• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • शाश्वत सौंदर्य का बोध
    • पूजा का मर्म
    • अपनी प्रतिभा को यूँ बरबाद तो न करें
    • विदुषी मदलसा (Kahani)
    • समग्र परिवर्तन चेतना-स्तर ही सम्भव
    • Quotation
    • प्रकृति की पाठशाला में ब्रह्म-विद्या का पाठ
    • कला की शापित अप्सरा (Kahani)
    • संगठित जातियाँ चट्टान की तरह मजबूत होती हैं।
    • दुःखेन साध्वी लभते सुखानि (Kahani)
    • पुस्तकों की प्रयोगशाला में महापुरुष
    • हालैण्ड के नागरिकों की देशभक्ति (Kahani)
    • मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है।
    • ज्योति-अवतरण की साधना और उसका विज्ञान
    • Quotation
    • श्रद्धा शक्ति है, विश्वास शिव
    • सच्ची भक्ति (Kahani)
    • देवसत्ताएँ-चैतन्य ऊर्जाएँ
    • Quotation
    • इस मूल्यवान जीवन को खोकर तुम्हें क्या मिलेगा (Kahani)
    • सूक्ष्म शरीर-प्रकाश शरीर
    • सत्संग गंगा है (Kahani)
    • बनाने वाले के हाथ
    • स्वप्न के झरोखे से अंतःस्थिति की झाँकी
    • मनुष्य-मनुष्य के बीच भेद (Kahani)
    • कानून न्याय की आत्मा की हत्या न करे
    • मेहनत की कमाई का दर्द (Kahani)
    • कलाकार की पहचान
    • आखिर क्यों प्रकृति कुपित है?
    • दीनबन्धु ऐंड्रूज (Kahani)
    • मनुष्य से कहीं अधिक संवेदनशील हैं वृक्ष-वनस्पति
    • ब्रह्मवादिनी सुलभा (Kahani)
    • कैसा है आपका अभ्युदय?
    • शील (Kahani)
    • क्रोधित होने से पहले यह भी सोचें
    • सच्चा त्याग और मोक्ष (Kahani)
    • पूर्वाग्रह का दुराग्रह न पालें
    • शिक्षा का सर्वोत्तम समय (Information)
    • विज्ञान भी कहता है-’ब्रह्म सत्यं जगन्माया’
    • “ईश्वर के सान्निध्य से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है (Kahani)
    • विषम परिस्थिति में नवयुग की तैयारी - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • अज्ञान का निवारण ही सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ है (Kahani)
    • नवरात्रि में उपासना से जगेगी सुप्त चेतना
    • अपनों से अपनी बात -
    • विश्व-संस्कृति के संदेशवाहक बनने हेतु स्वयं को तैयार करें
    • VigyapanSuchana
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • शाश्वत सौंदर्य का बोध
    • पूजा का मर्म
    • अपनी प्रतिभा को यूँ बरबाद तो न करें
    • विदुषी मदलसा (Kahani)
    • समग्र परिवर्तन चेतना-स्तर ही सम्भव
    • Quotation
    • प्रकृति की पाठशाला में ब्रह्म-विद्या का पाठ
    • कला की शापित अप्सरा (Kahani)
    • संगठित जातियाँ चट्टान की तरह मजबूत होती हैं।
    • दुःखेन साध्वी लभते सुखानि (Kahani)
    • पुस्तकों की प्रयोगशाला में महापुरुष
    • हालैण्ड के नागरिकों की देशभक्ति (Kahani)
    • मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है।
    • ज्योति-अवतरण की साधना और उसका विज्ञान
    • Quotation
    • श्रद्धा शक्ति है, विश्वास शिव
    • सच्ची भक्ति (Kahani)
    • देवसत्ताएँ-चैतन्य ऊर्जाएँ
    • Quotation
    • इस मूल्यवान जीवन को खोकर तुम्हें क्या मिलेगा (Kahani)
    • सूक्ष्म शरीर-प्रकाश शरीर
    • सत्संग गंगा है (Kahani)
    • बनाने वाले के हाथ
    • स्वप्न के झरोखे से अंतःस्थिति की झाँकी
    • मनुष्य-मनुष्य के बीच भेद (Kahani)
    • कानून न्याय की आत्मा की हत्या न करे
    • मेहनत की कमाई का दर्द (Kahani)
    • कलाकार की पहचान
    • आखिर क्यों प्रकृति कुपित है?
    • दीनबन्धु ऐंड्रूज (Kahani)
    • मनुष्य से कहीं अधिक संवेदनशील हैं वृक्ष-वनस्पति
    • ब्रह्मवादिनी सुलभा (Kahani)
    • कैसा है आपका अभ्युदय?
    • शील (Kahani)
    • क्रोधित होने से पहले यह भी सोचें
    • सच्चा त्याग और मोक्ष (Kahani)
    • पूर्वाग्रह का दुराग्रह न पालें
    • शिक्षा का सर्वोत्तम समय (Information)
    • विज्ञान भी कहता है-’ब्रह्म सत्यं जगन्माया’
    • “ईश्वर के सान्निध्य से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है (Kahani)
    • विषम परिस्थिति में नवयुग की तैयारी - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • अज्ञान का निवारण ही सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ है (Kahani)
    • नवरात्रि में उपासना से जगेगी सुप्त चेतना
    • अपनों से अपनी बात -
    • विश्व-संस्कृति के संदेशवाहक बनने हेतु स्वयं को तैयार करें
    • VigyapanSuchana
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1996 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


अपनी प्रतिभा को यूँ बरबाद तो न करें

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 2 4 Last
प्रतिभाएँ ईश्वरीय अनुदान हैं। वे लोक-मंगल के लिए सौंपी गई ईश्वरीय अमानत हैं। प्रतिभाशाली उस प्रतिभा का ट्रस्टी होता है। उसे चाहे जैसे खर्च करने का उसे अधिकार नहीं। वस्तुतः इस ईश्वरीय सृष्टि में मनमानी का अधिकार किसी को भी नहीं। जब स्वयं ईश्वर ने अपने को नियम-व्यवस्था में बाँध रखा है, तब और किसी के द्वारा नियमोल्लंघन क्यों कर सहन होगा? इसलिए प्रतिभाशाली को अपनी विशिष्टता का बोध होने के साथ ही उससे जुड़े विशेष कर्त्तव्यों का भी बोध होना ही चाहिए। प्रतिभा के विशेष उपहार को अपनी वासना, तृष्णा, अहंता की पूर्ति के लिए नहीं, लोक-मंगल की पुण्य-प्रवृत्ति के लिए उपयोग में लाना चाहिए। दूसरे शब्दों में प्रत्येक प्रतिभाशाली को स्वधर्म का स्मरण रहना चाहिए और धर्मनिष्ठ बनना चाहिए।

ऋग्वेद के अनुसार, मानव की समष्टि आत्मा अभी भी एक ही स्वर पुकारती है- “हमें देवों के पाप से बचाया जाये।” कुमार्गगामी प्रतिभाएँ जितना अहित कर सकती हैं उतना कोई नहीं कर सकता है। हम अपने पानों से भी अधिक देवों के, प्रतिभाओं के पापों का दण्ड भोग रहे हैं और दुर्गति के गहन गर्त में पड़े कराह रहे हैं। इस स्थिति तक पहुँचने में हमारे प्रमाद ही नहीं, देवों का पाप भी बहुत हद तक जिम्मेदार है।

प्रतिभाओं के अनेक क्षेत्र हैं- दर्शन, अध्यात्म, साहित्य, राजनीति, सिनेमा, रंगमंच, नृत्य, गीत, संगीत समेत समस्त ललित कलाएँ आदि। इन सभी मानवीय विभूतियों को सत्यगामी होना चाहिए अन्यथा वे समाज में अनर्थ फैलाती हैं।

एक प्रतिभा और है, उसने उपरोक्त सभी अन्य विभूतियों से अग्रिम पंक्ति में अपना स्थान बना लिया है। उसका नाम है- धन। इन दिनों धन का वर्चस्व अत्यधिक है। सारी कलाएँ उससे हेठी पड़ गई हैं और लगभग सभी ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली है। धन का प्रलोभन देकर गायक, वादक, चित्रकार, अभिनेता, कवि, साहित्यकार, पत्रकार, धर्मगुरु, राजनेता सभी अपने वश में किये जा सकते हैं और उन्हें कठपुतली कर तरह नचाया जा सकता है अथवा यों कहना चाहिए कि सभी कलाएँ धन की कृपा-कटाक्ष प्राप्त करने के लिए, अपना शील-सतीत्व बेचने के लिए लालायित फिर रही हैं। प्रतिभाएँ धन के द्वारा खरीदी जा रही हैं और वे खुशी-खुशी अपना आत्मसमर्पण करके उसकी इच्छानुसार नाचने के लिए बाजारू वेश्या की तरह अपना साज-शृंगार सजाये बैठी हैं। इस प्रकार आज धन प्रतिभा शेष सभी प्रतिभाओं की निर्देशक बन बैठी है।

धन की प्रतिभा को लोभ, परिग्रह और कृपणता के बंधनों से छुड़ाना होगा। धनी भी एक कलाकार है। भले ही वह कलाकारिता उचित हो या अनुचित, पर उसे स्वीकार तो करना ही पड़ेगा। जिन दिनों 90 प्रतिशत लोग जीवन निर्वाह की मूलभूत आवश्यकता जुटाने के लिए दैनिक आवश्यकताएं भर पूरी नहीं कर पाते, उन दिनों किसी का धनी, अमीर, मालदार बन जाना सचमुच किसी विलक्षण व्यक्ति का ही काम है। अधिक उपार्जन की क्षमता समझ में आती है पर जिन दिनों दसों दिशाएं अज्ञान, अभाव और अशक्ति की पीड़ा से बुरी तरह कराह रही हों, उन दिनों लोक-मंगल की आवश्यकताओं से आँखें मींचकर जो अर्थ संग्रह कर सकता है, अमीरी और अय्याशी जुटा सकता है, उसे पत्थर के कलेजे वाला आदमी ही कहा जाएगा। घोर अनुदार, परम कृपण और स्वार्थान्ध के लिए ही यह स्थिति प्राप्त कर सकना संभव है। सो इन विशेषताओं से सम्पन्न धनी व्यक्ति को महापुरुष तो नहीं, विलक्षण जरूर कहा जाएगा। यह विलक्षणता ‘कला’ नहीं तो और क्या है। धनी भी कलाकारों की अग्रिम पंक्ति में खड़ा है, उसे पीछे कौन ढकेले?

इस अग्रिम पंक्ति में खड़ी प्रतिभा को कुमार्गगामी नहीं होने दिया जाना चाहिए। उसे अति नम्रतापूर्वक समझाया जाना चाहिए कि अन्य कलाओं की तरह संपन्नता भी एक परम पवित्र विभूति है और इसका उपयोग लोक-मंगल के लिए ही होना चाहिए। कमाये कोई कितना ही, पर अपने और अपने परिवार के लिए खर्च भारतीय जनता के औसत स्तर ध्यान रखकर ही करे।

अमीरी और विलासिता का ठाट-बाट वाला जीवन अब अगले दिनों प्रशंसा या प्रतिष्ठा का आधार नहीं रहेगा वरन् जनता का रोष ही उभरेगा। बिना बेईमानी कमाया हुआ ही सही, पर जो पीड़ित मानवता की कराह को अनसुनी कर निष्ठुरता और कृपणता के साथ जो जमा कर रखा है, वह अवाँछनीय ही कहा जाएगा। अगले दिनों ऐसे संग्रही जनता की अदालत में अपराधियों की तरह खड़े किये जाने वाले हैं, आध्यात्मिकता और धार्मिकता तो अनादि काल से परिग्रह को, संग्रह को पाँच प्रधान पातकों में गिनती रही है। अब समाज की भावनाएँ भी उस संबंध में अधिक उग्र हो चली हैं। उसने धनी को सम्पन्न मानने की अपेक्षा अधिक दुष्ट-दुराचारी मानना आरंभ है और अगले ही दिनों समाजवाद, साम्यवाद की उँगलियाँ गले तक डालकर जो खाया है उसे उगलवा लेने की तैयारी हो रही है। समाजवादी देशों में धनियों का बड़ा उत्पीड़न और तिरस्कार हुआ है। देर-सबेर सारे संसार में वही होने वाला है। शंकरजी को बेलपत्र, गंगाजी को दूध और हनुमान जी को प्रसाद, महन्त जी को माल-पुए खिलाकर अब किसी को ईश्वरीय सहायता की आशा नहीं करनी चाहिए और लंबल माला सटकने वाले और रोज गंगाजल पीने वाले को अपनी धार्मिकता की दुहाई अब नहीं देनी चाहिए, क्योंकि उसे घड़ियाल के आँसू भर माना जाएगा। राजाओं के राज, जमींदारों की जमींदारी जा चुकीं, अब अमीरों की अमीरी जाने को तैयार बैठी है। सरकारी टैक्सों की दर दिन-दिन बढ़ रही है। इनकम टैक्स, सुपर टैक्स, संपत्ति टैक्स, मृत्यु टैक्स आदि की कैंची तेजी से चल रही है। कुछ दिन बाद इन झंझटों में व्यर्थ सिरफोड़ी से बचने के लिए समाज सीधे, व्यक्ति की निजी संपदा पर कब्जा कर लेगा। यह एक कड़ुई किन्तु सुनिश्चित सच्चाई है। इसलिए हर धनवंत कलाकार को पूर्व चेतावनी, नेक सलाह दी जानी चाहिए कि वह बेटे, पोतों के लिए दौलत जमा न करे। अमीरी का ठाट-बाट न जुटाये। सोने-चाँदी की सलाखें जमीन में न गाढ़े और तिजोरियाँ भरने के फेर में न रहे। इस फेर में वह प्रशंसा का नहीं, भर्त्सना का पात्र ही रहेगा।

बेटे-पोतों के लिए सात पीढ़ी को बैठे-बैठे खाने के लिए दौलत जमा करते जाना उनके साथ अत्यंत दुष्टता बरतना है। हराम की कमाई किसी को दुर्गुणी और पतनोन्मुख ही बना सकती है। अपनी संतान को हराम खाऊ के घृणित स्तर पर पटकने की कुचेष्टा किसी को नहीं करनी चाहिए। उन्हें पढ़ा-लिखाकर स्वावलंबी बना देने भर की बात तो समझ में आती है, पर इस प्रक्रिया का औचित्य समझ में नहीं आता कि कमाऊ वंतान के लिए बाप अपनी कमाई मुफ्त के माल पर गुलछर्रे उड़ाने के लिए छोड़ जाय। पारिवारिक उत्तरदायित्व पूरे करने के बाद बचा हुआ हर पैसा विशुद्ध रूप से इस अभावग्रस्त समाज को मिलना चाहिए और ईमानदारी के साथ वही असली हकदार है। बेटे को बाप की कमाई मिलनी ही चाहिए, यह सामंतवादी अर्थ भ्रष्टता संसार में से जितनी जल्दी मिट जाय उतना ही अच्छा है।

यों, वर्तमान धनवानों ने जिस ढंग से कमाया है और जिस मनोवृत्ति से संग्रह किया है उसे देखते हुए यही सोचा जा सकता है कि वे वह पैसा 1-बेटे-पोतों को विलासी, हरामखोर बनाने के लिए छोड़ेंगे। 2-चोरों, डॉक्टरों, शराबघरों एवं वेश्याओं के यहाँ फेंकेंगे। 3-राजनैतिक दाव-पेंचों में खर्च करेंगे। 4-विवाह-शादियों में होली फूँकेंगे। 5-अमीरी का ठाट-बाट और शान-शौकत का ढोंग खड़ा करेंगे। 6-मरने के बाद मुकदमेबाजी और सरकारी टैक्सों में उसे बह जाने देंगे। 7-सस्ती स्वर्ग की टिकट खरीदने के लिए छुट-पुट कर्मकाण्डों के बहाने धर्म वंचकों से जेब कटायेंगे। 8-कोई तुरन्त नामवरी का या प्रतिष्ठा का लालच दिखा दे तो उसमें थोड़ा बहुत लगा देंगे। धर्मशाला सदावर्त का विज्ञापन बोर्ड भी उन्हें रुचिकर लग सकता है। 9-कोई ठग उन्हें लंबे-चौड़े सब्जबाग दिखाकर ठग ले जा सकता है। ऐसे ही किसी औंधे-सीधे मार्ग में उनकी कमाई जा सकती है पर मानवीय उत्कर्ष के सच्चे आधार-लोकमानस के परिवर्तन में शायद ही इस वर्ग में से किसी की रुचि पैदा की जा सके।

दीखती निराशा ही है, पर कोशिश करनी चाहिए कि कोई विवेकशील धनी प्रतिभा दूरदर्शिता का परिचय दे और मनुष्य को भावनात्मक परतंत्रता के कारागार से छुड़ाने में अपनी कमाई का कुछ अंश लगा सके। एक भामाशाह उस युग में भी निकला था, जिसने राणाप्रताप की नसों में नया रक्त भरा था और पर्दे के पीछे भारतीय स्वतंत्रता का एक गौरवपूर्ण अध्याय खोला था। हो सकता है उसकी परम्परा का कोई बीज कहीं पड़ा अंकुरित हो रहा हो और प्रोत्साहन का अभिसिंचन पाकर हरे-भरे पत्र-पल्लवों से लदकर फलने-फूलने तक बढ़ चले। धनियों को कहना चाहिए-भावनात्मक नवनिर्माण के पुण्य-प्रयोजन में सहयोग देने से बढ़कर और कोई दान-पुण्य हो नहीं सकता। समझ और सदाशयता जीवित हो, तो वे वस्तुस्थिति पर विचार करें और उदारता की एक बूँद उस प्रयोजन के लिए भी खर्च कर दें, जिस पर मानव जाति एवं समस्त संसार के भाग्य-भविष्य बनने-बिगड़ने की संभावना बहुत कुछ निर्भर है।

आज मानव जाति की बौद्धिक, सामाजिक, नैतिक स्वतंत्रता की रक्षा और प्रतिष्ठा करने के लिए फिर पैसे की जरूरत है। विचार क्रान्ति का रथ साधनों के अभाव में रुका खड़ा है। ज्ञान-यज्ञ की ज्वाला समिधाओं के अभाव में प्रज्ज्वलित होने का अवसर प्राप्त नहीं कर रही है। सामाजिक कुरीतियों को फाँसी पर कैदी की तरह समाज जकड़े पड़ा है। इन कुत्साओं और कुण्ठाओं के विरुद्ध धर्मयुद्ध की भेरी तो बज गई पर कारतूस खरीदने को पैसा नहीं। सो हर जिंदादिल धनी का हर फालतू पैसा इसी प्रयोजन के लिए लगना चाहिए। युग ने, भगवान ने धनवंत कलाकारों को इसके लिए पुकारा है। ये अनसुनी भी कर रहे हैं और करेंगे भी, पर गाँठ यह भी बाँध रखी जाय कि इस प्रकार ‘बचाये रखने’ की चतुरता उन्हें आज की उदारता की तुलना में अत्यधिक महँगी और अत्यधिक कष्टकारक सिद्ध होगी। कैसे? इस प्रश्न का उत्तर निकटवर्ती समय ऐसी अच्छी तरह देगा जिसका कभी विस्मरण न किया जा सके।

नये युग में प्रत्येक प्रतिभा को समाज और परमेश्वर की धरोहर ही समझा जाएगा तथा यह देखा जाएगा कि जिसे वह अमानत सौंपी गई है, वह उसका दुरुपयोग न करने पाए। प्रत्येक प्रतिभा को धर्मनिष्ठ, सत्कर्मनिरत, सन्मार्गगामी होना ही चाहिए। कला जीवन के लिए है और जीवन की विकासमान गति में योगदान देने में ही उसकी सार्थकता है, न कि उसे विकृतियों में फँसाने, सड़ाने और संकीर्ण बनाने में। धनोपार्जन की कला को भी धर्मनिष्ठ बनना चाहिए।

First 2 4 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • शाश्वत सौंदर्य का बोध
  • पूजा का मर्म
  • अपनी प्रतिभा को यूँ बरबाद तो न करें
  • विदुषी मदलसा (Kahani)
  • समग्र परिवर्तन चेतना-स्तर ही सम्भव
  • Quotation
  • प्रकृति की पाठशाला में ब्रह्म-विद्या का पाठ
  • कला की शापित अप्सरा (Kahani)
  • संगठित जातियाँ चट्टान की तरह मजबूत होती हैं।
  • दुःखेन साध्वी लभते सुखानि (Kahani)
  • पुस्तकों की प्रयोगशाला में महापुरुष
  • हालैण्ड के नागरिकों की देशभक्ति (Kahani)
  • मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है।
  • ज्योति-अवतरण की साधना और उसका विज्ञान
  • Quotation
  • श्रद्धा शक्ति है, विश्वास शिव
  • सच्ची भक्ति (Kahani)
  • देवसत्ताएँ-चैतन्य ऊर्जाएँ
  • Quotation
  • इस मूल्यवान जीवन को खोकर तुम्हें क्या मिलेगा (Kahani)
  • सूक्ष्म शरीर-प्रकाश शरीर
  • सत्संग गंगा है (Kahani)
  • बनाने वाले के हाथ
  • स्वप्न के झरोखे से अंतःस्थिति की झाँकी
  • मनुष्य-मनुष्य के बीच भेद (Kahani)
  • कानून न्याय की आत्मा की हत्या न करे
  • मेहनत की कमाई का दर्द (Kahani)
  • कलाकार की पहचान
  • आखिर क्यों प्रकृति कुपित है?
  • दीनबन्धु ऐंड्रूज (Kahani)
  • मनुष्य से कहीं अधिक संवेदनशील हैं वृक्ष-वनस्पति
  • ब्रह्मवादिनी सुलभा (Kahani)
  • कैसा है आपका अभ्युदय?
  • शील (Kahani)
  • क्रोधित होने से पहले यह भी सोचें
  • सच्चा त्याग और मोक्ष (Kahani)
  • पूर्वाग्रह का दुराग्रह न पालें
  • शिक्षा का सर्वोत्तम समय (Information)
  • विज्ञान भी कहता है-’ब्रह्म सत्यं जगन्माया’
  • “ईश्वर के सान्निध्य से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है (Kahani)
  • विषम परिस्थिति में नवयुग की तैयारी - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
  • अज्ञान का निवारण ही सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ है (Kahani)
  • नवरात्रि में उपासना से जगेगी सुप्त चेतना
  • अपनों से अपनी बात -
  • विश्व-संस्कृति के संदेशवाहक बनने हेतु स्वयं को तैयार करें
  • VigyapanSuchana
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj