• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • शाश्वत सौंदर्य का बोध
    • पूजा का मर्म
    • अपनी प्रतिभा को यूँ बरबाद तो न करें
    • विदुषी मदलसा (Kahani)
    • समग्र परिवर्तन चेतना-स्तर ही सम्भव
    • Quotation
    • प्रकृति की पाठशाला में ब्रह्म-विद्या का पाठ
    • कला की शापित अप्सरा (Kahani)
    • संगठित जातियाँ चट्टान की तरह मजबूत होती हैं।
    • दुःखेन साध्वी लभते सुखानि (Kahani)
    • पुस्तकों की प्रयोगशाला में महापुरुष
    • हालैण्ड के नागरिकों की देशभक्ति (Kahani)
    • मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है।
    • ज्योति-अवतरण की साधना और उसका विज्ञान
    • Quotation
    • श्रद्धा शक्ति है, विश्वास शिव
    • सच्ची भक्ति (Kahani)
    • देवसत्ताएँ-चैतन्य ऊर्जाएँ
    • Quotation
    • इस मूल्यवान जीवन को खोकर तुम्हें क्या मिलेगा (Kahani)
    • सूक्ष्म शरीर-प्रकाश शरीर
    • सत्संग गंगा है (Kahani)
    • बनाने वाले के हाथ
    • स्वप्न के झरोखे से अंतःस्थिति की झाँकी
    • मनुष्य-मनुष्य के बीच भेद (Kahani)
    • कानून न्याय की आत्मा की हत्या न करे
    • मेहनत की कमाई का दर्द (Kahani)
    • कलाकार की पहचान
    • आखिर क्यों प्रकृति कुपित है?
    • दीनबन्धु ऐंड्रूज (Kahani)
    • मनुष्य से कहीं अधिक संवेदनशील हैं वृक्ष-वनस्पति
    • ब्रह्मवादिनी सुलभा (Kahani)
    • कैसा है आपका अभ्युदय?
    • शील (Kahani)
    • क्रोधित होने से पहले यह भी सोचें
    • सच्चा त्याग और मोक्ष (Kahani)
    • पूर्वाग्रह का दुराग्रह न पालें
    • शिक्षा का सर्वोत्तम समय (Information)
    • विज्ञान भी कहता है-’ब्रह्म सत्यं जगन्माया’
    • “ईश्वर के सान्निध्य से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है (Kahani)
    • विषम परिस्थिति में नवयुग की तैयारी - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • अज्ञान का निवारण ही सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ है (Kahani)
    • नवरात्रि में उपासना से जगेगी सुप्त चेतना
    • अपनों से अपनी बात -
    • विश्व-संस्कृति के संदेशवाहक बनने हेतु स्वयं को तैयार करें
    • VigyapanSuchana
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • शाश्वत सौंदर्य का बोध
    • पूजा का मर्म
    • अपनी प्रतिभा को यूँ बरबाद तो न करें
    • विदुषी मदलसा (Kahani)
    • समग्र परिवर्तन चेतना-स्तर ही सम्भव
    • Quotation
    • प्रकृति की पाठशाला में ब्रह्म-विद्या का पाठ
    • कला की शापित अप्सरा (Kahani)
    • संगठित जातियाँ चट्टान की तरह मजबूत होती हैं।
    • दुःखेन साध्वी लभते सुखानि (Kahani)
    • पुस्तकों की प्रयोगशाला में महापुरुष
    • हालैण्ड के नागरिकों की देशभक्ति (Kahani)
    • मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है।
    • ज्योति-अवतरण की साधना और उसका विज्ञान
    • Quotation
    • श्रद्धा शक्ति है, विश्वास शिव
    • सच्ची भक्ति (Kahani)
    • देवसत्ताएँ-चैतन्य ऊर्जाएँ
    • Quotation
    • इस मूल्यवान जीवन को खोकर तुम्हें क्या मिलेगा (Kahani)
    • सूक्ष्म शरीर-प्रकाश शरीर
    • सत्संग गंगा है (Kahani)
    • बनाने वाले के हाथ
    • स्वप्न के झरोखे से अंतःस्थिति की झाँकी
    • मनुष्य-मनुष्य के बीच भेद (Kahani)
    • कानून न्याय की आत्मा की हत्या न करे
    • मेहनत की कमाई का दर्द (Kahani)
    • कलाकार की पहचान
    • आखिर क्यों प्रकृति कुपित है?
    • दीनबन्धु ऐंड्रूज (Kahani)
    • मनुष्य से कहीं अधिक संवेदनशील हैं वृक्ष-वनस्पति
    • ब्रह्मवादिनी सुलभा (Kahani)
    • कैसा है आपका अभ्युदय?
    • शील (Kahani)
    • क्रोधित होने से पहले यह भी सोचें
    • सच्चा त्याग और मोक्ष (Kahani)
    • पूर्वाग्रह का दुराग्रह न पालें
    • शिक्षा का सर्वोत्तम समय (Information)
    • विज्ञान भी कहता है-’ब्रह्म सत्यं जगन्माया’
    • “ईश्वर के सान्निध्य से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है (Kahani)
    • विषम परिस्थिति में नवयुग की तैयारी - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • अज्ञान का निवारण ही सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ है (Kahani)
    • नवरात्रि में उपासना से जगेगी सुप्त चेतना
    • अपनों से अपनी बात -
    • विश्व-संस्कृति के संदेशवाहक बनने हेतु स्वयं को तैयार करें
    • VigyapanSuchana
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1996 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


नवरात्रि में उपासना से जगेगी सुप्त चेतना

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 42 44 Last
नवरात्रि को देवत्व के स्वर्ग से धरती पर उतरने का विशेष पर्व माना जाता है। उस अवसर पर सुसंस्कारी आत्माएँ अपने भीतर समुद्र मंथन जैसी हलचलें उभरती देखते हैं। जो उन्हें सुनियोजित कर सके वे वैसी ही रत्नराशि उपलब्ध करते हैं जैसी कि पौराणिककाल में उपलब्ध हुई मानी जाती है। इन दिनों परिष्कृत अंतराल में ऐसी उमंगे भी उठती हैं जिनका अनुसरण सम्भव हो सके तो दैवी अनुग्रह पाने का नहीं देवोपम बनने का अवसर भी मिलता है। यों ईश्वरीय अनुग्रह सत्पात्रों पर सदा ही बरसता है, पर ऐसे कुछ विशेष अवसर भी आते हैं, जिनमें अधिक लाभान्वित होने का अवसर मिल सके। इन अवसरों को पावन पर्व कहते हैं। नवरात्रियों का पर्व मुहूर्तों में विशेष स्थान है। उस अवसर पर देव प्रकृति की आत्माएँ किसी अदृश्य प्रेरणा से प्रेरित होकर आत्म-कल्याण एवं लोकमंगल के क्रिया-कलापों में अनायास ही रस लेने लगती हैं।

बसन्त आते ही कोयल कूकती और तितलियाँ फुदकती दृष्टिगोचर होती हैं और भौंरे गूँजते हैं जबकि अन्य ऋतुओं में उनके दर्शन भी दुर्लभ रहते हैं। वर्षा आते ही मेंढक बोलते हैं और मोर नाचने लगते हैं जबकि साल के अन्य महीनों में उनकी गतिविधियाँ कदाचित ही दृष्टिगोचर होती हैं। आँधी तूफान और चक्रवातों का दौर गर्मी के दिनों में रहता है। ग्रीष्म का तापमान बदलते ही उनमें से किसी का पता नहीं चलता। ठीक यही बात नवरात्रियों के समय पर भी लागू होती हैं। प्रातः काल और सायंकाल की तरह इन दिनों की भी विशेष परिस्थितियाँ होती हैं, उनसे सूक्ष्म जगत के दिव्य प्रवाह उभरते और मानवी चेतना को प्रभावित करते हैं। न केवल प्रभावित करने वाली वरन् अनुकूल उत्पन्न करने वाली परिस्थितियाँ भी अनायास ही बनती हैं इसे समय की विशेषता कह सकते हैं। जीवधारियों में से अधिकाँश को इन्हीं दिनों प्रजनन की उत्तेजना सताती है और वे गर्भाधान सम्पन्न कर लेते हैं। इसमें प्राणी तो कठपुतली की तरह अपना रोल पूरा करता है, सूत्र-संचालन तो किसी ऐसे अविज्ञात मर्मस्थल से होता है जिसे सूक्ष्म जगत या अंतर्जगत के नाम से मनीषी व्याख्या-विवेचना करते रहते हैं। नवरात्रियों में कुछ ऐसा वातावरण रहता है जिसमें आत्मिक प्रगति के लिए प्रेरणा और अनुकूलता की सहज शुभेच्छा बनते देखी जाती है।

सूर्य के उदय और अस्त होते समय आकाश में लालिमा छाई रहती है और उस अवधि के समाप्त होते ही वह दृश्य भी तिरोहित होते दिखता है। इसे काल प्रवाह का उत्पादन कह सकते हैं। ज्वारभाटे हर रोज नहीं अमावस्या, पूर्णमासी को ही आते हैं उमंगों के संबंध में भी ऐसी ही बात है कि वे मनुष्य की स्वउपार्जित ही नहीं होती वरन् कभी-कभी उनके पीछे किसी अविज्ञात उभार का ऐसा दौर काम करता पाया गया है कि चिंतन ही नहीं कर्म भी किसी ऐसी दशा में बहने, बढ़ने लगता है जिसकी इसके पूर्व वैसी आशा या तैयारी जैसी कोई बात नहीं थी। ऐसे अप्रत्याशित अवसर तो यदा-कदा ही आते हैं पर नवरात्रि के दिनों अनायास ही अंतराल में ऐसी हलचलें उठती हैं जिनका अनुसरण करने पर आत्मिक प्रगति की व्यवस्था बनने में ही नहीं, सफलता मिलने में भी ऐसा कुछ बन पड़ता है मानो अदृश्य से अप्रत्याशित अनुदान बरसा हो।

ऐसे ही अनेक लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए तत्वदर्शी, ऋषियों, मनीषियों ने नवरात्रि में साधना का अधिक महात्म्य बताया है और इस बात पर जोर दिया है कि अन्य अवसर पर न बन पड़े सही पर नवरात्रि में आध्यात्मिक तप साधना का सुयोग बिठाने का प्रयत्न तो करना ही चाहिए। तंत्र विज्ञान के अधिकाँश कौलकर्म उन्हीं दिनों सम्पन्न होते हैं। वाममार्गी साधक अभीष्ट मंत्र सिद्ध करने के लिए इस अवसर की प्रतीक्षा करते रहते हैं।

नवरात्रि देव पर्व है। उसमें देवत्व की प्रेरणा और दैवी अनुकम्पा बरसती है। जो उस अवसर पर सतर्कता बरतते हैं और प्रयत्नरत होते हैं, वे अन्य अवसरों की अपेक्षा इस शुभ मुहूर्तों का लाभ ही अधिक उठाते हैं। भौतिक लाभों को सिद्धियों के नाम से जाना जाता है। संकटों के निवारण और प्रगति के अनुकूलन में सिद्धियों की आवश्यकता पड़ती है। उस आधार पर जो मिलता है उसे वरदान कहा जाता है। नवरात्रियाँ वरदानों की अधिष्ठात्री कही जाती है, पर इस शुभावसर का वास्तविक लाभ है-देवत्व की विभूतियों का जीवनचर्या में समावेश । वह जिसे जितनी मात्रा में मिलता है वह उतना ही कला क्षमता का नरदेव कहलाता है। देवता स्वर्ग में नहीं रहते अपितु महामानवों के रूप में इस धरती पर विचरते हैं। नवयुग देवत्व प्रधान होगा। उसमें वे प्रयत्न चलेंगे जो मनुष्य में देवत्व बसते हैं वहाँ स्वर्ग होता है। जहाँ स्वर्ग होगा वहाँ देवता ही बसते होंगे। इसी तथ्य के आधार पर यह अपेक्षा की गई है कि उत्कृष्ट व्यक्तियों द्वारा जो सुखद वातावरण बनेगा, उसे धरती पर स्वर्ग के अवतरण की उपमा दी जा सकेगी।

युग संधि की नवरात्रियों में विशेष संभावना इस बात की है कि उनमें अदृश्य लोकों में देवत्व की अतिरिक्त वर्षा हो और उस अनुदान को पाकर देव मानवों का समुदाय अधिक प्रखरता सम्पन्न होता हुआ दृष्टिगोचर होने लगे। युग परिवर्तन की अवतार प्रक्रिया को गतिशील बनाने में इन देवमानवों का ही योगदान प्रमुख रहा है। तत्वदर्शी कहते हैं कि अवतार अकेले ही अपना प्रयोजन पूरा नहीं कर लेते, उनके साथ-साथ अनेक सहयोगी भी होते हैं और वे भी देवलोक से उसी प्रयोजन के लिए शरीर धारण करते हैं। पाँचों पाण्डव पाँच देवताओं के अवतार थे। हनुमान, अंगद आदि के बारे में भी ऐसी ही मान्यता है। इन दिनों सृजन योजनाओं में देवमानवों का यह साहस एवं प्रयास ही अग्रिम मोर्चा संभालता दिखाई देगा। नवयुग सृजन की प्रेरणाओं को क्रियान्वित करने तथा उस दिशा में कदम बढ़ाने का यही शुभ मुहूर्त है। प्रज्ञा युग की प्रेरणा को अपनाने और विधि-व्यवस्था को चरितार्थ करने के लिए यों हर घड़ी पवित्र और महत्वपूर्ण है, पर इस प्रयोजन के लिए नवरात्रि पर्व की अत्यधिक गरिमा मानी गई है। यों उपासना की चिन्ह-पूजा भी बीजारोपण की दृष्टि से उपयोगी मानी गई है और उसे किसी भी रूप में, किसी भी मनःस्थिति में अपनाये रहने पर जोर दिया गया है। फिर भी उसे निष्ठापूर्वक अपनाने की प्रौढ़ता का स्तर सदा ऊँचा ही रहता है। उच्चस्तरीय सत्परिणामों की आशा-अपेक्षा योजनाबद्ध तपश्चर्या अपनाकर की जाने वाली साधना के साथ अविच्छिन्न रूप से संबंधित है।

नवरात्रि पर्व का ऋतु संध्या मुहूर्त विज्ञान की दृष्टि से ही नहीं विशिष्ट साधना पद्धति के कारण भी महत्वपूर्ण माना गया है। नैष्ठिक साधकों के लिए आश्विन और चैत्र की नवरात्रियों में अनुष्ठान साधना एक अत्यावश्यक पुण्य परम्परा के रूप में सदा-सर्वदा से अपनाई जाती रही है। सर्दी और गर्मी दो ही प्रधान ऋतुएँ हैं, उनका मिलन एक प्रकार से वैसा ही संधिकाल है जैसा कि रात्रि के अंत्र और दिन के प्रारंभ में प्रभातकाल के रूप में उपस्थित होता है। सन्धियाँ सदा मार्मिक होती हैं। शरीर में अस्थिपंजर से बने हुए जोड़ों को भी संधियाँ कहते हैं। इन्हीं के यथावत रहने पर काया की विभिन्न क्रिया-प्रक्रियाएँ गतिशील रहती हैं। यह जोड़ यदि जकड़ने लगे तो फिर चलना-फिरना तो दूर मुड़ना भी संभव न रहेगा। मशीनों के संबंध में भी यही बात है। उनकी क्षमता एवं गतिशीलता उनकी संधियों के सही गलत होने पर ही निर्भर रहती है। इन दिनों युगसंधि चल रही है और अपना शाँतिकुँज पच्चीसवें वर्ष के पूरा करने पर रजत जयंती वर्ष मना रहा है। अतएव जाग्रत आत्माओं को आपत्तिकालीन व्यवस्था की तरह युग धर्म के निर्वाह में जुटना पड़ रहा है। ऋतु संध्या आश्विन और चैत्र में जिन दिनों आती है। उन नौ-नौ दिनों की अवधि को नवरात्रि कहते हैं। ऋतुओं में ऋतुमती होने और वातावरण में नये-नये अनुदान भर देने का दृश्य सूक्ष्म जगत में इन्हीं दिनों दृष्टिगोचर होता है। ऐसे-ऐसे अनेकों कारण हैं जिनके कारण अध्यात्म क्षेत्र में साधना प्रयोजनों के लिए यह समय विशेष रूप से उपयुक्त माना गया है। जिस प्रकार प्रभात काल की उपासना अधिक फलवती होती है और संध्या के नाम से पुकारी जाती है। उसी प्रकार नवरात्रियों का समय भी दोनों संध्याओं के समतुल्य माना गया है।

नवरात्रियों की नौ दिवसीय साधना, चौबीस हजार जप का लघु अनुष्ठान के साथ सम्पन्न करनी चाहिए। यदि जप प्रातः पूरा नहीं हो सकता है तो सायंकाल उसे पूरा कर लेना चाहिए। उपासना क्षेत्र में नर-नारी को एक समान अधिकार है। ईश्वर के लिए पुत्र-पुत्री दोनों समान हैं।

अनुष्ठान काल में जप तो पूरा करना ही पड़ता है, कुछ विशेष तपश्चर्याएँ भी इन दिनों करनी पड़ती हैं, जो इस प्रकार हैं-

1-नौ दिनों तक पूर्ण ब्रह्मचर्य से रहा जाय। यदि स्वप्नदोष हो जाये तो दस माला प्रायश्चित की अधिक की जाएँ।

2- नौ दिन उपवास रखा जाय। उपवास कई स्तर का हो सकता है- फल-दूध पर, शाकाहार, खिचड़ी दलिया आदि। आलू, टमाटर, लौकी आदि शाक में नमक भर डालना चाहिए। मसाला इन दिनों छोड़ दिया जाय। बिना नमक या शक्कर का साधारण भोजन भी एक प्रकार का उपवास ही है। जिनसे जैसा बन पड़े उन्हें अपनी शारीरिक स्थिति के अनुसार उपवास का क्रम बना लेना चाहिए। फलाहार-शाकाहार दो बार किया जा सकता है। अन्नाहार लेना हो तो एक बार ही लेना चाहिए। प्रातःकाल खाली पेट जिससे न रहा जाय, वे दूध, छाछ, नींबू पानी, शरबत कोई पतली चीज ले सकते हैं।

3- भूमि शयन, चारपाई का त्याग। पृथ्वी या तख्त पर सोना।

4- अपनी सेवाएँ स्वयं करना। हजामत, कपड़े धोना, स्नान आदि दैनिक कार्य बिना दूसरों के श्रम का उपयोग किये स्वयं ही करना चाहिए। भोजन बाजार का बना नहीं खाना चाहिए। स्वयं पकाना संभव हो तो सर्वोत्तम अन्यथा पत्नी, माता आदि का बना भोजन लेना चाहिए। घनिष्ठ परिजनों की सेवा ही ली जा सकती है।

5- चमड़े की बनी वस्तुओं का त्याग। चूँकि इन दिनों शत-प्रतिशत चमड़ा पशुओं की हत्या करके ही प्राप्त किया जाता है और वह पाप उन चमड़ा उपयोग करने वालों को भी लगता है। इसलिए चमड़े के जूते, पेटी, पट्टे आदि का उपयोग उन दिनों न करके रबड़, कपड़ा आदि के बने जूते-चप्पलों से काम चलाना चाहिए।

यह पाँच नियम अनुष्ठान काल में पालन किये जाने चाहिए। जप का शताँश हवन किया जाना चाहिए। प्रतिदिन हवन करना हो तो 27 आहुतियां, अंत में करना हो तो 240 आहुतियों का हवन करना चाहिए। पूर्णाहुति के बाद प्रसाद वितरण, कन्या भोजन आदि का प्रबन्ध अपनी सामर्थ्य अनुसार करना उत्तम है। अच्छा तो यह है कि एक या दो दिन का सामूहिक आयोजन किया जाय, जिसमें गायत्री महाशक्ति का स्वरूप और उपयोग संबंधी प्रवचन हों। अंत में सत्संकल्प दुहराया जाना हमारे हर धर्मानुष्ठान का आवश्यक अंग होना चाहिए।

जो उपयोग अनुष्ठान नहीं कर सकते वे 240 गायत्री चालीसा का पाठ करके अथवा 2400 गायत्री मंत्र लिख कर भी सरल अनुष्ठान कर सकते हैं। इसके साथ पाँच प्रतिबंध अनिवार्य नहीं, पर ब्रह्मचर्य आदि नियम जितने कुछ पालन किए जा सकें, उतना ही उत्कृष्ट माना जावेगा।

युगसृजन अभियान में नवरात्रि पर्व को साधना सत्र के रूप में नियोजित करने और सफल बनाने पर आरंभ से ही बहुत जोर दिया जाता रहा है। इसमें उपासना और साधना के उभयपक्षीय प्रयोजन पूरे होते हैं। उपासना से आत्मकल्याण की और जीवन साधना की प्रगति भी सदा उसी के सहारे सम्पन्न होती रही है। भविष्य निर्माण में सज्जनों की संगठित सृजन चेतना की ही प्रमुख भूमिका होगी। राम काल के रीछ-वानर, कृष्णकाल के ग्वाल-बाल, बुद्ध के भिक्षु सहयोगी, गाँधी के सत्याग्रही इसी तथ्य को प्रमाणित करते हैं कि महान प्रयोजनों की पूर्ति के लिए सज्जनों की सहकारिता सम्पादित किये बिना और कोई चारा नहीं। देवताओं की संयुक्त शक्ति दुर्गा ने ही उन्हें असुरों के त्रास से छुड़ाया था। ऋषियों का संचित रक्त घट ही सीता को जन्म देकर और दानवी विभीषिकाओं को निरस्त करने का आधारभूत कारण बना था। इन पुराण गाथाओं से सृजनशिल्पियों को भी यही प्रेरणा मिलती है कि वे जागरुक जन को तलाश करें और उनकी आँतरिक प्रखरता का भावभरा प्रयास करें। इस प्रयोजन के लिए नवरात्रि नौ दिन तक चलने वाले साधना सत्रों से बढ़कर अधिक उपयोगी एवं अधिक सरल व्यवस्था अन्य कदाचित् ही करना बन पड़े। महान साँस्कृतिक परम्पराओं का पुनर्जीवन और सृजन के अभीष्ट आत्म-ऊर्जा का अभिवर्द्धन तथा जन-जीवन में उत्कृष्टता के समावेश का जैसा स्वर्ण सुयोग साधना सत्रों में मिल सकता है, उसकी तुलना का उपयोग-उपचार कदाचित ही कहीं खोजा जा सके। रात्रि के ज्ञानयज्ञ में वह सब कुछ कहा जा सकता है जो प्रज्ञावतार के युगांतरीय चेतना को जनमानस में प्रतिष्ठापित करने के लिए आवश्यक है।

इन तथ्यों की जानकारी तो प्रज्ञापुत्रों को पहचान भी रही है और वे नवरात्रि आयोजनों को इसी उदाहरण को लेकर पूरा करने एवं अधिकाधिक उत्साहवर्द्धक बनाने का प्रयत्न करते रहे हैं। इस बार उसमें प्रचण्ड आश्वमेधिक अनुष्ठानों एवं प्रथम पूर्णाहुति के अभूतपूर्व सफलता के बाद अग्रसर रजत जयंती वर्ष का अभिनव उत्तरदायित्व भी जुड़ गया है। नैष्ठिक साधकों , सृजन सेनानियों के अनंतगुनी विस्तार को देखते हुए जनसामान्यों में भी इन्हीं दिनों साधना क्षेत्र में नये संकल्पों का बीजारोपण एवं विकास हुआ है। प्रत्येक नैष्ठिक साधकों को न केवल नवरात्रि अनुष्ठान साधना स्वयं करनी है वरन् जनकल्याण निमित्त अभी से लगना है तथा पुरानों को प्रोत्साहन तथा नये भावनाशीलों को तथ्यों से परिचित कराने का प्रयास भी करना है। इस बार के नवरात्रि 13 से 21 अक्टूबर का आयोजन पिछले दिनों की तुलना में अत्यधिक प्रभावी एवं प्रेरणाप्रद बन सके, इसके लिए समग्र तत्परता उत्पन्न करने वाली भाव श्रद्धा को उभारने, उछालने की आवश्यकता है।

First 42 44 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • शाश्वत सौंदर्य का बोध
  • पूजा का मर्म
  • अपनी प्रतिभा को यूँ बरबाद तो न करें
  • विदुषी मदलसा (Kahani)
  • समग्र परिवर्तन चेतना-स्तर ही सम्भव
  • Quotation
  • प्रकृति की पाठशाला में ब्रह्म-विद्या का पाठ
  • कला की शापित अप्सरा (Kahani)
  • संगठित जातियाँ चट्टान की तरह मजबूत होती हैं।
  • दुःखेन साध्वी लभते सुखानि (Kahani)
  • पुस्तकों की प्रयोगशाला में महापुरुष
  • हालैण्ड के नागरिकों की देशभक्ति (Kahani)
  • मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है।
  • ज्योति-अवतरण की साधना और उसका विज्ञान
  • Quotation
  • श्रद्धा शक्ति है, विश्वास शिव
  • सच्ची भक्ति (Kahani)
  • देवसत्ताएँ-चैतन्य ऊर्जाएँ
  • Quotation
  • इस मूल्यवान जीवन को खोकर तुम्हें क्या मिलेगा (Kahani)
  • सूक्ष्म शरीर-प्रकाश शरीर
  • सत्संग गंगा है (Kahani)
  • बनाने वाले के हाथ
  • स्वप्न के झरोखे से अंतःस्थिति की झाँकी
  • मनुष्य-मनुष्य के बीच भेद (Kahani)
  • कानून न्याय की आत्मा की हत्या न करे
  • मेहनत की कमाई का दर्द (Kahani)
  • कलाकार की पहचान
  • आखिर क्यों प्रकृति कुपित है?
  • दीनबन्धु ऐंड्रूज (Kahani)
  • मनुष्य से कहीं अधिक संवेदनशील हैं वृक्ष-वनस्पति
  • ब्रह्मवादिनी सुलभा (Kahani)
  • कैसा है आपका अभ्युदय?
  • शील (Kahani)
  • क्रोधित होने से पहले यह भी सोचें
  • सच्चा त्याग और मोक्ष (Kahani)
  • पूर्वाग्रह का दुराग्रह न पालें
  • शिक्षा का सर्वोत्तम समय (Information)
  • विज्ञान भी कहता है-’ब्रह्म सत्यं जगन्माया’
  • “ईश्वर के सान्निध्य से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है (Kahani)
  • विषम परिस्थिति में नवयुग की तैयारी - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
  • अज्ञान का निवारण ही सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ है (Kahani)
  • नवरात्रि में उपासना से जगेगी सुप्त चेतना
  • अपनों से अपनी बात -
  • विश्व-संस्कृति के संदेशवाहक बनने हेतु स्वयं को तैयार करें
  • VigyapanSuchana
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj