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Magazine - Year 1998 - Version 2

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बचपन भी दिखाता है प्रतिभा के चमत्कार

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प्रतिभा मनुष्य की आन्तरिक क्षमताओं की अभिव्यक्ति है। इन्सान की सारी उपलब्धियाँ इसी की देन हैं। जीवन एवं विश्व के व्यापक-विस्तार में आज हम जिस किसी वैभव एवं विभूतियों की चर्चा करते एवं कहते-सुनते हैं, वह सबका सब मानवीय प्रतिभा के विकास एवं परिष्कार को आयु से जोड़कर देखा जाता है। लेकिन प्रतिभाओं के संदर्भ में यही अन्तिम सत्य नहीं है। कुछ बालकों की विलक्षण प्रतिभा सत्य के दूसरे आयाम की ओर भी सोचने के लिए विवश करती है।

मात्र पाँच वर्ष की आयु से गणित की अनेक गुत्थियों को सुलझाने वाले बालक तथागत तुलसी को ही लीजिए, जिसने मात्र नौ वर्ष पाँच माह की आयु में ६५ प्रतिशत अंक लेकर लेकर मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण कर ली। यह अब तक समूचे विश्व में सबसे कम आयु में मैट्रिक पास करने वाला छात्र बन गया हैं। ऐसी करने के साथ ही तथागत तुलसी ने तापमान के केल्विन का रिकार्ड तोड़ दिया, जिन्होंने सन् १९३४ ई. में दस वर्ष चार माह की आयु में दसवीं परीक्षा पास की थी। गणित की जटिल गुत्थियों को चुटकी में हल करने वाले बालक तुलसी का दावा है कि ‘पाई’ का निश्चित एवं व्यावहारिक मान निकाल चुके हैं व क्वार्क से भी छोटे, सबसे छोटे परमाणविक कण की सिद्धान्त रूप में खोज चुके हैं। आवश्यक यंत्रों के उपलब्ध होने पर उनका दावा है कि भूकम्प को १५ दिन पूर्व घोषित कर सकते हैं।

तथागत की विलक्षण प्रतिभा के कारण उन्हें कम्प्यूटर बालक के नाम से जाना जाता है। सैकड़ों वर्ष आगे-पीछे की किसी भी तारीख को भारतीय पंचांग में बदलकर पलभर में बता देना उनके लिए बायें हाथ का खेल है। उनका कहना है कि सन् २... में फरवरी मास ३. दिन का होगा व मास का अन्तिम दिन बुधवार को पड़ेगा, जो वास्तव में ४.. वर्षों में होता है। साढ़े दस वर्षीय बालक तथागत ने अभी हाल में ही बी. एस. सी. के अन्तिम वर्ष की परीक्षा दी है। इतनी कम आयु में विज्ञान की स्नातक कक्षा में प्रवेश के लिए उन्हें पटना हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा था। इससे पूर्व दसवीं की बोर्ड परीक्षा में शामिल होने की उन्हें अनुमति नहीं मिली थी, किन्तु दिल्ली उच्च न्यायालय ने बालक की विलक्षण प्रतिभा को देखते हुए हरी झण्डी दिखा दी थी। यह बालक तथागत बड़ा होकर पार्टिकल फिजिक्स में काम करना चाहता है व तुलीट्रान को यथार्थ रूप में सिद्ध करना चाहता है।

इसी तरह ‘कैथरीन वार्न्स’ ब्रिटेन की सबसे तेज दिमाग की लड़की है। इसकी आई. क्यू. १७. है, जो कि बड़े-बड़ों के लिए आश्चर्य का विषय है। मात्र तीन वर्ष नौ माह की अवस्था में उसे ब्रिटेन में सामान्य ज्ञान की परीक्षा लेने वाली अग्रणी संस्था ‘मैनसा’ ने अपनी सदस्यता दे दी है। यह बालिका अपने से दुगुनी आयु के बच्चों के लिए निर्धारित पुस्तकें पढ़ लेती है और ११ वर्ष की आयु के बच्चों के लिए निर्धारित प्रश्नों को हल कर लेती है। वह सरल कम्प्यूटर प्रोग्राम भी लिख लेती है तथा बैले और रैप दोनों ही तरह के नृत्य कर सकती है। एक ही बार सुनने के बाद वह पियानो पर शिशु गीतों की धुनें निकाल सकती है। कैथेरीन ने ग्यारह सप्ताह की शिशु अवस्था में ही अपनी असाधारण क्षमताओं का परिचय देना शुरू कर दिया था। आठ माह की आयु में वह चलने लगी व अठारह महीने की होते-होते उसने बिलकुल स्पष्ट बोलना शुरू कर दिया था। छोटी-सी आयु में कैथेरीन ने अपने कैरियर सम्बन्धी निर्णय भी कर रखा है। उसका निश्चय है कि वह एक डॉक्टर और बैले नर्तकी बनेगी।

मात्र दो वर्ष ग्यारह महीने व तीन दिन की नन्हीं-सी कीर्ति निषाद को जब लोगों ने यमुना के गहरे पानी में डेढ़ किलोमीटर की दूरी तैरकर पर करते देखा तो सबके सब हतप्रभ रह गए। तेज हवा के झोंके एवं यमुना की लहरें भी उसके उत्साह को बाँध नहीं पाए। तेज-तर्रार मछली की तरह यमुना की छाती को चीरते हुए पार करने वाली कीर्ति ने गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में अपना नाम दर्ज कराने का दावा पेश किया है। तैराकी के इतिहास में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज कराने वाली नन्हीं कीर्ति अपनी उपलब्धि के संदर्भ में पूरी तरह से अनजान है। अभी वह ठीक से बोल भी नहीं पाती है।

कीर्ति की बड़ी बहिन तरुणा भी इससे पूर्व ३. मई, १९९५ में यमुना नदी पार करने का रिकार्ड बना चुकी है। तब वह मात्र ३ वर्ष तीन माह एवं चार दिन की थी। १९९५-९६ के लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में उसका नाम दर्ज किया गया था।

भारत के ही पड़ोसी देश चीन के चार वर्षीय एक बालक ने सबसे लम्बी नदी याँग्ज में ३५. किलोमीटर तैरने के अपने निर्णय से सबको चौंका दिया है। डेंग्वा नामक बालक ने अपने इस एक माह लम्बे अभियान को जून के अन्त में शुरू किया है। डेंग्वा पूर्वी चीन के नान्जिंग शहर से नदी में उतरा है और उसकी तैराकी की मंजिल शंघाई है। उत्तर चीन के दलियान शहर में रहने वाले इस बालक का जन्म १२ अप्रैल, १९९४ को हुआ था और साढ़े तीन वर्ष की आयु में वह स्थानीय दलियान शीतकालीन तैराकी क्लब का सदस्य बन गया था।

अमेरिका में बसे भारतीय मूल के इंजीनियर मकसूद हक का १२ वर्षीय पुत्र आसिफ़ अपनी विलक्षण प्रतिभा के कारण चर्चा का विषय बना हुआ है। आसिफ़ स्नातक की डिग्री प्राप्त करने वाले विश्व के कम आयु के छात्रों में से एक है। दस वर्ष पूर्व ही पिता को अपने 'होनहार वीरवान के चिकने पात' दिख गए थे। मात्र दो वर्ष की नन्हीं-सी आयु में ही वह अपनी अम्मी के लिए खरीददारी की फेहरिश्त फटाफट तैयार कर लेता था।

आसिफ़ की दुनिया पढ़ाई-लिखाई तक ही सिमटी-सिकुड़ी नहीं है। वह कम्प्यूटर गेम्स में भी माहिर है। गोल्फ और बास्केट बॉल खेलने के अलावा उसे सिक्के इकट्ठे करने का भी शौक है। खाने में उसे मीठे व्यंजनों का बेहद शौक है। कार्टून शो देखना और फुटबॉल तथा बेसबॉल टीमों की गाहे-बगाहे हौसला अफ़जाई भी उसकी फितरत में शामिल है। तीन वर्ष की आयु में ही वह विश्वभर में मशहूर गम्भीर पत्रिका ‘रीडर डायजेस्ट' पढ़ने व समझने का कमाल दिखा चुका है। उससे दुनिया के किसी भी मामले में चर्चा छेड़ी जा सकती है। उससे देश के प्रशासन के बारे में पूछा जा सकता है। विश्व के विभिन्न देशों की समस्याओं की गम्भीर चर्चा करना एवं उस पर विशेषज्ञों की तरह टिप्पणी करना उसे अच्छा लगता है।

आसिफ़ की ही तरह ‘अर्ली एन्टेरन्स प्रोग्राम’ (ई. ई. पी.) के तहत स्नातक होने वाले १३ छात्रों में चार भारतीय हैं। १९८३ से शुरू हुए इस कार्यक्रम में अति प्रतिभाशाली छात्रों को सीधे विश्वविद्यालय में प्रवेश दिया जाता है। जिनमें कुछ तो मात्र ग्यारह वर्ष के ही होते हैं। पहले दो वर्ष परखकर तीसरे साल अन्य छात्रों की ही तरह उन्हें डिग्री दे दी जाती है। भारत की ही वीणा वेद को को जब ई. ई. पी. के तहत प्रवेश मिला था, तो वह मात्र ५ वर्ष की थी। नन्दन लॉड १२ वर्ष का छात्र था, जब उसने १. वीं कक्षा उत्तीर्ण की और ई. ई. पी. में प्रवेश किया था। इस समय वह जेनेटिक्स में शोध कर रहा है। इकोलॉजी व जेनेटिक्स में विशेषज्ञता रखने वाला प्रसाद मात्र १४ वर्ष का है और इस समय स्नातक के अन्तिम वर्ष में है।

भारत के ही एक प्रान्त बिहार के देवरिया गाँव के सात वर्षीय बालक सम्भव ने चार महीने पाँच दिन में सम्पूर्ण श्रीमद्भागवतगीता अठारहों अध्यायों के सभी ७.. श्लोक कंठस्थ कर लिए हैं। पतंजलि योगदर्शन को मात्र १५ दिनों में याद कर एक कीर्तिमान स्थापित किया है। इसके अतिरिक्त उसे रामचरित मानस के मंगलाचरण के श्लोकों सहित पूरी चौपाइयाँ याद हैं। श्रीमद्भागवतगीता के किसी अध्याय की श्लोक संख्या सुनकर वह धाराप्रवाह दुहरा सकता है। इतना ही नहीं वह गीता व योगदर्शन का विपरीत क्रम में भी पाठ कर सकता है।

सम्भव के पिता डॉ. ब्रह्मानन्द चतुर्वेदी संस्कृत के शिक्षक हैं। उन्हें अपने बेटे की विलक्षण स्मरण शक्ति का परिचय तब मिला जब वह मात्र साढ़े तीन वर्ष का था। एक दिन बालक घर की छत पर आए बन्दरों से घबराकर पिता की गोद में आ दुबका तो उन्होंने कहा कि हनुमान चालीसा का पाठ करने से बन्दर नहीं काटते। मात्र एक दिन बाद वह यह देखकर दंग रह गए कि सम्भव को अनुमान चालीस कंठस्थ हो चुका है और वह छत पर बैठा हुआ दुहरा रहा है, ताकि बन्दर न आए। बनारस शिशु विहार विद्यालय की दूसरी कक्षा का छात्र सम्भव स्कूल के उत्कृष्ट विद्यार्थियों में से है। विगत परीक्षाओं में ८५ प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाला यह बालक अपनी विलक्षण स्मरण-शक्ति के लिए सम्मानित किया जा चुका है। पिता के अनुसार सम्भव अपने समूचे पाठ्यक्रम को दो-तीन माह में पूरा कर लेता है और बाकी समय को अन्य रचनात्मक कार्यों में लगाता है।

सात वर्षीय बालक ‘शान पूनीवाला’ ने ‘गुजी काई कराटे’ में ब्लैक बेल्ट हासिल करके लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में अपना नाम दर्ज कराया है। वह विश्व का सबसे कम आयु का ब्लैक बेल्टर है। तीन फुट के इस नन्हे कराटेबाज ने यह उपलब्धि चार वर्ष के गहन प्रशिक्षण के बाद हासिल की। मात्र दो वर्ष की आयु में शान ने कराटे का प्रशिक्षण लेना शुरू किया था। जिस आयु में बच्चे खिलौने से खेलते हैं, उस उम्र में शान कराटे के दाव-पेंच सीख रहा था, इसमें उसकी माँ हेलना की भूमिका प्रमुख रही।

सात वर्षीय शान को कराटे के लगभग ५... पेंच आते हैं, जो कि ब्लैक बेल्ट पाने के लिए एक कसौटी भी होती है। शान ने ९५ में मलेशिया में प्रथम एशिया - प्रशान्त गूजी काई कराटे’ प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। १९९६-९७ में पुणे में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में उसने भाग लिया था। ७ वर्ष की आयु में शान ने जब अपने कराटे कौशल से २.. किलो बर्फ की सिल्ली तोड़ दी व अपने पैरों एवं हाथों के वारों से प्रतिद्वंद्वियों को चित करना शुरू कर दिया, तो सभी हैरान रह गये। मुम्बई में प्रशिक्षण के दौरान एक प्रतियोगिता में जब पंजों के द्वारा उसने अपने काफी बड़े कराटे खिलाड़ियों को पराजित किया तो सबके सब दाँतों तले उँगली दबाकर रह गए।

अभी हाल में ही अमेरिका के शतरंज इतिहास में १. वर्षीय एक बालक ने अपना नाम सबसे युवा शतरंज खिलाड़ी के रूप में सुनहरे अक्षरों में अंकित करवा दिया। अमेरिका शतरंज परिषद ने शतरंज प्रतियोगिता के तहत हिलनारु बाकामोर को पहले दर्जे का शतरंज खिलाड़ी घोषित किया। इसी के साथ उसे सबसे कम उम्र के शतरंज मास्टर का खिताब दिया।

भारतीय मूल के बालक अम्बारी को विश्व के सबसे कम आयु के डॉक्टर होने का खिताब मिला है। विलक्षण बुद्धि का यह बालक तीन वर्ष की आयु में अमेरिका जा बसा था। प्राथमिक स्तर की परीक्षाएँ उसने एक वर्ष में दो-दो पास की। ग्यारह वर्ष की आयु में वह हाईस्कूल पास कर चुका था। फिर उसने माउण्ट सिनाई स्कूल ऑफ मेडिसिन में प्रवेश लिया और मात्र सत्रह वर्ष की आये में डॉक्टर की उपाधि प्राप्त की। इस तरह वह विश्व का सबसे छोटी आयु का चिकित्सक बन गया। हाईस्कूल के दौरान उसने एड्स जैसे गम्भीर विषय पर एक पुस्तक भी लिखी थी। इस पुस्तक को ‘अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका है।

विश्वविद्यालय के स्नातक पाठ्यक्रम में प्रवेश कर पाता है। लेकिन विश्व में ऐसा भी एक बालक हुआ है जिसने आठ वर्ष से भी कम आयु में विश्वविद्यालय में प्रवेश पाया। इस मेधावी छात्र का नाम- माइकेल टेन है। जिसने ७ वर्ष ग्यारह माह की आयु में न्यूजीलैण्ड के केन्टबरी विश्वविद्यालय के विज्ञान स्नातक पाठ्यक्रम में प्रवेश पाया था। रूस के प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं भौतिकविद् निकोलाई वोगेल्यवाप ने भी मात्र १. वर्ष की आयु में स्नातक स्तर की शिक्षा ग्रहण की थी।

पी-एच. डी. (डॉक्टर ऑफ फिलोसॉफी) शिक्षा जगत की एक उच्च उपलब्धि मानी जाती है, जिसे लोचाड के विलक्षण प्रतिभाशाली बालक कार्लवीटे ने सबसे कम आयु में पूरा करके विश्व कीर्तिमान बनाया है। मात्र १२ वर्ष की आयु में उसने गीसने विश्वविद्यालय से पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त कर ली थी। चर्चित रूसी गणितज्ञ सर्जीमार्गल्यान ने मास्को विश्वविद्यालय के गणित-भौतिक विभाग में मात्र सोलह वर्ष की आयु में ‘सोफोमोर’ के रूप में प्रवेश किया था। स्नातकोत्तर शिक्षा के दौरान मात्र डेढ़ वर्ष में अपनी थीसिस पूरा कर उन्होंने २. वर्ष की आयु में डॉक्ट्रेट की उपाधि अर्जित की।

नेपोलियन, मात्र १६ वर्ष की आयु में एक साधारण बहुभाषाविद् के रूप में चर्चित हो गए थे। उन्होंने केवल २. वर्ष की आयु में मिश्र की दुर्बोध चित्रलिपि का अर्थ निकालने में सफलता प्राप्त की। सबसे कम आयु में प्रोफेसर बनने का कीर्तिमान कोलीन मेक्यूरिन का है। १६९८ में जन्मे कोलीन १७१७ में मारिश्यल कॉलेज एवरदीन में गणित के प्राध्यापक बने, तब वे मात्र १९ वर्ष के थे। इन १७७८ में जन्मे हेनरी किलपोट्स तो मात्र १७ वर्ष ८. दिन की आयु में ही मोगारलिसन कॉलेज ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के शिक्षक नियुक्त किए गए थे।

कला क्षेत्र में भी बाल प्रतिभाओं ने हर युग में अपनी विलक्षणता का परिचय दिया है। फिल्मों में श्रेष्ठ अभिनय के लिए बाल कलाकारों को पुरस्कार मिलना वैसे तो सामान्य-स्त्री बात है। लेकिन यदि किसी तीन वर्षीय बालिका को ऐसा पुरस्कार मिले तो बात आश्चर्यचकित कर देने वाली हो जाती है। विक्टोरीथिविसोल ऐसी ही विलक्षण अभिनय कुशलता की धनी बालिका है, जिसे वेनिस फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री घोषित किया गया। इस तीन वर्षीय बालिका ने फ्रेंच भाषा में बनी फिल्म ‘पोनेट’ में उत्कृष्ट अभिनय किया था।

इसी तरह वुल्फगेंग एर्मडस, मोजार्ट, फेज शूवर्ट, फेलिक्स मँडलसन-ये सभी विलक्षण संगीत प्रतिभाएँ १२ वर्ष की आयु से पूर्व ही संगीत रचना करने लगे थे। इनमें मोजार्ट की संगीत की प्रतिभा तो तीन वर्ष में ही प्रस्फुटित हो गयी थी। जोहन वेपमक हूमेल, फ्रेडरिक चोमिन और येहुदी मेनी मेंनुदीन ऐसी प्रतिभाओं में हैं, जिन्होंने ग्यारह वर्ष की आयु तक अपने सार्वजनिक संगीत समारोह कर डाले थे। ऐसे ही एंटोनिन डवरिक और रिचार्ड स्ट्रॉस जन्मजात विलक्षण प्रतिभासम्पन्न थे। विलक्षण रूसी चित्रकार कार्लकुलाव और अलेक्जेन्डर इवानाव ने कला अकादमी में मात्र ९ एवं ११ वर्ष की आयु में प्रवेश किया था।

वैज्ञानिक प्रतिभाओं में एडीसन किशोरावस्था तक कई आश्चर्यजनक खोजें कर चुका था। साइबरनेटिक विज्ञान के जनक नावेर्ट फिनर विज्ञान क्षेत्र के अनुसंधान में अपने बचपन से ही सक्रिय हो गए थे। पास्कल, लाइबिनित्ज और गॉस ने अपने शैशवकाल में बड़ों को अपनी गणितीय कुशलता से चमत्कृत कर दिया था।

भारत के सुप्रसिद्ध गणितज्ञ श्री रामानुजम जन्मजात विलक्षण प्रतिभा के धनी बालक थे। प्रसिद्ध अंग्रेज वैज्ञानिक जूलियस हक्सले ने इन्हें शताब्दी का सबसे बड़ा वैज्ञानिक घोषित किया था। मात्र तीसरी कक्षा में पढ़ते हुए उन्होंने बीजगणित का इंटरमीडिएट का पाठ्यक्रम समाप्त कर लिया था। चौथी कक्षा में त्रिकोणमिति के सारे कठिन प्रश्न हल कर डाले थे। मात्र १३ वर्ष की आयु में ज्या एवं कोज्या का विस्तार कर दिया था। उन्हीं दिनों भारत की मैथेमेटिक सोसाइटी की प्रसिद्ध पत्रिका में उन्होंने ६. प्रश्न दिये थे, जिनमें लगभग २. प्रश्न आज तक अनुत्तरित हैं।

विलक्षण प्रतिभाशालियों के ये उदाहरण पुरुषार्थ से प्रतिभा के सिद्धान्त को नहीं नकारते, बल्कि इसको और भी विस्तृत आयाम में देखने के लिए विवश करते हैं। पुरुषार्थ अमिट और अकाट्य है। यह कभी निष्फल नहीं होता। बाल-प्रतिभाएँ यह सिद्ध करती हैं कि उनमें पूर्वजन्म के पुरुषार्थ के संस्कार ही प्रतिफलित हो रहे हैं। प्रतिभा के बीज सभी में रहते हैं। इसके अंकुरण व विकास में घर का वातावरण, बड़ों का प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन खाद-पानी का काम करते हैं। अपनी लगन एवं निष्ठा इसे आगे पुष्पित-पल्लवित करती है। यदि किसी अवरोध की वजह से इस जन्म में किया गया पुरुषार्थ फलित नहीं हो सका तो निश्चित ही आगे सफल होगा। बचपन में असामान्य प्रतिभा से चमत्कार निश्चित ही उनके पूर्वजन्म के पुरुषार्थ की पुण्यराशि है, जो अब बाल्यावस्था में प्रकट होकर सभी को चमत्कृत कर रही है।

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