• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • क्षण में शाश्वत की पहचान
    • सबसे बड़ी शक्ति है - श्रद्धा
    • एक अनुपम उदाहरण (kahani)
    • सा प्रथम संस्कृति विश्ववारा
    • लोकसेवा का अवसर (kahani)
    • आत्मा की अनंत यात्रा का एक पड़ाव है या जीवन
    • आत्मकल्याण का उद्देश्य (kahani)
    • “एकं सद्विप्रा बहुधा वदनित” का मर्म ही बचाएगा मानवता को
    • ‘ध्यान- से मिलते हैं ढेर सारे लाभ
    • व्यर्थ का घमंड (kahani)
    • आगामी दो दशक की चुनौतियाँ
    • अपनी गलती का बोध (kahani)
    • स्वयं ईश्वर प्रकट हुआ है मनुष्य में
    • राम की अनुपस्थिति में (kahani)
    • खुदा की डाइग्नोसिस
    • प्रतिभा (kahani)
    • यम नियम- क् (ईश्वर प्राणिधान) - अपने आपको चैतन्य स्वरूप मानें
    • संस्कृति की ओर यात्रा ही बचाएगी हमें
    • वरदान का अभाव (kahani)
    • आस्था संकट मिटेगा विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय से
    • धन का दुरुपयोग नहीं (kahani)
    • इंसान इन जीव-जंतुओं से कुछ सीखकर तो देखे
    • आदर्श अभी भी जिंदा (kahani)
    • आत्मबल एवं प्रेम से जीता जा सकता है इस महाव्याधि को
    • माँसाहार है आसुरी संस्कृति का प्रतीक
    • अकारण ही छोड़ना पड़ा (kahani)
    • शिक्षा विस्तार समय की महती आवश्यकता
    • लोगों का मैल धोने लगा (kahani)
    • सच्चा अध्यात्म आखिर है क्या - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • हीरक जयंती वर्ष में परमपूज्य गुरुदेव के ज्ञानशरीर को घर-घर तक पहुँचाएँ
    • अखण्ड ज्योति ज्ञान केंद्र की स्थापना हेतु आवेदन-
    • यज्ञोपचार से विविध ज्वरों से निवृत्ति - (भ्)
    • युगगीता-ख्ब् - कर्म, अकर्म तथा विकर्म
    • विश्ववंद्य बना दिया (kahani)
    • अध्यात्म पथ के पथिकों का पत्रों से मार्गदर्शन
    • श्रेष्ठ वस्तुएँ सदैव परिश्रम से मिला करती हैं।(kahani)
    • अपनों से अपनी बात-क् - शांतिकुंज का महागरुड़ ही जुटाएगा नवसृजन के आधार उपकरण
    • अनुवादकों का योगदान (kahani)
    • अपनों से अपनी बात-ख् - गायत्री जयंती पर्व से अभियान साधना में भागीदारी करें
    • अपनों से अपनी बात-फ् - आपदा प्रबंध हेतु अनिवार्य अक्षय निधि एवं वाहिनी
    • पतित पावनी गंगा, गायत्री
    • पतित पावनी गंगा, गायत्री (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • क्षण में शाश्वत की पहचान
    • सबसे बड़ी शक्ति है - श्रद्धा
    • एक अनुपम उदाहरण (kahani)
    • सा प्रथम संस्कृति विश्ववारा
    • लोकसेवा का अवसर (kahani)
    • आत्मा की अनंत यात्रा का एक पड़ाव है या जीवन
    • आत्मकल्याण का उद्देश्य (kahani)
    • “एकं सद्विप्रा बहुधा वदनित” का मर्म ही बचाएगा मानवता को
    • ‘ध्यान- से मिलते हैं ढेर सारे लाभ
    • व्यर्थ का घमंड (kahani)
    • आगामी दो दशक की चुनौतियाँ
    • अपनी गलती का बोध (kahani)
    • स्वयं ईश्वर प्रकट हुआ है मनुष्य में
    • राम की अनुपस्थिति में (kahani)
    • खुदा की डाइग्नोसिस
    • प्रतिभा (kahani)
    • यम नियम- क् (ईश्वर प्राणिधान) - अपने आपको चैतन्य स्वरूप मानें
    • संस्कृति की ओर यात्रा ही बचाएगी हमें
    • वरदान का अभाव (kahani)
    • आस्था संकट मिटेगा विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय से
    • धन का दुरुपयोग नहीं (kahani)
    • इंसान इन जीव-जंतुओं से कुछ सीखकर तो देखे
    • आदर्श अभी भी जिंदा (kahani)
    • आत्मबल एवं प्रेम से जीता जा सकता है इस महाव्याधि को
    • माँसाहार है आसुरी संस्कृति का प्रतीक
    • अकारण ही छोड़ना पड़ा (kahani)
    • शिक्षा विस्तार समय की महती आवश्यकता
    • लोगों का मैल धोने लगा (kahani)
    • सच्चा अध्यात्म आखिर है क्या - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • हीरक जयंती वर्ष में परमपूज्य गुरुदेव के ज्ञानशरीर को घर-घर तक पहुँचाएँ
    • अखण्ड ज्योति ज्ञान केंद्र की स्थापना हेतु आवेदन-
    • यज्ञोपचार से विविध ज्वरों से निवृत्ति - (भ्)
    • युगगीता-ख्ब् - कर्म, अकर्म तथा विकर्म
    • विश्ववंद्य बना दिया (kahani)
    • अध्यात्म पथ के पथिकों का पत्रों से मार्गदर्शन
    • श्रेष्ठ वस्तुएँ सदैव परिश्रम से मिला करती हैं।(kahani)
    • अपनों से अपनी बात-क् - शांतिकुंज का महागरुड़ ही जुटाएगा नवसृजन के आधार उपकरण
    • अनुवादकों का योगदान (kahani)
    • अपनों से अपनी बात-ख् - गायत्री जयंती पर्व से अभियान साधना में भागीदारी करें
    • अपनों से अपनी बात-फ् - आपदा प्रबंध हेतु अनिवार्य अक्षय निधि एवं वाहिनी
    • पतित पावनी गंगा, गायत्री
    • पतित पावनी गंगा, गायत्री (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 2001 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


सच्चा अध्यात्म आखिर है क्या - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 28 30 Last
(शाँतिकुँज परिसर में फ्/म्/स्त्रख् को परमपूज्य गुरुदेव द्वारा दिया गया प्रवचन)

गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ,

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

देवियो, भाइयो! मनुष्य को इस साँसारिक जीवन की सफलता के लिए दो चीजों की आवश्यकता है, पहला है, श्रम और दूसरा ज्ञान। श्रम के द्वारा हम मेहनत करते हैं, मजदूरी करते है तथा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करके संतोष महसूस करते है। दूसरी चीज है, ज्ञान। ज्ञान का विकास मनुष्य के श्रम द्वारा होता है तथा उसके बाद मनुष्य की उन्नति होती है। साँसारिक जीवन में श्रम और ज्ञान दोनों की आवश्यकता है। श्रम हमारे पास हो और ज्ञान न हो तो हमारी भौतिक प्रगति, भौतिक संपदा नगण्य होती है, परंतु जब ज्ञान मनुष्य के पास होता है, तो वह इंजीनियर होता है, डॉक्टर होता है, कलाकार होता है। ज्ञान के द्वारा ही हमारा विकास होता है तथा हमारे विचार में परिवर्तन होता है। अतः हमको साँसारिक प्रगति के लिए श्रम को विकसित करना चाहिए। आप किसान की तरह से, श्रमिक की तरह से श्रम करके दौलत कमा सकते हैं। जापान में सब लोग श्रम का महत्व समझते हैं, श्रम की ही पूजा करते हैं।

श्रम की महिमा

एक बार स्वामी रामतीर्थ जापान गए। उन्होंने सोचा कि यह जापान थोड़े ही समय में इतना संपत्तिवान- लक्ष्मीवान कैसे हो गया? भारत के लोगों ने हजारों वर्षों से लक्ष्मी जी का पूजन किया, लक्ष्मी स्त्रोत का पाठ किया, परंतु संपत्तिवान न हो सके। इसका क्या कारण है। यह जानने के लिए स्वामी रामतीर्थ जापान गए। जापान एशिया में सबसे बड़ा दौलतमंद देश था। अमेरिका तो ‘फर्स्ट वर्ल्डवार’ तथा सेकेंड वर्ल्डवार अर्थात् प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद संपत्तिवान हुआ, परंतु प्रथम विश्वयुद्ध से पहले जापान ही एक देश था, जो दौलतमंद था। जापान कैसे मालदार हुआ, यह देखने वे गए। वहाँ वे एक कारखाने का निरीक्षण करने लगे। उन्होंने देखा कि एक ओर मशीनों से तेल टपक रहा है तथा दूसरी ओर श्रमिकों के शरीर से पसीना टपक रहा है। यह देखकर वे आश्चर्यचकित रह गए और समझ गए कि यही कारण है, जिससे जापान के लोग संपत्तिवान हो गए।

सन क्−ख्− से पहले की बात है। वहाँ के लोग श्रम के कारण सारी दुनिया की संपत्ति अपने यहाँ इकट्ठा कर लेना चाहते थे। हमें याद है कि उस जमाने में जापान की साइकिल भारत में ख्ख् रुपये में मिलती थी, जिसमें भारत के जापान से लाने में क् रुपये खरच होते थे। वह सारी दुनिया में इतनी बिकती थी कि इसके कारण जापान एशिया में मालदार हो गया। उसने उन दिनों अमेरिका पर भी हमला किया था। वह छोटा सा देश दुनिया में सबसे मालदार यानि भौतिक दृष्टि से महान बनना चाहता था।

भौतिक उन्नति कैसे हो सकती है, यह देवी की पूजा, संतोषी माता की पूजा पाठ से नहीं हो सकती है। यह आध्यात्मिक विषय है। देवता का काम दौलत बाँटना नहीं है। श्रम के देवता का काम धन देना है। आप रेलवे स्टेशन पर जाएँ और यह कहें कि बाबू जी हमें चिपकाने वाला टिकट दे दीजिए। अरे! आपको यह भी नहीं मालूम कि कौन सी चीज कहाँ मिलती है। आपको चिपकाने वाली टिकट डाकघर में मिलेगी। रेल से सफर करने का टिकट रेलवे स्टेशन पर मिलेगा।

स्वामी रामतीर्थ ने देखा तो यह पाया कि वहाँ के श्रमिक प्रातः − बजे से शाम के चार बजे तक श्रम करते है। बच्चे, पत्नी एवं घर के सभी लोग वहाँ छह घंटे अवश्य श्रम करते है, जिसके कारण वह देश दौलतमंद है। आप श्रम करेंगे, तो आपकी भौतिक उन्नति होगी।

शिक्षा नहीं ज्ञान

मित्रो! दूसरी चीज ज्ञान है। यह शिक्षा से संबंध नहीं रखता है। ज्ञान का मतलब विद्या से है, जिसके द्वारा मनुष्य का विकास होता है, प्रगति होती है। ज्ञान, जिसे आप शिक्षा कहते है, इसे हम जानकारी कहते है। मित्रो! आप रास्ता बदल दें, तो आप भी मालदार बन सकते हैं। अभी आपको श्रम करने का अभ्यास नहीं है, श्रम का तिरस्कार करते हैं। हमारे इस अभागे समाज ने श्रम के प्रति अवज्ञा की है। जो आदमी श्रम करता है, उसे हम चमार, धोबी, डोम, मोची आदि कहते हैं तथा उसका हम तिरस्कार करते हैं। श्रम के प्रति इस देश में जब तक अवज्ञा होती रहेगी, इसका भविष्य उज्ज्वल नहीं हो सकता। मित्रो! हम श्रमिक हैं तथा ख्भ् घंटे श्रम करते हैं। हम श्रम का सम्मान करते हैं। हमारे विचार में ‘कामचोर’ ‘हरामखोर’ एक गाली है। अतः यदि आप उन्नति करना और इससे बचना चाहते हैं, तो आपको श्रम करना चाहिए तथा श्रम के प्रति सम्मान जाग्रत् करना चाहिए तथा श्रम के प्रति सम्मान जगत् करना चाहिए। हमारा विचार यही है कि भारत के लोग श्रम करें एवं सुखी रहें। आज आप अपनी औलाद को देखें, वह श्रम के अभाव में शराबी, माँसाहारी तथा व्यभिचारी हो गई है। चूँकि आपने ढेर सारी संपत्ति को उसके लिए रख छोड़ा है। वह मौज-मस्ती का जीवन जीती है। इस प्रकार आपका तो सत्यानाश हो जाएगा। आपने देखा नहीं कि राजमहलों का क्या हुआ ? आप श्रम का सम्मान करेंगे, तो आपका विकास होगा। आज सम्मान उन्हें मिल रहा है, जो हाथ से काम नहीं करते हैं, जैसे कि पंडित जी, पुरोहित जी। आपकी निगाह में काम न करने वालों को पंडित जो, पुरोहित जो, जोगीदार जो, बाबू जी आदि कहा जाता है। यह गलत है। इसमें सुधार की आवश्यकता है।

मित्रो ! अगर आपको दौलत प्राप्त करनी है, धनवान बनना है, तो हम आपको सही तरीका बतला सकते हैं। आप श्रम की शक्ति को बढ़ाइए। इसे आप तब बढ़ा सकेंगे जब आप श्रम का सम्मान हमारी तरह कर रहे होंगे। हाथ-पाँव से मशक्कत करके आपने पैसा कमाया है, तो आप उसका उपयोग सही ढंग से कर सकते हैं। बाप की कमाई अगर बेटा खा रहा है, तो यह अनैतिक कार्य है। यह माँस खाने के बराबर है।

प्राचीनकाल में श्राद्ध की परंपरा थी। आज भी वह किसी-न-किसी रूप में जीवित है। पहले जमाने में जब किसी की मृत्यू हो जाती थी, पंचायत बैठती थी तथा यह निर्णय लेती थी कि इनके बच्चों का काम मेहनत करने से, मशक्कत करने से चल सकता है या नहीं? अगर ये वयस्क होते थे, हाथ से कमाते थे, तो उनके पिता का सारा पैसा समाज के कल्याण के लिए लगा दिया जाता था। उसका नाम श्राद्ध था। अगर उनके पास कुछ नहीं होता तो पंचायत उन बच्चों को दे देती थी। वास्तव में वही व्यक्ति सही रूप से खरच कर सकता है, जो श्रम से कमाता है।

मित्रो ! शारीरिक श्रम से ही आत्मविश्वास एवं भौतिक प्रगति संभव है। प्रायः लोगों को शिकायत रहती है कि शारीरिक श्रम से हम थक जाते है। बेटे ! वही व्यक्ति थकता है, जो श्रम को बेकार समझकर करता है। खिलाड़ी को कभी थकावट नहीं आती हैं, क्योंकि काम करते समय उसमें उत्साह होता है। इसलिए उसे थकावट नहीं आती। कैदी थकता है, परंतु किसान नहीं थकता है। थकता वह है जो काम को पराया समझता है। हमने शारीरिक तथा मानसिक श्रम किया है। आज जो आप देख रहे है, वह श्रम का फल है। श्रम करने से हमारे भीतर दो गुना उत्साह पैदा हो गया है। हमारे नस-नाड़ी, मस्तिष्क, शरीर पूर्ण स्वस्थ हैं। पेंशन पाने वाले आज जल्दी थक जाते हैं, अस्वस्थ हो जाते हैं। उनकी सेहत खराब हो जाती है।

आदमी को जन्म से लेकर मृत्यु तक श्रमिक होना चाहिए। रामप्रसाद विस्मिल को फाँसी लगने वाली थी। वह बीस मिनट पहले व्यायाम कर रहे थे। लोगों ने पूछा कि आपको तो अब फाँसी लगने वाली हैं, यह क्या कर रहे हैं ? उन्होंने कहा कि हमने जीवनभर मेहनत एवं मशक्कत की है। वह अभ्यास हमें हर दिन करना है। अजगर पड़ा रहता है। आप तो खरगोश बनें तथा दौड़ते रहें। मशक्कत करने से ही लाभ होगा। उनने चटाई उठाकर एक जगह पर रख दी तथा कहा गंदा कैदी था। सब काम पूरा करने के बाद उसने गीता को उठाया और सीने से बाँधकर यह गीत गाता हुआ चल दिया, ‘मेरा रंग दे वसंती चोला’....।’मैं आत्मा हूँ, आत्मा रहूँगा। बदल डालूँगा यह पुराना चोला’।

दैनंदिन जीवन की सिद्धि

मित्रो ! अगर आपको भौतिक जीवन में तथा आध्यात्मिक जीवन में सिद्धांतों का पालन करना हो तो श्रम और ज्ञान के प्रति सम्मान होना चाहिए। अगर श्रम के प्रति आपके अंदर सम्मान है, तो फिर आप देखना कि क्या चमत्कार होता है। आप श्रम करेंगे तो दीर्घजीवी होंगे। इसके लिए खुराक की जरूरत हैं, अमुक चीज की जरूरत है, इसके साथ ही सबसे आवश्यक हैं, मनुष्य का मशक्कत यानी-श्रम ! इसके बिना मनुष्य को दीर्घजीवन प्राप्त करना संभव नहीं है। एशिया के अंतर्गत एक रेगिस्तान हैं। वहाँ के लोग सौ वर्ष से कम जीते ही नहीं है। एक आदमी अभी एक सौ आठ वर्ष की उम्र में मरा हैं। उसने सौ वर्ष की उम्र में भी शादी की थी। उसके साठ से ऊपर बच्चे थे। यह दीर्घजीवन कैसे मिला ? यह खान-पान से हुआ था, यह भी ठीक है। यह संयम से संभव हुआ था, यह भी ठीक है, परंतु एक चीज इससे भी आगे की है और उसका नाम है श्रम। इसके बिना अर्थात् मशक्कत किए बिना आप दीर्घजीवन नहीं प्राप्त कर सकते हैं। खुराक खाना ही ज्यादा नहीं है, अगर आप मशक्कत नहीं करेंगे तो आपका पेट बढ़ता हुआ चला जाएगा, चर्बी बढ़ती हुई चली जाएगी और आप मरेंगे। बेटे यह भौतिकता की नहीं है। यह आध्यात्मिकता का प्रशिक्षण है जिसके बिना आपको भौतिक लाभ मिल ही नहीं सकता। मित्रो ! एक दूसरी चीज है जिसका नाम शिक्षा है। इसके बिना मानवीय विकास संभव नहीं है। हम योरोप गए थे और वहाँ देखकर आए थे। बेचारे गरीब लोग, जो किसी तरह अपना पेट भरते हैं, वह भी यह सोचते हैं कि हमारी शिक्षा का विकास होना चाहिए। केवल शरीर के विकास से ही सब कुछ संभव नहीं हैं। उनका यह विचार है कि मनुष्य के शारीरिक विकास के बिना साँसारिक जीवन में हम प्रगति नहीं कर सकते हैं। वे सात घंटे परिश्रम करते हैं, परंतु दो घंटे नियमित रूप से रात्रि पाठशाला में भाग लेते हैं। आप तो पत्ते खेलने में बर्बाद कर देते हैं। जो मेकेनिक होता है, वह अपने विभाग के लोगों से जानकारी लेता हुआ आगे चलकर बी. ई. एम. ई. बन जाता है। छोटा-सा मजदूर उसी क्षेत्र का इंजीनियर बन जाता है। उसे क्षेत्र में नाम एवं ख्याति प्राप्त करता है।

स्वामी विवेकानंद जब अमेरिका गए थे, उस समय वहाँ की जनता को वे वेदाँत की शिक्षा देने लगे, तो उन्होंने एक प्रश्न किया कि क्या आपने भारतवर्ष में इस शिक्षा को पूरा कर लिया ? थोड़ी देर वे मौन रहे, फिर उन्होंने कहा कि आप लोगों ने मैट्रिक पास कर लिया है। आप लोगों ने पहली चीज अर्थात् शरीर बल प्राप्त कर लिया है। आपने श्रम करके संपत्ति भी प्राप्त कर ली है, जो आध्यात्मिकता का प्रथम चरण है। आगे अब आपको वेदाँत की आवश्यकता है। इस कारण से हम यहाँ आए हैं। उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान में वह स्थिति नहीं आई है। वहाँ के लोगों को हम कर्मयोग सिखाते हैं। उन्हें हम बतलाते हैं कि आप मशक्कत करें तथा रोटी कमाना सीखें। आपने तमोगुण का पूरा कर लिया अर्थात् आप अब जड़ प्रकृति के नहीं है।

आपने परिश्रम करना सीख लिया है। भारतवर्ष के अंतर्गत यह होता है कि बाप पचास वर्ष के हो गए तथा बेटा बाईस वर्ष का हो गाय और नौकरी करने लगा, तो वह स्वयं काम करना ठीक नहीं समझते। यह है कामचोरी, हरामखोरी, जो आपके यहाँ नहीं है। अतः आपको वेदाँत का शिक्षण दिया जा सकता है।

हमारा जीवन एक मिसाल

मित्रो ! आप भजन नहीं काम करें। भजन तो एक घंटे होता है। बेटे ! हमारा सिनेमा रात के एक बजे से प्रारंभ हो जाता है। हम भजन भी करते हैं तथा सोलह घंटे मशक्कत भी करते हैं। आप श्रम नहीं करेंगे, तो आपको मैं बेहूदा, हरामखोर कहूँगा और इससे ऊपर की भी गाली दूँगा। जो मशक्कत नहीं करते हैं, उन्हें मैं घृणा की दृष्टि से देखता हूँ। बेटे ! हमारा रात्रि एक बजे से सुबह सात बजे तक सिनेमा चलता है। सात बजे से नौ बजे तक ‘इंटरवल’ होता है। इसके बाद जब तक हम आपको ध्यान नहीं करा देते हैं, विश्राम नहीं करते हैं। हम एक श्रमिक हैं। श्रमिक की दृष्टि से हमारी उम्र सत्रह वर्ष है, वैसे इस समय हमारी उम्र सत्तर वर्ष की है। ‘सेवन्टीन’ तथा ‘सेवन्टी’ में कोई अंतर नहीं है। साधारणतया दाँत न हों तो जबान से इस तरह की भूल हो जाती हैं, लेकिन शरीर और मन से हम ‘सेवन्टीन के हैं। परिश्रम हमारे लिए एक योगाभ्यास है, प्रगति चाहते वाले हर मनुष्य के लिए यह आवश्यक है।

मित्रो ! शारीरिक श्रम के साथ ही मानसिक श्रम भी आवश्यक है। अमेरिका में बहुत से स्कूल हैं, परंतु वैसे विद्यार्थी अधिक हैं स्कूलों में, जो शनिवार और रविवार को क्लास करते है और अपनी आत्मविकास करते हैं। इस कारण उनका प्रगति का रास्ता खुल जाता हैं। पाँच दिन मेहनत-मजदूरी करके पेट भरते हैं तथा दो दिन छुट्टी होता है, तो उसी के आधार पर उनका विकास होता चला जाता है। जब तक उनके आँखों की रोशनी खत्म नहीं होती है, वह अपनी पढ़ाई तथा आत्मविश्वास का कार्य रोकते नहीं है।

मित्रो ! मैं यह बतला रहा था कि आपके देवता तो अनेक हैं, परंतु उनमें से दो देवता-श्रम और ज्ञान प्रधान हैं। अगर आप इनकी पूजा-उपासना कर सकेंगे, तो आपको भौतिकता की सारी उपलब्धियाँ प्राप्त हो जाएँगी। आप शेखचिल्ली की उड़ान न भरें, वरन् आध्यात्मिकता के सही स्वरूप को समझने का प्रयास करें, तभी वास्तविक श्रम का लाभ व सत्परिणाम आपको प्राप्त होगा। आप दौलत चाहते हैं, तो आप इस प्राप्त कर सकते हैं। हमको स्वर्ग की कोई इच्छा नहीं है। हमने पंडितों से सुना है कि एक स्वर्ग है, जो बहुत ही वाहियात किस्म का है। वहाँ बड़े-बड़े पेड़ हैं, इंद्र की अप्सराएँ नाच करती रहती हैं। आदमी के विचार वास्तव में जानवरों के समान है।

भ्राँतियों से निकलें, वास्तविकता जानें

अगर आप हिंदू हैं या मुसलमान हैं, तो आपके स्वर्ग एवं जन्नत में दो ही चीजें रखी हैं, शराब और अप्सराएँ जन्नत में शराब एवं शहद रखा है, हूर और गुलमा है। अरे ! आपको पानी पीने से क्या काम, आप तो शराब पिएँ वहाँ सत्तर हूर रहती है। हूर किसे कहते हैं, खूबसूरत औरतों को। सत्तर गुलाम हैं, जो आपकी सेवा करेंगे। स्वर्ग की कामना करने वाले को कामचोर, हरामखोर, व्यभिचारी, घटिया लोग यही चाहते हैं कि ये चीजें जन्नत में मिलेंगी। इसी ख्वाब में लोग डूबे रहते हैं। आज के संतों पर हमें गुस्सा आता है। उनको यहाँ भी एकादशी का व्रत रहेगा और कहेंगे कि कहाँ है कल्पवृक्ष-मेवा और फल चाहिए। मक्कार कहीं का, केवल स्वर्ग की कामना करता है।

मित्रो ! हम आपको वास्तविकता से परिचय कराना चाहते हैं। अगर आपको साँसारिकता से लगाव है तथा शरीर को नीरोग और खुशहाल बनाना चाहते हैं, तो मशक्कत करें। श्रम करें। अक्ल की भी पूजा कर लेंगे तो सब चीजें पूरी हो जाएंगी। आपकी कामना पूरी हो जाएगी। आपकी तृष्णा पूरी हो जाएगी। तृष्णा क्या हैं ? बेटे ! आपने बेटे की शादी में पचास हजार रुपये खरच कर दिया। ऐसा क्यों किया, जबकि आपको इसका सूद मिलता था। अब तो घाटा गया है। हाँ साहब ! हो तो गया, पर दूसरों को दिखाने के लिए, रौब झाड़ने के लिए, अपना सिक्का बजाने हेतु ऐसा किया। इसे ही तृष्णा कहते हैं। एक और भूत हमारे ऊपर सवार रहता है, उसका नाम ‘अहं’ है। जिसका हम प्रदर्शन करते हैं। मोटर पर बैठकर बादशाह की तरह से चलते हैं। यह है अहं, जो समाज को दिखाया जाता है। यह अहं ही पिशाच है, राक्षस है। यह हमारा हर तरह से नुकसान पहुँचाते हैं। इसे पूरा करने के लिए हम न जाने कितना आडंबर बनाते हैं। अहं, वासना और तृष्णा ये ही मनुष्य को पतन की ओर ले जाते हैं।

हमारी जीभ में स्वाद है, परंतु उसके लिए खुराक चाहिए। पेट भरने के लिए रोटी, सब्जी चाहिए, हमको अमुक चीज चाहिए। यह सारी चीजें पूरी करने के लिए मनुष्य को श्रम करना पड़ता है। श्रम तथा बुद्धि के आधार पर हम साधन इकट्ठा करते हैं। अगर आपको भौतिक चीजों की ही लालसा है, तो आपको आध्यात्मिकता की तरफ ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है। उसके लिए श्रम कीजिए।

मित्रो ! किंतु क्या किया जाए ! ये देवी-देवता हत्यारे हैं, चुड़ैल हैं, जो बकरा खाते हैं और मनोकामना पूर्ण करते हैं। आपकी समस्याएँ बिलकुल भौतिकवादी है। अध्यात्मवाद से आपका कोई संबंध नहीं है। आपकी तो मिट्टी पलीद हो ही चुकी है, अब हमारी होने वाली है। अध्यात्म की मिट्टी पलीद होने वाली है। अरे, हम एक नाव में जो बैठे हैं। आप मरेंगे तो हम भी मरेंगे। लोभी गुरु-लालची चेला दोनों मरेंगे।

मित्रो ! एक मौलवी साहब थे। उनका एक चेला था। चेले को समझाकर मौलवी साहब मक्का-मदीना हज करने चले गए। इधर चेले ने अपनी करामात दिखाना शुरू कर दिया। उसको जो भी चढ़ावा आता, वह उसे खाता था अपने पास रख लेता। इस बीच में वह चेला खूब खा-पीकर मोटा हो गया था।

चेले ने सोचा कि जब मौलवी साहब आ जाएंगे, तो हमारी क्या चलेगी तथा हमें कौन पूछेगा ? उसने एक चाल चली और गाँव के हर मुसलमान के घर गया और औरत, बच्चे, बूढ़े प्रत्येक नर-नारी से एक ही बात कहता रहा कि मौलवी साहब मक्का-मदीना से आने वाले हैं। वे बहुत बड़े सिद्ध पुरुष होकर के आ रहे हैं, जिसे जो कह देंगे, कर देंगे, उसको लाभ मिलेगा। वे बहुत चमत्कारी बनकर आ रहे हैं। उनतीस तारीख को मौलवी साहब आ गए। भीड़ लगने लगी। चेले ने कहा कि आप जानते नहीं हैं, मौलवी साहब की दाढ़ी में चमत्कार है। पहले बाल में पूरा चमत्कार है। दूसरे-तीसरे में क्रमशः बीस प्रतिशत, पंद्रह प्रतिशत लाभ मिलेगा। अब तो हल्ला मच गया। पहले बाल के लिए भीड़ लग गई।

ख्क् तारीख को सबने अपना कारोबार बंद कर दिया और पहुँच गए मौलवी साहब के पास। सभी ने उन्हें मालाएं पहनाई। मौलवी साहब प्रसन्न थे। वे बैठे भी नहीं थे कि अरे भाई ! जरा रुको। यह क्या कर रहे हो ? कोई माना नहीं और उनकी दाढ़ी तथा सिर के सभी बाल उखाड़ लिए। अब मौलवी साहब ने सोचा कि मेरे सारे बाल उखड़ गए। अब हम घर पर जाएँगे, तो घरवाली रहने नहीं देगी। अतः यहाँ से भागना ही अच्छा है। मौलवी साहब चले गए। चेले की पौ बारह हो गई।

असली अध्यात्म समझें

मित्रों ! मैं काया कह रहा था ? मनोकामना की बात, सिद्धियों की बात कह रहा था। अगर इसका नाम अध्यात्म है, गायत्री है, अनुष्ठान है, तो मैं आपसे बहुत ही नम्र शब्दों में कहना चाहूँगा कि इससे आपको कोई फायदा नहीं होने वाला हैं, आपको महात्मा के पास जाने से, चक्कर काटने से कोई लाभ मिलने वाला नहीं है। आप दो ही देवताओं श्रम और शिक्षा की, ज्ञान की पूजा करें और अपने जीवन को महान् बनाएँ। यह एक अध्याय आज समाप्त हुआ। इसके आधार पर भी भौतिक जीवन में आप सुख और आनंद पा सकते हैं।

मित्रो ! एक दूसरा रास्ता और है, जिस हम अध्यात्म कहते हैं। बेटे ! अध्यात्म वह चीज है जो भौतिक शरीर के भीतर निवास करता हैं, जिसके द्वारा मनुष्य को सिद्धियों मिलती हैं। भौतिक शक्ति एवं आध्यात्मिक शक्ति को जब हम मिलाते हैं, तो एक नए किस्म की चीजें मिलती हैं, जिसे हम ‘विभूतियाँ’ कहते हैं। विभूतियाँ वह चीज हैं जो दिखलाई नहीं पड़ती हैं। मित्रो ! हमारी नसों में-नाड़ियों में जो शक्ति हैं, उसे हम दिखा नहीं सकते हैं। हम नसों को दिखा सकते हैं, किंतु उसकी शक्ति का नहीं। नहीं साहब ! हम तो उस शक्ति को देखना चाहते हैं, जिससे जब आप किसी को घूँसा मारते हैं और गिरा देते हैं। बेटे ! हम अपनी चेतना को भी नहीं दिखा सकते है। वह भी उसी प्रकार की चीज हैं। बेटो ! ब्रह्मांड में जो चीजें विद्यमान हैं वह सारी-की-सारी चीजें हमारे शरीर में भी विद्यमान हैं। इतना ही नहीं, हमारे अंदर दिव्य शक्ति विद्यमान है।

दिव्य शक्ति किसे कहते हैं ? मित्रो ! यह देवताओं की शक्ति हैं, जो हमारे अंग-अंग में विद्यमान है। इसके अलावा हमारे भीतर ‘सुप्रीम पावर’ अर्थात् परमात्मा विद्यमान है। परमात्मा क्या हैं ? यह संवेदना के साथ जोड़ लें, तो हम सारी खुशी प्राप्त कर सकते हैं। हमारे अंदर ‘शिवोंडहं’ की भावना आ सकती है। अगर चेतना को सुप्रीम पावर के साथ जोड़ लें, तो मनुष्य बहुत ज्यादा सुख तथा आनंद का अनुभव कर सकता है।

मित्रो ! इसके साथ ही हमारे शरीर के हर चीज के दो रूप हैं। एक हैं भौतिक रूप आँखों का आध्यात्मिक रूप जिसे हम आज्ञाचक्र कहते हैं, दिव्य दृष्टि कहते है। जिसके द्वारा दूर की चीजें, भूत, वर्तमान, भविष्य की चीजें देख सकते हैं। इसे हम माइक्रोस्कोप से भी नहीं देख सकते हैं। यह वस्तु का सूक्ष्म रूप है। यह टेलीविजन तथा टेलीफोन की तरह है। संजय ने अपनी दिव्य दृष्टि से महाभारत के सारे दृश्य देखे थे तथा धृतराष्ट्र को पूरा-का-पूरा विवरण सुनाया था। यह दिव्य दृष्टि क्या थी ? मित्रो ! हमारे भीतर बहुत सारी चीजें फिट है। इतनी ज्यादा फिट हैं कि हम उनका वर्णन नहीं कर सकते हैं। अगर हमारी अक्ल तथा श्रम ठीक से काम करें, तो उस टेलीविजन से हम सारी चीजें प्राप्त कर सकते हैं। हमारे भीतर अतींद्रिय क्षमताएँ भरी पड़ी हैं। अगर हम उसे जगा लें, तो सारी-की-सारी भौतिक उपलब्धियां प्राप्त कर सकते हैं।

जीवो ब्रह्यैव नापरः

मित्रो ! उसी चेतना को, जिसमें आध्यात्मिक शक्ति भरी पड़ी है उसे अक्ल के माध्यम से शिक्षा के माध्यम से, ज्ञान के माध्यम से हम जगा सकते हैं तथा लाभ प्राप्त कर सकते हैं। उस समय हम महात्मा, सिद्धपुरुष, देवात्मा बन जाते हैं। हमें परमात्मा भी बन सकते हैं। परमात्मा भी मनुष्य हैं। वह मनुष्य का साफ-सुथरा स्वरूप है। ब्रह्म अलग हैं, जिसका हमने स्वरूप नहीं देखा हैं, परंतु जो चौबीस अवतार हुए हैं, उसमें से अधिकांश का मनुष्य का ही स्वरूप रहा है। परशुराम जी तीन कला के, रामचंद्र जी बारह कला के और श्रीकृष्ण जी सोलह कला के अवतार थे। ये सब कला के मनुष्य थे। तीन कला का मतलब क्या हुआ ? मनुष्य से तीन गुना अधिक शक्ति रखने वाले व्यक्ति। हम सब एक कला के भगवान् हैं, अवतार हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रवेश हेतु हमें अपनी चेतना को परिष्कृत करना चाहिए। हमें यह समझना चाहिए कि एक दुनिया वह है, जो आपके लिए बाहर खड़ी है। एक दुनिया यह है, जो हमारे भीतर अर्थात् ‘एटम’ के भीतर है। इसे अध्यात्म द्वारा ही माना जा सकता है।

मित्रो ! हमें अब यह बतलाना है कि अंतः में जो ताकत है, उसे कैसे जगाया जा सकता है। अंतरंग जीवन में एक अनोखी और शक्तिशाली दुनिया है। इसमें अपनी अंतः चेतना का प्रवेश कैसे करा सकते हैं, यह हमें बतलाना है। उसे विकसित कैसे कर सकते हैं, यह बतलाना है। अध्यात्म से भौतिक लाभ मिल सकते हैं ? हाँ बेटे ! भौतिक लाभ इससे मिल सकते हैं। इससे हम सिद्धियाँ प्राप्त कर सकते हैं। सोने से कपड़ा खरीद सकते हैं, मकान खरीद सकते हैं। विभूतियों के द्वारा ही आध्यात्मिक सफलता मिलती है।

हम अपनी अंतःसामर्थ्य को कैसे विकसित कर सकते हैं, विभूतियाँ एवं सिद्धियों कैसे प्राप्त कर सकते हैं, यह कल से हम आपको बतलाने का प्रयास करेंगे। आज हमने आपको भौतिक जीवन का स्वरूप समझाने में अपना समय लगा दिया। अगर जब समय मिलेगा आपस अध्यात्म की विशद् चर्चा करेंगे तथा बताएँगे कि ब्रह्मवर्चस का उपासना-साधना का, आध्यात्मिक का जो प्रशिक्षण दिया जा रहा है, उसका उद्देश्य क्या हैं ? उसका प्रयोग क्या हैं ? उसके सिद्धाँत बताने के साथ यह भी बतलाने का प्रयास करेंगे कि यहाँ पर जो क्रियाएँ हमने सिखाई हैं, उसमें आप कैसे सफल और पारंगत हो सकते हैं, ? इसमें आपको क्या-क्या करना होगा ? यह विषम समझाना आज से हमारा उद्देश्य है। आज से हम अपनी व्याख्यान माला शुरू कर रहे हैं। आध्यात्मिकता का पूरा-का-पूरा स्वरूप आपकी समझ में जब तक नहीं आ जाए, तब तक हमारा यह कार्यक्रम चालू रहेगा, ताकि आप आध्यात्मिकता का सही स्वरूप समझ सकें तथा इस रास्ते पर चलने का प्रयास कर सकें। आज की बात समाप्त। ॥ ॐ शाँतिः ॥

First 28 30 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • क्षण में शाश्वत की पहचान
  • सबसे बड़ी शक्ति है - श्रद्धा
  • एक अनुपम उदाहरण (kahani)
  • सा प्रथम संस्कृति विश्ववारा
  • लोकसेवा का अवसर (kahani)
  • आत्मा की अनंत यात्रा का एक पड़ाव है या जीवन
  • आत्मकल्याण का उद्देश्य (kahani)
  • “एकं सद्विप्रा बहुधा वदनित” का मर्म ही बचाएगा मानवता को
  • ‘ध्यान- से मिलते हैं ढेर सारे लाभ
  • व्यर्थ का घमंड (kahani)
  • आगामी दो दशक की चुनौतियाँ
  • अपनी गलती का बोध (kahani)
  • स्वयं ईश्वर प्रकट हुआ है मनुष्य में
  • राम की अनुपस्थिति में (kahani)
  • खुदा की डाइग्नोसिस
  • प्रतिभा (kahani)
  • यम नियम- क् (ईश्वर प्राणिधान) - अपने आपको चैतन्य स्वरूप मानें
  • संस्कृति की ओर यात्रा ही बचाएगी हमें
  • वरदान का अभाव (kahani)
  • आस्था संकट मिटेगा विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय से
  • धन का दुरुपयोग नहीं (kahani)
  • इंसान इन जीव-जंतुओं से कुछ सीखकर तो देखे
  • आदर्श अभी भी जिंदा (kahani)
  • आत्मबल एवं प्रेम से जीता जा सकता है इस महाव्याधि को
  • माँसाहार है आसुरी संस्कृति का प्रतीक
  • अकारण ही छोड़ना पड़ा (kahani)
  • शिक्षा विस्तार समय की महती आवश्यकता
  • लोगों का मैल धोने लगा (kahani)
  • सच्चा अध्यात्म आखिर है क्या - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
  • हीरक जयंती वर्ष में परमपूज्य गुरुदेव के ज्ञानशरीर को घर-घर तक पहुँचाएँ
  • अखण्ड ज्योति ज्ञान केंद्र की स्थापना हेतु आवेदन-
  • यज्ञोपचार से विविध ज्वरों से निवृत्ति - (भ्)
  • युगगीता-ख्ब् - कर्म, अकर्म तथा विकर्म
  • विश्ववंद्य बना दिया (kahani)
  • अध्यात्म पथ के पथिकों का पत्रों से मार्गदर्शन
  • श्रेष्ठ वस्तुएँ सदैव परिश्रम से मिला करती हैं।(kahani)
  • अपनों से अपनी बात-क् - शांतिकुंज का महागरुड़ ही जुटाएगा नवसृजन के आधार उपकरण
  • अनुवादकों का योगदान (kahani)
  • अपनों से अपनी बात-ख् - गायत्री जयंती पर्व से अभियान साधना में भागीदारी करें
  • अपनों से अपनी बात-फ् - आपदा प्रबंध हेतु अनिवार्य अक्षय निधि एवं वाहिनी
  • पतित पावनी गंगा, गायत्री
  • पतित पावनी गंगा, गायत्री (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj