• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • बच्चों को उत्तराधिकार में धन नहीं गुण दें
    • शिशु निर्माण में अभिभावकों का उत्तरदायित्व
    • बच्चे घर की पाठशाला में
    • शान्ति, स्नेह और सौम्यता के प्यासे बालक
    • बालकों का समुचित विकास आवश्यक
    • बच्चों का पालन पोषण कैसे करें
    • बालकों का विकास इस तरह होगा
    • बालक के निर्माण में माता का हाथ
    • बच्चों को डराया न करें
    • बच्चों में अच्छी आदतें पैदा कीजिए
    • बच्चों को सभ्य-सामाजिक बनाइये
    • बच्चे क्यों झगड़ालू हो जाते हैं?
    • बच्चों को हठी न होने दीजिये
    • बच्चों को अनुशासन कैसे सिखाया जाय?
    • बच्चों के मित्र बनकर उनको व्यवहार कुशल बनाइये
    • बच्चों को व्यवहार कुशल बनाइये
    • बालकों के निर्माण का आधार
    • बालकों की शिक्षा में चरित्र निर्माण का स्थान
    • किशोरों के निर्माण में सावधानी बरती जाय
    • बच्चों की उपेक्षा न कीजिये
    • बाल अपराध की चिन्ताजनक स्थिति
    • बाल अपराध बढ़े तो राष्ट्र गिर जायगा
    • बच्चे अपराधी क्यों बनते हैं?
    • बालकों को अपराधी बनाने वाला—अपराधी समाज
    • क्या दण्ड से बच्चे सुधरते हैं?
    • बच्चों को दण्ड नहीं, दिशायें दें
    • बच्चों का सुधार कैसे हो?
    • बच्चों को समय का सदुपयोग सिखाया जाय
    • बालकों को अनावश्यक सहयोग मत दीजिये
    • बच्चों को अधिक आदेश न दें
    • बच्चे को आज्ञाकारी कैसे बनायें
    • सभ्यता व संस्कृति
    • ज्ञातव्य
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • बच्चों को उत्तराधिकार में धन नहीं गुण दें
    • शिशु निर्माण में अभिभावकों का उत्तरदायित्व
    • बच्चे घर की पाठशाला में
    • शान्ति, स्नेह और सौम्यता के प्यासे बालक
    • बालकों का समुचित विकास आवश्यक
    • बच्चों का पालन पोषण कैसे करें
    • बालकों का विकास इस तरह होगा
    • बालक के निर्माण में माता का हाथ
    • बच्चों को डराया न करें
    • बच्चों में अच्छी आदतें पैदा कीजिए
    • बच्चों को सभ्य-सामाजिक बनाइये
    • बच्चे क्यों झगड़ालू हो जाते हैं?
    • बच्चों को हठी न होने दीजिये
    • बच्चों को अनुशासन कैसे सिखाया जाय?
    • बच्चों के मित्र बनकर उनको व्यवहार कुशल बनाइये
    • बच्चों को व्यवहार कुशल बनाइये
    • बालकों के निर्माण का आधार
    • बालकों की शिक्षा में चरित्र निर्माण का स्थान
    • किशोरों के निर्माण में सावधानी बरती जाय
    • बच्चों की उपेक्षा न कीजिये
    • बाल अपराध की चिन्ताजनक स्थिति
    • बाल अपराध बढ़े तो राष्ट्र गिर जायगा
    • बच्चे अपराधी क्यों बनते हैं?
    • बालकों को अपराधी बनाने वाला—अपराधी समाज
    • क्या दण्ड से बच्चे सुधरते हैं?
    • बच्चों को दण्ड नहीं, दिशायें दें
    • बच्चों का सुधार कैसे हो?
    • बच्चों को समय का सदुपयोग सिखाया जाय
    • बालकों को अनावश्यक सहयोग मत दीजिये
    • बच्चों को अधिक आदेश न दें
    • बच्चे को आज्ञाकारी कैसे बनायें
    • सभ्यता व संस्कृति
    • ज्ञातव्य
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - बच्चों को उत्तराधिकार में धन नहीं गुण दें

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


बच्चों को हठी न होने दीजिये

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 13 15 Last

यों तो सभी बच्चे कुछ न कुछ हठी होते हैं, किन्तु कुछ बच्चे तो इतने हठी होते हैं कि उनके माता-पिता हर समय परेशान रहते हैं। उनके हठ की प्रवृत्ति यहां तक बढ़ जाती है कि वे हर बात के लिये हठ करने लगते हैं। जो बात साधारणतः पूरी हो सकती है उसमें भी हठ के लिये कोई न कोई कारण निकाल लेते हैं। जैसे वह अपनी मां से पैसे मांगता है और उसको इनकार किया जाता है तब तो वह हठ करेगा ही इसके विपरीत यदि उसे पैसे दिये भी जाते हैं तब भी वह उनके कम ज्यादा होने के विषय में मचल उठेगा। यदि उसे चार पैसे दिये गये हैं तो वह छः के लिए हठ करेगा और यदि छः दिये गये हैं तो आठ के लिये हठ करेगा। तात्पर्य यह कि किसी इच्छा अथवा आवश्यकता की वह तब तक पूर्ण तुष्टि नहीं मानता जब तक किसी न किसी प्रकार हठ न करले। इसी प्रकार वह खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने, उठने-बैठने, खेलने-कूदने आदि सारी साधारण एवं असाधारण सभी बातों में हठ का कारण निकाल लेता है।

कभी-कभी बालकों का यह स्वभाव हठ की परिधि लांघकर निषेधात्मक प्रवृत्ति का रूप ग्रहण कर लेता है। बालकों की यह प्रवृत्ति बड़ी खराब होती है। इस प्रवृत्ति के बालकों को संतुष्ट करना बड़ा कठिन होता है। साथ ही वे हठ पूरा हो जाने पर भी पूर्ण रूप से स्वयं भी सन्तुष्ट नहीं हो पाते।

किसी मांग को पूरी कराने के लिये हठ करना एक बात है और मांग पूरी होने पर हेर-फेर कराने के लिये जिद करना दूसरी बात है। यह दोनों बातें परस्पर भिन्न हैं। इस स्वभाव के बच्चे निषेधात्मक, विरोधात्मक अथवा अस्वीकृतात्मक प्रवृत्ति के होते हैं। जिसका सुधार बड़ा दुःसाध्य होता है।

बच्चों के हठी हो जो के अनेक कारण होते हैं। जिनमें सब से प्रमुख कारण होता है माता-पिता द्वारा उसकी हर बात को तत्काल मान लेना वह बात उचित हो अथवा अनुचित। बच्चे की ज्यों-ज्यों हर बात मानी जाती हैं त्यों-त्यों उसकी इच्छाएं बढ़ती जाती हैं। एक दिन ऐसा आता है कि उसकी हर इच्छा पूरी कर सकना अभिभावकों के लिए कठिन हो जाता है और इनकार करना पड़ता है। इधर बच्चा अपनी इच्छा पूर्ति का इतना अभ्यस्त हो चुका है कि इनकार होते ही उसको एक धक्का लगता है जिससे उसे तकलीफ होती है और उस तकलीफ को दूर करने के लिये हठ का सहारा लेता है। उसके लिए रोयेगा, मचलेगा और तरह-तरह से कलह क्लेश करेगा। कपड़े उतारने लगेगा, उनको नोचने लगेगा, स्कूल नहीं जायेगा, खाना नहीं खायेगा, बाल नोचेगा, सर पटकेगा और विविध प्रकार की ऐसी हरकतें करेगा जिससे अभिभावक, घबराकर, ऊबकर अथवा मजबूर होकर उसकी इच्छा पूरी कर दें।

किन्तु जिन बच्चों को अपनी हर बात पर हमेशा इनकार सुनने को मिलता है, उनका हठ इस प्रकार का नहीं होता। उनका हठ कोई बाह्य आन्दोलन का रूप मन ही मन पलता रहता है, जिससे वे अन्दर ही अन्दर अपने अभिभावकों के प्रति विरोधी हो जाते हैं जो आगे चलकर स्पष्ट रूप में एक साथ प्रकट होता है। उन्हें माता-पिता से कोई विशेष लगाव नहीं रहता और अधिकतर वे कुछ सयाने होते ही अपना कमाने और अलग रहने की सोचने लगते हैं।

साथ ही अपनी इच्छा पूर्ति के लिये उनमें बुरी आदतें पैदा हो जाती हैं, वे किसी चीज के लिये पैसे चुराते हैं, खाने के लिये चीजें चुराते हैं, और कोई काम करने के लिये अभिभावकों की नजर बचाते हैं। इस तरह एक प्रकार से उनमें चोरी एवं छिपाव का स्वभाव आ जाता है।

इसके अतिरिक्त हर बात में इनकार पाने वाले बच्चे अधिकतर दीन-हीन होकर दयनीय भी हो जाते हैं। वे दूसरे बच्चों को देखकर तरसने लगते हैं, लालची बन जाते हैं और ईर्ष्यालु भी हो जाते हैं। उनमें एक ऐसी हीन-भावना आ जाती है जिससे वे साधारण और सामान्य बातों में भी सामंजस्य नहीं कर पाते और अकारण दबते या झेंपते रहते हैं। उनके आत्म-विश्वास और आत्म-महत्व की भावना का ह्रास हो जाता है जो उनके विकास में हर प्रकार से बाधक होता है।

हठी स्वभाव के बालक न केवल माता-पिता के ही लिये परेशानी के कारण बनते हैं अपितु पाठशाला में अध्यापकों के लिये भी एक समस्या बन जाते हैं। कभी कोई प्रश्न पूछे जाने पर यदि उन्हें उसका उत्तर नहीं आता तो चुपचाप खड़े रहेंगे और ‘हां, ना’ में कोई उत्तर ही नहीं देंगे। अध्यापक कितना भी कुछ बोलने के लिये क्यों न कहें वे उनकी ओर देखते हुये गुम-सुम खड़े रहेंगे। डांटने पर चुपचाप आंसू गिराने लगेंगे किन्तु बोलेंगे नहीं। उन्हें न बोलने की जिद सवार हो जाती है। इस प्रकार बड़ी देर तक कक्षा में, अध्यापक के बार-बार कुछ उत्तर देने के लिये कहने और उसके न बोलने का झंझट पड़ा रहता है। जिससे पूरी कक्षा का नुकसान होता है। उसकी मौनता से सारे बच्चे एक परेशानी अनुभव करते हैं। दो एक बार ऐसा होने पर अध्यापक हठी बच्चे की उपेक्षा कर देते हैं जिससे पाठशाला में वह असहाय-सा हो जाता है, पाठशाला जाने से जी चुराने लगता है। घर से पाठशाला के लिये चलता है, लेकिन पाठशाला न जाकर इधर-उधर घूमता रहता है जिससे उसके आवारा हो जाने की संभावना रहती है।

दूसरे बच्चों के साथ खेलने में भी हठी बच्चों की पटरी नहीं बैठती। वे साथी चुनने में हठ करेंगे, गेंद या बल्ला पहले लेने या पहले खेलने के लिये जिद करेंगे, हारजीत न मानने में उलझन करेंगे, इस प्रकार वे न सुविधापूर्वक स्वयं खेलेंगे और न दूसरों को खेलने देंगे। एक आध बार ऐसा करने पर साथी उसका बहिष्कार कर देते हैं और वह अकेला रह जाने से सबसे चिढ़ने या झगड़ा करने लगता है जिससे आगे चल कर वह दिनों-दिन झगड़ालू होता जाता है।

हठी बच्चे के दिमाग में हर समय, एक रोष, खीझ और परेशानी बनी रहती है जिससे वे क्रोधी चिड़-चिड़े और विरोधी बन जाते हैं। उनका बौद्धिक विकास रुक जाता है और वे किसी क्षेत्र में कोई उन्नति नहीं कर पाते।

इसलिये हठी बनने से रोकने के लिये माता-पिता को हर संभव उपाय करना चाहिये। माताओं को इस दिशा में अधिक सजग रहने की आवश्यकता है क्योंकि छोटे बच्चों का अधिकतर सम्पर्क उन्हीं से रहता है। बच्चों के खाने-पीने, पहनने, ओढ़ने और पैसा आदि देने का सम्बन्ध उन्हीं से रहता है। साथ ही वे कोमल स्वभाव की भी होती हैं और बच्चा पिता की अपेक्षा उनसे डरता भी कम है। इसलिये मां से हठ करने और उसके पूरे होने की सम्भावना अधिक रहती है।

जहां बच्चा किसी बात के लिये थोड़ा बहुत मचला या रोया कि उनका कोमल हृदय विचलित हो उठा और बच्चे की मांग पूरी हुई। उनको अपने मातृ-भाव के सामने यह विचार करने का मौका ही नहीं रहता कि बच्चे की मांग उचित है अथवा अनुचित है और यदि मांग अनुचित भी होती है तब भी बच्चे के प्रति प्यार अथवा उलझन से बचने और समय बचाने के लिये वे उसके हठ को जल्दी से जल्दी पूरा कर देती हैं।

माताओं को चाहिये कि वे बच्चे के हित को ध्यान में रखकर अपने वात्सल्य का ऐसे अवसर पर नियन्त्रण रक्खें। बच्चे की हर मांग की विवेचना करके उसे पूरा करें। यदि मांग उचित है तब भी तत्काल पूरा करने के बजाय इस ढंग से थोड़ी देर टाल कर पूरा करें जिससे कि उसमें धैर्य रखने की प्रवृत्ति पैदा हो। बच्चे की मांग पूरी करने के लिये न तो तत्काल स्वयं अधीर हो उठना चाहिये और न इतनी टालमटोल करनी चाहिये जिससे वह अधीर हो उठे।

जहां तक सम्भव हो बच्चे की अनुचित मांग को कदापि पूरा न किया जाय। इस विषय में अवश्य ही इतनी दृढ़ता बरती जानी चाहिये कि वह हठ छोड़ने पर मजबूर हो जाये और यदि किसी कारणवश उसकी अनुचित मांग करने की मजबूरी ही आ पड़े तो उसे तत्काल पूरी न करके विलम्ब से उस समय इस ढंग से पूरी करनी चाहिये जिससे उसे हठ के विजयी होने का अनुमान न हो सके। इस प्रकार दो एक-बार परास्त होने पर अनुचित बात के लिए उसका हठ शिथिल पड़ जायेगा।

वास्तव में किसी अनुचित बात के लिये ही बच्चों का हठ ठीक नहीं होता, उचित बात में नहीं। कोई भी उचित मांगकर सकना उनका अधिकार है। उनके इस अधिकार की यथा सम्भव रक्षा करना अभिभावकों का नैतिक कर्त्तव्य है। कोई उचित मांग पेश करने पर इनकार कर देना उनके प्रति एक अत्याचार है। आवश्यकतायें तो बच्चे की भी हो सकती हैं। यदि माता-पिता उसकी आवश्यकतायें पूरी नहीं करेंगे तो वह उनके लिये किससे अनुरोध करेगा। उसके पास स्वयं अपना कोई साधन या स्रोत तो होता नहीं जिससे वह अपनी आवश्यकतायें पूरी करले, और न वह इतना बुद्धिमान ही होता है कि बिना आवश्यकता पूर्ति के काम चला ले, साथ ही वह इतना संयमी भी नहीं होता कि किसी आवश्यकता को उत्पन्न ही न होने दे। हर दशा में वह अपनी आवश्यकता अपने माता-पिता के सम्मुख ही रखने को मजबूर है।

ऐसी दशा में यदि उसे बार-बार निराश होना पड़ेगा तो वह अवश्य हठी होने लगेगा। यदि उसके उचित हठ को भी डाट-डपट और मार पीट कर दबा दिया जायेगा तो उसका मन अवश्य अपने माता-पिता की ओर से फिर जायेगा। वह अपनी आवश्यकता किसी से कुछ उधार लेकर अथवा मांग कर पूरी करेगा। जिससे उसका सम्मान दूसरों की ओर हो जायेगा। बच्चों के लिये यह स्थिति अच्छी नहीं होती। उसमें लोभ, लालच और याचना की प्रवृत्ति उत्पन्न हो जाती है। दूसरे लोग इसका लाभ उठाकर बच्चे को माता पिता के प्रति विद्रोही बना देते हैं। यदि मित्र नहीं तो कम से कम वैमनस्य मानने वाले लोग तो इसका फायदा उठायेंगे ही।

इन सब बातों का ध्यान रखते हुए बच्चों की उचित मांग अवश्य मान लेना चाहिये किन्तु इसमें भी इतनी जल्दी नहीं करनी चाहिये जिससे वह उन्हें बार-बार तत्काल पूरी कराने का आदी हो जाये क्योंकि कभी-कभी कोई उचित मांग न पूरी कर सकने की स्थिति हो सकती है और तब तत्काल पूर्ति का अभ्यास उसके विषय में परेशानी पैदा करेगा।

कभी-कभी उचित मांग भी अनुचित होती है, जैसे वह घर के नियमानुसार कुछ पैसे मांगने और पाने का अधिकारी है किन्तु यदि वह अपने पैसे मांगता है पतंग उड़ाने या आतिशबाजी जलाने के लिये तब उसकी वह उचित मांग अनुचित ही है और किसी दशा में भी पूरी नहीं होनी चाहिये। क्योंकि ऐसी मांगों का उसका अधिकार समझकर यदि पूरा किया जायेगा तो जहां एक ओर हठ की सम्भावना नहीं है वहां दूसरी ओर उसमें अन्य बुरी बातें पैदा हो जाने की आशंका है। इसलिये बच्चे की उचित मांग को भी विश्लेषण किये बिना पूरी न करना चाहिये।

बच्चे को हठी बनने से रोकने का सबसे अच्छा उपाय यह है कि उसकी आवश्यकताओं का स्वयं ध्यान रक्खा जाये और उनकी ठीक समय पर उसके बिना कहे ही पूरा कर दिया जाये। इस प्रकार वह अपनी आवश्यकता खुद समझने और उनको पूरा करने के प्रयत्न से मुक्त होकर माता पिता पर निर्भर रहेगा जिससे उसके लिये हठ करने का कोई अवसर ही न आयेगा और यदि कभी उसके कहने का अवसर आ भी जायेगा तो वह माता-पिता के सामने प्रस्ताव करेगा, स्वयं हठ पूर्वक उसकी मांग न करेगा। जिन बच्चों को विश्वास रहता है कि उनके माता-पिता उनकी हर बात का ध्यान रखते हैं, वे बच्चे अपने माता-पिता के सदा अनुकूल रहते हैं और कभी परेशान नहीं करते। किसी बात के लिये इनकार किये जाने पर भी उनके मन में कोई कुण्ठा अथवा शोभ की उत्पत्ति नहीं होती।

किन्तु इस बात में भी यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि उनकी इस निर्भयता से वे आगे चलकर परावलम्बी न बन जायें। इसलिये उनकी उचित मांग को पूरा करते समय यह समझाने का प्रयत्न किया जाना चाहिये कि यह आवश्यकता उनकी क्यों थी और इस समय क्यों पूरी की गई, और अनुचित बात के लिये इनकार करते समय उन्हें बताया जाना चाहिये कि इस बात से उनको अमुक हानि हो सकती है। इसलिये उनके हित में उनकी अमुक बात नहीं मानी गई है। इस प्रकार वे आवश्यकता के औचित्य एवं अनौचित्य के प्रति समझदार होकर कभी अनुचित हठ के अभ्यस्त न होंगे।

***

Normal 0 false false false EN-US X-NONE X-NONE MicrosoftInternetExplorer4 /* Style Definitions */ table.MsoNormalTable {mso-style-name:"Table Normal"; mso-tstyle-rowband-size:0; mso-tstyle-colband-size:0; mso-style-noshow:yes; mso-style-priority:99; mso-style-qformat:yes; mso-style-parent:""; mso-padding-alt:0in 5.4pt 0in 5.4pt; mso-para-margin:0in; mso-para-margin-bottom:.0001pt; mso-pagination:widow-orphan; font-size:11.0pt; font-family:"Calibri","sans-serif"; mso-ascii-font-family:Calibri; mso-ascii-theme-font:minor-latin; mso-fareast-font-family:"Times New Roman"; mso-fareast-theme-font:minor-fareast; mso-hansi-font-family:Calibri; mso-hansi-theme-font:minor-latin; mso-bidi-font-family:"Times New Roman"; mso-bidi-theme-font:minor-bidi;}
First 13 15 Last


Other Version of this book



बच्चों को उत्तराधिकार में धन नहीं गुण दें
Type: TEXT
Language: HINDI
...

बच्चों को उत्तराधिकार में धन नहीं, गुण दें
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books



Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

बलि वैश्व
Type: TEXT
Language: HINDI
...

बलि वैश्व
Type: TEXT
Language: HINDI
...

बलि वैश्व
Type: TEXT
Language: HINDI
...

बलि वैश्व
Type: TEXT
Language: HINDI
...

युग सृजन का आरम्भ परिवार निर्माण से
Type: TEXT
Language: HINDI
...

युग सृजन का आरम्भ परिवार निर्माण से
Type: TEXT
Language: HINDI
...

जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
Type: SCAN
Language: EN
...

समग्र स्वास्थ्य संवर्धन कैसे हो ?
Type: SCAN
Language: EN
...

समग्र स्वास्थ्य संवर्धन कैसे हो ?
Type: SCAN
Language: EN
...

समग्र स्वास्थ्य संवर्धन कैसे हो ?
Type: SCAN
Language: EN
...

समग्र स्वास्थ्य संवर्धन कैसे हो ?
Type: SCAN
Language: EN
...

समग्र स्वास्थ्य संवर्धन कैसे हो ?
Type: SCAN
Language: EN
...

समग्र स्वास्थ्य संवर्धन कैसे हो ?
Type: SCAN
Language: EN
...

समग्र स्वास्थ्य संवर्धन कैसे हो ?
Type: SCAN
Language: EN
...

समग्र स्वास्थ्य संवर्धन कैसे हो ?
Type: SCAN
Language: EN
...

स्फूर्ति और मस्ती से भरा बुढ़ापा
Type: SCAN
Language: EN
...

स्फूर्ति और मस्ती से भरा बुढ़ापा
Type: SCAN
Language: EN
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Articles of Books

  • बच्चों को उत्तराधिकार में धन नहीं गुण दें
  • शिशु निर्माण में अभिभावकों का उत्तरदायित्व
  • बच्चे घर की पाठशाला में
  • शान्ति, स्नेह और सौम्यता के प्यासे बालक
  • बालकों का समुचित विकास आवश्यक
  • बच्चों का पालन पोषण कैसे करें
  • बालकों का विकास इस तरह होगा
  • बालक के निर्माण में माता का हाथ
  • बच्चों को डराया न करें
  • बच्चों में अच्छी आदतें पैदा कीजिए
  • बच्चों को सभ्य-सामाजिक बनाइये
  • बच्चे क्यों झगड़ालू हो जाते हैं?
  • बच्चों को हठी न होने दीजिये
  • बच्चों को अनुशासन कैसे सिखाया जाय?
  • बच्चों के मित्र बनकर उनको व्यवहार कुशल बनाइये
  • बच्चों को व्यवहार कुशल बनाइये
  • बालकों के निर्माण का आधार
  • बालकों की शिक्षा में चरित्र निर्माण का स्थान
  • किशोरों के निर्माण में सावधानी बरती जाय
  • बच्चों की उपेक्षा न कीजिये
  • बाल अपराध की चिन्ताजनक स्थिति
  • बाल अपराध बढ़े तो राष्ट्र गिर जायगा
  • बच्चे अपराधी क्यों बनते हैं?
  • बालकों को अपराधी बनाने वाला—अपराधी समाज
  • क्या दण्ड से बच्चे सुधरते हैं?
  • बच्चों को दण्ड नहीं, दिशायें दें
  • बच्चों का सुधार कैसे हो?
  • बच्चों को समय का सदुपयोग सिखाया जाय
  • बालकों को अनावश्यक सहयोग मत दीजिये
  • बच्चों को अधिक आदेश न दें
  • बच्चे को आज्ञाकारी कैसे बनायें
  • सभ्यता व संस्कृति
  • ज्ञातव्य
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj