• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • सत्य केवल एक है।
    • परिवर्तन की धुरी बनेगा इक्कीसवीं सदी का विज्ञान
    • Quotation
    • व्यवस्था भी संभल गई (kahani)
    • अखिल विश्व से न्यारा, भारतवर्ष हमारा
    • कठिनाइयों को झेला (kahani)
    • दुग्धा का बलिदान
    • गंदगी में प्रश्रय (kahani)
    • ‘योग का ज्ञान-विज्ञान’
    • कभी भी तंगी नहीं आती (kahani)
    • ऋषि प्रणीत सिद्धाँतों का वैज्ञानिक रूप - होलोग्राफी
    • विजय न्याय की (kahani)
    • हिमालय की छाया में अब उत्तराँचल का विकास कैसा हो?
    • मुख में ग्रास देने की विधि (kahani)
    • सृजन ने किया क्षेत्र का कायाकल्प
    • सच्ची भक्ति (Kahani)
    • काश! विस्मृति स्मृति में बदल जाए
    • दररमंदो के सिर पर हाथ (kahani)
    • यम-नियमः स्वाध्याय - साधना में बोध और सजगता का समावेश
    • आत्महत्या का मनोविज्ञान
    • समृद्धि और प्रसन्नता का मूल (kahani)
    • आस्था और विश्वास के प्रति विद्रोह का नाम है भ्रष्टाचार
    • ध्येय प्राप्ति सुनिश्चित (kahani)
    • संवेदना का धनी वनस्पति जगत्
    • भय मत करो (kahani)
    • एक निष्काम योगी
    • जीवनलक्ष्य की प्राप्ति (kahani)
    • मस्तिष्कीय क्षमताओं के विकास की यज्ञोपचार प्रक्रिया द4ड्ट
    • कब रुकेगा युद्धों का यह सिलसिला
    • धर्मोपदेश में व्यक्त (kahani)
    • अल्लाह का कैदी जा मिला उन्हीं से
    • शिष्य संतुष्ट (kahani)
    • आत्मविकास के चार महत्वपूर्ण सोपान - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • Quotation
    • ज्ञान निरर्थक (kahani)
    • नारी जागरण को समर्पित संवेदना सिक्त पाती
    • अर्पण करने के कारण (kahani)
    • युगगीता-23 - ये यथा माँ प्रपद्यन्ते ताँस्तथैव भजाम्यहम्
    • मझधार में डूबना नहीं पड़ा (kahani)
    • क्या इस महाविनाश से बचा जा सकता था
    • कुछ विशेष सावधानियाँ, जो आपदा प्रबंधन से जुड़ी हैं
    • प्रस्तुत सावधानियाँ (kahani)
    • अपनों से अपनी बात - साधना की धुरी पर संपन्न हो रहा महापूर्णाहुति का अनुयाज
    • अब तक क्या किया गया एवं क्या होना है
    • शक्ति का सदुपयोग
    • शक्ति का सदुपयोग (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • सत्य केवल एक है।
    • परिवर्तन की धुरी बनेगा इक्कीसवीं सदी का विज्ञान
    • Quotation
    • व्यवस्था भी संभल गई (kahani)
    • अखिल विश्व से न्यारा, भारतवर्ष हमारा
    • कठिनाइयों को झेला (kahani)
    • दुग्धा का बलिदान
    • गंदगी में प्रश्रय (kahani)
    • ‘योग का ज्ञान-विज्ञान’
    • कभी भी तंगी नहीं आती (kahani)
    • ऋषि प्रणीत सिद्धाँतों का वैज्ञानिक रूप - होलोग्राफी
    • विजय न्याय की (kahani)
    • हिमालय की छाया में अब उत्तराँचल का विकास कैसा हो?
    • मुख में ग्रास देने की विधि (kahani)
    • सृजन ने किया क्षेत्र का कायाकल्प
    • सच्ची भक्ति (Kahani)
    • काश! विस्मृति स्मृति में बदल जाए
    • दररमंदो के सिर पर हाथ (kahani)
    • यम-नियमः स्वाध्याय - साधना में बोध और सजगता का समावेश
    • आत्महत्या का मनोविज्ञान
    • समृद्धि और प्रसन्नता का मूल (kahani)
    • आस्था और विश्वास के प्रति विद्रोह का नाम है भ्रष्टाचार
    • ध्येय प्राप्ति सुनिश्चित (kahani)
    • संवेदना का धनी वनस्पति जगत्
    • भय मत करो (kahani)
    • एक निष्काम योगी
    • जीवनलक्ष्य की प्राप्ति (kahani)
    • मस्तिष्कीय क्षमताओं के विकास की यज्ञोपचार प्रक्रिया द4ड्ट
    • कब रुकेगा युद्धों का यह सिलसिला
    • धर्मोपदेश में व्यक्त (kahani)
    • अल्लाह का कैदी जा मिला उन्हीं से
    • शिष्य संतुष्ट (kahani)
    • आत्मविकास के चार महत्वपूर्ण सोपान - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • Quotation
    • ज्ञान निरर्थक (kahani)
    • नारी जागरण को समर्पित संवेदना सिक्त पाती
    • अर्पण करने के कारण (kahani)
    • युगगीता-23 - ये यथा माँ प्रपद्यन्ते ताँस्तथैव भजाम्यहम्
    • मझधार में डूबना नहीं पड़ा (kahani)
    • क्या इस महाविनाश से बचा जा सकता था
    • कुछ विशेष सावधानियाँ, जो आपदा प्रबंधन से जुड़ी हैं
    • प्रस्तुत सावधानियाँ (kahani)
    • अपनों से अपनी बात - साधना की धुरी पर संपन्न हो रहा महापूर्णाहुति का अनुयाज
    • अब तक क्या किया गया एवं क्या होना है
    • शक्ति का सदुपयोग
    • शक्ति का सदुपयोग (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 2001 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


अपनों से अपनी बात - साधना की धुरी पर संपन्न हो रहा महापूर्णाहुति का अनुयाज

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 42 44 Last
परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी पर आधारित एक पुस्तक हैं, ‘गुरुवर की धरोहर’। इस पुस्तक के भाग-1 में वे कहते हैं, “इस समय जिसमें आप हमारी बात सुन रहे हैं, ऐसा समय है जिसको सामान्य नहीं कहा जा सकता। इसे असामान्य ही कहा जाएगा, यह बहुत भयंकर समय है। इस भयंकर समय में प्रत्येक आदमी के ऊपर नहीं, बहुत आदमियों के ऊपर, सारे संसार के ऊपर। प्रकृति हमसे नाराज हो गई हैं। जब उसकी मौज आती हैं, तो अंधाधुंध बरसा कर देती है और जब मूड़ आता है, तो अंधाधुंध बरसा कर देती हैं और जब मूड़ आता है, तो सूखा नजर आता है। कहीं मौसम का ठिकाना नहीं, भूकंप कब आ जाए, कोई नहीं कह सकता। बाढ़ कब आ जाए, कोई ठिकाना नहीं। नेचर हम सबसे बिलकुल नाराज हो गई हैं, इसलिए उसने काम करना बंद कर दिया है। यह ऐसा भयंकर समय है। ऐसे भयंकर समय में अपना सारा वक्त आपको केवल पेट पालने के लिए, संतान पैदा करने के लिए जाया नहीं करना है।” (पृष्ठ 1-11 भाग एक) अप्रैल ही प्रासंगिक माना जा सकता है, जितना कि यह सत्रह वर्ष पूर्व था।

वस्तुतः वही सब घट रहा है। विगत महापुरश्चरण की बारह वर्ष की अवधि (1988-2) में हमने देखा कि जहाँ एक ओर अंधकार अपनी विनाशलीला सृजे हुए था, वहीं आध्यात्मिक स्तर पर एक महापुरुषार्थ भी संपन्न हो रहा था। कभी-कभी लगता है कि यह आध्यात्मिक पराक्रम तथा इससे मिलते-जुलते अन्य संगठनों के प्रयास न चल रहे होते तो न जाने इस वसुधा का क्या हुआ होता? सब कुछ समाप्त हो गया होता। हम आदिम-बर्बर युग में जी रहे होते।

प्रस्तुत वर्ष 21 का वर्ष हीरक जयंती वर्ष है। 1926 से जलते आ रहे इस अखण्ड दीपक ही हीरक जयंती जिसके प्रकाश में गायत्री परिवार जन्मा, एक बीज से वटवृक्ष बना एवं आज चारों ओर छाए घने कुहासे के बीच सभी के लिए एक आशा की किरण की तरह है। यह वर्ष हमारे 12 वर्षीय युगसंधि महापुरश्चरण का अनुयाज वर्ष भी है। अनुयाज कहते हैं किसी भी महत्वपूर्ण कार्य के ‘फालोआप’ को। जो भी कुछ निर्धारित किया गया था, सोचा गया था गुरुसत्ता द्वारा, हम सबके लिए निर्देश रूप में दिया गया था, उसे प्रचारात्मक प्रक्रिया से उबरकर ठंडे दिमाग से संगठित रूप में क्रियान्वित करना। कार्यरूप में परिणत कर उसको व्यावहारिक आँदोलन का रूप देना। जन-जन की उसमें भागीदारी होना। 1958 के सहस्रकुंडी महायज्ञ से लेकर 1988 की ऐतिहासिक आश्विन-नवरात्रि तक के समय को यदि प्रयाज माना जाए, तो एक विराट् साधनाप्रधान महाप्रज्ञा करोड़ों भावनाशीलों द्वारा याज रूप में 1989 से 2-21 की वसंत तक संपन्न किया गया। इस सहस्राब्दी ही नहीं, युग के इतिहास में यह एक मील का पत्थर बन गया है, जिसमें देवसंस्कृति दिग्विजय अभियान के अंतर्गत करोड़ों व्यक्तियों की साधनात्मक भागीदारी हुई। अखण्ड जपप्रधान साधनात्मक आयोजन हुए, रजवंदन से लेकर ग्रामतीर्थ की प्रदक्षिणा-आश्वमेधिक पुरुषार्थ से लेकर संस्कार-महोत्सवों का गरिमापूर्ण आयोजन तथा दो विराटतम स्तर की महापूर्णाहुतियाँ संपन्न हुईं। एक 1995 में आँवलखेड़ा में तो दूसरी भारत की आध्यात्मिक राजधानी कुँभनगरी हरिद्वार में 2 के अंत में। अब अनुयाज की बारी है।

यदि हमें युगपरिवर्तन की इस प्रक्रिया को निरंतर गतिशील बनाए रखना है, तो हमारा पहला कर्तव्य यह होना चाहिए कि एक पाठक-साधक-परिजन के रूप में हम अपना निज की जीवन साधना की इस वर्ष विशेष में और प्रखर बना लें। जिसकी जीवन साधना जितनी तीव्रतम होगी, उसमें जितना संकल्प भरा प्राण होगा, उतना ही वह आने वाले समय की कई गुना बड़ी महत्व वाली जिम्मेदारियाँ निबाहने को तैयार हो जाएगा। एक राजपुत्र से तपस्वी भगीरथ बनकर वह कार्य हो पाया था, जिसे गंगावतरण कहते हैं। गंगा यों ही धरती पर नहीं आई। पुण्यतोया सुरसरि हिमालय क्षेत्र में भगवान् महाकाल की जटाओं से निस्सृत होकर निकलीं, तो उसके पीछे भगीरथ का तप था। आज भी आर्यावर्त उसे भागीरथी कह उस तप का सम्मान करता है। गंगा-हिमालय हमारे देश में है और कही भी नहीं, इस पर हमें नाज है। यह सारा तप, साधना का चमत्कार है।

यदि अब नवयुग आना है, 21 से 211-212 के बीच की अवधि के इस भारी विषम समय में जगती का ताप मिटाना है, प्रतिकूलताओं को अनुकूलता में बदलना है, तो उसका आधार भी एक ही होगा-साधना। साधना एक आँदोलन के रूप में जन-जन तक पहुँच जाए। इस आंदोलन की सफलता ही अन्य बड़े परिवर्तनों का, अन्य आँदोलनों की सफलता का आधार बनाएगी। हमारी उपासना पद्धति कुछ भी क्यों न हो, हमारे इष्ट भिन्न-भिन्न क्यों न हों, साधना तो जीवन देवता की है। एक कल्पवृक्ष के रूप में विकसित हो सकने वाले जीवन की है। इसीलिए इस आँदोलन में भागीदारी हर वर्ग की है, हर जाति, पंथ, मत, संप्रदाय, वर्ग, लिंग के भावनाशील की है। उपासना-साधना के सार्वभौम सूत्रों को अपनाकर वे न केवल युग निर्माण की प्रक्रिया को गति देंगे, एक नए विश्व, देव संस्कृति प्रधान राष्ट्र के नेतृत्व वाले ग्लोबल ग्राम के रूप में देखे जाने वाले मानव-समुदाय की भवितव्यता रच रहे होंगे। निश्चित ही यह सब कुछ अपने अंदर उस गहरे स्तर की संवेदना विकसित किए, जीवन जीने की कला में सुगढ़ता लाए तथा सद्बुद्धि को अंगीकार किए बिना संभव नहीं है। इसीलिए बार-बार इस साधना आँदोलन की धुरी जाग्रत् संवेदना, व्यक्तित्व परिष्कार एवं गायत्री महाशक्ति को ही मानकर आगे चलने को कहा जा रहा है।

साधना को आँदोलन के रूप में सारे समाज में संव्याप्त होते ही परिष्कृत प्रतिभावनाओं की, संकल्पित विभूतिवानों की संख्या बढ़ने लगेगी। ऐसे प्राणवान् ही वह कार्य कर पाएंगे, जिसे विभिन्न आँदोलनों के रूप में बताया गया है। ये आँदोलन कोई नए नहीं है। पहले भी इनकी चर्चा होती रही हैं एवं अनेकानेक सामाजिक संगठन, शासकीय विभाग भी इन्हीं कार्यों में लगे हैं। वे सफल इस कारण नहीं होते कि उनकी धुरी अध्यात्म, नैतिकता या साधना नहीं, मात्र बौद्धिक प्रतिपादन होते हैं। बौद्धिक आँदोलन स्थाई नहीं होते। सामाजिक क्राँतियाँ तभी चिरस्थाई परिणाम वाली होती हैं, जब उनका आधार अध्यात्मिक हो, व्यक्ति का संवेदनामूलक विकास हो, साधना उनकी रग-रग में हो। ऐसा नहीं है तभी तो एन.जी.ओ. (नॉन गवर्नमेंट आर्गेनाइजेशन्स स्वैच्छिक संगठनों) के कुकुरमुत्तों की तरह सारे समाज में फैले जाल को देखकर भी किसी के मन में आस नहीं जगती, उत्साह की किरण नहीं फूटती। उलटे अधिकांश एन.जी.ओ. से जुड़े भ्रष्ट तंत्र को देखकर जुगुप्सा होने लगती है और सरकार का तो कहना ही क्या? तहलका डाट-काम के पर्दाफाश से बेनकाब हमारा भ्रष्ट राजतंत्र क्या किसी को दे सकता है, कैसे राष्ट्र की, हम सबकी रक्षा कर सकता है, यह प्रश्न चिह्न हम सबके समक्ष खड़ा है।

कही कोई आशा किसी को हैं, कहीं कोई प्रेरणा स्त्रोत है तो वे आध्यात्मिक आंदोलन को गति देने वाले संगठन ही है। गायत्री परिवार उनमें एक वरिष्ठ भूमिका निवाह रहा है, अपनी सदाशयता का परिचय दे सभी एक ही उद्देश्य से कार्य कर रहे संगठनों का संगतिकरण करने को आमंत्रण दे रहा है।

कुसंस्कारिता को निर्मूल कर सुसंस्कारी शिक्षा वाली क्राँति साधनात्मक आधार पर ही आएगी। साक्षरता का कार्य वर्षों से चल रहा है, पर राष्ट्र अभी तक साक्षर नहीं हो पाया। कामकाजी विद्यालयों की योजना से लेकर जीवनमूल्यों को स्थापित करने वाली नैतिक शिक्षा को पाठ्यक्रम के अंग-अंग में पिरोकर नई शिक्षण पद्धति का जनम गायत्री परिवार देगा। ऐसे क्राँतिकारी शिक्षक तैयार करेगा जो श्री श्रीराम चंद्र जी की तरह से ढेरों गाँधी तैयार कर सकें। स्वास्थ्य के क्षेत्र में यदि कोई आमूलचूल परिवर्तन होना है, तो वह अपने देश की परिस्थितियों के अनुरूप आयुर्वेद की समग्र चिकित्सा, ‘होलिस्टीक मेडीसीन’ वाली पद्धति के विकास से ही संभव है। जन स्वास्थ्य संरक्षणों का प्रशिक्षण एवं नए बने एलोपैथी के आयुर्वेद-होम्योपैथी के चिकित्सकों को रोगी-प्रबंधन-रुग्णालय प्रबंधन में शिक्षित करके, आयुर्वेद के विज्ञानसम्मत आधार को उनके अंदर प्रविष्ट करा के ही हम पूरे विश्व को 21 तक नीरोग बनाने की घोषणा कर सकेंगे। स्वावलंबन ही भविष्य की आर्थिक नीति की धुरी बनेगा। ग्रामोद्योग का प्रचलन, स्वदेशी आँदोलन, गौ संवर्द्धन ही विश्व के बाजारीकरण का सही प्रत्युत्तर है। बड़े विराट् स्तर पर यह कार्य गायत्री परिवार अपने हाथ में ले रहा है एवं भूमंडलीकरण वैश्वीकरण-शहरीकरण लाने वाली नीति का चुनौती दे रहा है। इससे संबंधित सारा प्रशिक्षण क्रम बनाया जा रहा है।

पर्यावरण के प्रति जागरुकता पैदा कर स्थूल व सूक्ष्म जगत् में उसके संशोधन हेतु रचनाधर्मी कार्यों का नियोजन, क्षीण होते जा रहे हरीतिमा के कवच का पुनर्निर्माण एवं पर्यावरण वाहिनियों के माध्यम से वातावरण का परिष्कार अपने साधना केंद्रित आँदोलन का एक महत्वपूर्ण अंग हैं। नारी जागरण मूलतः एक आध्यात्मिक आँदोलन हैं, सामाजिक नहीं। राष्ट्र की आधी जनशक्ति को जगाकर उसके स्थूल सौंदर्य नहीं, मूल संवेदना प्रधान स्वरूप का जागरण शक्तिपूजा करने वाले इस देश का गौरव पुनः लौटाएगा। सारे विश्व में नारी का भिन्न-भिन्न रूपों में शोषण हो रहा है। यह रुकेगा तब, जब नारी स्वयं आगे आएगी। व्यसन मुक्ति एवं कुरीति उन्मूलन आँदोलन भी चलेंगे जाग्रत मंडलों से, युवाशक्ति एवं जागी हुई नारी से। व्यसन से बचाकर सृजन में लगाने की प्रवृत्ति को छूत की बीमारी की तरह अध्यात्म क्षेत्र के साधक फैलाएंगे, तो समाज शराब-तंबाकू जैसे विषों एवं ढेरों कुरीतियों से मुक्त होता दिखाई देने लगेगा।

सभी कार्यक्रमों आँदोलनों की धुरी साधना ही है, प्रतिभा परिष्कार ही है। शांतिकुंज के तत्वावधान में बनकर खड़े हो रहे देव संस्कृति विश्वविद्यालय की विधाएं (फैकल्टी) उपर्युक्त सातों उपक्रम होंगे। फिर नालंदा तक्षशिला की परंपरा पुनर्जीवित होती देखी जा सकेंगी। पुनः भारत का स्वर्णयुग लौटेगा एवं हमारा देश जगद्गुरु कहलाएगा। किसी को भी इसमें संदेह नहीं करना चाहिए।

First 42 44 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • सत्य केवल एक है।
  • परिवर्तन की धुरी बनेगा इक्कीसवीं सदी का विज्ञान
  • Quotation
  • व्यवस्था भी संभल गई (kahani)
  • अखिल विश्व से न्यारा, भारतवर्ष हमारा
  • कठिनाइयों को झेला (kahani)
  • दुग्धा का बलिदान
  • गंदगी में प्रश्रय (kahani)
  • ‘योग का ज्ञान-विज्ञान’
  • कभी भी तंगी नहीं आती (kahani)
  • ऋषि प्रणीत सिद्धाँतों का वैज्ञानिक रूप - होलोग्राफी
  • विजय न्याय की (kahani)
  • हिमालय की छाया में अब उत्तराँचल का विकास कैसा हो?
  • मुख में ग्रास देने की विधि (kahani)
  • सृजन ने किया क्षेत्र का कायाकल्प
  • सच्ची भक्ति (Kahani)
  • काश! विस्मृति स्मृति में बदल जाए
  • दररमंदो के सिर पर हाथ (kahani)
  • यम-नियमः स्वाध्याय - साधना में बोध और सजगता का समावेश
  • आत्महत्या का मनोविज्ञान
  • समृद्धि और प्रसन्नता का मूल (kahani)
  • आस्था और विश्वास के प्रति विद्रोह का नाम है भ्रष्टाचार
  • ध्येय प्राप्ति सुनिश्चित (kahani)
  • संवेदना का धनी वनस्पति जगत्
  • भय मत करो (kahani)
  • एक निष्काम योगी
  • जीवनलक्ष्य की प्राप्ति (kahani)
  • मस्तिष्कीय क्षमताओं के विकास की यज्ञोपचार प्रक्रिया द4ड्ट
  • कब रुकेगा युद्धों का यह सिलसिला
  • धर्मोपदेश में व्यक्त (kahani)
  • अल्लाह का कैदी जा मिला उन्हीं से
  • शिष्य संतुष्ट (kahani)
  • आत्मविकास के चार महत्वपूर्ण सोपान - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
  • Quotation
  • ज्ञान निरर्थक (kahani)
  • नारी जागरण को समर्पित संवेदना सिक्त पाती
  • अर्पण करने के कारण (kahani)
  • युगगीता-23 - ये यथा माँ प्रपद्यन्ते ताँस्तथैव भजाम्यहम्
  • मझधार में डूबना नहीं पड़ा (kahani)
  • क्या इस महाविनाश से बचा जा सकता था
  • कुछ विशेष सावधानियाँ, जो आपदा प्रबंधन से जुड़ी हैं
  • प्रस्तुत सावधानियाँ (kahani)
  • अपनों से अपनी बात - साधना की धुरी पर संपन्न हो रहा महापूर्णाहुति का अनुयाज
  • अब तक क्या किया गया एवं क्या होना है
  • शक्ति का सदुपयोग
  • शक्ति का सदुपयोग (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj