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Magazine - Year 1951 - Version 2

Media: TEXT
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पारिवारिक मनोरंजन।

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हमारे परिवारों में आमोद-प्रमोद का कोई विशेष ध्यान नहीं रखा जा रहा है, फलतः वह दुख से भरे हैं। हम अपने परिवार से अनेक प्रकार के काम तो चाहते हैं, उसके लिए पुनःपुनः उनसे कहते हैं, किन्तु हम यह नहीं सोचते कि परिवार में मनोरंजन के कितने साधन हमने एकत्र किये हैं। सौ में अस्सी प्रतिशत परिवार अशिक्षा के अन्धकार से घनीभूत हैं। उनमें आमोद प्रमोद की आवश्यकता ही अनुभव नहीं की जाती। जिन परिवारों में आमोद-प्रमोद का ध्यान नहीं दिया जाता। वहाँ के व्यक्तियों का जीवन बड़ा शुष्क और व्यस्त रहता है। वहाँ के व्यक्ति अल्पायु होते हैं।

प्रफुल्लता, हंसी-मजाक, मनोविनोद, मनोरंजन जीवन के लिए उतने ही आवश्यक हैं, जितने भोजन, वायु, वस्त्र तथा जल। प्रत्येक बुजुर्ग का यह कर्त्तव्य होना चाहिए कि अपनी रुचि, परिस्थिति, आय, समय तथा आवश्यकता के अनुसार स्वयं पूरे परिवार के लिए यहाँ तक कि प्रत्येक सदस्य के लिए आमोद-प्रमोद की व्यवस्था करे। हम यह नहीं कहते कि सबको उच्च कोटि से अधिक खर्च वाले मनोरंजन ही प्राप्त हों, हाँ किसी न किसी प्रकार का विनोद अवश्य मिले। साधारण परिवार के लिए हम यहाँ कुछ उपयोगी सुझाव प्रस्तुत करते हैं।

जिन परिवारों में लोगों का पेशा या व्यवसाय शारीरिक श्रम पूर्ण है, जो दिन भर अपने शरीर से परिश्रम कर पसीना बहाकर द्रव्योपार्जन करते हैं, उसके आमोद-प्रमोद मूलतः मानसिक होने चाहिए। वे मनोरंजन के ऐसे साधन निकालें, जिनसे उनके थके हुए शरीर को अधिक परिश्रम न करना पड़े, प्रत्युत मानसिक दृष्टि से भी उन्हें प्रसन्नता के साधन मिल जाये। ऐसे व्यक्तियों के लिए उनका पठन-पाठन उत्तम मनोरंजन का साधन हो सकता है। वे नई-नई पुस्तकें पढ़ें। अपना अधिकाँश समय पुस्तकालय में बिताएं और नये-नये समाचार पत्र, साप्ताहिक, मासिक, पत्र पढ़ें और मनोरंजन के साथ ज्ञान-बुद्धि भी करें।

मजदूर, श्रमिक, मिल के सेवक, दुकानदार, मिस्तरी, बाहरी फेरी लगाने वाले, काश्तकार जितना मनोरंजन पुस्तकों तथा समाचार-पत्रों से प्राप्त कर सकते हैं, उतना सिनेमा से नहीं। सिनेमा का मनोरंजन महंगा और अश्लील है। सरस कविता के उच्च स्वर से पाठ करने में थकान और शुष्कता दोनों दूर हो जाते हैं। इनके द्वारा गंभीर और चिन्तनशील पाठक उत्तम संस्कृति और सात्विक मनोरंजन प्राप्त कर सकता है। कविताएं, गीत, दोहे, चौपाई सस्ते से सस्ते सात्विक मनोरंजन हैं।

नित्य के भोजन से निवृत्त होकर पूरा परिवार बैठ जाये। एक व्यक्ति कोई मनोरंजन पुस्तक समाचार-पत्र, पौराणिक, धार्मिक ग्रंथ या रामायण इत्यादि काव्य उच्च स्वर से पढ़े, अन्य उसे सुनें। यदि परिवार में पुस्तक, समाचार पत्र या मासिक पत्र मंगाने की सामर्थ्य हो, तो घर में एक घरेलू पुस्तकालय खोला जाय और साहित्य का आनंद लूटा जाये। प्रत्येक परिवार में ऐसे पत्र-पत्रिकाएं मंगवाये जाये, जिनमें ज्ञानवर्द्धन के साथ-साथ समाचार और मनोरंजन दोनों प्राप्त होते रहें। उपयोगी पत्रों में ‘हिन्दुस्तान’ (दैनिक), ‘समाज’ (साप्ताहिक), ‘मनोरमा’ तथा ‘सरस्वती’ (मासिक) आने चाहिए। घर का प्रत्येक सदस्य इन पत्रों से यथेष्ट मनोरंजन और ज्ञान संचय कर सकता है।

सिनेमा के मनोरंजन के पक्ष में हम नहीं हैं। हाँ, यदि कोई उच्च कोटि का सामाजिक या धार्मिक चित्र आ जाये तो दूसरी बात है। यह स्मरण रहे कि हमारे अधिकाँश फिल्म अत्यंत विषैली, कामोत्तेजिक सामग्रियों से भरे हुए हैं और यदि संभलकर चुनाव न किया जाये, तो यह मनोरंजन हमारे समाज को पतन और मृत्यु के मार्ग में ढकेल सकता है। हमें चाहिए कि परिवार के लिए घरेलू खेलों को अपनावें। जब सिनेमा न था, अखाड़ों की मिट्टी बोलती थी और भजन, कीर्तन, हुआ में दिल हँसते-रोते थे। रामायण तथा महाभारत की कड़ियाँ, आल्हा के छन्द हमारी रगों में रक्त बनकर दौड़ते थे। हम देशी खेल-कूद, तैरना, इत्यादि से स्वास्थ्य रहते थे। पुराने काल में मनोरंजनों से स्वास्थ्य, आचरण दोनों ही ठीक रहते थे। हमें चाहिए कि पुनः उन सात्विक मनोरंजनों को अपनावें और उच्छृंखलता तथा गृहकलह उत्पन्न करने वाले सिनेमा के विषैले मनोरंजन से बचें।

भारतीय परिवारों के लिए संगीत मनोरंजन का उत्कृष्ट साधन है। भारतीय नारी का यह विशेष आभूषण है। वे अपने कटु अनुभवों को संगीत की स्वर-लहरी में तिरोहित कर सकती हैं। जो भी वाद्ययन्त्र रचे-हारमोनियम, सितार, तम्बूरा, ढोलक, उसी पर गाना चाहिए। जो कविता उत्तम जंचे, जो काव्य ग्रंथ रुचे जिस कवि की वाणी मीठी लगे, उसे ही उन्मुक्त कराए पाठ करना चाहिए। संगीत और वादन मनोरंजन के सात्विक साधन हैं।

परिवार के व्यक्ति अपनी छुट्टी का दिन घर के जेलखाने से बाहर बितायें। भोजन साथ ले लें और बाहर निकल पड़े। शहर में या बाहर किसी उद्यान, झील, सरिता-तट, जंगल या अन्य किसी रमणीय प्राकृतिक स्थान में व्यतीत करना चाहिए। कैम्प-जीवन का स्त्रियों और बच्चों के स्वास्थ्य पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। बाहर सैर-सपाटे से पाचन क्रिया तो ठीक होती ही है, हृदय भी नवशक्ति से परिपूर्ण हो जाता है। पाश्चात्य देशों में स्नान करने के लिए बड़ी संख्या में लोग सरिता तट या झील पर जाते हैं, धूप-स्नान करते हैं, नदी तैरते हैं, खेल-कूद करते हैं। पूर्ण स्वास्थ्य के लिए कैम्प-जीवन अत्यंत आवश्यक है। घर की पुरानी परिस्थितियों से निकलकर प्रकृति की नवीन परिस्थितियों में आने से मन प्रफुल्लित हो जाता है। पर्वतों का पर्यटन आयु को और भी बढ़ा देता है। जंगल, उद्यान, घास पर टहलना मनोविनोद के अच्छे साधन हैं।

जो परिवार खरीद सकते हैं, उन्हें धीरे-धीरे रुपया बचाकर एक रेडियो ले लेना चाहिए। यह घर में शिक्षा-संस्था है, जो मनोरंजन भी देती है। आजकल रेडियो-प्रोग्राम इस तरकीब से रखे जाते हैं कि जानकारी के साथ-साथ उत्तम मनोरंजन भी प्राप्त हो सके। औरतों तथा बच्चों के लिए पृथक-पृथक विशेष प्रोग्राम रखे जाते हैं।

जो व्यक्ति दिन-रात पढ़ने-लिखने या क्लर्की का काम करते हैं, उन्हें सायंकाल कुछ न कुछ खेलने की योजना बनानी चाहिए। हाकी, फुटबाल, बालीवाल, क्रिकेट जो भी चाहें, वे खेलें, पर हाथ पाँव अवश्य बचावे। कम से कम टहलने अवश्य जाएं, भागें, दौड़ें, कूदें। कुछ व्यायाम होने दें सैर को जाने से शरीर पुनः उत्फुल्ल हो जाता है। पुरुषों की अपेक्षा बेचारी स्त्रियों का जीवन अधिक बंधा हुआ है। उन्हें घर के झंझटों में बंधा रहना पड़ता है। अतः उनके लिए छुट्टियों तथा कैम्पों की, सैर की परम आवश्यकता है। बाल-बच्चों को घुमाने ले जाते हैं, तो रंग बिरंगे पुष्पों नाना वस्तुओं को देखकर उनका मन प्रफुल्लित हो उठता है। छुट्टियों में स्थान परिवर्तन अवश्य होना चाहिए। बाहर जाने की योजना बनानी चाहिए। कुछ खेलों का सामान ले जाना उत्तम है। वहाँ खाने का प्रोग्राम रहे। यदि वहीं भोजन बने तो उत्तम है। फल भी ले जाये जाते हैं। वहीं किसी सरिता के तट पर भोजन किया जाये। संगीत हो, खेल हो, स्नान हो। सायंकाल पर्यटन किया जाये।

हमारे परिवारों में त्यौहार एक प्रकार के समारोह से होने चाहिए। उस दिन जल्दी भोजन बनाकर सब साथ भोजन करें। फिर ग्रामोफोन या कथा-वार्ता चले। बाहर से पड़ोसियों को आमंत्रित किया जाय। साल-गिरह तथा अन्य उत्सवों में बाहर वालों का सहयोग लेना चाहिए। स्वयं दूसरों के यहाँ भी जाना चाहिए। त्यौहार में खेल-कूद, आमोद-प्रमोद खूब होना चाहिए। मंदिरों में पूजा के लिए जायें, तो हृदय में उत्साह रहे और मन में आह्लाद।

प्रत्येक परिवार के मुखिया को स्वयं सोचकर अपनी परिस्थिति के अनुसार खेलों तथा मनोरंजन की योजना बनानी चाहिए।

मित्रता की आवश्यकता एवं उसका निर्वाह-

परिवार में अनेक ऐसी अड़चने आती हैं जिनमें बिना पड़ौसी तथा मित्रों की सहायता के बिना काम नहीं चलता। विवाह, जन्मोत्सव बिना काम नहीं चलता। विवाह, जन्मोत्सव, प्रवास में जाने पर, बीमारी में, मृत्यु के दुखद प्रसंगों में आर्थिक कठिनाइयों के मौकों पर तथा जटिल अवसरों पर राय लेने के लिए मित्रों की अतीत आवश्यकता है।

पर मित्र तथा उत्तम पड़ौसी का चुनाव बड़ा कठिन है। अनेक व्यक्ति आपसे अपना काम निकालने के लिए स्वार्थमय उद्देश्य से मित्रता करने को उतावले रहते हैं किंतु अपना कार्य निकल जाने पर कोई सहायता नहीं करते। अतः बड़ी सावधानी से व्यक्ति का चरित्र, आदतें, संग, शिक्षा इत्यादि का निश्चय करके मित्र का चुनाव होना चाहिए। आपका मित्र उदार, बुद्धिमान, पुरुषार्थ और सत्य परायण होना चाहिए। विश्वास पात्र मित्र जीवन की एक औषधि है। हमें अपने मित्रों से यह आशा करनी चाहिए कि वे हमारे उत्तम संकल्पों को दृढ़ करेंगे, तथा दोषों एवं त्रुटियों से बचावेंगे, हमारी सत्य, पवित्रता और मर्यादा को पुष्ट करेंगे। यदि हम कुमार्ग पर पाँव रखेंगे, तब हमें सचेत करेंगे, सच्चा मित्र एक पथ प्रदर्शक, विश्वासपात्र और सच्ची सहानुभूति से पूर्ण होना चाहिए।

पं. रामचन्द्र शुक्ल ने मित्र का कर्त्तव्य इस प्रकार बताया है- “उच्च और महा कार्यों में इस प्रकार सहायता देना, मन बढ़ाना और साहस दिखाना कि तुम अपनी निजकी सामर्थ्य से बाहर काम कर जाओ। यह कर्त्तव्य उसी से पूर्ण होगा, जो दृढ़ चित्त और सत्य संकल्प का हो। हमें ऐसे ही मित्रों का पल्ला पकड़ा चाहिए जिनमें आत्मबल हो, जैसे सुग्रीव ने राम का पल्ला पकड़ा था।”

मित्र हो तो प्रतिष्ठित और शुद्ध हृदय के हों, मृदुल और पुरुषार्थी हों, शिष्ट और सत्यनिष्ठ हों, जिससे हम अपने को उनके भरोसे पर छोड़ सकें और यह विश्वास कर सकें कि किसी प्रकार का धोखा न होगा मित्रता एक नई शक्ति की योजना है। बर्क ने ने कहा है - “आचरण दृष्टान्त ही मनुष्य जाति की पाठशाला है, जो कुछ वह उससे सीख सकता है वह और किसी से नहीं।”

यदि आप किसी के मित्र बनते हैं तो स्मरण रखिए आपके ऊपर वह जिम्मेदारी आ रही है। आपको चाहिए कि अपने मित्र की विवेक बुद्धि, अन्तरात्मा जागृत करें, कर्तव्य बुद्धि की उत्तेजना प्रदान करें, और उसके लड़खड़ाते पाँवों में दृढ़ता उत्पन्न कर दें।

जीवन के आवश्यक कार्य -

हमारे कार्य चार प्रकार के होते हैं। (1) पशु तुल्य (2) राक्षस तुल्य, (3) सत्पुरुष (4) देव तुल्य। प्रत्येक व्यक्ति को अपने परिवार में कार्य करते समय इन पर दृष्टि डालनी चाहिए।

वे सब कार्य जिनमें बुद्धि का उपयोग न किया जाय, क्षणिक आवेग या प्रकृति के संकेत पर बिना जाने बूझे कर डालें जायें पशु तुल्य कार्य हैं। जैसे-भोजन, कामेच्छा की पूर्ति, गुस्से में मार बैठना, प्रसन्नता में वृथा फूल उठना, जीभ तथा वासना अन्य सुख इसी श्रेणी में आते हैं।

स्वार्थ की पूर्ति के लिए जो कार्य किये जायें वे राक्षस जैसे कार्य होते हैं। राक्षस वृत्ति वाले पुरुष साम, दाम, दण्ड, भेद से, अपना ही अपना भला चाहते हैं। दूसरों को मार कर स्वयं आनन्द में रहते हैं। उन्हें किसी के दुख, तकलीफ, मरने-जीने से कोई सरोकार नहीं है। ऐसे अविवेकी माँस भक्षण, रति प्रेम, व्याभिचार, चोरी, रिश्वतखोरी, पीओ मौज उड़ाओ’ यही उनका आदर्श है। दुर्भोग, व्याभिचार, माँस भक्षण, मद्यपान भोग उसके आनन्द के ढंग हैं।

सत्पुरुष आज की आवश्यकताओं की पूर्ति करता, कल की योजना बनाता, धन, अनाज, वस्त्र इत्यादि का संग्रह करता, अपनी प्रतिष्ठा का ध्यान रखता, बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और भावी उन्नति का विचार रखता है। वह पृथ्वी पर ही अपनी सद्भावनाओं तथा सद् इच्छाओं द्वारा स्वर्ग का निर्माण करता है। वह जानता है कि जीवन में सफलता की कसौटी नहीं है। धन वह साधन है जिसके द्वारा पुरुष जीविका एकत्र की जाती है।

वह पाप जीविका, छल जीविका, जुआ, सट्टा भिक्षा, ब्याज से दूर रहता है। वह दूसरे को ठगने का प्रयत्न नहीं करता। उसकी जीविका उपार्जन का कार्य सद्उद्देश्य से होता है। सच्चाई और पुण्य की कमाई से खूब फूलता फलता है। बुराई से खरीदी हुई प्रतिष्ठा क्षणिक होती है। यथाशक्ति वह दूसरों को दान पुण्य से सहायता करता है। जीवन निर्वाह के बदले वह उचित सेवा भी करता है।

देव तुल्य जीवन का उद्देश्य त्याग तथा साधना द्वारा जनसेवा के कार्य हैं। यह सेवा शरीर, मन या शुभ विचारों के द्वारा हो सकती है। विश्व कल्याण के लिए जीने वाले व्यक्ति मनुष्य होते हुए भी देवता है। वह अपनी बुद्धि एवं ज्ञान का विश्वहित के लिए बलिदान करता है। ज्ञान चर्चा द्वारा वह दूसरों का मन भी उच्च विषयों की ओर फेरता है। उसकी दिनचर्या में उत्तम प्रवचनों का श्रवण, शंका निवारण, पठन, चिन्तन, आत्मनिरीक्षण, निर्माण और उपदेश होते हैं। वह संसार की वासनाओं के ऊपर शासन करता है।

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