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Magazine - Year 1951 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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तीसरा महायुद्ध और उसके बाद।

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First 17 19 Last
(लेखक-श्री सत्यभक्तजी, सम्पादक - ‘सतयुग‘ इलाहाबाद)

इस समय दुनिया के राजनीतिज्ञों में तीसरे महायुद्ध की चर्चा जोर पकड़ती जा रही है। कोई दिन ऐसा नहीं जाता जब कि समाचार-पत्रों में युद्ध की तैयारी का एक न एक समाचार दिखलाई न पड़े। यद्यपि कुछ राजनीतिज्ञ शाँति की चर्चा भी करते हैं-जिनमें प्रमुख हमारे पण्डित जवाहरलाल नेहरू ही हैं, पर कोरिया, चीन, तिब्बत के युद्ध के वातावरण ने उनकी आवाज को बहुत दबा दिया है और एक साधारण पाठक को तीसरे महायुद्ध का होना ऐसा ही निश्चय जान पड़ता है जैसे दो और दो का मिलकर चार होना।

इसमें संदेह नहीं कि दुनिया के लोग भावी महायुद्ध की भयंकरता का ख्याल करके उससे बहुत डर रहे हैं। छोटे-मोटे देशों की तो क्या बात अमरीका, रूस और इंग्लैंड भी इस विचार से आतंकित हैं। पर परिस्थिति ऐसी बनती जा रही है कि इस युद्ध का होना अनिवार्य हो गया है। चाहे कोरिया का फैसला हो जाये, चीन के साथ समझौता कर लिया जाये, तिब्बत का मामला ठण्डा पड़ जाये, पर तीसरा महायुद्ध आज नहीं तो कल और कल नहीं तो परसों अवश्य होगा। इसका मुख्य कारण अमेरिका और रूस की विचारधाराओं का एक दूसरे से सर्वथा विपरीत होना है।

अमरीका में पूँजीवाद की प्रधानता है और वहाँ के पूँजीपतियों को दुनिया में पैर फैलाने का मौका मिलना चाहिए। रूस इस कार्य में बाधक सिद्ध होता है क्योंकि वह पूँजीवादियों के शोषण के विरुद्ध प्रचार करता है और जिस देश के लोग पूँजीवाद के खिलाफ सर उठाते हैं उनकी मदद करता है। आजकल अमरीका की तरफ से रूस पर भी साम्राज्यवादी होने का दोष लगाया जाता है, पर रूस में पूँजीवादियों और उनके व्यक्तिगत स्वार्थ का अभाव होने से उसे दूसरे देशों का आर्थिक शोषण करने की आवश्यकता नहीं। हद से हद वह अपना राजनीतिक प्रभुत्व ही कायम कर सकता है, जो उसी समय तक अधिक जोरदार रहेगा जब तक उसका पूँजीपति देशों में संघर्ष चल रहा है।

रूस और अमरीका का विरोध ऐसा है जिसमें किसी प्रकार के समझौते की गुंजाइश नहीं। अगर यह देश दोनों पूँजीवादी होते तब तो यह भी संभव था कि वे संसार को दो हिस्सों में बाँट कर अपने-अपने क्षेत्र में शोषण करते रहे और इस प्रकार एक लम्बे अरसे तक युद्ध का होना स्थगित रह सकता। पर जबकि उनका लक्ष्य उनके आगे बढ़ने की दिशा एक दूसरे के विरुद्ध है तो उनमें संघर्ष होना स्वाभाविक है, जिसे कोई रोक नहीं सकता है।

यह संग्राम कैसा भीषण होगा इसका चित्र अनेक लेखक खींच चुके हैं। कहा तो यहाँ तक जाता है कि इसमें प्रयोग करने के लिए एटम-बम से भी बढ़कर ऐसे-ऐसे विष अथवा मारात्मक कीटाणु तैयार किए गए हैं जिसका एक छटाँक द्रव्य दुनिया के तमाम व्यक्तियों को मारने के लिए काफी है। पर हमारा अनुमान है कि इनमें से बहुत सी बातें मनगढ़न्त या वैज्ञानिक कल्पनाएं हैं। पर इसमें जरा भी शक नहीं कि तीसरा महायुद्ध अभूतपूर्व होगा और दुनिया की कायापलट कर देगा। हमारा ही नहीं अधिकाँश लोगों का यही कहना है। अमरीका के एक बहुत बड़े प्रेस रिपोर्टर ‘अलसप’ न यूरोप की अवस्था की जाँच करके एक बड़ी रिपोर्ट लिखी थी जिसके अंत में यह निष्कर्ष निकाला गया था-

“रूस की लाल सेना रक्षात्मक उपायों से शून्य यूरोप पर बहुत ही शीघ्र कब्जा कर लेगी और शायद अमरीका तक अधिकार जमा लेगा। तब महाद्वीपों के बीच एक ऐसा भयंकर युद्ध होता रहेगा जो बहुत लंबा, नाशकारी और बड़ा वीभत्स भी होगा। इसके दरम्यान संसार को बारम्बार रासायनिक, कीटाणुओं और एटॉमिक अस्त्रों के आक्रमण से नष्ट-भ्रष्ट होना पड़ेगा। पश्चिमी सभ्यता की नींव, जो पहले से ही कमजोर हो गई है, पूरी तरह खोखली हो जायेगी। वह भी असम्भव नहीं है कि इन प्रलयकारी अस्त्रों के प्रभाव से पृथ्वी की प्राकृतिक अवस्था भी अस्त−व्यस्त हो जाये।”

ऐसे युद्ध को यदि संसार के लिए खण्ड प्रलय समझा जाये तो यह उचित ही है। इसके बाद संसार का वर्तमान रूप हरगिज कायम नहीं रह सकेगा। जिन आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक नियमों और रिवाजों को आज हम अटल, अपरिवर्तनीय समझते हैं उनका नाम-निशान भी नहीं रहेगा। इनमें से अधिकाँश युद्ध-काल में हवा में उड़ जायेंगे और युद्ध समाप्त होने पर दुनिया के लोग अपनी स्थिति और जरूरत के मुताबिक नवीन समाज की रचना करेंगे जिसके नियमों और आदर्शों में आजकल के नियमों और आदर्शों से जमीन आसमान का अंतर होगा।

‘सतयुग‘ के जुलाई-अगस्त 1950 के अंक में 11 वे पृष्ठ पर ‘पिरामिड रहस्य’ शीर्षक लेख छपा है जिसके अंत में कहा गया है-

पिरामिड की नाप-खोज करके जिन लोगों ने उसमें निहित भविष्यवाणियों पर प्रकाश डाला है। उनका कहना है कि सन् 1953 के अंतर्गत समस्त अन्तर्राष्ट्रीय ढाँचा बदल जायेगा। इसके बाद 40 वर्ष तक संसार का नवीन आर्थिक संगठन हो जायेगा।”

इस समय विश्व परिवर्तन की प्रसव पीड़ा चल रही है। भविष्य में ऐसे परिवर्तन होने वाले हैं जो आज की स्थिति को आदर्शजनक रीति से बदल देंगे। संसार का जो बौद्धिक, सामाजिक, ढाँचा इस समय है वह भविष्य में न रहेगा। तीसरा महायुद्ध ऐसी संस्थाएँ उत्पन्न करेगा जिनका निराकरण हमारी वर्तमान रीति-नीति से हो सकेगा। जिन्हें सुलझाने के लिए नई विचार पद्धति अपनानी पड़ेगी और नये प्रकार से समाज की रचना करनी पड़ेगी। तभी मानव प्राणी शाँतिपूर्वक जीवन यापन कर सकेगा।

सूक्ष्मदर्शी, तत्ववेत्ता बहुत समय से यह अनुभव करते आ रहे हैं कि वर्तमान काल निकट है। प्राचीन भविष्यवाणियों के आधार पर और वर्तमान कालीन परिस्थितियों की सूक्ष्म विवेचना से निकलने वाले निष्कर्ष के अनुसार यह साफ दिखाई देता है कि युग परिवर्तन की यह साध्यवेत्ता है और नवयुग का श्री गणेश होने में अधिक देर नहीं है।

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