• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • “मैं कौन हूँ?”
    • नूतन वर्ष लाता है नई उमंगें
    • सच्चा बाह्मणत्वे
    • युग की माँग: सक्षम प्रतिभाएँ
    • VigyapanSuchana
    • संत परंपरा का पुनरोदय ही उज्ज्वल भविष्य का आधार
    • अंतर्मन का दर्पण हमारे नेत्र
    • एक ही काया में समाए अनेक व्यक्तित्व
    • Quotation
    • ऐसे हुआ षड़यंत्र विफल
    • Quotation
    • सर्वज्ञ होने का दावा न करे, अविज्ञात को खोजे
    • गरीबों के कल्याणार्थ (Kahani)
    • अनुग्रह नहीं माँगे, साधना का पुरुषार्थ करें
    • यम−नियम−6 (शौच) - पवित्रता से अर्जित होती है पत्रिता
    • विश्ववंद्य महापुरुष कहलाए (Kahani)
    • विक्षुब्ध भटकती आत्माओं का एक निराला संसार
    • Quotation
    • कठिनाइयाँ बढ़ाती हैं, सुविधा नहीं (Kahani)
    • शाह नहीं शहंशाह
    • मैं ही कुद्ध हो जाता (Kahani)
    • कहीं जवानी को लकवा न मार जाए
    • Quotation
    • अपना धर्म या कल्याण (Kahani)
    • स्वतंत्रचेता मन की प्रतिध्वनि, ये वीराँगनाएँ
    • Quotation
    • प्रकृति की दंड व्यवस्था (Kahani)
    • जानिए दुग्ध के साथ की जा रही साजिशों को
    • सिनेमा अब जहर न उगले, लोकमंगल की जिम्मेदारी समझे
    • VigyapanSuchana
    • दें बीमारियों को आमंत्रण, औषधियाँ खाकर
    • विविध रोगों की यज्ञोपचार−प्रक्रिया
    • मरणोत्तर जीवन के सशक्त प्रमाण
    • शाश्वत सुख का आनंद
    • त्याग−बलिदान की संस्कृति देवसंस्कृति−4 - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • युगगीता−20 - धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे
    • VigyapanSuchana
    • परदा हटा दिया (Kahani)
    • गुरु कथामृत−99 - वे पाती नहीं, प्राणचेतना का शक्तिप्रवाह संप्रेषित करते थे
    • सत्ता के विषय में (Kahani)
    • विशेष सामयिक लेख राष्ट्रव्यापी−दुर्भिक्ष और हम
    • अपनों से अपनी बात - हीरक जयंती वर्ष उमंग उल्लास के साथ सभी मनाएँ
    • VigyapanSuchana
    • हीरक जयंती आह्वान
    • हीरक जयंती आह्वान (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • “मैं कौन हूँ?”
    • नूतन वर्ष लाता है नई उमंगें
    • सच्चा बाह्मणत्वे
    • युग की माँग: सक्षम प्रतिभाएँ
    • VigyapanSuchana
    • संत परंपरा का पुनरोदय ही उज्ज्वल भविष्य का आधार
    • अंतर्मन का दर्पण हमारे नेत्र
    • एक ही काया में समाए अनेक व्यक्तित्व
    • Quotation
    • ऐसे हुआ षड़यंत्र विफल
    • Quotation
    • सर्वज्ञ होने का दावा न करे, अविज्ञात को खोजे
    • गरीबों के कल्याणार्थ (Kahani)
    • अनुग्रह नहीं माँगे, साधना का पुरुषार्थ करें
    • यम−नियम−6 (शौच) - पवित्रता से अर्जित होती है पत्रिता
    • विश्ववंद्य महापुरुष कहलाए (Kahani)
    • विक्षुब्ध भटकती आत्माओं का एक निराला संसार
    • Quotation
    • कठिनाइयाँ बढ़ाती हैं, सुविधा नहीं (Kahani)
    • शाह नहीं शहंशाह
    • मैं ही कुद्ध हो जाता (Kahani)
    • कहीं जवानी को लकवा न मार जाए
    • Quotation
    • अपना धर्म या कल्याण (Kahani)
    • स्वतंत्रचेता मन की प्रतिध्वनि, ये वीराँगनाएँ
    • Quotation
    • प्रकृति की दंड व्यवस्था (Kahani)
    • जानिए दुग्ध के साथ की जा रही साजिशों को
    • सिनेमा अब जहर न उगले, लोकमंगल की जिम्मेदारी समझे
    • VigyapanSuchana
    • दें बीमारियों को आमंत्रण, औषधियाँ खाकर
    • विविध रोगों की यज्ञोपचार−प्रक्रिया
    • मरणोत्तर जीवन के सशक्त प्रमाण
    • शाश्वत सुख का आनंद
    • त्याग−बलिदान की संस्कृति देवसंस्कृति−4 - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • युगगीता−20 - धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे
    • VigyapanSuchana
    • परदा हटा दिया (Kahani)
    • गुरु कथामृत−99 - वे पाती नहीं, प्राणचेतना का शक्तिप्रवाह संप्रेषित करते थे
    • सत्ता के विषय में (Kahani)
    • विशेष सामयिक लेख राष्ट्रव्यापी−दुर्भिक्ष और हम
    • अपनों से अपनी बात - हीरक जयंती वर्ष उमंग उल्लास के साथ सभी मनाएँ
    • VigyapanSuchana
    • हीरक जयंती आह्वान
    • हीरक जयंती आह्वान (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 2001 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


सर्वज्ञ होने का दावा न करे, अविज्ञात को खोजे

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 11 13 Last
मानवी बुद्धि जो कुछ भी देखती−समझती है, वह अत्यल्प है। उसे अर्द्ध सत्य कहना ही उचित होगा। यदि उसमें तथ्यों को सर्वांगपूर्ण रूप से जानने, समझने और उसके ज्ञात−अविज्ञात हर पहलू को परख पाने जितनी सामर्थ्य रही होती, तो विदित हो पाता कि यहाँ सीधा चलने पर जो उलटा क्रम दिखाई पड़ता है, उसे अपवाद कहकर नहीं टाला जा सकता। सहायता करने वालों को असहयोग−ही−असहयोग, प्रेम बाँटने वालों को घृणा−ही−घृणा का प्रतिदान मिलते भी कई बार देखा गया है। यह सब एक सुनिश्चित विधान के अंतर्गत होता है। इसमें उलटा नियम अथवा औंधा कानून जैसी कोई बात नहीं।

कई बार प्रगति प्रयासों के असफल होने के संबंध में भी ऐसे अपवाद सामने आते रहते हैं। उसी योग्यता के उसी मार्ग पर चलने वाले, उसी उपाय का अवलंबन करने वाले, दूसरे लोग बाजी−पर−बाजी जीतते, सफलता−पर−सफलता पाते चले जाते हैं, पर पूरी ईमानदारी और समझदारी के साथ किए गए अपने प्रयत्न बहुत ही स्वल्प परिणाम दे पाते हैं। अनेक बार तो बुरी तरह निराशा ही हाथ लगती है। यदि अपनी ही भूल से ऐसा हुआ, तो वह भूल क्या थी? यदि थी, तो क्या वह जानबूझकर की गई? इन प्रश्नों पर बहुत ढूँढ़−खोज करने पर भी कुछ ऐसे तथ्य हाथ नहीं लगते, जिन्हें असफलता का कारण ठहराया जाए, भूल माना जाए और भविष्य में उसे सुधारने का प्रयास किया जाए। अनेक बार मनुष्य स्वयं बिलकुल निर्दोष होता है। परिस्थितियाँ ही कुछ ऐसी विचित्र बन जाती हैं कि सब कुछ किया−कराया मिट्टी हो जाता है। अतिवृष्टि, पाला टिड्डे, कीड़ों आदि के कारण किसान का तत्परतापूर्वक किया गया श्रम जब निरर्थक चला जाता है, तो उसकी समझ में नहीं आता कि उससे कहाँ−क्या भूल हुई? वैसी भूल फिर न होने पाए, इसके लिए वह भविष्य में क्या सावधानी बरते? ऐसे ही अगणित प्रसंग सामने आते रहते हैं।

इन्हीं आकाँक्षाओं के मध्य भाग्यवाद का उदय होता है। जिन घटनाओं के लिए कार्य−कारण सिद्धाँत के अंतर्गत कोई बुद्धिसंगत व्याख्या नहीं सूझ पड़ती, वैसे प्रसंगों में मन को समझाने के लिए भाग्य का एकमात्र विकल्प ही शेष रह जाता है, अतः उन्हें सौभाग्य−दुर्भाग्य का खोल समझकर संतोष कर लेना पड़ता है। इसी प्रकार के और भी कथन तब कहे जाते हैं, जब प्रयत्न निष्फल हो जाते हैं, अप्रत्याशित संकट सामने आ खड़े होते अथवा सफलता−मिलते−मिलते अपना रुख बदलती और बिजली की तरह आशा की चमक दिखाकर कहीं−से−कहीं चली जाती है। ऐसा ही तब भी कहा जाता है, जब अंधे के हाथ बटेर लगती और सर्वथा समर्थ, योग्य और श्रमशील को खाली हाथ रहना पड़ता है। कितनों को ही ऐसी सफलताएँ करतलगत हो जाती हैं, जिनके लिए उनके पुरुषार्थ को श्रेय किसी भी प्रकार नहीं दिया जा सकता। पूर्वजों की बड़ी संपत्ति उत्तराधिकार में मिल जाए, तो इसमें प्राप्तकर्त्ता का श्रेय क्या है? लॉटरी खुल जाने जैसी सफलताओं में किस कौशल या पौरुष को सराहा जाए? तेजी−मंदी के दौर में कई व्यापारी देखते−देखते दिवालिया होते और देखते−देखते लखपति बनते दृष्टिगत होते हैं। उसमें किसको मूर्ख, किसको बुद्धिमान कहा जाए? नदी में बाढ़ आती है। किसी का खेत काटकर उसकी आजीविका उदरस्थ कर जाती है। किसी के खेत में कहीं से लाकर ऐसी उपजाऊ मिट्टी पटक जाती है कि वह उसकी पैदावार से देखते−देखते अमीर बन जाता है। नदी द्वारा एक की भूमि को काट ले जाना और दूसरे को समृद्धि का वरदान बरसा जाना, इसे क्या कहा जाए? इसके लिए दोष या श्रेय किसको दिया जाए? आँधी−तूफान में जिसका छप्पर उजड़ गया और घर बिगड़ गया, इसमें उसकी क्या भूल बताई जाए और भविष्य में क्या सावधानी बरतने का परामर्श दिया जाए? सामान्य बुद्धि कुछ समझ नहीं पाती और उन्हें संयोग अथवा अपवाद कहकर टाल देती है। समय−समय पर ऐसे प्रसंग उपस्थित होते ही रहते हैं, जिसमें बुद्धि असमंजस में पड़ जाती है और कोई भी निर्णय–निष्कर्ष नहीं निकाल पाती।

एक ऐसे ही प्रसंग का वर्णन महात्मा आनंद स्वामी ने अपनी पुस्तक ‘एक ही रास्ता’ में किया है। घटना सन् 1946 की है। दोपहर का समय था। मुँगेर (बिहार) के लोग तब घरों में विश्राम कर रहे थे। कई दिनों से वहाँ भूकंप के हल्के झटके महसूस हो रहे थे। झटके अत्यंत मंद होने के कारण लोग उस ओर से असावधान बने रहे और किसी प्रकार की सुरक्षा के कोई कदम नहीं उठाए। प्रकृति की ओर से लगातार दी जा रही चेतावनी की उपेक्षा का सामूहिक दंड इसी दिन मिलने वाला है और यह जीवन का आखिरी दिन है, यह किसे पता था? विश्राम हेतु लोग अपने बिस्तर में गए ही थे कि तीव्र भूचाल आया और इसी के साथ मकान−दुकान देखते−देखते धराशायी हो गए। सब कुछ इतनी शीघ्रता से पलक झपकते हो गया कि लोगों को बाहर भागने का मौका ही नहीं मिला। पूरा नगर श्मशान में परिवर्तित हो गया। प्रथम और दूसरे दिन तक तो कुछ लोग जीवित चोट खाए निकलते रहे, पर तीसरे दिन से लाशों की ऐसी कतार लगी कि पंद्रह दिनों तक वह निकलती ही चली गई। मरघट का साकार दृश्य उपस्थित हो गया था।

अभी भी मलबे की सफाई चल रही थी और उसके नीचे दबे पड़े मृतकों की खोज की जा रही थी और उसके पर जब काम चल रहा था, सफाई करने वाले अचानक चौंक उठे। नीचे से बार−बार एक स्वर उभर रहा था, जिसमें धीरे और सावधानीपूर्वक खोदने का निवेदन था। पंद्रह दिनों तक जमीन में दबे रहने पर भी यह कौन जीवित बचा है। इस आश्चर्य से कुछ क्षण तक लोग विस्मय−विमूढ़ बने रहे, पर आपात स्थिति का ध्यान आते ही अधिक तत्परता और शीघ्रता दिखाई गई।

कुछ ही समय के परिश्रम के उपराँत भारी शहतीरों और ध्वस्त दीवारों के बीच विशाल ढेर के नीचे से एक अधेड़ आयु का व्यक्ति बाहर निकाला गया। आस−पास केले के बहुत सारे छिलके पड़े थे। उससे जब सुरक्षित बचे रहने के बारे में पूछा गया, तो बताया कि वह एक फल बेचने वाला है और इसी आय से अपना पेट पालता था। उक्त दिन केले की टोकरी सिर पर लिए इस मकान की दालान के नीचे खड़ा था कि अकस्मात् छत तीव्र कंपन के साथ गिर पड़ी और वह भी मलबे के नीचे दब गया। टोकरी इस प्रकार उलटी कि सारे केले उसके नीचे सुरक्षित पड़ रहे और वह भी कुछ इस प्रकार दबा कि किसी प्रकार की कोई हानि नहीं पहुँची। धरती एक बार फिर काँपी। इसी के साथ न जाने कैसे मलबे के मध्य एक छोटा सूराख हो गया। हवा और धूप−गरमी आने के लिए इतना पर्याप्त था। जीवन के लिए अब मात्र एक ही चीज की आवश्यकता रह गई थी, पानी की। दैवयोग से पृथ्वी तीसरी बार फिर काँपी और तब मकान का फर्श टूट गया एवं उसके साथ ही पानी की एक लहर इधर आई और इस गड्ढे को ऊपर तक भर गई। हवा−धूप यों छिद्र से उपलब्ध हो गई। केले पास थे ही। पानी भी परमात्मा ने भेज दिया।

इस आधार पर अब तक जीवित रहा। आज अंतिम दिन है, जबकि केले सब समाप्त हो गए हैं। पानी नहीं बचा है। प्रकाश का आना भी बंद हो गया, पर आप सब लोग जीवन−ज्योति बनकर आ गए, सो मैं आप सबको भगवान् की मदद की मानता हूँ। इतना कहकर उसकी आँखें भर आई। भगवान् को लाख−लाख धन्यवाद देकर वहां वहाँ से घर की ओर चला गया।

यह ठीक है कि ऐसे प्रसंग बार−बार नहीं घटते, यह अपवाद है। सामान्यक्रम इन्हें नहीं कहा जा सकता, फिर भी ये अपवाद भी सर्वथा उपेक्षणीय नहीं हैं। उनका भी कारण खोजना होगा। अत्युक्ति न समझी जाए और पौरुष समर्थकों को बुरा न लगे, तो नम्रतापूर्वक यहाँ तक कहा जा सकता है कि ‘भाग्य का खेल’ 30 प्रतिशत घटनाक्रमों में ही काम कर रहा होता है। यों महत्ता तो कर्मनिष्ठा की ही रहेगी और खुला समर्थन उसी को दिया जाएगा, पर इन अप्रत्याशित परिणामों के संबंध में विचार तो किया ही जाना चाहिए।

विज्ञान कहता है कि इस संसार में ऐसा कुछ भी नहीं हो सकता, जो प्रकृति−नियम के विपरीत हो? भूकंप, बिजली गिरना, ज्वालामुखी फटना, तूफान जैसी घटनाएँ साधारण बुद्धि को आकस्मिक लगती हैं और उनके पीछे विपर्यय दीखता है, पर वस्तुतः वैसा कुछ होता नहीं हैं। उनके पीछे भी प्रकृति के सूक्ष्म नियम ही काम करते हैं। यह दूसरी बात है कि इन नियमों की जानकारी सर्वसाधारण को नहीं हो अथवा उस तरह के घटनाक्रम आए दिन घटित न होने के कारण वे आश्चर्यजनक लगते हों। चमत्कार उन्हीं को कहते हैं, जो दृश्य आमतौर पर देखने को नहीं मिलते। जब भी विज्ञान के आविष्कार प्रथम बार हुए, तो उन्हें भारी चमत्कारों के रूप में देखा गया था। रेल, टेलीफोन, बिजली, रेडियो, सिनेमा, टी. वी. आदि पूर्व काल में अप्रचलित आविष्कार जब सामने आए, तो सामान्य बुद्धि हतप्रभ रह गई और उसे जादू जैसी करामात समझा गया। पीछे अब जब विज्ञान और आविष्कारों का सिलसिला समझ में आ गया, तो अंतर्ग्रही यात्रा, अणु−आयुधों, रोबोटों, कंप्यूटरों जैसी आश्चर्यजनक उपलब्धियों तक को साधारण बात मान लिया गया है।

जादू नाम की कोई वस्तु दुनिया में नहीं है। लोगों की परख करने की क्षमता को चकमा दे सकने की सफलता का नाम ही जादूगरी है। अध्यात्म क्षेत्र में सिद्धि−चमत्कारों का वर्णन बहुत होता रहता है। उन्हें देखकर आश्चर्य तो किया जा सकता है, पर ऐसा नहीं माना जा सकता कि यह आकस्मिक है, इनके पीछे प्रकृति की सामान्य नियम−परंपरा का हाि नहीं है। इसमें अव्यवस्था के लिए रंचमात्र भी गुंजाइश नहीं है। यहाँ ऐसा कुछ हो ही नहीं सकता, जिसे अप्रत्याशित, असंभव या चमत्कारी कहा जा सके। जिसे हम नहीं जानते, उस अविज्ञात को ही अपवाद कह सकते हैं। वस्तुतः उन अपवादों के पीछे भी प्रकृति का परिपूर्ण व्यवस्थाक्रम काम कर रहा होता है। आदि काम में सूर्य, बिजली, आग, वर्षा आदि तत्त्वों को देवता माना जाता था। उनकी मनौती मनाई और बलि चढ़ाई जाती थी। चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण किन्हीं राक्षसों का आकस्मिक आक्रमण समझा जाता था, पर अब वह बात नहीं रही। विज्ञान की शोधों और खोजों ने अब यह प्रमाणित कर दिया है कि इनके पीछे सुनिश्चित खगोलीय कारण हैं और यह बुद्धिसंगत भी हैं। यहाँ अप्रत्याशित कुछ भी नहीं हैं। अविज्ञात को ही अवचसउ कहते हैं। वस्तुतः इस सृष्टि में अंधेरगर्दी के लिए, व्यक्तिक्रम के लिए कहीं रत्तीभर भी गुंजाइश नहीं है।

अविज्ञात−अप्रत्याशित को ही अपवाद कहा जाता है। वस्तुतः यहाँ यथार्थवाद का ही अस्तित्व है। अपवाद का इतना ही अर्थ है कि जिस आधार पर वह असामान्य घटनाक्रम उपस्थित हुआ, उसकी जानकारी चलता ही रहेगा, क्योंकि सामान्य व्यवस्था की ही हमें जानकारी है और उसी को देखने−समझने की आदतें भी हैं। सृष्टि के अविज्ञात नियमों के आधार पर जब भी कुछ असामान्य घटित होगा, तभी उसे अपवाद कह दिया जाएगा। प्रकृति के रहस्य अनंत हैं और मनुष्य की बुद्धि अत्यंत स्वल्पं। ऐसी दशा में असाधारण तो घटित होता ही रहेगा। उचित यही है कि उस संबंध में हम अपना दृष्टिकोण साफ कर लें। अपनी ससीमता को स्वीकार करें और असमंजस में न पड़कर तथ्यों तक पहुँचने का यथासंभव प्रयत्न करते रहें।

पिछले दिनों एक ही तरीका अपनाया जाता रहा है कि हर अपवाद को देवमानवों के क्रिया−कृत्य मानकर समाधान कर लिया जाता रहा है। भाग्यवाद भी कुछ इसी प्रकार का दर्शन है, जिसमें देवताओं के द्वारा भाग्य निर्माण की बात कहकर एक विचित्र प्रकार की भ्राँति उत्पन्न कर दी गई हैं। विचारशील वर्ग में अपवादों को ‘चान्स,’ ‘काँइन्सीडेन्स’, ‘लक’ आदि कहा जाता रहा है। उसे अप्रत्याशित अवसर मात्र ठहराया गया है। उसके लिए किसी देवता को श्रेय या दोष नहीं दिया गया है। उसमें अविज्ञात को अपवाद की मान्यता भर दी गई है और उसका कारण विदित न होने पर उसे किसी देवता का कोप या अनुग्रह कहकर एक नया भ्रम गढ़ने की चेष्टा नहीं की गई है। यह समझदारी का चिह्न है। सर्वज्ञ होने का दावा करना मिथ्या गर्व है। जो ज्ञात नहीं है, उसे जानने के लिए मस्तिष्क खुला रखा जाए और धैर्यपूर्वक रहस्योद्घाटन के सूत्र खोज निकालने का प्रयत्न करते रहा जाए। इसी में बुद्धिमानी है।

First 11 13 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • “मैं कौन हूँ?”
  • नूतन वर्ष लाता है नई उमंगें
  • सच्चा बाह्मणत्वे
  • युग की माँग: सक्षम प्रतिभाएँ
  • VigyapanSuchana
  • संत परंपरा का पुनरोदय ही उज्ज्वल भविष्य का आधार
  • अंतर्मन का दर्पण हमारे नेत्र
  • एक ही काया में समाए अनेक व्यक्तित्व
  • Quotation
  • ऐसे हुआ षड़यंत्र विफल
  • Quotation
  • सर्वज्ञ होने का दावा न करे, अविज्ञात को खोजे
  • गरीबों के कल्याणार्थ (Kahani)
  • अनुग्रह नहीं माँगे, साधना का पुरुषार्थ करें
  • यम−नियम−6 (शौच) - पवित्रता से अर्जित होती है पत्रिता
  • विश्ववंद्य महापुरुष कहलाए (Kahani)
  • विक्षुब्ध भटकती आत्माओं का एक निराला संसार
  • Quotation
  • कठिनाइयाँ बढ़ाती हैं, सुविधा नहीं (Kahani)
  • शाह नहीं शहंशाह
  • मैं ही कुद्ध हो जाता (Kahani)
  • कहीं जवानी को लकवा न मार जाए
  • Quotation
  • अपना धर्म या कल्याण (Kahani)
  • स्वतंत्रचेता मन की प्रतिध्वनि, ये वीराँगनाएँ
  • Quotation
  • प्रकृति की दंड व्यवस्था (Kahani)
  • जानिए दुग्ध के साथ की जा रही साजिशों को
  • सिनेमा अब जहर न उगले, लोकमंगल की जिम्मेदारी समझे
  • VigyapanSuchana
  • दें बीमारियों को आमंत्रण, औषधियाँ खाकर
  • विविध रोगों की यज्ञोपचार−प्रक्रिया
  • मरणोत्तर जीवन के सशक्त प्रमाण
  • शाश्वत सुख का आनंद
  • त्याग−बलिदान की संस्कृति देवसंस्कृति−4 - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
  • युगगीता−20 - धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे
  • VigyapanSuchana
  • परदा हटा दिया (Kahani)
  • गुरु कथामृत−99 - वे पाती नहीं, प्राणचेतना का शक्तिप्रवाह संप्रेषित करते थे
  • सत्ता के विषय में (Kahani)
  • विशेष सामयिक लेख राष्ट्रव्यापी−दुर्भिक्ष और हम
  • अपनों से अपनी बात - हीरक जयंती वर्ष उमंग उल्लास के साथ सभी मनाएँ
  • VigyapanSuchana
  • हीरक जयंती आह्वान
  • हीरक जयंती आह्वान (Kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj