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Magazine - Year 1951 - Version 2

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बचे हुए समय का उपयोग कैसे होना चाहिए?

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First 15 17 Last
परिवार के स्त्री-पुरुष दोनों को कुछ न कुछ फालतू समय मिलता है। जिसका उपयोग आलस्य हँसी-ठट्ठा या चुगली गपशप में किया जाता है। हमारे परिवारों में समय का मूल्य नहीं समझा जाता है। पुरुष प्रायः आर्थिक समस्याओं में उलझे हुए गृह से बाहर रहते हैं। स्त्रियाँ भोजनोपरान्त या तो सो जाती हैं, या घर में बैठकर व्यर्थ की टीका टिप्पणी, परछिद्रान्वेपण, बुराई निकालना, चबोड़, लड़ाई-झगड़ों, बच्चों की देख−रेख, चौपड़ खेलने में समय नष्ट करती हैं।

आज का युग हमें पुकार-पुकार कर चेतावनी दे रहा है, “उठो, तन्द्रा छोड़ो, जागों और अपनी उन्नति के लिए प्रत्येक क्षण का समुचित प्रयोग करो। देखो प्रत्येक परमाणु आगे बढ़ रहा है, उन्नति करने के लिए उद्योग कर रहा है। व्यर्थ की सुस्ती, आलस्य या व्यर्थ की टीका टिप्पणी में समय नष्ट करने का किसे अवकाश है? यहाँ तो प्रत्येक पल उन्नति के लिए लगाना है। जब विश्व को कण-कण प्रगतिशील है, तो क्या आप व्यर्थ ही सोते रहेंगे? क्या अपना समय हम व्यर्थ नष्ट कर देंगे?

दैनिक कार्यक्रम-

परिवार के स्त्री वर्ग का उत्तरदायित्व अधिक है। अब युग उन्नति करने का है। प्रत्येक पल को उचित उपयोग कर निरन्तर अग्रसर होने का है। प्रत्येक प्रगतिशील परिवार के स्त्री-पुरुष को चाहिए कि दिनभर का कार्यक्रम दिन प्रारम्भ होने से पूर्व तैयार कर ले। यदि दिन प्रारम्भ हो जायेगा, तो इतना अवकाश प्राप्त न होगा कि यह सोचा जा सके कि आज कौन-कौन सा महत्वपूर्ण कार्य करना है। चतुर विद्यार्थी, व्यापारी, अध्यापक, इंजीनियर, ठेकेदार रात्रि में दूसरे दिन के लिए कार्यक्रम तैयार करते हैं। स्त्रियों को भोजन बनाना, नित्यकर्म, घर की सफाई और शिशु पालन का समय निकाल कर कुछ फुरसत का अवकाश निकालना चाहिए।

पुरुषों को रात्रि में दो घण्टे और स्त्रियों को 9 घंटे फालतू समय बचता है। इसमें से भी दो घण्टे बरबाद कर दिए जाये, तो आसानी से छः सात घण्टे का समय स्त्री के पास बचा रहता है। अवकाश निकालना या न निकालना हमारी इच्छा और सद् संकल्प की बात है। प्रायः पुरुष अपने मित्रों का, और स्त्रियाँ अपने सैकड़ों कार्यों का जिक्र करती हैं। कहती हैं-”क्या बताएँ! हमें तो दम मारने की फुरसत नहीं मिलती। सारा दिन धाँय-धाँय करते योंही निकल जाता है। जिन्दगी में कुछ मिठास ही नहीं रह गया है। सारे दिन चौका-चूल्हा ही लगा रहता है। इस प्रकार के असत्य और मिथ्या भाषण अशिक्षित आलसी और उन्नति न करने वाली औरतों के बहाने हैं।

अवकाश का सदुपयोग -

सर्वप्रथम प्रत्येक परिवार का यह कर्त्तव्य होना चाहिए कि घर की जितनी नारियाँ निरक्षर हो, उनको साक्षर बनाया जाये। बेपढ़ा लिखा होना सबसे बड़ा अभिशाप है। यदि पति, भाई या घर का और कोई सदस्य शिक्षित है, तो उसे घर से विद्या-दान का कार्य करना चाहिए। आज के युग में विद्या प्राप्ति के साधन इतने सुलभ और सस्ते हैं, जैसे किसी भी युग में न थे। पुस्तकें, मासिक-पत्र, स्टेशनरी, कागज इत्यादि अत्यन्त सस्ते में ही प्राप्त हो जाते हैं। समाचार-पत्रों की सुविधा थोड़े ही पैसों में हो जाती है। मासिक पत्रिकाएँ प्रत्येक स्थान पर सुलभता पूर्वक ली जा सकती हैं। पास-पड़ौस से माँग कर भी इनका उपयोग किया जा सकता है।

परिवार में आने वाले समाचार-पत्रों या पत्रिकाओं का चुनाव बड़ी सतर्कता से होना चाहिए। आजकल सिनेमा से सम्बन्धित अश्लील, सुरुचिपूर्ण, कामोत्तेजित पुस्तकें और पत्रिकाएं ढेर की ढेर मिलती हैं। इनके मायाजाल में कदापि न फँसिये। स्त्रियों के लिए मासिक-पत्रिकाओं में शाँति, ‘दादी’ ‘मनोरमा’, ‘कला’, ‘भारती’, ‘सरस्वती’ कोई भी चुनी जा सकती है। उच्च मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक जीवन से सम्बन्धित पत्रिकाओं में ‘अखण्ड ज्योति’ कल्याण, कल्प वृक्ष, ‘शाँति संदेश, ‘आरोग्य’ इत्यादि पत्र मँगाने चाहिए। एक दैनिक पत्र ‘हिन्दुस्तान’ या ‘वीर अर्जुन’ इत्यादि मँगवाया जा सकता है। परिवार में एक छोटा सा घरेलू पुस्तकालय अवश्य होना चाहिए जिसमें मानव-जीवन को ऊँचा उठाने वाले सद्ग्रन्थों का चुनाव रहे।

जो परिवार अच्छी स्थिति में हैं, उन्हें घर के लिए एक मास्टर की योजना रह सकती है, जो प्रशिक्षितों को अक्षर ज्ञान करा कर उच्च स्थिति में पदार्पण कर सके। परिवार स्वयं एक पाठशाला है, जिसमें प्रत्येक सदस्य को प्रेम और उत्तरदायित्व की शिक्षा प्राप्त होती है। फिर क्यों न शिक्षा का विधिवत पालन किया जाये।

शिक्षा के जिस महान कार्य को आप पूर्ण करना चाहते हैं, उसे छोटे से प्रारम्भ कीजिए। एक छोटे से भाग को हाथ में लीजिए और उस भाग को पूरी सावधानी से, दिलचस्पी और लगन से दृढ़ता पूर्वक करने का प्रयत्न कीजिए। जब आप परिवार से शिक्षा की बात कहेंगे, तो वे सम्भव है इसे पहले न पसंद करें पर बाधाओं से मत घबराइये। इस पुण्य कार्य को मत त्यागिये वरन् जैसे भी बन पड़े थोड़ा बहुत समय उस कार्य के निमित्त नित्य लगाते रहिए। नियमित रूप से कुछ पढ़ाने-लिखाने, कविता पाठ कराने, खेल-कहानी, समाचार-पत्र पढ़ाने से साधारण योग्यता अवश्य प्राप्त की जा सकती है। पहले एक सदस्य की, फिर उसकी सहायता से दूसरे तीसरे और चौथे को शिक्षित कीजिए। जिस आदमी को एक बार अपनी योग्यता पर विश्वास हो गया, वह बड़े कठिन कामों में हाथ डालने लगता है और बड़े से बड़े कार्यों को सुगमता से सम्पन्न कर डालता है।

विद्या ही आत्मा का भोजन है। फालतू समय का उपयोग सात्विक ज्ञान संचय, पुस्तक पढ़ने, अखबारों से संसार की घटनाओं के विषय में जानने, मासिक पत्रों के अध्ययन में व्यतीत होना चाहिए। पहले पुस्तकें, कहानियाँ, कविताएँ, उपन्यास इत्यादि पढ़ने की अभिरुचि उत्पन्न कीजिए। तत्पश्चात क्रमशः कठिन और गंभीर विषयों की ओर अग्रसर हूजिए। आध्यात्म, मनोविज्ञान इत्यादि गम्भीर विषयों का अध्ययन करने से मानव जीवन के ज्ञान का सम्पूर्ण भाग प्राप्त किया जा सकता है।

ज्ञान प्राप्ति के अन्य साधन -

स्वाध्याय से ज्ञान बढ़ता है। जो व्यक्ति पुस्तकें पढ़ता है, वह उच्चतम ज्ञान के साथ अटूट सम्बन्ध स्थापित करता है। सुशिक्षा, विद्या, विचारशीलता, समझदारी, सुविस्तृत जानकारी अध्ययन, चिन्तन, ममन, सत्संग तथा दूसरों के अनुभव द्वारा हम में से प्रत्येक व्यक्ति अपने आपको सुसंस्कृत बना सकता है। मनुष्य स्वयं अनेक शक्तियों को लेकर भूतल पर अवतरित हुआ है। जन्म से प्रायः हम सब समान ही हैं। अंतर केवल विकास का ही है। स्वाध्याय द्वारा ही हमारा विकास सम्भव है। स्कूल कालेज में भी केवल स्वाध्याय करने के उचित साधन उपस्थित फिर जाते हैं। स्वाध्याय अर्थात् स्वयं अपने परिवार और उद्योग से शिक्षित होकर संसार में महात्मा, भक्त, ज्ञानी, तपस्वी, त्यागी, गुणी, विद्वान्, महापुरुष, नेता, देवदूत, पैगम्बर तथा अवतार हुए हैं। ज्ञान ने ही मनुष्य को तुच्छ पशु से ऊँचा उठाकर एक सुदृढ़ असीम शक्तिपुँज नानादैवी सम्पदाओं तथा कृत्रिम साधना से सम्पन्न अधीश्वर बनाया है। जीवन का सुख इस विद्याबल पर ही बहुत हदतक निर्भर है। ज्ञान प्राप्ति के कुछ उपाय ये है -

1- विद्वानों के भाषण में, प्रवचनों को ध्यान से सुनना और उनके अनुसार आचरण करना। सुनकर ज्ञान की अभिवृद्धि।

2- विद्वानों से अपनी शंकाओं का समाधान करना अर्थात् प्रश्न पूछना।

3- उत्तम ग्रन्थों का पठन-पाठन। उन्हें स्मरण रखना, मस्तिष्क का एक भाग बनाना।

4- ज्ञान का विस्तारण। दूसरे को देने से विद्याबल बढ़ता है।

5- स्वयं विचार करना, जगत, संसार, मानव स्वभाव तथा आदतों पर विचार करना।

6-आत्म निरीक्षण।

7- उपदेश ग्रहण किसी के उपदेश की सत्यता की जाँच लोग उनके आचरण से ही करेंगे। इसलिए यदि ज्ञानी पुरुष स्वयं कर्म न करेगा, तो वह सामान्य लोगों को आलसी बनाने का एक बहुत बड़ा कारण बन जायेगा।

शिक्षित स्त्रियाँ पति को आर्थिक सहायता देने के लिए छोटी मोटी नौकरी भी कर सकती है। उसके लिए 1-अध्यापिका 2-नर्स 3- डाक्टरनी 4-सम्पादिका, लेखिका तथा कहानीकार 5-शिशु संस्थाओं की देखभाल 6-उद्योग मंदिरों में कार्य सिखलाने का काम कर सकती हैं। शिक्षा के क्षेत्र में स्त्रियों की नितान्त आवश्यकता है। कुमारी अध्यापिकाओं से विवाहित अध्यापिकाएँ तथा लेडी प्रोफेसर अधिक चतुर और अनुभवी समझी जाती है। बाल मंदिरों में शिशुओं की देखभाल के लिए शिक्षित मनोविज्ञान वेत्ता स्त्रियों की बेहद जरूरत है। स्त्रियों के शफाखानों में प्रसूत-ग्रहों में लेडी डाक्टरनियों की तथा चतुर नर्सों की आवश्यकता है। सरकार के दफ्तरों, पोस्ट ऑफिसों तथा रेलवे में टिकट चेक करने के लिए स्त्रियों की आवश्यकता है। जो बहिनें अपने चरित्र की दृढ़ता में विश्वास करती हैं और साधारण से ऊँची है, उन्हें विवेक पूर्ण ढंग से घर की आर्थिक सहायता प्रदान करनी चाहिए।

घर में ऐसे अनेक उद्योग धन्धे हैं, जिन्हें आप अपने पति की सहायता से घर में कर सकती हैं। देशी-विदेशी हर प्रकार के सुगन्धित तथा सादे तेल, इत्र, एसेन्स, वेसलीन, स्नो. क्रीम, हैजलीन, ओटो दिलबहार, फलों के शर्बत इत्यादि की कुछ शिक्षा प्राप्त कर सकती हैं। देशी जड़ी-बूटियों से भिन्न-भिन्न प्रकार के रंग बनाना, कपड़े रँगना, कपड़े सीने का काम, फूल-पत्ती काढ़नाभी चलाये जा सकते हैं। थोड़ी पूँजी से घर में प्रिंटिंग प्रेस चलाया जा सकता है, जिसमें स्त्रियाँ कम्पोजिंग, कटाई, छपाई, जिल्दसाजी, लिफाफे बनाना, लेटरपैड तैयार करने का कार्य किया जा सकता है।

यदि आपके पास थोड़ी सी भूमि है तो दो पेशे और भी शुरू किये जा सकते हैं। (1) बागवानी-घर के लिए सब्जी उगाना, पुष्प उत्पन्न करना, गमलों में कमल इत्यादि लगाना, छोटे फल उत्पन्न करना बड़ा लाभप्रद मनोरंजन है। (2) दूध का व्यवसाय-तीन-चार गाय भैंस पाल कर, दूध, घी और मक्खन का काम चलाया जा सकता है। दूध-घी का कार्य तो स्त्रियों के हाथ में सफलता से दिया जा सकता है। इसके अतिरिक्त अगरबत्ती बनाना, दियासलाई, बीड़ी इत्यादि के काम भी चलाये जा सकते हैं। दरवाजों तथा खिड़कियों पर लगाने का पैन्ट घर में बनाया जा सकता है। पंजाब में अनेक दुकानें पापड़ का ही व्यवसाय कर हजारों का लाभ उठाती हैं। पापड़ों के साथ वे कुरेरी, बड़ियों तथा अन्य इसी प्रकार की वस्तुएँ घर पर तैयार कर सकती हैं। रँग का काम भी उनके हाथ की बात है। मोमबत्ती का व्यापार थोड़े पैसे से घरों में प्रचलित किया जा सकता है। आतिशबाजी का सामान तैयार करने के लिए थोड़ी सी सामग्री-शोरा, गन्धक, पोटाश बारूद इत्यादि की आवश्यकता पड़ती है। इसके अतिरिक्त थोड़े से परिश्रम से डबल रोटी बनाना सीख सकती हैं। चारपाई बुनना, निवाड़ तैयार करना, चर्खा कात कर सूत तैयार करना, गले बुनना, टोकरियाँ तैयार करना, चिकें, दरिया इत्यादि तैयार करना-घरों में किए जाने वाले कुछ उद्योग धन्धे हैं।

आजकल पाश्चात्य देशों की महिलाओं के कार्यकलाप देखकर दंग हो जाना पड़ता है। हम वहाँ की उच्छृंखलता को खतरनाक समझते हैं, किन्तु सदाचार और नैतिकता हमारे चरित्र के अंग हैं। हमें सतर्कता से उनके परिश्रम तथा प्रशस्त गुणों को अपनाना चाहिए। परिश्रम की दृष्टि से पाश्चात्य देशों की स्त्रियों को कई भागों में विभाजित किया जा सकता है-1. शिक्षालयों की अध्यापिकाएँ 2-गृहपरिचारिकाएँ 3-अभिनेत्रियाँ 4-कार्यालयों की लेखिकाएँ 5-उच्च गृह की गृहस्वामिनियाँ 6-दाइयाँ और डाक्टरनियाँ इत्यादि अभिनेत्री का जीवन निंद्य और वासना-जन्य है। प्रत्येक दृष्टि से वह निकृष्ट एवं त्याज्य है। उसे छोड़कर अन्य पेशों के लिए चुनाव किया जा सकता है।

फालतू समय का एक उपयोग मनोरंजन है। सम्पूर्ण दिन कार्य करते-करते महिलाओं का दिल और दिमाग शिथिल हो जाता है। वे घर के कारावास में बंद रहती है। छुट्टी के दिन उन्हें उद्यानों की सैर करनी चाहिए, सहेलियों के यहाँ मिलने जाना चाहिए, सरिताओं के तट पर तथा पर्वत प्रदेशों की यात्राएँ करनी चाहिए, तैरना खेलना भी है और व्यायाम भी। फोटोग्राफी, लकड़ी का काम, लेख लिखना, कविता करना या अन्य कोई शौक का कार्य किया जा सकता है। अपने बच्चों को पढ़ाने का कार्य बहुत श्रेयस्कर है। राष्ट्रीय कार्यों में अनेक विजयलक्ष्मीयों की आवश्यकता है। यदि प्रयत्न करें तो भारत में रचनात्मक योजनाओं के लिए अनेक राष्ट्रीय विचारों वाली विदुषी नारियाँ तैयार की जा सकती हैं। भारत में अभी देवमाता आदिति लोपामुद्रा, मैत्रेयी, गार्गी जैसी महामान्या नारियों को भूला नहीं, जा सकता। फालतू समय में शास्त्रों का अध्ययन कर भारतीय ललनाएँ वक्ता, लेखिकाएँ, कवियित्री, विदुषी, ब्रह्मवादिनी बना सकती हैं।

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