आत्मचिंतन के क्षण
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संसार में बहुत से प्राणी हैं। बड़े विचित्र विचित्र प्राणी हैं, मछलियां, चमगादड़, गिरगिट इत्यादि। इनमें से जो गिरगिट है, परमात्मा ने उसको ऐसी शक्ति और कला दी है, कि जब उसे कहीं पर अपनी जान का खतरा दिखता है, तो वह अपने आसपास की रंगीली वस्तुओं के समान ही, अपने रंग भी बना लेता है। अर्थात खतरे की स्थिति में वह रंग बदलता है। जो परमात्मा ने उसको एक अच्छी कला दी है। इसका वह अपनी रक्षा के लिए उपयोग करता है।
परंतु एक छली कपटी बेईमान धूर्त मनुष्य तो अपनी रक्षा के लिए रंग नहीं बदलता। वह तो जब भी अवसर लगे, लूट झपट चालाकी धोखाधड़ी बेईमानी ठगी कुछ भी करना हो, दूसरे को कमजोर, मजबूर या अज्ञानी देखकर तुरंत रंग बदलता है। वह अपने स्वार्थ एवं मूर्खता के कारण रंग बदलता है, अपनी रक्षा के लिए नहीं। जब कि ईश्वर ने उसे वेदो में सावधान भी कर रखा है कि तुम लूटपाट चोरी चालाकी ठगी बेईमानी आदि पाप कर्म मत करना, ईमानदारी से जीना।
फिर भी मनुष्य कितना विचित्र प्राणी है कि पशु-पक्षियों, कीड़े मकोड़े आदि प्राणियों से भी गया गुजरा है। वह अपने स्वार्थ और मूर्खता के कारण कदम कदम पर रंग बदलता है। ऐसे मनुष्यों को ही ईश्वर अगले जन्मों में दंड देता है, और शेर भेड़िया मछली साँप बिच्छू गिरगिट चमगादड़ आदि विचित्र योनियों में जन्म देकर दुख देता है।
ये कीड़े मकोड़े पशु पक्षी तो बेचारे अपने पिछले पापों का दंड भोग ही रहे हैं। बुद्धि कम होने से ये बेचारे समझ नहीं पा रहे, कि हम अपने पिछले पापों का दंड भोग रहे हैं। परंतु मनुष्य में इतनी तो बुद्धि है कि वह इन प्राणियों को देखकर ही सीख जाए, कि मैं पाप न करूँ, अन्यथा मुझे भी इन कीड़े मकोड़े आदि प्राणियों की तरह से विभिन्न योनियों में दुख भोगने पड़ेंगे। ईश्वर सबको सद्बुध्दि देवे। सब लोग अच्छे काम करें, तथा अपने वर्तमान एवं भविष्य का सुधार करें।
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