
शिक्षा विस्तार समय की महती आवश्यकता
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शिक्षा की आवश्यकता बच्चों के लिए ही नहीं बड़ों के लिए भी है। प्रौढ़ शिक्षा इसी अनिवार्य आवश्यकता का एक रूप है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने प्रौढ़ शिखा के बारे में कहा है, प्रौढ़ शिक्षा न तो साक्षरता से आरंभ होती है, न साक्षरता पर उसकी समाप्ति ही होती है। अपने जीवन एवं अस्तित्व के लिए अनवरत जूझते, संघर्षरत जनसमुदाय पर साक्षरता बरबस थोपी तो नहीं जा सकती। थके टूटे जन को साक्षरता में वास्तविक रुचि हो भी नहीं सकती। साक्षरता की माँग तो वस्तुतः ऐसे लोगों के अंतःकरण से अपने आप उभरनी चाहिए, जिनके पेट में दिन को दो रोटी गई हों और जिनमें साक्षरता के लायक कुछ आँतरिक ऊर्जा हो। जीवन संघर्ष में लगे लोगों में यदि साक्षरता का प्रसार करना है, तो ऐसा कार्यक्रम तैयार करना होगा, जो जीवन केंद्रित हो।
सामान्य शैक्षिक व्यवस्था बालकों की शिक्षा को ही आधार मानकर चलती है। बाल जीवन में ही रचनात्मक मूल्यों का समावेश किए जाने पर भावी जीवन सुदृढ़ एवं संगठित हो जाता है। परंतु बाल्यावस्था में शिक्षा की पावनधारा नहीं बह सकी, तो प्रौढ़ जीवन में भी उसकी क्षतिपूर्ति की जा सकती है। प्रौढ़ शिक्षा प्रौढ़ों को शिक्षित करने के उद्देश्य से चलाई जाती है। इसकी परंपरा अत्यंत प्राचीन है। वैदिक भारत की आरण्यक प्रथा इसी का एक रूप थी। शिक्षा की ये परंपराएँ एवं व्यवस्थाएं ब्रिटिश काल में शिथिल कर दी गई, उनके स्थान पर शिक्षा की नई विधियों का प्रचलन किया गया। हालाँकि ब्रिटिश काल में भी औपचारिक शिक्षा के साथ ही प्रौढ़ शिक्षा को प्रारंभ किया गया। कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों की स्थापना के पश्चात प्रौढ़ों के लिए योजनाएं बनीं। उनके लिए रात्रि स्कूल की व्यवस्था की गई। सन क्त्त्त्त्ख् -त्त्फ् में स्थापित ‘इंडियन एजुकेशन कमीशन’ के प्रतिवेदनानुसार मुँबई में क्फ्म्, चेन्नई में ख्ख्फ् तथा बंगाल में क् रात्रि स्कूलों के संचालन हुए। बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में कर्नाटक में श्री एमएसविश्वेश्वरैय्या ने स्त्र साक्षरता केंद्रों को चलाया एवं सार्वजनिक पुस्तकालयों की स्थापना की। सन क्−फ्स्त्र में विभिन्न राज्यों में लोकप्रिय अंतरिम सरकारों की स्थापना के पश्चात प्रौढ़ शिक्षा पर विशेष अभियान छेडात्र गया। इस दिशा में बिहार के तत्कालीन शिक्षा मंत्री डॉ. सैय्यद महमूद ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया। चैन्नई में सी राजगोपालाचारी ने प्रौढ़ शिक्षा के कार्य की गतिशीलता बनाया। प्रौढ़ शिक्षा का संगठित एवं सुनियोजित प्रयास पहली पंचवर्षीय योजना (क्−भ्क्-भ्म्) के साथ आरंभ हुआ। चौथी पंचवर्षीय योजना (क्−म्−-स्त्रब्) में शिक्षा आयोग के सदस्यों ने अनुभव किया कि प्रौढ़ शिक्षा को उत्पादन का साधन बनाने के लिए उसे ऐसा रूप दिया जाए, जिससे आर्थिक एवं सामाजिक स्तर में सुधार लाया जा सके। यह चिंतन उपयोगी एवं व्यावहारिक सिद्ध हुआ। छठी पंचवर्षीय योजना में प्रौढ़ शिक्षा को व्यापक आधार एवं सुव्यवस्थित रूप दिया गया था। इस महत्वाकाँक्षी कार्यक्रम के अंतर्गत क्भ् से ख्भ् आयु वर्ग के लगभग दस करोड़ व्यक्तियों को पाँच वर्ष की अवधि में शिक्षा की सुविधाएं सुलभ कराने का प्रस्ताव था। यह कार्यक्रम क् अप्रैल क्−स्त्र− से प्रारंभ हुआ। सातवीं पंचवर्षीय योजना में भी प्रौढ़ शिक्षा के माध्यम से इसी वर्ग विशेष के जीवन स्तर को विकसित करने का लक्ष्य रखा गया था। अब प्रौढ़ शिक्षा के अंतर्निहित महत्व को स्वीकार करते हुए उसे और अधिक ठोक एवं व्यापक आधार देने का प्रयास किया गया था।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात प्रथम बार सन् क्−स्त्रस्त्र में शैक्षिक नियोजन में प्रौढ़ शिक्षा को उच्च प्राथमिकता देने का प्रावधान किया गया। क्−स्त्रस्त्र-स्त्र− में ‘प्रौढ़ शिक्षा के नीति वाक्य’ का प्रारूप बना। तदनंतर ख् अक्टूबर क्−स्त्रत्त् को राष्ट्रीय स्तर पर प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। साक्षरता मिशन का श्रीगणेश भ् मई क्−त्त्त्त् में हुआ॥ संपूर्ण साक्षरता अभियान’। द्वारा निरक्षरता उन्मूलन का प्रयास जबर्दस्त ढंग से चला। इसके तहत देश में केरल पहला राज्य था, जहाँ कि शिक्षा −.म् प्रतिशत पहुँच गई। सन क्−त्त्म् के राष्ट्रीय शिक्षा नीति के संबंध में आचार्य राममूर्ति समिति ने स्पष्ट किया कि सबके लिए शिक्षा हो। इसके अंतर्गत नई दिशा में राष्ट्रीय एकता, निर्धनता, उन्मूलन, पर्यावरण संरक्षण, महिला शिक्षा व समानता आदि अनेक महत्वपूर्ण विषयों को उच्च प्राथमिकता देने की बात कही गई।
विदेशों में प्रौढ़ शिक्षा ब्रिटेन में प्रचलित थी, जहाँ निरक्षरता कोई गंभीर समस्या नहीं थी। ब्रिटेन में ‘वर्कर्स एजूकेशलन एसोसिएशन’ तथा विश्वविद्यालय के ‘एक्स्ट्रा म्यूरल डिपार्टमेन्ट’ द्वारा प्रौढ़ शिक्षा का प्रचलन था। वहाँ इसका उद्देश्य उस समय की आवश्यकता के अनुसार विभिन्न क्षेत्रों एवं विषयों के व्यक्तियों को शिक्षित एवं प्रशिक्षित करना था। प्रौढ़ शिक्षा का नामकरण करने का श्रेय स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अब्दुल कलाम आजाद को जाता है। उन्होंने बतलाया कि प्रौढ़ शिक्षा एक विस्तृत कार्यक्रम है। इसके पाँच उद्देश्य है, आर्थिक सुधार हेतु शिक्षा, नागरिक शिक्षा, स्वास्थ्य शिक्षा, निरक्षरता उन्मूलन तथा मनोरंजन एवं सौंदर्य बोध शिक्षा। विश्व के सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश चीन में वर्तमान सदी के प्रारंभिक दशकों में चलाए गए शिक्षण आँदोलन को ‘जनशिक्षा’ का नाम दिया गया है। इसे निरक्षरता के त्वरित उन्मूलन हेतु संचालित किया गया। इस आँदोलन के प्रणेता डॉ. जेम्स वेन थे। डॉ. वेन ने विद्यार्थियों के अवकाश एवं शिक्षित व्यक्तियों के खाली समय को दृष्टि में रखकर इस योजना को गति दी थी। इसकी उपलब्धि उत्साह-वर्द्धक थी।
विशेषज्ञों के अनुसार किसी व्यक्ति को व्यावहारिक साक्षर उस समय कहा जा सकता है, जब वह इतना ज्ञान और कौशल प्राप्त कर ले जो उसे उसके समाज में समस्त ऐसे कार्य संपन्न करने योग्य बना दे, जिनमें साक्षरता आवश्यक होती है। इस प्रकार व्यावहारिक साक्षर वह व्यक्ति है, जिसने पढ़ने-लिखने की इतनी व्यावहारिक कुशलता प्राप्त कर ली हो कि इन दक्षताओं से स्वतः अपने एवं समाज के कल्याण का सतत काम ले सके। इसके बाद प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत ‘कार्यात्मक साक्षरता का जन कार्यक्रम’ क् मई क्क्त्त्म् को प्रारंभ किया गया। इसमें छात्र राष्ट्रीय सेवा योजना के तहत अपने अवकाशों में स्वयं सेवा के आधार पर साक्षर बनाने के प्रयास में अपना योगदान देते हैं इनका नारा है, ‘ईच वन टीच वन’। सन् क्क्म्-म्क् में श्रमिक शिक्षा हेतु सर्वप्रथम इंदौर में ‘वर्कर्स स्पेशज एजुकेशन इंस्टीट्यूट’ स्थापित हुई। इसकी सफलता को देखते हुए क्क्म्त्त् में नागपुर में भी ठीक इसी तरह की संस्था की स्थापना हुई। इस तरह प्रौढ़ों को साक्षर करने के लिए अनेकों योजनाओं एवं कार्यक्रमों का संचालन किया गया।
यूँ तो औपचारिक-अनौपचारिक विधियों से व्यक्तियों को शिक्षित किया जाता है, परंतु विभिन्न परिस्थितियों, पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक आदि के कारण व्यक्ति की शिक्षा का क्रम बहुधा टूट भी जाता है। वह अपने व्यवसाय, उत्तरदायित्व और विभिन्न अन्य सीमाओं में रहते हुए भी शिक्षा का क्रम जारी रख सके, यही सतत शिक्षा का उद्देश्य है। इसके लिए दो बातों की आवश्यकता है, व्यक्ति जहाँ है वही उसके जीवन एवं शैक्षिक स्तर के साथ शिक्षा को जोड़ा जाए तथा शिक्षा का विषय एवं पद्धति दोनों ही ऐसे हो कि व्यक्ति की तात्कालिक आवश्यकताओं एवं अभिरुचियों से मेल खा सकें तथा उसके जीवन में उपयोगी हो सके। कामकाजी शिक्षालयों में यही होता है।
आज के जमाने में प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम के चार प्रमुख तत्व है, जागरुकता, व्यावहारिकता, साक्षरता तथा राष्ट्रीय मूल्य। सामान्य जागरुकता से अभिप्राय है। शिक्षार्थियों में उनके व्यक्तिगत, पारिवारिक, आर्थिक, सामाजिक, नागरिक, राजनीतिक और राष्ट्रीय संदर्भों में स्वविवेक उत्पन्न करना। जो समाज एवं राष्ट्र की समृद्धि में सहायक तथा सर्वहितकारी हो। शिक्षार्थियों में सामाजिक भेदभाव जैसे छुआछूत, जातिवाद, कुरीतियाँ, नशा, दहेज आदि अंधविश्वास, जनसंख्या नियंत्रण तथा शारीरिक स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता उत्पन्न करना है। प्रौढ़ शिक्षा का दूसरा मुख्य तत्व व्यावहारिकता है। व्यक्ति जिस व्यवसाय, कार्य अथवा उत्पादक गतिविधियों में संलग्न है, वह उसे पूर्ण मनोयोगपूर्वक, दक्षता व कुशलता से संपन्न करे। व्यावहारिकता में व्यक्ति की संपूर्ण क्रियाशीलता सम्मिलित है। इसमें सामाजिक संपर्क के साथ-साथ मौलिक गतिविधियों का भी समावेश होता है। हालाँकि प्रौढ़ शिक्षा के संदर्भ में व्यावहारिकता का तत्व मुख्यतः उसके व्यावसायिक या आर्थिक पक्ष से संबंधित है। परंतु सही मायने में व्यावहारिकता का मूल उद्देश्य है कि प्रत्येक कार्य में कुशलता, तत्परता एवं नवीनता का समावेश हो।
साक्षरता प्रौढ़ शिक्षा का तीसरा प्रमुख तत्व है, पाठ्यक्रम तथा इसे पढ़ने-लिखने की विधाएँ। परंतु इसका क्षेत्र अत्यंत व्यापक एवं विस्तृत है। प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम का चौथा एवं महत्वपूर्ण तत्व राष्ट्रीय मूल्य भी है। इसका उद्देश्य प्रतिभागियों को राष्ट्रीय मूल्यों का सम्यक् ज्ञान कराना है, ताकि वे राष्ट्र व मानव के विकास व उत्थान में अपना योगदान दे सके। इसमें राष्ट्रीय एकता, देशभक्ति की भावना, सेवा तथा भाषा, धर्म आदि की विराट् विस्तृत विचारधारा का समावेश होता है।
इस संबंध में डेनमार्क ने प्रौढ़ शिक्षा का राष्ट्रीय एवं सामाजिक जीवन में घनिष्ठ संबंध स्थापित किया है। इसके क्षेत्र में ‘डेनिश फाँक हाईस्कूल’ का उल्लेखनीय योगदान है। इसे विशप एन. एफ. एस. गुल्विंग ने प्रारंभ किया था। पहला फाँक हाईस्कूल सन् क्क्ब्ब् में स्थापित हुआ था। क्क्म्फ् तक इनकी संख्या म्स्त्र की चुकी थी। वियतनाम में सन् क्क्ब्भ् की क्राँति के पूर्व साक्षरता एवं शिक्षा की स्थिति असंतोषजनक थी। अगस्त क्क्ब्भ् में होची मिन्ह के नेतृत्व में सफल क्राँति हुई। इसी वर्ष लोकशिक्षा विभाग ने एक वर्ष की अवधि में ख्भ् लाख एवं नौ वर्ष में लगभग क् लाख लोगों को साक्षर बनाया। प्रौढ़ शिक्षा के क्षेत्र में यूगोस्लाविया विभिन्न पद्धतियों एवं माध्यमों से अपने नागरिकों को प्रशिक्षित कर रहा है। वहाँ पर कार्यकर्त्ताओं के विश्वविद्यालयों की संख्या लगभग फ्भ् है। सन् क्क्भ्त्त् के शैक्षिक सुधार के उपराँत वहाँ विश्वविद्यालय प्रौढ़ शिक्षा ने महत्वपूर्ण कार्य किया है। फिलीपीन्स में यह कदम क्क्ब्भ् में उठाया गया। इसी दौरान ‘ब्यूरो ऑफ पब्लिक स्कूल’ के अंतर्गत प्रौढ़ शिक्षा प्रभाग की स्थापना हुई। वहाँ सन् क्क्म्म् से स्त्रख् की अवधि में छह वर्षीय सघन साक्षरता आँदोलन चलाया गया। अब तो वहाँ सबके लिए शिक्षा कार्य योजना प्रशंसनीय कार्य कर रहा है।
अपने देश में इसकी आवश्यकता कहीं अधिक है। इस प्रौढ़ शिक्षा के अभियान में प्रत्येक प्रबुद्ध नागरिक को भाग लेना चाहिए। शिक्षा में ही राष्ट्र का समुचित विकास सन्निहित है। अतः हर जन का महान् दायित्व एवं कर्त्तव्य होना चाहिए कि वह पाँच लोगों को ज्ञानदान प्रदान करे। ज्ञानदान के इस महायज्ञ में हम सबको में हम सबको अवश्य ही अपनी भागीदारी का निर्वहन करना चाहिए। इसी में हमारा भविष्य उज्ज्वल हो सकता है।