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Books - मनचाही सन्तान

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT


बच्चों के स्वास्थ्य की समस्याएं

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First 8 10 Last
बच्चों की उन्नति का रहस्य उनका उत्तम स्वास्थ्य ही है। उत्तम स्वास्थ्य की नींव बचपन से ही रखी जाती है। स्वास्थ्य से हमारा अभिप्राय यह है कि बच्चे की पाचन क्रिया दुरुस्त हो तथा मलोत्सक प्रणालियां अच्छी तरह निज कार्य करती रहें। उनके शरीर में स्फूर्ति रहे, कार्य से मन लगे, उनके हृदय में आशा, उत्साह तथा मुख पर मधुर मुस्कान रहे, आत्मा स्वच्छन्द हो, मस्तिष्क तथा ज्ञानेन्द्रियां पवित्र और विकसित रहें।

स्वास्थ्य का सर्वप्रथम नियम है कि बच्चों को जल्दी सोने तथा जल्दी जागने की आदत डाली जाय। यह कठिन है किन्तु धीरे-धीरे अभ्यास से यह आ सकती है। भारत जैसे देश का प्रातःकालीन समय बौद्धिक विकास, मौलिक अध्ययन, एवं चिंतन-मनन के लिए बहुत उत्तम है।

दांतों की सफाई दूसरा प्रधान कार्य है। टूथ पाउडर या दातुन की धीरे-धीरे आदत डालनी चाहिये। तत्पश्चात् तेल की मालिश के साथ स्नान करना चाहिये। इससे शरीर की त्वचा का रंग साफ हो जाता है तथा शारीरिक शक्ति की वृद्धि होती है। नाश्ते में फल, दूध, मीठे आदि उत्तम हैं। यथा सम्भव भोजन पौष्टिक दिया जाय, चाय की आदत न डाली जाय। बचपन से ही सिगरेट की गन्दी आदत पड़ती है जिसकी ओर से सावधान रहें। शरीर और मस्तिष्क की पूर्ण स्वच्छता, रहने के स्थान और उसके इर्द-गिर्द के वायुमण्डल की स्वच्छता, सुखाद्य पौष्टिक भोजन फल, हरी तरकारियां स्वस्थ बनाने में सहायक होते हैं।

कसरत कराया कीजिये—

व्यायाम की आदत प्रारम्भ से ही डालना चाहिये अन्यथा बच्चों में आलस्य, मोटापन, निकम्मापन, झींकना, दुःखी रहना इत्यादि दुर्गुण आ जाते हैं। व्यायाम के अनेक उपाय हो सकते हैं, जैसे खेल कूद, भागना, तैरना, पेड़ों पर चढ़ना, कुश्ती, अंग्रेजी डम्बल या भारतीय योगिक व्यायाम। उन्हें गहरी सांस लेना सिखलाइये। वे नित्य समय पर स्नान करें, मालिश किया करें। ऐसा प्रयत्न करें कि व्यायाम उनके लिये बोझ न बन जाय वरन् वे उसे मनोयोग पूर्वक करें। श्वास सम्बन्धी कसरतें अति उत्तम होती हैं। बलपूर्वक श्वास-प्रश्वास की क्रिया चलने की अपेक्षा तेज चलने, धीरे-धीरे छोड़ने से हृदय और फेफड़ों को बहुत लाभ पहुंचता है।

शुद्ध वायु में रखिये—

बच्चों को समय-समय पर नये नये स्थान, बाग, सरिता के तट पर या स्वस्थ स्थानों पर टहलाने के लिए ले जाया कीजिए। शुद्ध वायु में रखने से उनकी बाढ़ ठीक रहेगी। स्फूर्ति से टहलना चाहिए। छुट्टियों में घर से बाहर ले जाने से बच्चों की परिस्थिति एवं वातावरण में परिवर्तन हो जाता है।

मालिश करना सिखाइये—

यदि किसी व्यायामशाला में जाने की सुविधा हो तो मालिश करना आसानी से हो सकता है। मालिश एक उत्तम व्यायाम है। त्वचा की क्रिया को ठीक रखने के लिये शुष्क घर्षण या स्नान के समय गीले वस्त्र से बदन रगड़ना त्वचा को स्वस्थ रखता है। सुविधानुसार मालिश कराते रहें।

कुछ कराते रहिए—

बच्चे स्वभावतः कुछ न कुछ करते रहते हैं। वे निश्चेष्ट नहीं बैठ सकते। इसलिए आपकी चतुरता और कला इस बात में है कि उनके लिए कुछ ऐसे मनोरंजक कार्य ढूंढ़ निकालें, जिसमें उनकी शक्तियां लग सकें और कुछ उपयोगी कार्य भी हो सके। वे कार्य के भूत होते हैं, उनकी इस उत्पादक शक्ति को कार्य में लाने में ही भलाई है। अधिक कार्य करने से उनकी गुप्त उत्पादक शक्तियों का विकास होता है।

जीवन के सम्पर्क में लाइये—

आपका बच्चा आपके जीवन में बड़ा सहायक और दुःख बटाने वाला बन सकता है यदि वह सुशील और उत्तरदायित्व को समझता है। उसी धीरे-धीरे जीवन, समाज, अपनी आर्थिक और सामाजिक स्थिति का भान करा दीजिये। अपनी शिक्षा प्रेम से सने हुए वाक्यों में दीजिए।

ज्यों-ज्यों वह बड़ा बनता है, त्यों-त्यों उस पर से अपना अधिकार हटाकर मैत्री भाव धारण कीजिये, अर्थात् उसे अपना मित्र मानिये, मातहत नहीं। मित्र का सम्बन्ध रखने से बालक का आत्म विकास निरन्तर अभिवृद्धि को प्राप्त होता रहता है। उसे स्वतन्त्र रूप से विकसित होने का अवसर प्राप्त होगा। प्रेम का ही नियन्त्रण सर्वश्रेष्ठ और स्थायी हो सकता है। बच्चे को स्वाधीन रखकर ही हम उसे जीवन और संसार के उत्तरदायित्व की शिक्षा प्रदान कर सकते हैं। जो निरन्तर छोटी बड़ी बातों में माता-पिता के पथ प्रदर्शन के मुहताज बने रहते हैं, वे अपनी मौलिकता, नीर-क्षीर विवेक शक्ति, स्वतन्त्रता पूर्वक, कार्य करने की क्षमता, नेतृत्व इत्यादि सद्गुणों का विकास नहीं कर पाते हैं। धीरे-धीरे अपना हाथ खींचकर जीवन, समाज तथा सांसारिक उत्तरदायित्व का बोझ बालक पर डालना चाहिए।

बालक जब किशोरावस्था को पार करता हुआ युवावस्था में प्रवेश करता है तो उसके नवीन रक्त में उत्साह खूब होता है, वह बहुत कुछ करना चाहता है बड़ी-बड़ी इच्छाएं और योजनाएं उसके मन में भरी होती हैं, परन्तु अनुभव की कमी के कारण बहुधा उचित मार्ग, उचित साधन एवं उचित कार्यक्रम नहीं अपना पाता फलस्वरूप उसे कई बार असफलता और निराशा का मुख देखना पड़ता है, जिससे उसकी हिम्मत टूट जाती है और भविष्य के लिए कोई महत्वपूर्ण कार्य करने लायक साहस उसमें नहीं रह जाता। इस परिस्थिति के आने देने से पूर्व-अभिभावकों का कर्त्तव्य है कि बच्चों की गतिविधि और विचारधारा का बारीकी से निरीक्षण करते रहें और उन्हें समयानुसार ऐसी सलाह देते रहें कि वे गलत कदम उठाने से बचे रहें। बहुधा अति उत्साह के कारण लड़के अपनी इच्छा को प्रधानता देकर अभिभावकों की सलाह पर कम ध्यान देते देखे गये हैं। ऐसा होने पर भी बुद्धिमान अभिभावकों का कर्तव्य है कि रुष्ट हो बैठने या असहयोग करने की नीति न अपनायें वरन् उसकी भूल को मानसिक दुर्बलता समझ कर क्षमा की भावना से काम लें और उन्हें अनिष्ट से बचाने एवं उचित मार्ग बताने के अपने कर्त्तव्य को सदैव तत्परतापूर्वक पालन करते रहें।
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