अत्यन्त चौंकाने वाले तथ्य का प्रतिपादन करते हुए कहते है कि बैठे-ठाले रहने वालों, ऑफिस में काम करने वालों को तो इस क्षेत्र में अत्यन्त सावधानी बरतनी चाहिए कि नींद उतनी ही ली जाय, जितने से काम चल जाय। अधिक निद्रा लेने से शरीर और मस्तिष्क को अधिक आराम मिलता है-इस प्रकार का भ्रम पालने वालों का यह जान लेना चाहिए कि इससे उलटे जटिलताएँ पनपती और अस्वस्थता बढ़ती है। जन्तुओं पर किये गये अध्ययन के आधार पर आस्टिन कहते हैं लम्बी निद्रा के दौरान अन्तरांगों एवं रसस्रावी ग्रन्थियों की सक्रियता प्रभावित होने लगती है और जब यह क्रिया दैनिक दिनचर्या में सम्मिलित हो जाती है, तो उनकी क्रियाशीलता अत्यन्त न्यून हो जाती है। इसका स्पष्ट प्रभाव धीरे-धीरे शरीर एवं मनःसंस्थान पर पड़ने लगता है, जो व्यक्ति को तन व मन से बीमार बना देता है।

इसके विपरीत कठोर शारीरिक श्रम करने वालों के संबंध में शोध दल का कहना है कि ऐसे लोग तनिक लम्बी अवधि तक बिस्तर में पड़े रह कर लम्बी निद्रा ले लें, तो कोई हर्ज की बात नहीं; पर यह अवधि एक डेढ़ घण्टे से किसी प्रकार ज्यादा नहीं होनी चाहिए, अन्यथा उन्हें भी वे दुष्परिणाम भुगतने पड़ सकते है, जो नियमित रूप से मानसिक श्रम करने वालों को झेलने पड़ते है। इसका सींवित कारण बताते हुए दल का कहना कि शारीरिक श्रम करने वालों के लिए नींद की थोड़ी लम्बी अवधि भी इसलिए निरापद होती है; क्योंकि उनके कष्टसाध्य श्रम से शरीर के अन्तरांगों एवं बहिरांगों का नियमित व्यायाम लम्बे समय तक होता रहता है, अस्तु विश्राम थोड़ा लम्बा हो जाय, तो भी इसका प्रतिकूल परिणाम सामने नहीं आता, जबकि ऑफिस ड्यूटी करने वालों इसका सर्वथा अभाव रहता हैं, इसलिए जटिलताएँ उनमें जल्दी जन्म लेने लगती हैं।

शोधकर्मी विशेषणकर्मी विशेषज्ञों का कहना है कि नींद अपनी आवश्यक मात्रा निद्रा के आरंभिक दो-तीन घंटों के भीतर ही ले लेती है। विशेष परिस्थितियों में तो 5-10 मिनट के अन्दर भी उस आवश्यकता की पूर्ति की जा सकती है; पर लम्बे समय तक इस ढर्रे को नहीं चलाया जा सकता। इससे गंभीर समस्या उत्पन्न होने का खतरा बढ़ जाता है। एक उदाहरण प्रस्तुत करत हुए वे कहते हैं कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कितने ही सैनिकों को दिन-रात कई-कई घण्टे जागरण की स्थिति में बिताने पढ़े थे; पर बीच-बीच में पाँच-पाँच मिनट के लिए भी यदि उन्हें “रेम-स्लीप” मिल जाती, तो उनकी बेचैनी समाप्त हो जाती और वे ताजगी अनुभव करते प्रतीत होते। इससे स्पष्ट है कि “रेम-स्लीप” से नींद की अधिकाँश खुराक पूरी हो जाती है। अनुसंधान के दौरान इसी तथ्य की पुष्टि मनोविज्ञानियों न भी की है। उनका कहना है कि “रेम”‘ स्तर की थोड़ी नींद से भी बिगड़ते मानसिक संतुलन को सँभाला जा सकता है। है। अध्ययनों के दौरान उन्होंने पाया कि नवजात शिशुओं में “रेम” स्तर की निद्रा का प्रतिशत 60 के आस-पास होता है। उनने यह भी देखा है कि जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है, इस श्रेणी की नींद में भी तदनुरूप गिरावट आने लगती है। आयु 30 वर्ष तक पहुँचते-पहुँचते यह 35 प्रतिशत रह जाती है। 50 वर्ष के करीब उम्र होने तक यह घटकर 20 प्रतिशत रह जाती है। आगे की आयु में “रेम”तेजी से घटता है। 60 वर्ष के लोग 10-15 प्रतिशत “रेम” नींद लेते है। शोधकर्ताओं का कहना है कि “रोम” यदि 5 प्रतिशत से भी कम रह जाय, तो बुढ़ापे से संबंधित मनःकायिक अनेक उलझनें पैदा होने लगती हैं।

किन्तु यह तो बुढ़ापे की बात है, जो स्वाभाविक ही है। अस्वाभाविकता तो तब पैदा होती है, जब जवान लोग भी बिस्तर पर पड़े-पड़े अधिक नींद लेने और आराम फरमाने के फेर में अपना स्वास्थ्य गंवाते देखे जाते है। इसीलिए “अति” को वर्जनाओं में गिना गया है और उससे बचने की सलाह दी गई है। भोजन बिल्कुल नहीं के बराबर लेना और जरूरत से ज्यादा ले लेना-यह दोनों ही आदतें खराब है और सीमा का अतिक्रमण करती है। फलतः ऐसे लोगों को हानि भी कम नहीं उठानी पड़ती। अब यही बात वैज्ञानिकों ने नींद के संबंध में सिद्ध करके उस उक्ति को सही साबित करने का प्रयास किया है, जिसमें कहा गया है-”अति सर्वत्र वर्जयते।”

First 42 44 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • ईश्वर की सत्ता हमारे रोम−रोम में संव्याप्त हो,
  • ज्ञान का अनुपान संवेदना
  • Quotation
  • उच्चस्तरीय विभूतियों की जननी:- श्रद्धा
  • Quotation
  • यान्त्रिकी और मान्त्रिकी का सुव्यवस्थित सुनियोजन
  • सिद्धि सर्वोपरि या सेवा?
  • VigyapanSuchana
  • क्या तृतीय नेत्र का जागरण संभव है?
  • श्रम निरर्थक (kahani)
  • आत्म वाडरे ज्ञातव्यः
  • Quotation
  • व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास अध्यात्म द्वारा ही संभव
  • उदारता और ईर्ष्या (kahani)
  • असंतोष को जन्म देती है, अनगढ़ महत्त्वाकाँक्षाएँ
  • आश्वासन दिया (kahani)
  • अहंकार मिटे तो व्यक्ति ग्रहणशील बने
  • भावनाओं की समझें (kahani)
  • सत्य केवल वही नहीं, जो निकट व दृश्यमान है
  • भक्ति भगवान स्वयं करते (kahani)
  • आदर्शवादी का कर्त्तव्य
  • नव-जागरण की धुरी-प्रकाशन व्यक्तित्व
  • सार्थक मनोरंजन वह जो चिंतन को ऊँचा उठाए
  • Quotation
  • क्या सुदूर अतीत का पुनरावलोकन संभव है?
  • फूहड़ तरीका (kahani)
  • लाख छिपायें, अन्दर के भाव छिप नहीं सकते
  • Quotation
  • विवेक के अवलंबन से बंधनमुक्ति
  • Quotation
  • पशु श्रेणी में रखे जाने योग्य (kahani)
  • महत्संग की साधना
  • कैसे जाने कि व्यक्तित्व रुग्ण है या स्वस्थ?
  • निरहंकारिता का पाठ (kahani)
  • विचार-क्रान्ति का तत्व दर्शन
  • Quotation
  • मन में निहित विकास की उच्चतर अवस्थाएँ
  • Quotation
  • बच्चों ने सूचना दी (kahani)
  • महाकाल की इच्छा, जिसे पूरा होना ही है
  • Quotation
  • परमार्थ प्रयोजनों (kahani)
  • नींद में अतिवाद न बरतें
  • ईश्वर से मिलने की बात (kahani)
  • कामना करें बसंती ज्वाला की
  • शरीर नहीं, सुन्दर तो है आत्म तत्व
  • बेगम चुप हो गई (kahani)
  • स्पष्ट का अनुदान-प्रखर प्रतिभा
  • बाढ़ का त्रास (kahani)
  • सृजन-संवेदना
  • सृजन-संवेदना (kavita)
  • सुख, समृद्धि और वर्चस् का विज्ञान
  • युग पुरुष पूज्य गुरुदेव पं. श्री राम शर्मा आचार्य - साधना जिनकी हर श्वास में संव्याप्त थी
  • अमंगल से मंगल कहीं अधिक
  • गायत्री उपासना
  • Quotation
  • अपनों से अपनी बात - परम पूज्य गुरुदेव का एक सामयिक सम्पादकीय - मानवी जीवन का सबसे बड़ा लाभ- प्रतिभा परिष्कार
  • सम्मानपूर्वक नहीं ठहर सकता (kahani)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj