What is Spirituality ?
Spirituality deals with enlightening one's thoughts, emotions and intrinsic tendencies. In simple terms it is the most evolved and comprehensive science of psychological, sociological and moral development, and ultimate progress. It brightens the intellect together with inculcation of sensitivity towards fellow beings and towards the grace of Nature. There is no place for superstitions, fantasy or escapism in a truly spiritual life. Spiritual progress in no way blocks scientific and materialistic progress. In fact, it gives altruistic touch and prudent directions to both so that progress will not be focused only towards increase in luxurious comforts and worldly profits;
it will not enrich and empower only some privileged ones. Scientific and materialistic progress guided by spirituality would lead to a holistic growth whose benefits would reach out to the whole of humanity and which will not result in any counter-effects in future. Spirituality can and should be adopted on every front of life for elevating happiness and illuminating the future.
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सद्भावना ही श्रेष्ठ है।
आपरा की सद्भावना अनिवार्य है। हर परस्पर सन्देह और संशय करके तो भय को ही उत्पन्न करेंगे और एक दूसरे का हास और अन्ततः नाश ही करेंगे। हमें आपस में विचार करना सीखना होगा। विश्वास की भित्ति पवित्रता है ...
सद्भावना ही श्रेष्ठ है। (अंतिम भाग)
जो व्यवहार हम चाहते हैं कि लोग हमसे करें, वैसा व्यवहार हमें स्वयं भी औरों से करना चाहिए। कोई नहीं चाहता कि उससे छल हो तो वह स्वयं किसी को क्यों छले? प्रायः लोग अपने से तो भला व्यवहार चाहते हैं पर द...
इस आपत्ति−काल में हम थोड़ा साहस तो करें ही! (भाग 1)
क्रिया या कलेवर एक जैसे होने पर भी व्यक्तियों की वास्तविकता एक जैसी नहीं हो सकती। किसी ऐतिहासिक व्यक्ति की फिल्म बनाने वाले सुरत का आदमी ढूँढ़ निकालते हैं और उससे ऐक्टिंग भी वैसा ही करा लेते हैं। इ...
10% का हक
एक बहुत अमीर आदमी ने रोड के किनारे एक भिखारी से पूछा.. "तुम भीख क्यूँ मांग रहे हो जबकि तुम तन्दुरुस्त हो...??"
भिखारी ने जवाब दिया... "मेरे पास महीनों से कोई काम न...
इस आपत्ति−काल में हम थोड़ा साहस तो करें ही! (भाग 2)
वर्तमान साधु−ब्राह्मणों का दरवाजा खटखटाते हमें एक युग बीत गया। उन्हें नीच−ऊँच समझाने में जितना श्रम किया और समय लगाया, उसे सर्वथा व्यर्थ चला गया ही समझना चाहिए। निराश होकर ही हमें इस नत...
इस आपत्ति−काल में हम थोड़ा साहस तो करें ही! (भाग 3)
साधु−संस्था को पुनर्जीवित करने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं, जिसके सहारे आपत्ति ग्रस्त मानवता की प्राणरक्षा की जा सके। समस्याओं के काल−पाश में गर्दन फंसाये हुए इस सुन्दर विश्व को मरण से...
इस आपत्ति−काल में हम थोड़ा साहस तो करें ही! (भाग 4)
पुरे समय के लिए तत्काल भावनात्मक नव−निर्माण को ब्राह्मणोचित परम्परा का निर्वाह करने के लिए हर किसी को नहीं कहा जा सकता। जिनने पारिवारिक उत्तरदायित्व पूरे कर लिये हैं, उन्हें वानप्रस्थ में प्र...
इस आपत्ति−काल में हम थोड़ा साहस तो करें ही! (अन्तिम भाग)
संन्यास के आदर्श बहुत ऊँचे हैं। उन्हें निबाहना पूरा समय देने वाले शिथिल प्रकृति मनुष्यों के लिए सम्भव नहीं। इसके प्रतिबन्ध बड़े हैं। भिक्षाटन आज की स्थिति के उपयुक्त नहीं रहा। जिस-तिस का जैसा-तैसा ...
विचार शक्ति के चमत्कार:-
विचार अपने आप में एक चिकित्सा है। शुभ कामना, सत्परामर्श रूपी विचारों का बीजारोपण यही प्रयोजन सिद्ध करते हैं। विचार संप्रेषण, विचारों से वातावरण का निर्माण, विचार विभीषिका इसी सूक्ष्म विचार शक...
मजबूत आधारशिला रखना है
युग निर्माण योजना की मजबूत आधारशिला रखे जाने का अपना मन है। यह निश्चित है कि निकट भविष्य में ही एक अभिनव संसार का सृजन होने जा रहा है। उसकी प्रसव पीड़ा में अगले दस वर्ष अत्यधिक अनाचार, उत्पीड़न, दैवी...