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Books - मनचाही सन्तान

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT


माता-पिता की महान् जिम्मेदारी

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जब आप परिवार में एक नये बच्चे को जन्म देकर एक नये नागरिक की अभिवृद्धि करते हैं तब आप अनेक प्रकार की सामाजिक, पारिवारिक एवं वैयक्तिक जिम्मेदारियों की वृद्धि करते हैं। आपके परिवार में आने वाला नया बालक उत्तरदायित्वों का एक पुलन्दा है, जिसे वहन करने के लिए जन्म से पूर्व ही आपको गम्भीरता से विचार कर लेना चाहिए। क्या आपको वास्तव में पुत्र या पुत्री की आवश्यकता है? क्या आप हृदय के गहन तल से पुत्र-पुत्री की कामना करते हैं? क्या आपकी आय इतनी है कि आने वाले बच्चे का व्यय, उसके जन्म, पालन, शिक्षा आदि के खर्चे आप सहन कर सकें? क्या आप की इतनी हैसियत हो चुकी है कि एक नये व्यक्तित्व के आगमन से आपको कोई आर्थिक कठिनाई न होगी? क्या आपके पास इतना बड़ा मकान है कि उसके लिए पृथक प्रबन्ध कर सकें? कुछ माता-पिता यों ही भावुकता के वश में आकर या वासना के तांडव में उन्मत्त होकर या कोरे मनोरंजन मात्र के क्षुद्र क्षणिक आवेशों में फंस कर संतान को जन्म देते हैं, भविष्य के विषय में कुछ भी पूर्व चिंतन नहीं करते। कहीं-कहीं अनचाही सन्तान उत्पन्न हो जाती है। ऐसे अविवेकी असंयमी माता-पिता समाज के भार को बढ़ाते हैं।

सन्तान उत्पत्ति हंसी खेल नहीं हैं, उत्तरदायित्व का गुरुतर भार है। एक सन्तान के उत्पन्न होने के पश्चात् उससे जीवन पर्यन्त मुक्ति नहीं। केवल मृत्यु ही आपके उस भार को हलका करेगी किन्तु ऐसा करने में आपको अनेक भावनाजन्य, मानसिक क्लेशों का सामना करना पड़ेगा। प्रत्येक बच्चे से घरेलू व्यय इतना बढ़ेगा कि आपको अपना पेट काट कर, अपने आप भूखा-प्यासा, उघाड़ा रहकर उसकी आवश्यकताओं का ध्यान रखना होगा। आपका जेब खर्च कम हो जायगा और मनोरंजनों में भी कमी हो जायगी। आपके पांवों में ऐसी बेड़ियां पड़ेंगी, जो मजबूती से आपको संसार के माया मोह से बांधेंगी। लड़के की शिक्षा, पालन-पोषण, रोजगार इत्यादि का प्रबन्ध न होने तक आप उसी से बंधे रहेंगे। यदि पुत्री है तो उसके स्वास्थ्य, शिक्षा, देखभाल और विवाह इत्यादि की चिन्ता आपको घुला डालेगी। माता के लिए तो संतान का भार बहुत गम्भीर अर्थ रखता है। प्रत्येक संतान को जन्म देने पर उसके स्वास्थ्य तथा आयु का आठवां भाग क्षीण हो जाता है। आठ सन्तानों के पश्चात् साधारण रूप में माता की मृत्यु ही समझना चाहिए। एक बार बालक के जन्म के पश्चात् उसका स्वास्थ्य सौन्दर्य वैसा नहीं पनपता, वह अनेक गुप्त रोगों की शिकार हो जाती है। प्रत्येक संतान यौवन को नष्ट कर करती है, सौन्दर्य को म्लान कर कुरूपता बढ़ाती है और बुढ़ापा, कमजोरी, रोग समीप लाती है। मानसिक दृष्टि से चिन्ता, उत्तरदायित्व, आन्तरिक आह्लाद का ह्रास, क्रोध, घृणा, स्वार्थ, कुढ़न की अभिवृद्धि होती है। अंदर ही अंदर माता-पिता अपने बोझ का अनुभव करते हैं और संतप्त रहते हैं। ज्यों-ज्यों संतान बड़ी होती है और माता-पिता की जवानी समाप्त होती है, त्यों-त्यों सन्तान रूपी बोझ खलता है। यदि संयोगवश सन्तान आवारा या दुष्ट प्रवृत्ति की हुई, तो मृत्यु पर्यन्त मनःशान्ति प्राप्त नहीं होती। अतः सन्तान को जन्म देने से पूर्व विवेक बुद्धि, संयम और पर्याप्त विचार कर लीजिए।
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