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ईश्वरचंद्र विद्यासागर का जीवन
भगवान की कृपा खाई नहीं जा सकती। भगवान की कृपा के आधार पर मैं लोगों से बताता रहता हूँ, भाई, तुम्हें भगवान की कृपा से फायदा कराना हो तो इसकी अपेक्षा तो ये अच्छा है कि तुम नौकरी कर लो, धंधा कर लो। नहीं साहब, उसमें कम फायदा होता है। तो बेटे, चोरी कर ले। चल, चोरी करेगा, छह महीने की सजा तो हो जाएगी, तुझसे पिण्ड तो छूटेगा। भगवान की कृपा से ले करके नहीं। बेटा, भगवान की कृपा से लिया हुआ जो है, नहीं साहब, परमार्थ के लिए होता है, लोकहित के लिए होता है। उससे जो मिलती है, उससे भगवान की कृपा से सुख नहीं मिला है, शांति मिली है। हर एक को सुख नहीं मिला है, किसी को शांति मिली है। सुख किसी को नहीं मिला है, शांति मिली है। ये शांति की जरूरत हो तो भगवान की कृपा के चक्कर में फंस और तुझे सुख की जरूरत हो तो भगवान से दूर रह। भगवान से दूर रह। भगवान से दूर रहने वालों को जितने भी तेरे पास सुख दिखाई पड़ते हैं, हर आदमी सांसारिक दृष्टि से हर आदमी गरीब दिखाई पड़ते हैं, कंगाल दिखाई पड़ते हैं। तो महाराज जी, कंगाल कर देते। हाँ, नहीं बेटे, कंगाल नहीं कर देता, पर ये बात है कि क्योंकि मन इतने उदार हो जाते हैं कि वो खा नहीं सकते, खिला सकते हैं। खा नहीं सकते, खिला के रहते हैं।
ईश्वरचंद्र विद्यासागर को 500 रुपये महीने की नौकरी मिलती थी। 500 रुपये महीने में से जब 500 रुपये सामने आते तो उनको वो अपनी जिंदगी के दृश्य खड़े हो जाते कि हम आखों के, हमको बिजली की अभाव में, रोशनी के अभाव में, सड़क के किनारे खड़ा होना पड़ता था। सड़क के किनारे वाली जो बत्तियाँ जलती हैं, उसके नीचे से किताब पढ़नी पड़ती थी। तो सारे विद्यार्थी जो सड़क के किनारे खड़े होते थे, आ के आगे खड़े हो जाते थे। पिता जी, आपको तो 500 रुपये तनख्वाह मिलती है, 500 रुपये तनख्वाह मिलती है, 500 रुपये तनख्वाह मिलती है। तो देखिए, जब आप पढ़ा करते थे और आपके पास चार आने महीने अगर होते तो आप देखिए, मिट्टी के तेल की बत्ती लेकर के अपने घर पे पढ़ सकते थे। चार आने महीने का आपके पास इंतजाम नहीं था। हाँ बेटे, नहीं था हमारे पास, इसीलिए तो आप सड़क पर पढ़ते थे। हाँ, सड़क पर पढ़ते थे। तो हमारी भी वही हालत है। आज आप हमको मदद नहीं कर सकते, उसमें से बच्चे आ करके सामने उनके खड़े हो जाते और ये कहते कि हमारी मदद कीजिए, हमारी मदद कीजिए।
बस, ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने निश्चय कर लिया था, हम 50 रुपये महीने से अपना गुजारा करेंगे और 450 रुपये महीना उन लोगों के लिए सुरक्षित रखेंगे जिनको, जिनको फीस की जरूरत है, जिनको किताबों की जरूरत है, जिनको दूसरी चीजों की जरूरत है। हजारों आदमी आ करके लाभ उठाते रहते और अपने 50 रुपये में अपना गुजारा करते रहते हैं। महाराज जी, ये तो गरीब है, अमीर तो नहीं बना। नहीं बेटे, अमीर नहीं बना सकता। संत अमीर नहीं हो सकते। भगवान के भक्त के हिस्से में अमीरी नहीं आई है। अमीर, अमीर बना तो सकता है, पर स्वयं अमीर नहीं हो सकता।