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Magazine - Year 2001 - Version 2

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आत्मबल एवं प्रेम से जीता जा सकता है इस महाव्याधि को

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अपने दिमाग के दो टुकड़ों की बात सोचकर ही जी घबरा जाता है। पर इसका असली दर्द तो वही जानते है, जो चसपज ब्रेन यानि कि मस्तिष्कीय विखंडन के शिकार है। वैज्ञानिकों के अनुसार हमारा मस्तिष्क दो भागों से बना होता है। बायाँ हेमीस्फीयर और दायाँ हेमीस्फीयर। ये दोनों भाग कार्पस केलोसम से जुड़े होते है। दोनों हेमीस्फीयर के बीच सेरीब्रल कामीसर का न्यूरल पथ होता है, जिससे ये आपस में एक-दूसरे से सूचना प्राप्त करते है एवं संतुलन बनाए रहते है। शरीर का संपूर्ण दायाँ भाग मस्तिष्क के बायें हेमीस्फीयर से एवं बायाँ भाग दायें हेमीस्फीयर से संबंधित रहता है। शरीर के सुसंचालन हेतु दोनों हेमीस्फीयर्स में सामंजस्य आवश्यक है। कमीसर जो दोनों भागों को जोड़ता है, के खराब हो जाने से दोनों हेमीस्फीयर के बीच तारतम्य बिगड़ जाता है, जिसके फलस्वरूप दोहरे व्यक्तित्व (डनजपचसम च्मतेवदंसपजल) का निर्माण होता है। यह एक रोग है, जिसे सीजोफ्रेनिया कहते है। ग्रीक शब्द से बना सीजोफ्रेनिया का तात्पर्य है मस्तिष्क का विभाजन।

यह रोग भ्रम, संदेह, शंका, मानसिक अवसाद, तनाव, उत्तेजना, क्षोभ एवं कुविचारों से पैदा होता है। मेडीटेशन ऑफ फर्स्ट फिलोसॉफी में रेने देकार्ते ने अभिव्यक्ति दी है, “शरीर और मन में बहुत बड़ा भेद होता है। शरीर दृश्यमान है, जबकि मन शक्तिशाली एवं अदृश्य है। इस शक्तिशाली एवं अदृश्य मन को यदि शंका-कुशंकाओं के दायरे में घिरा रहने दिया जाए और बेलगाम घोड़े की तरह स्वतंत्र छोड़ दिया जाए, तो मानसिक भ्रम का यह छूत-रोग पनपने लगता है। ये मानसिक भ्रम दो तरह के होते है। पहला तथ्यहीन संदेह एवं दूसरा अवचेतन प्रेरित संदेह। किसी रोग के बारे में पढ़कर या सुनकर स्वयं अपने में रोग की भयावहता की मिथ्या कल्पना प्रथम कोटि के संदेह में आती है। आज कुशंका के इस स्वरचित मकड़जाल से सर्वाधिक मनुष्य ग्रसित पाए जाते है। अस्पष्ट तथ्य के बावजूद किसी संदेह या कारण पर लापरवाह बने रहना अचेतन प्रेरित संदेह कहलाता है। जैसे कंपनी के किसी कर्मचारी को अचानक नौकरी से बाहर निकाल देना। मैनेजर की उपेक्षा-उदासीनता ही वह तथ्य था, जिसे कर्मचारी ने जानने का प्रयत्न नहीं किया।”

संदेह की ये दोनों क्रियाएँ दुहरे मस्तिष्कीय विखंडन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। बच्चों को शारीरिक या मानसिक रूप से अधिक प्रताड़ित किए जाने पर भी बीमारी लग जाती है। फ्रैंक डब्ल्यू. पुटनेम के ई. ई. जी. द्वारा लिए ग्राफ से पता चलता है कि दुहरे व्यक्तित्व वाले लोगों के मस्तिष्क का विद्युतप्रवाह सामान्य मस्तिष्क की तुलना में ज्यादा होता है।

मानव मन के विशेषज्ञों का कहना है कि हर व्यक्ति के अंदर एक स्वतंत्र रूप से नियंत्रण करने का एक केंद्र होता है, जिसे ‘सब सिस्टमत्त् कहते है। भूली हुई बातों का अचानक याद आ जाना, किसी समस्या का समाधान तुरंत प्राप्त होना और स्वप्न के द्वारा अगणित तथ्यों का पता चलना इसी अचेतन ‘सब सिस्टम’ की सक्रियता के कारण बन पड़ता है। परंतु चिंता और अवसाद के कारण यह ‘सब सिस्टम’ शक्कीपन जैसे अन्य अनेक मस्तिष्कगत रोगों को जन्म देता है। ऐसे में यह ‘सब सिस्टम’ अक्रिय हो जाता है और जो होना चाहिए उसका ठीक उलटा होता है। जैसे अचानक किसी बात को भूल जाना आदि।

दिमाग के इस बँटेपन या अधूरेपन के बारे में देकार्ते का कथन है, हम आधे दिमाग के बारे में कल्पना नहीं कर सकते। मैं का विचार मनुष्य से अविच्छिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। इसी विचारों में ही पूर्णता है। अतः मस्तिष्करूपी इस तंत्र को सुव्यवस्थित रखने के लिए तनाव एवं संदेह से मुक्ति अनिवार्य है। एक अन्य विज्ञानी श्रोडिंजर के मतानुसार सबके मन की संरचना एक जैसी है। संपूर्ण ब्रह्माँड एक विराट् पुरुष के मस्तिष्क से संचालित है। अच्छा हो मनुष्य स्वयं को उस विराट् सत्ता का एक घटक समझकर स्वयं को उस सत्ता से जोड़े और व्यावहारिक जीवन में सुखी बने रहने के लिए विचारों की विकृति से हर तरह से बचे। ऐसा न होने पर ही अनेकों रोग जन्म लेते है।

न्यूयार्क से प्रकाशित विश्वप्रसिद्ध पत्रिका ‘न्यूज वीक’ के ख् नवंबर क्भ् के अंक में ‘भ्रम एक रोग है’ शीर्षक से एक लेख निकला था। जिसमें न्यूरोविशेषज्ञ डेवीड सील्वर स्वींग, मौर्ट बुशम के प्रयोगों का निष्कर्ष छपा था। लंदन हैंपसरस्मिथ हास्पिटल के न्यूरो विशेषज्ञ डेबीड सील्वर स्वींग के अनुसार भ्रम के कारण मस्तिष्क में उच्च संवेगात्मक स्थिति होती है और सीजोफ्रेनिया जन्म लेता है। इससे मस्तिष्क का थैलेमस, हिप्पोकेंपस और स्ट्रेटम प्रभावित होता है। सील्वर स्वींग ने पी. ई. टी. (पोजीट्राँन इमीशन टोमोग्राफी) द्वारा ख्फ् वर्ष के छह लड़कों का परीक्षण किया। पी. ई. टी. मस्तिष्क में एक परिसंचरण का अध्ययन करता है। प्रयोग के दौरान सामान्य एवं संदेहजन्य विचार दिया गया, बाद में पी. ई. टी. के ग्राफ से स्पष्ट पता चला कि संदेहजन्य विचार के समय मस्तिष्क में रक्त प्रवाह तेज हो जाता है। माउंट सीनाई स्कूल ऑफ मेडिसिन के न्यूरोलॉजिस्ट मौर्ट बुशम के अनुसार भ्रम के कारण प्री फ्रंटल लोब में खराबी होने की स्पष्ट संभावना रहती है, जिससे स्मरण शक्ति में ह्रास होता है।

वाशिंगटन की एक प्रसिद्ध पत्रिका नेशनल जियोग्राफी के जून क्भ् के अंक में डी. सी. वीनवर्ग का एक शोध पत्र प्रकाशित हुआ था। डी. सी. वीनवर्ग वाशिंगटन के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मैंटल हेल्थ के विख्यात न्यूरोलॉजिस्ट है। उनका निष्कर्ष है कि संदेह और भ्रम के कारण ही सीजोफ्रेनिया होता है। हिप्पोकेंपस जो स्मृति केंद्र है, हताशा और निराशा के समय अपनी स्मृति खो देता है। इस पत्रिका की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में ब् प्रतिशत सीजोफ्रेनिया के रोगी उपेक्षित पड़े है। मस्तिष्क में ‘मोनोऐमिनो आक्सीडेस ए’ नामक एन्जाइम का स्रवण होता है, जिससे दोनों हेमीस्फीयर के बीच तारतम्य तथा क्रियाशीलता बनी रहती है। तनाव, उत्तेजना के समय इस एन्जाइम का स्रवण बंद हो जाता है और इसकी चरम दशा में ब्रेन कैंसर तक की स्थिति बनना शुरू हो जाती है।

इस क्रम में नोबुल पुरस्कार विजेता फ्राँसिस किक का प्रायोगिक अंकन कुछ इस प्रकार है, सुख-दुःख, स्मृति-आशा, अनुभूति और स्वतंत्र इच्छा तंत्रिका कोशिकाओं के व्यवहार पर निर्भर करता है। इन कोशिकाओं को स्वस्थ रखने का एक उपाय है आशा, उत्साह एवं प्रेमपूर्ण व्यवहार के समय ज्यादा होता है। यह एन्जाइम शरीर में प्रतिरोधी क्षमता और मस्तिष्क को शाँत-शीतल बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है।

प्रेम की सजल भावनाओं और श्रेष्ठ विचारों से ही मस्तिष्क को स्वस्थ रखते हुए सरल-सुखी जिंदगी की कल्पना को साकार किया जा सकता है। ओल्ड टेस्टामेंट के अनुसार प्रेम से सराबोर हृदय हमेशा मस्तिष्क को शाँत-समुन्नत बनाए रखता है। उसी तथ्य को चार हजार पुरानी चीनी चिकित्सा भी स्वीकारती है। देकार्ते ने पहली बार वैज्ञानिक ढंग से इस बात का बोध कराया कि गलत मत सोचो, अन्यथा गलत हो जाओगे। स्वयं को ईश्वर के समान शक्तिशाली मानों और श्रेष्ठ विचारों से मस्तिष्क को अलंकृत करो। अतः चिंतन और व्यवहार आपस में अन्योन्याश्रित है। विचार उत्कृष्ट होंगे तो शंका-संदेहों का मायाजाल अपने आप ही तिरोहित हो जाएगा। ‘ए ट्रीटीज ऑफ ह्यूमन नेचर’ में डेवीड ह्यूम ने मन के बारे में कुछ इस तरह से अभिव्यक्ति दी है। विचाररुपी मन मानसिक साम्राज्य का चक्रवर्ती सम्राट् है। इसी मन द्वारा ही शरीर परिचालित होता है। मन के संगठन (ब्वदेबपवने व्िन्दपजल) द्वारा मस्तिष्क विभाजन (चसपज इतंपद) से छुटकारा पाना संभव है।

यदि कोई यह पूछे कि क्या मनुष्य स्वयं को ब्रह्माँडीय चेतना के साथ विलय कर सकता है? इस विषय में सिगमंड फ्रायड को रोम्या रोलाँ ने एक पत्र लिखा था। जिसका जवाब फ्रायड के ‘सिविलाइजेशन एंड इट्स डिस्कंटेंटमेंट’ में सामुद्रिक अनुभूति के रूप में प्राप्त होता है। उल्लेख है, यह अनुभूति शैशव अवस्था की हो सकती है, जो मनुष्य और शेष विश्व के मध्य रहस्य के परदे को अनावृत करती है। अगर मस्तिष्क के हेमीस्फीयर के बीच रेडियो लिंक संभव हो सके, तो एक चेतना के द्वारा समस्त विश्व को नियंत्रित किया जा सकता है। इस ओर खोज जारी है। रेडियो लिंक का यह सिद्धाँत अदृश्य जगत् में अपनी फ्रीक्वेन्सी के विचारों को आकर्षित कर चेतना के संगठन को शक्तिशाली बनाता है। यह शक्तिशाली संगठन सृजन और विध्वंस दोनों रूप में संभव हो सकता है। रावण, कंस, दुर्योधन, हिटलर, नेपोलियन आदि इतिहास के रक्तरंजित पन्नों पर अंकित विनाशलीला की यह कहानी इस फ्रीक्वेन्सी के कारण ही घटित हुई होगी। आज के अनीति, आतंक, विप्लव, भ्रष्टाचार, उच्छृंखल भोगवाद के पीछे यही सिद्धाँत नजर आता है। इसी वजह से हमारे मन को टुकड़ों में बँटना भी पड़ता है।

इसका उपयुक्त समाधान एवं निदान यही है कि हम विधेयात्मक सोचे और उस परमसत्ता पर, उसके मंगलमय विधान पर अटल विश्वास रखे, जहाँ अमंगल संभव ही नहीं। सदा ही इस तथ्य पर भरोसा बनाए रखा जाए कि हम स्वयं में उस प्रभु के अभिन्न अंश ही है। इस सत्य को अपने जीवन के प्रति कण से अभिव्यक्त करना ही अपना जीवन धर्म है। इस अटल विश्वास के होते हुए भला कैसी चिंता, कैसा डर। फिर तो सहज रूप में एक प्रबल आत्म-विश्वास ही प्रकट होता है और ऐसा जीवनक्रम बनता है, जहाँ किसी मनोरोग का कोई स्थान नहीं।

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