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Magazine - Year 2001 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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मस्तिष्कीय क्षमताओं के विकास की यज्ञोपचार प्रक्रिया द4ड्ट

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महाशक्ति गायत्री की सतोगुणी शक्ति को सरस्वती कहते हैं। मानसिक जड़ता मिटाने एवं निर्मल बुद्धि प्रदान करने में विद्या की अधिष्ठात्री इसी महाशक्ति का हाथ होता है बुद्धि-वैभव की, वाणी की, विद्या की, प्रतिभा की देवी सरस्वती ही है। मस्तिष्कीय क्षमताओं की अभिवृद्धि, बौद्धिक विकास, प्रतिभा-प्रखरता, स्मरणशक्ति की अभिवृद्धि, परीक्षा में उत्तीर्ण होने और अच्छे अंक लाने के लिए सरस्वती गायत्री का प्रयोग किया जाता है। असफलता, निराशा, चिंता और खिन्नता उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करके सफलता का आशाजनक वातावरण उत्पन्न करने की स्थिति विनिर्मित करने में सरस्वती शक्ति का विशेष महत्व है, सरस्वती गायत्री मंत्र द्वारा विशिष्ट प्रकार की औषधियों से बनी हवन सामग्री से हवन करने पर मनोवांछित दिशा में सफलता मिलती है। यज्ञ द्वारा सरस्वती महाशक्ति का आह्वान, अनुमोदन करके उनके अनुदानों से प्रत्येक आयु-वर्ग का व्यक्ति लाभान्वित हो सकता है।

सरस्वती गायत्री का मंत्र इस प्रकार है-

“ॐ सरस्वत्यै विऽहे ब्रह्मपुज्यै धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात्।”

विभिन्न प्रयोजनों की सिद्धि के लिए, अभीष्ट लाभ प्राप्त करने के लिए इस मंत्र के साथ जिन वस्तुओं या औषधियों के साथ हवन करना चाहिए, उनमें से कुछ प्रयोग इस प्रकार है-

(1) मंदबुद्धि मिटाने की विशेष हवन सामग्री-

मंदबुद्धि मिटाने, मानसिक जड़ता हटाने तथा मस्तिष्कीय क्षमता बढ़ाने के लिए निम्नलिखित औषधियों से हवन करना इसलिए (1) शतावर (2) ब्राह्मी (3) ब्रह्मदंडी (4) गोरखमुँडी (5) शंखपुष्पी (6) मंडूकपर्णी (7) मीठी बच (8) मालकाँगनी के बीज।

यहाँ इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए कि उक्त सभी वस्तुएँ बराबर मात्रा में ली जाएँ। इन आठ चीजों में कुछ करके हवन सामग्री बनाते समय कुछ मात्रा बारीक होने के रूप में अलग से निकालकर, कपड़े से छानकर एक-एक डिब्बे में रख लेनी चाहिए और हवन करने के पश्चात् हुए शाम एक-एक चम्मच शहद के साथ खाना-खिलाना चाहिए। यह जान लेना भी जरूरी है कि इन आठ चीजों से वर सामग्री से ही हवन करते समय अखण्ड ज्योति के पूर्व अंकों में वर्णित नंबर (1) लेबल वाली सामग्री भी समान मात्रा में मिला लेनी चाहिए। उस नंबर () किसी सामग्री में जो औषधियां मिलाई जाती है, वे है- अगरबत्ती, तगर, देवदार, चंदन, लाल चंदन, जायफल, लौंग, गृगन, चिरायता, गिलोय एवं अश्वगंधा।

(2) विद्यार्थियों, बुद्धिजीवियों के लिए बुद्धि, स्मरण शक्ति एवं मेधा संवर्द्धक ‘सरस्वती पंचक’-

परमपूज्य गुरुदेव द्वारा लिखित सरस्वती पंचक का यह प्रयोग सभी के लिए उपयोगी व लाभकारी है। नर, नारी, बच्चे, युवा, वृद्ध सभी आयु-वर्ग के व्यक्ति इसके सेवन से लाभ उठा सकते हैं। जिन लोगों को अपने मन-मस्तिष्क से ज्यादा काम लेना पड़ता है, जैसे विद्यार्थी, कंपटीशन में बैठने वाले, लेखक, वकील, कलाकार आदि के लिए ‘सरस्वती पंचक’ सबसे उत्तम टॉनिक है। दिमागी थकान, सिर दर्द, तनाव, उदासी, उत्तेजना, हिस्टीरिया, पागलपन, अनिद्रा आदि मस्तिष्कीय रोगों में लाभकारी होने के साथ ही यह हृदय की धड़कन को भी सामान्य बनाता है। उन विद्यार्थियों के बिन यह विशेष रूप से लाभकारी सिद्ध होता है, जो अपनी ‘मेमोरी’ अर्थात् स्मरणशक्ति को बढ़ाना और उसे अक्षुष रखना चाहते हैं, मेधावी और प्रतिभावान् बनना चाहते हैं। मंदबुद्धि बच्चों के लिए यह वरदान साबित होता है।

‘सरस्वती पंचक’ निम्नलिखित पाँच औषधियों मिलाकर बनाया जाता है-

(1) ब्राह्मी (2) शंखपुष्पी (3) शतावर (4) गोरखमुँडी, (5) मीठी बच।

इन सभी पाँचों औषधियों को समान मात्रा में पाउडर बनाकर कपड़े में छान करके एक डिब्बे में रखते मात्रा-बच्चों को आधा-आधा चम्मच एवं बड़ों को एक एक चम्मच सुबह-शाम दूध के साथ (आवश्यकता पड़ने पर दूध में मिश्री मिलाई जा सकती है) नित्य देते रहने पर उपर्युक्त सभी लाभ दृष्टिगोचर होने लगते हैं।

(3) सरस्वती पंचक की विशिष्ट हवन सामग्री-

सरस्वती पंचक खाने के साथ ही साथ नित्य प्रगति इन्हीं औषधियों से विशेष रूप से बनाई गई हवन सामग्री हवन करते रहने पर द्विगुणित लाभ मिलता है। हवन सामग्री बनाने के लिए निम्नलिखित वस्तुएँ बराबर मात्रा में ली जाती है।

(1) ब्राह्मी, (2) शंखपुष्पी, (3) शतावर, (4) गोरखमुँडी, (5) मीठी बच, (6) तिल, (7) चावल, (8) जौ, (9) गुड, (1) घी।

इन दस चीजों को मिलाकर तैयार की गई हवन सामग्री के बराबर ही पहले से बनी हुई हवन सामग्री नंबर (1) अर्थात् अगर-तगर आदि ग्यारह औषधियों युक्त हवन सामग्री को लेकर मिश्रित करके तब हवन करना चाहिए।

(4) निर्मल बुद्धि प्राप्त करने के लिए विशेष हवन-सामग्री-

चिरग्रहणी निर्मल बुद्धि प्राप्त करने के लिए और भी कई अन्य शास्त्रीय विधान है। देवी भागवत् में उल्लेख है।

पयो हुत्वाप्नुयान्मेधामाज्यं बुद्धिमवाप्नुयात्। अभिमंर्त्य पिबेदब्रह्मं रसं मेधामवाप्नुयात्॥

अर्थात् दूध का हवन करने से तथा घृत की आहुतियाँ देने से बुद्धि-वृद्धि होती है। ब्राह्मी के रस को गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित करके मंत्रोच्चार करते हुए पान करने से चिरग्रहणी निर्मल बुद्धि प्राप्त होती है।

(5) बुद्धि प्राप्ति हेतु ब्राह्मी प्रयोग।

सरस्वती विद्या की अधिष्ठात्री देवी है। विद्या प्राप्त करने के लिए इसी महाशक्ति की आराधना आवश्यक है। विलक्षण बुद्धि चाहने, प्रज्ञा संपन्न बनने के लिए ब्राह्मी का प्रयोग अनुष्ठानपूर्वक करना चाहिए।

ब्राह्मी तीन प्रकार की होती है-

(1) ब्राह्मी-सफेद फूल सतोगुणी, (2) मण्डूकपर्णी (ब्राह्मी) लालफूल-रजोगुणी, (3) बेकोपामोनिएरा (जलनीम)- दक्षिण भारतीय ब्राह्मी, नीलाफूल-तमोगुणी।

इच्छानुसार कोई भी व्यक्ति ब्राह्मी का प्रयोग कर सकता है। इन्हें बगीचे या गमले में घर पर भी लगाया जा सकता है।

प्रयोग विधिः-

(1) सामान- जल, धुले चावल, हल्दी, पुष्प, अगरबत्ती

(2) तिथि- माघ शुक्ल त्रयोदशी को संध्या (शाम) के समय ब्राह्मी को निमंत्रण देना चाहिए।

(3) निमंत्रण मंत्र- “ऊँ कुमार अंजनायै नमः”

(4) विधि-इक्कीस बार, ‘ऊँ कुमार अंजनायै नमः’ इस मंत्र को बोलकर छह इंच से लेकर एक फुट के घेरे में ब्राह्मी के पौधों के आस-पास चहुंओर एक घेरा बना दें। फिर उस पौधे के नीचे श्रद्धाभाव पूर्वक हल्दी, चावल, अगरबत्ती लगाकर प्रणाम करें।

(5) रात्रि में कंबल या कुश के ऊपर अथवा साफ धुले बिस्तर पर शयन करें।

(6) प्रातःकाल चतुर्दशी में 4 बजे उठकर (चाहे स्नान करें या न करे) बिना किसी से कुछ बोले ब्राह्मी के निमंत्रित पौधों को 21 बार नीचे लिखे मंत्र को बोलकर उखाड़ लें।

(7) ब्राह्मी उखाड़ने का मंत्र-”ऊँ ऐं बुद्धि वृर्द्धिन्यै नमः”।

(8) ब्राह्मी उखाड़ने के पश्चात् उसे गंगाजल या साफ जल में अच्छी तरह साफ करके मिक्सी, खरल या सिलबट्टे में नीचे लिखे मंत्र को 21 बार बोलकर पीस लें।

(1) ब्राह्मह पीसने का मंत्र- “ऊँ ऐं ही ब्राह्मयै नमः।”

इसके पश्चात् गंगातट या नदी किनारे स्नान करके निम्न मंत्र का 18 बार जप करे।

(1) जप करने का मंत्र - “ॐ ऐं ह्नीं श्रीं क्लीं वाग्वादिनी सरस्वती मम जिह्नाग्रे वद वद सर्वां विद्याँ देहि देहि स्वाहा।”

तदुपराँत कमर तक पानी में खड़े होकर “सरस्वती माता की कृपा से मुझे विद्या अवश्य प्राप्त होगी” इस तरह बोलते एवं भाव करते हुए रस पी लें।

रस पीने के बाद तीन घंटे तक कुछ नहीं खाना चाहिए। तत्पश्चात् खा लें। जो बालक या वृद्ध इस मंत्र का प्रतिदिन क्त्त् बार जप करता है, उसमें अद्भुत चमत्कार प्रतिभा दिखाई देती है। छोटे बच्चों हेतु माता-पिता संकल्पित होकर स्वयं जप कर सकते हैं। जप करने के बाद उपर्युक्त विधि से ब्राह्मी का रस निकालकर बच्चे को पिला दें। उलटी न होने पाए, इसलिए थोड़ा-थोड़ा करके चम्मच से पिलाएँ और उसमें मिश्री आदि मिला दें।

(6) विद्या प्राप्ति हेतु सिद्ध ह्यग्रीव मंत्र के साथ गिलोय प्रयोग-

इस प्रयोग को कभी भी शुभ दिन से शुरू किया जा सकता है। जप करने का मंत्र इस प्रकार है-

“ऊँ ऐं ह्नीं ह्नौं ह्यग्रीवाय नमो माँ विद्याँ देहि देहि बुद्धि वर्द्धय वर्द्धय हुँ फट स्वाहा।”

इस मंत्र का चौबीस हजार बार जप करना चाहिए। इसके पश्चात् गायत्री पद्धति से हवन करना चाहिए। आहुति हेतु मंत्र यही रहेगा। इसके लिए हवन सामग्री निम्न औषधियां बराबर मात्रा में लेकर तैयार करते हैं-

(1) गिलोय (2) अपामार्ग (3) शंखपुष्पी (4) ब्राह्मी (5) मीठी बच (6) सोंठ (7) शतावर। हवन करते समय इन सातों की कुल मात्रा के बराबर हवन सामग्री नंबर (1) मिला लेते हैं।

हवन करने के पश्चात् इन्हीं सातों औषधियों को 3-3 ग्राम लेकर कपड़े में छानकर डिब्बे में रख लें। रोज एक माला जप के बाद घी-शक्कर से 5 ग्राम खा लें। डेढ़ माह बाद अंतर स्पष्ट देखा जा सकता है।

क्रमशः

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