अपने वचन का पालन करिए!
आत्म-सम्मान को प्राप्त करने और उसे सुरक्षित रखने का एक ही मार्ग है, वह यह कि-’ईमानदारी’ को जीवन की सर्वोपरि नीति बना लिया जाये। आप जो भी काम करें, उसमें सच्चाई की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए, लोगों को जैसा विश्वास दिलाते हैं, उस विश्वास की रक्षा कीजिए। विश्वासघात, दगा करना, वचन पलटना, कुछ कहना और कुछ करना, मानवता का सबसे बड़ा पातक है।
आजकल वचन पलटना एक फैशन सा बनता जा रहा है। इसे हलके दर्जे का पाप समझा जाता है पर वस्तुतः अपने वचन का पालन न करना, जो विश्वास दिलाया है उसे पूरा न करना बहुत ही भयानक, सामाजिक पाप है। धर्म-आचरण की अ, आ, इ, ई, वचन पालन से आरंभ होती है। यह प्रथम कड़ी है जिस पर पैर रखकर ही कोई मनुष्य धर्म की ओर, आध्यात्मिकता की ओर, बढ़ सकता है।
आप जबान से कहकर या बिना जबान से कहे या किसी अन्य प्रकार दूसरों को जो कुछ विश्वास देते हैं, उसे पूरा करने का शक्ति भर प्रयत्न कीजिए, यह मनुष्यता का प्रथम लक्षण है। जिसमें यह गुण नहीं, सच्चे अर्थों में मनुष्य नहीं कहा जा सकता और न उसे वह सम्मान प्राप्त हो सकता है जो एक सच्चे मनुष्य को होना चाहिए।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति अक्टूबर 1943 पृष्ठ 1
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