इन तीन का ध्यान रखिए (भाग 2)
इन तीनों को त्याग दीजिए- कुढ़ना, बकझक और हँसी मजाक।
(1) कुढ़ना एक भयंकर मानसिक विकार है। इससे मनुष्य की शक्ति का ह्रास, चिंता और व्यग्रता में वृद्धि होती है। निश्चयबल का क्षय होता है और अपने प्रति अविश्वास उत्पन्न होता है। कुढ़ने का अभिप्राय है हीनत्व की भावना से ग्रसित होना। यह उसी की प्रतिक्रिया है। मनुष्य के किए जब कुछ नहीं होता, तो वह कुढ़ता है। यही मानसिक व्याधि विकसित होने पर नैराश्य का रूप धारण कर लेती है।
(2) व्यर्थ की बकझक से मनुष्य का थोथापन प्रकट होता है। बातूनी व्यक्ति जबानी जमा खर्च में चतुर होता है, ठोस कर्म कम करता है क्योंकि बकझक ही में शक्ति नष्ट हो जाती है।
(3) अनियंत्रित हँसी मजाक आत्मिक दृष्टि से गर्हित है। गन्दा हँसी मजाक कटुता का रूप धारण कर लेता है। इससे मनुष्य की गुप्त वासना का पर्दाफाश होता है। अतः इन तीनों को-कुढ़ना, व्यर्थ की बकझक और अनियंत्रित हँसी मजाक की अधिकतर आदतों को त्याग देना उचित है।
इन तीनों को ग्रहण कीजिए- चरित्र के उत्थान एवं आत्मिक शक्तियों के उत्थान के लिए इन तीनों सद्गुणों- होशियारी, सज्जनता और सहनशीलता- का विकास अनिवार्य है।
(1) यदि आप अपने दैनिक जीवन और व्यवहार में निरन्तर जागरुक, सावधान रहें, छोटी छोटी बातों का ध्यान रखें, सतर्क रहें, तो आप अपने निश्चित ध्येय की प्राप्ति में निरन्तर अग्रसर हो सकते हैं। सतर्क मनुष्य कभी गलती नहीं करता, असावधान नहीं रहता। कोई उसे दबा नहीं सकता।
(2) सज्जनता एक ऐसा दैवी गुण है जिसका मानव समाज में सर्वत्र आदर होता है। सज्जन पुरुष वन्दनीय है। वह जीवन पर्यंत पूजनीय होता है। उसके चरित्र की सफाई, मृदुल व्यवहार, एवं पवित्रता उसे उत्तम मार्ग पर चलाती हैं।
(3) सहनशीलता दैवी सम्पदा में सम्मिलित है। सहन करना कोई हँसी खेल नहीं प्रत्युत बड़े साहस और वीरता का काम है केवल महान आत्माएँ ही सहनशील होकर अपने मार्ग पर निरन्तर अग्रसर हो सकती हैं। इनके अतिरिक्त इन तीन पर श्रद्धा रखिये-धैर्य, शान्ति, परोपकार।
.... क्रमशः जारी
अखण्ड ज्योति फरवरी 1950 पृष्ठ 13
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