• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • भूमिका
    • माता-पिता की महान् जिम्मेदारी
    • बालक के प्रथम तीन वर्ष
    • छः से दस वर्ष की अवस्था तक विकास
    • बच्चों की शक्तियों का विकास कैसे करें?
    • बच्चों की दुर्बलताएं तथा सुधार
    • बच्चों के शौक तथा रुचिकर कार्य
    • बच्चों की शिक्षा
    • बच्चों के स्वास्थ्य की समस्याएं
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • भूमिका
    • माता-पिता की महान् जिम्मेदारी
    • बालक के प्रथम तीन वर्ष
    • छः से दस वर्ष की अवस्था तक विकास
    • बच्चों की शक्तियों का विकास कैसे करें?
    • बच्चों की दुर्बलताएं तथा सुधार
    • बच्चों के शौक तथा रुचिकर कार्य
    • बच्चों की शिक्षा
    • बच्चों के स्वास्थ्य की समस्याएं
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - मनचाही सन्तान

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT


बच्चों की शिक्षा

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 7 9 Last
मन्द बुद्धि बालकों की समस्या सुलझाने के लिये तीन व्यक्तियों को विशेष रूप से सावधान रहने की आवश्यकता है—माता-पिता एवं अध्यापक। इनमें से शिक्षक का उत्तरदायित्व महान् है। उसे देखना चाहिये कि मतिहीनता के क्या-क्या कारण हैं? क्या बच्चा जन्म से ही मूर्ख जन्मा है? क्या वह किसी वस्तु या विषय में रुचि प्रदर्शित करता है? उसे किस बात का विशेष रूप से शौक है? उसकी मतिहीनता का कारण कोई शारीरिक कमजोरी (बीमारी, चोट, गुप्त अंगों में विकार, दांतों का न निकलना, हकलाना, दुबलापन या मोटापन या अन्य इसी प्रकार के रोग) तो नहीं हैं? उसका वातावरण, जिसमें वह निवास करता है उत्साह, नव प्रेरणा, सहानुभूति से परिपूर्ण है या ताड़ना, मारपीट, पराधीनता से भरा है?

मन्दबुद्धि बालकों के लिए साधारण की अपेक्षा अधिक देखरेख, बुद्धिमत्ता पूर्ण व्यवहार तथा सहानुभूति पूर्ण वातावरण की अपेक्षा है। खेद का विषय है कि भौंदू अथवा मन्द बुद्धि बालकों पर कुछ व्यक्ति क्रोध, दुष्टता, शुष्कता, उत्तेजना, मारपीट का व्यवहार रखते हैं। बालक की छोटी अवस्था की यह उपेक्षा उसके भावी व्यक्तित्व पर विषम प्रभाव डालती है। वे यह विस्मृत कर बैठते हैं कि बालक की आवश्यकताएं उसकी पृथक् सत्ता रखती है और उनमें बालक की अन्तःचेतना एवं मनोबुद्धि अन्तर्निहित रहती है। बालक का जीवन, आचार-विचार, कल्पना एवं चिन्तन शक्ति एक अपनी निज की विशेषता लिये हुए होता है। जीवन के प्रति, जगत् के प्रति, प्रकृति के रहस्य लोक के प्रति उसकी बुद्धि सदैव सजग एवं क्रियाशील होती है जिन बातों को आप समझते हैं, क्या वह उनको देखता सुनता या ध्यान नहीं देता? उसका गुप्त मन चुपचाप व कुछ देखा और सुना करता है। बीते हुए जीवन की धुंधली स्मृतियां, वर्तमान के सुखद अथवा दुःखद क्षण, अभिलाषाएं दलित अनुभूतियां अन्तश्चेतना में संग्रहीत होती रहती हैं। बच्चे का चतुर्दिक वातावरण उसके मानसिक पंगु या मन्दबुद्धि का प्रधान कारण होता है। प्रायः देखा गया है कि कुशल मनोवैज्ञानिक शिक्षा प्राप्त अध्यापक अपने व्यवहार तथा वातावरण निर्माण द्वारा बच्चे की आन्तरिक जिज्ञासा को जागृत करने में समर्थ होते हैं।

श्री युधिष्ठर कुमार ने माता पिता का बच्चे को न समझना पर कुशल अध्यापकों के हाथ में आने पर उनमें आश्चर्यजनक परिवर्तनों के कुछ उपयोगी प्रयोगों का वर्णन इस प्रकार किया है—

मोहन बाल्यकाल से ही मन्दबुद्धि था। इस कारण वह साढ़े छह वर्ष की अवस्था में स्कूल में प्रविष्ट हुआ। उसकी माता उसकी अज्ञानता का कारण उसका रोग बताया करती थी। इसी कारण साढ़े छह वर्ष की अवस्था तक वह कुछ न सीख सका। जब उसे स्कूल में दाखिल कराया गया तो उसको दूसरे बच्चों की देखा देखी अनुकरण की प्रवृत्ति उत्तेजित हो उठी। उसके हृदय में भी पढ़ने-लिखने की इच्छा उत्पन्न हुई। एक मास तक उसके अध्यापक ने उस पर परिश्रम किया। फलतः उसकी मन्दबुद्धि दूर हो गई। स्कूल वालों ने मोहन को कभी मन्दबुद्धि नहीं माना, उसके साथ प्रेम तथा सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार किया गया, उसकी उत्सुकता को प्रेम से शान्त किया गया और निरन्तर उसे उत्साहित किया जाता रहा। उसको स्कूल का अच्छा वातावरण प्राप्त होने से उसकी बुद्धि ठीक हो गई। यह सब मौंटेसरी शिक्षा का प्रभाव था।

दूसरा उदाहरण अजीत का है। आठ वर्ष की आयु तक वह कोई अक्षर ज्ञान न प्राप्त कर सका उसके माता पिता ने उसे मन्दबुद्धि समझकर एक मौंटेसरी स्कूल में प्रविष्ट कराया। माता पिता का कथन है कि अजीत की सदैव यही इच्छा रहती थी कि वह खेलता रहे। नये स्कूल में उसे नये मित्र प्राप्त हुए, नया वातावरण मिला, उसे नये-नये खिलौने और सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार मिला फलतः बच्चा चल निकला। उसके अध्यापकों ने बच्चे का मनोवैज्ञानिक अध्ययन किया और उसकी उत्कंठा को जाग्रत करते रहे।

मानसिक परीक्षा कराइये—

माता-पिता तथा अध्यापक का प्रथम कर्तव्य बच्चे के मानसिक तत्वों की परीक्षा है। उनकी भूल यह है कि वे सबको एक ही प्रकार की शिक्षा प्रदान कराना चाहते हैं। कुछ बच्चे पुरानी लकीरों या पद्धति पर नहीं चलते तो उन्हें मन्दबुद्धि कह कर टाल दिया जाता है।

प्रत्येक बच्चे की प्रकृति, मानसिक, शारीरिक तथा बौद्धिक गुण पृथक-पृथक हैं। उन्हें समझने में गलती की जाती है। कुछ व्यक्ति अपनी मानसिक शक्तियों का विकास अपेक्षाकृत विलम्ब से करते हैं। डार्विन जैसे प्रसिद्ध वैज्ञानिक से कौन अपरिचित है? उसकी मूर्खताओं से उसके माता-पिता तथा अध्यापक तंग आगये थे। कुत्ते, बिल्ली, पक्षी, उनके पंख, घोंसले एकत्रित करने के अतिरिक्त उसे कुछ नहीं भाता था। स्कूल में जब दूसरे विद्यार्थी अध्ययन किया करते थे, वह चुपचाप कक्षा से खिसक जाता तथा जंगल में पक्षियों के घोंसले एकत्रित करने में समय व्यतीत करता था। समस्त परिवार तथा स्कूल के लिए उपहास का चिह्न यही डार्विन स्कूल से निकाल दिया गया। बड़े होने पर यकायक उसकी बुद्धि का स्रोत खुल गया और वह महान् व्यक्ति बना। यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि कब किसी बच्चे का बुद्धि विकास यकायक प्रारम्भ हो जायगा? शिक्षण तथा बुद्धि विकास के प्रयत्न निरन्तर जारी रखने में ही बुद्धिमानी है, क्योंकि थोड़ा ही सही, शिक्षण का कुछ न कुछ अलक्षित प्रभाव अवश्य पड़ता रहता है।

आज्ञापालन की आदत—

अनेक बार विद्यार्थियों की अशिष्टता, बुरी आदतों तथा दुष्टताओं पर आपको क्रोध आयेगा, झुंझलाहट और नाराजी से आप उत्तेजित हो उठेंगे, किन्तु शिक्षण के कार्य को आप मारपीट या डंडे के जोर से नहीं कर सकते। ऐसे अवसरों पर आपको क्षमा से कार्य लेना होगा। यदि आप उसका सुधार करना चाहते हैं तो उसका बड़े से बड़ा गुनाह माफ करना होगा। उसके दुर्गुण को घृणा करने के स्थान पर प्रेम कीजिए, उसकी लाचारियों के प्रति सहानुभूति प्रकट कीजिए और उसके सद्गुणों को पर्याप्त प्रोत्साहन प्रदान कीजिए। आप देखेंगे कि बच्चा धीरे-धीरे आपकी आज्ञाओं का पालन करने लगेगा। बच्चा कुछ विकास कर सके इसके लिए यह आवश्यक है कि वह आपकी आज्ञाओं का पालन करे। आज्ञाओं का पालन करना भी एक आदत है, किंतु यह आदत हुक्म, दण्ड या मारपीट की यंत्रणा के बल पर नहीं डाली जा सकती, उसे फुसलाकर, प्रेम और सहानुभूतिपूर्ण सद्व्यवहार द्वारा प्रोत्साहन तथा प्रशंसा के बल पर डाली जा सकती है। बुरी आदत छुड़ाने का सर्वोत्तम उपाय उसके विपरीत अच्छी आदत का विकास करना है।

शिक्षक को चाहिए कि बालकों की व्यक्तिगत कठिनाइयों को समझ कर शिक्षा का कार्य करे। क्लास-शिक्षण से प्रायः साधारण बुद्धि के बच्चों को लाभ नहीं होता है। पिछड़े रहने वाले बच्चे विशेष ध्यान चाहते हैं। चूंकि कक्षा में वे पीछे रहते हैं, उनका मन पढ़ने-लिखने में नहीं लगता। अनेक बालकों का मन पढ़ाई में न लगकर ऐसे कार्यों में लग जाता है, जो समाज के हित का नहीं होता, न वे अपनी शक्तियों का पूर्ण उपयोग ही कर पाते हैं। जिन्हें मूर्ख और गुण्डे दिमाग का कह कर छोड़ दिया जाता है, उन बच्चों को विशेष ध्यान की आवश्यकता रहती है। उनकी बुद्धि के अनुसार ही थोड़ा-थोड़ा ज्ञान देना चाहिए। योग्यता के अनुसार धीरे-धीरे वे पर्याप्त कर लेते हैं।

उद्दण्ड स्वभाव शक्ति सूचक है—

प्रायः देखा गया है कि प्रतिभाशाली बालक उद्दण्ड स्वभाव के होते हैं। उनकी मानसिक शक्ति इधर-उधर प्रकट होने के लिये भिन्न-भिन्न मार्ग चाहती है। यदि इन्हें अच्छे कार्य तथा मार्ग प्राप्त हो जांय तो निश्चय ही विद्वान बन जाते हैं यह ध्यान रखिए कि उसे व्यर्थ के गन्दे बालकों या घृणित कार्यों में समय व्यय करने का अवकाश प्राप्त न हो तथा वह अपने दण्ड से हतोत्साह न हो जाय? जो पढ़ाई लिखाई का कार्य अपना बालक या शिष्य आत्म-स्वीकृति से करता है, उससे उसकी मानसिक शक्तियों का विकास तीव्रता से होता है। चीजों को बनाने में बच्चों को बड़ा आनन्द आता है। खिलौने, तस्वीरें, गुड़िया, घर, मिट्टी की चीजें बालक के जीवन में रचनात्मक आनन्द तो प्रदान करती ही हैं, बालक की बुद्धि का विकास भी करती रहती हैं।

यह शिक्षा सर्वश्रेष्ठ है जो बच्चे के गुप्त आत्म विश्वास को मजबूत करती चलती है। भय से, डंडे के जोर से तिरस्कार एवं घृणा से आत्महीनता की भावना ग्रन्थियां बनती हैं इसके विपरीत प्रोत्साहन, प्रशंसा, मृदु व्यवहार, से बालक का आत्म विश्वास उत्तरोत्तर अभिवृद्धि को प्राप्त होता जाता है। स्मरण रखिए, जिस बालक को अपनी शक्तियों के प्रति अविश्वास हो जाता है, उसकी हर प्रकार की उन्नति रुक जाती है। वह नई बात नहीं सोच सकता। जिन बच्चों में शारीरिक कमजोरियां हों, उनका आत्म विश्वास और भी अधिकता से पुष्ट करना हमारा पुनीत कर्तव्य हो जाता है। ज्यों-ज्यों बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ता है, वह स्कूल का कार्य करने में स्वावलम्बी होता जाता है। बालक की शिक्षा का ध्येय उसे स्वावलम्बी बनाना ही होना चाहिए। अल्प बुद्धि बालक को दूसरे के साथ मिल कर कार्य करने की आदत डालनी चाहिए। शिक्षा में रचनात्मक कार्यों को प्रोत्साहन देना चाहिए।

रचनात्मक कार्यों को प्रोत्साहित कीजिये—

रचनात्मक कार्य क्या-क्या हैं? बच्चों से ऐसे घर तथा बाहर के कार्य कराइये, जिनमें वे दिलचस्पी लेते हैं। उदाहरणार्थ पुस्तकों को ढंग से रखना, कमरे की सफाई, मेकानों से खिलौने बनाना, पुल तथा अन्य वस्तुएं बनाना, कागज को फूलों के रूप में काटना, मिट्टी के खिलौने, चित्रों में रंग भरना, बागवानी करना, तरह-तरह के फूल बेलें लगाना, क्यारियां बनाना, छोटे-छोटे जानवर जैसे कबूतर, तोता, हरिण, कुत्ता, बिल्ली, खरगोश इत्यादि पालना तथा उनकी देखभाल, भोजन की छोटी-मोटी चीजें जैसे कच्चे सलाद बनाना, लड़कियों से सीने पिरोने, काढ़ने, क्रोशिया से बुनने, कपड़ा काटने गुड़िया बनाने, श्रृंगार करने नृत्य संगीत इत्यादि कराना उपकारी है। बच्चे चित्रकारी में विशेष दिलचस्पी रखते हैं बालक की शिक्षा उसके वातावरण को ध्यान में रखकर दी जानी चाहिए। जिस व्यवसाय में बालक को लगाना है, उसी के अनुरूप शुरू से ही उसे चलाना चाहिए। हाथ से काम करने की शिक्षा देने का यही उपयुक्त समय है। उन्हें श्रमजीवी बनाने की चेष्टा करनी चाहिए।

प्रायः यह शिकायत की जाती है कि बालकों में निरन्तर अनुशासन की कमी होती जा रही है। इसका कारण यह नहीं है कि हम प्रारम्भ से ही बच्चों को उचित रीति से अनुशासन में नहीं लेते हैं। प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री श्री लालजीराम लिखते हैं—

‘‘बालकों की उचित शिक्षा के लिये उनके हृदय पर काबू रखना आवश्यक है। पढ़ाई की उचित रीति तथा अनुशासन की अनेक सहायताएं बालकों में शिक्षक के प्रति श्रद्धा होने पर अपने आप हल हो जाती है। यदि शिक्षक प्रत्येक बालक के जीवन से परिचय रखता है, यदि वह प्रत्येक बालक से अलग-अलग समय निकाल कर मिलता रहता है, तो उसे पढ़ाई में कोई भी कठिनाई न होगी और न अनुशासन भंग होने की समस्या सामने आवेगी। जब बालक और शिक्षक के मध्य हृदय की एकता रहती है, तो जो बात शिक्षक कहता है वह उसे ध्यान से सुनता है और उसका ध्यान पढ़ाई में लगा रहता है। वह पढ़ाई के कार्य में आनंद की अनुभूति करता है। अनुशासन की समस्या उसके सामने नहीं आती। उद्दण्ड बालक भी शिष्ट बन जाते हैं। प्रेम सभी प्रकार के रोगों का निवारण करने की रामबाण दवा है। यदि शिक्षक और बालक के बीच प्रेम है, तो उद्दण्डता को कोई स्थान नहीं मिलता।’’
First 7 9 Last


Other Version of this book



मनचाही सन्तान
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books



Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

बलि वैश्व
Type: TEXT
Language: HINDI
...

बलि वैश्व
Type: TEXT
Language: HINDI
...

युग सृजन का आरम्भ परिवार निर्माण से
Type: TEXT
Language: HINDI
...

जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
Type: SCAN
Language: EN
...

जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
Type: SCAN
Language: EN
...

समग्र स्वास्थ्य संवर्धन कैसे हो ?
Type: SCAN
Language: EN
...

समग्र स्वास्थ्य संवर्धन कैसे हो ?
Type: SCAN
Language: EN
...

समग्र स्वास्थ्य संवर्धन कैसे हो ?
Type: SCAN
Language: EN
...

समग्र स्वास्थ्य संवर्धन कैसे हो ?
Type: SCAN
Language: EN
...

युग यज्ञ पद्धति - दीप यज्ञ
Type: SCAN
Language: HINDI
...

युग यज्ञ पद्धति - दीप यज्ञ
Type: SCAN
Language: HINDI
...

स्फूर्ति और मस्ती से भरा बुढ़ापा
Type: SCAN
Language: EN
...

स्फूर्ति और मस्ती से भरा बुढ़ापा
Type: SCAN
Language: EN
...

मित्रभाव बढ़ाने की कला
Type: SCAN
Language: HINDI
...

मित्रभाव बढ़ाने की कला
Type: SCAN
Language: HINDI
...

बच्चों के शासक नहीं सहयोगी बनें
Type: SCAN
Language: EN
...

बच्चों के शासक नहीं सहयोगी बनें
Type: SCAN
Language: EN
...

बच्चों के शासक नहीं सहयोगी बनें
Type: SCAN
Language: EN
...

बच्चों के शासक नहीं सहयोगी बनें
Type: SCAN
Language: EN
...

उनसे - जो पचास के हो चले
Type: SCAN
Language: HINDI
...

उनसे - जो पचास के हो चले
Type: SCAN
Language: HINDI
...

सार्थक एवं आनंदमय वृद्धावस्था
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Articles of Books

  • भूमिका
  • माता-पिता की महान् जिम्मेदारी
  • बालक के प्रथम तीन वर्ष
  • छः से दस वर्ष की अवस्था तक विकास
  • बच्चों की शक्तियों का विकास कैसे करें?
  • बच्चों की दुर्बलताएं तथा सुधार
  • बच्चों के शौक तथा रुचिकर कार्य
  • बच्चों की शिक्षा
  • बच्चों के स्वास्थ्य की समस्याएं
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj