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Magazine - Year 1956 - Version 2

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भाग्य भी कोई चीज हैं।

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( श्री लक्ष्मीनारायण टंडन ‘प्रेमी’ एम. ए.)

यह सत्य है कि प्रत्येक घटना के पीछे ‘पीछे-कारण’ होता है। यह हो सकता है कि किसी ‘घटना’ के पीछे का ‘कारण’ अत्यन्त सूक्ष्म तथा गुत्थीदार (जटिल) होने के कारण हम उसे समझ न पायें। मानव की बुद्धि, सूझ-बूझ की भी एक सीमा होती है! मानव की बुद्धि प्रत्येक ‘कार्य’ के ‘कारण’ की तह तक पहुँच ही जाय, यह दावा नहीं किया जा सकता। किन्तु ‘कारण’ के आविर्भाव और अंतिम परिणाम के अनुरूप ही ‘ कार्य’ होता है—यह वैज्ञानिक सत्य है और इससे किसी को भी इंकार नहीं हो सकता। कार्य कारण ही गहनता जहाँ मानव-बुद्धि के परे हो जाती है वहीं हम घटित घटना को ‘भाग्य’ का नाम दे देते हैं। अनेक पढ़े लिखें लोग ‘भाग्य’ के नाम से भड़कते हैं। वह ‘भाग्य’ न कह कर ‘इत्तफाक’ या ‘परिस्थिति’ कहते हैं। किन्तु ‘इत्तफाक’ से कुछ नहीं होता—उसके पीछे कार्य-कारण अवश्य होता है—हाँ यह संभव है कि उसकी सूक्ष्मतम बारीकियों को मानव समझने में असमर्थ हो—उनका विश्लेषण तथा व्याख्या मानव शक्ति तथा बुद्धि के परे हो।

किन्तु यह भी सर्व विदित सत्य है कि परिस्थितियों और वातावरण का बहुत गहरा और व्यापक प्रभाव-मानव जीवन पर पड़ता है। प्रायः ‘परिस्थितियाँ’ मनुष्य को मनमाना नाच नचाती हैं। उन पर मनुष्य का बस नहीं। इसी से परिस्थितियों को अनियंत्रित कहा गया है। इन्हीं अनियंत्रित परिस्थितियों को ‘भाग्य’ कहा जाता है। कुछ लोगों का दावा है परिस्थितियाँ मनुष्य को नाच नचाती हैं पर कुछ पुरुष ऐसे भी होते हैं कि परिस्थितियों को नाच नचाते हैं, उनकी दिशा को मोड़ देते हैं। उनका कहना अक्षरशः सत्य नहीं है। भाग्य या परिस्थिति ने साथ दिया और जब तक साथ दिया, तब तक वह अपनी बुद्धि, शक्ति आदि को ही सब कुछ या सर्वोपरि भले ही समझ लें, ‘तदबीर’ को चाहे जितनी महत्ता दे दे पर ‘तदबीर’ का परम महत्व होते हुए भी उसकी एक सीमा भी है।

नियतिवादी या भाग्य में विश्वास करने वालों का कहना है कि जीवन में जो-जो घटनायें घटित होती हैं वे सब पूर्व निर्धारित (ईश्वर द्वारा) होती हैं। इसी को भाग्य का ‘लेखा’ कहते हैं। जैसा भाग्य में लिखा है, होता वही हैं। फलित ज्योतिष की सत्यता, उसके द्वारा भविष्य की बातों या भावी का उल्लेख या उद्घाटन का आधार है ‘भाग्य’ या ‘कर्म-रेखाओं’ पर विश्वास। विषय अत्यन्त गूढ़ तथा गहन तो है ही किन्तु अत्यन्त रोचक भी है। मैं अपने ऊपर घटित एक घटना का उल्लेख करके स्वयं विद्वान पाठकों के ऊपर ‘भाग्य’ के सम्बन्ध में निर्णय करने का भार छोड़ता हूँ।

मुझे फेफड़े का क्षय हुआ। मैं कानपुर के लाला लाजपतराय अस्पताल में भर्ती हुआ और अभी भी क्षय रोगियों के वार्ड में मौजूद हूँ। मेरे फेफड़े में ‘कैविटी’ घाव था। डाक्टर ने कहा थरकोप्लास्टी आपरेशन होगा एक सप्ताह बाद। कुछ ऐसा इत्तफाक हुआ कि कभी डाक्टर आपरेशन वाले दिनों में छुट्टी पर चले गए या दूसरे मरीजों के ‘थरको’ करना आवश्यक हो गया, कभी ‘सिस्टर’ छुट्टी पर चली गई। बहरहाल मेरे आपरेशन की डेट टलती गई। मैंने गुरुवर पं॰ श्रीराम शर्मा आचार्य को भी सूचित कर दिया था कि आपरेशन होगा। उन्होंने मुझे आशीर्वाद लिखा तथा यह भी हम गायत्री-माता से तुम्हारे लिए विशेष प्रार्थना करेंगे। खैर! मेरे पैजामे में न जाने क्यों पीले-पीले दाग पड़ने लगे। पहले तो मैं समझा कि तरकारी का शोखा या दवा गिर गई होगी या इंजेक्शन लगाते समय कुछ लिक्विड (द्रव) बह जाता होगा। डॉक्टर तथा सिस्टर ने भी यही समझा। दूसरा पैजामा बदला तब भी वही पीले-पीले दाग—वह भी केवल बाईं ओर अधिकतर। अतः पहले वाला संदेह निर्मूल निकला। डाक्टर ने कहा ‘समझ में नहीं आता ऐसा क्यों है। तुम्हारा पेशाब टेस्ट (परीक्षा) करायेंगे।’ अस्तु कई बार मेरा पेशाब टेस्ट को गया तो पेशाब में सुगर (शक्कर) मिला। यद्यपि इसके पूर्व भी इसी अस्पताल में पहले पेशाब टेस्ट हुआ था पर शक्कर न था। कभी भी शक्कर पेशाब टेस्ट पर नहीं निकला। मैंने समझा 45 वर्ष का हूँ ही। इस आयु में प्रायः शक्कर आने लगता है पेशाब में अतः आश्चर्य क्या? अब बात ध्यान देने वाली यह है कि यदि पेशाब की जाँच होती ही क्यों यदि पीले-पीले दाग न पड़ने लगते-तब पेशाब में शकर ज्ञात ही न होता और आपरेशन कैसे होता-अतः वह स्थगित कर गया। बराबर पेशाब जाँच को जाती-कभी शक्कर मिलती कभी नहीं। एक बार डाक्टर ने आपरेशन की डेट तय ही कर दी किन्तु कुछ कारणों से वह फिर स्थगित हुआ। अंत में 17 तारीख को आपरेशन-डेट तय हो गई। 12 को रोगी से जो भरवाया जाता है कि ‘मैं बेहोशी सूँघकर आपरेशन कराने को तैयार हूँ अपनी जिम्मेदारी पर।’ आपरेशन के खतरे मुझे समझा दिये गए हैं’ उस पर मैंने हस्ताक्षर भी कर दिये तथा जो तैयारियाँ तथा बैंडेज आदि बाँधा जाता है, वह भी हो गया। 17 को प्रातः मुझे इंजेक्शन दे दिया मैथोटीन का। कुछ टेबलेट खिला दिया गया। मैं आपरेशन-टेबल पर लिटा दिया गया और बाँध दिया गया। ग्लूकोस का इंजेक्शन चालू हो गया। डाक्टर ने आपरेशन के स्थान पीठ पर सुन्न करने की दवा भी लगा दी। मुझे बेहोशी की दवा भी सुँघाई गई। कुछ क्षणों तक तो मेरे लिए ब्रह्माण्ड घूम गया और मैं बेहोश हो गया। उसके बाद मुझे कुछ होश नहीं है। डाक्टर चाकू चलाने ही वाले थे। पर मेरी साँस एक एक रुक सी गई- नब्ज़ तथा दिल की धड़कन धीमी और कम हो गई-मेरा जीवन बिल्कुल खतरे में हो गया-यदि एक आध मिनट की भी देर होती तो मैं आपरेशन-टेबल पर ही समाप्त हो जाता। खैर तुरन्त आक्सीजन दी गई। साँस वापस लौटी, नब्ज़ तथा दिल की धड़कन ‘नार्मल’ (अपनी स्वाभाविक स्थिति पर) हुई। डाक्टर तो फिर भी आपरेशन करने को प्रस्तुत हो गए थे पर ‘सिस्टर’ ने उस दिन उन्हें आपरेशन नहीं करने दिया क्यों कि मैं मृत्यु के द्वार से लौटा था और ठीक एक दिन पहले एक स्त्री का देहान्त पी॰ पी॰ से हो चुका था उसके ही दुर्भाग्य से; अतः सिस्टर भी घबराई थीं, डाक्टर भी दुखी थे। आपरेशन-टेबल पर जैसे ही मैं लिटाया गया था वैसे ही एक विशेष घटना हुई। ग्लूकोस की बोतल गिर कर टूट गई। कम्पाउन्डर ने सिस्टर से कहा था कि ‘दवा की बोतल का टूटना हम बहुत अपशकुन मानते हैं।’ किन्तु सिस्टर ने हँसकर उस बात की अवहेलना की थी, किंतु इस दुर्घटना के बाद उन्हें कम्पाउन्डर की बात माननी पड़ी। संक्षेप में कहने का तात्पर्य यह है कि कारण कुछ भी रहे हों, आपरेशन उस दिन नहीं होना बढ़ा था और नहीं हुआ-ऐसी विघ्न-बाधायें एक के बाद एक आती रहीं। आपरेशन-थियेटर में जाकर भी बिना आपरेशन वापस लौट आना यह इस वार्ड के इतिहास में प्रथम घटना है।

डॉ॰ ओमप्रकाश मीतल ऐसा डाक्टर मैंने अपने जीवन में नहीं देखा। रोगियों के लिए वह साक्षात् देवता-स्वरूप हैं। वह अत्यन्त विनम्र, स्नेहपूर्ण, उत्तरदायित्वपूर्ण तथा परिश्रमी हैं प्रायः बड़े डाक्टरों में ऐसे गुण कम ही पाये जाते हैं। और साथ ही वह इतने अधिक योग्य तथा अपने कार्य में दक्ष हैं कि आज तक उनका एक भी आपरेशन खराब नहीं हुआ (मरा नहीं) इतने भोले, भले और कार्य-कुशल तथा दक्ष डाक्टर की सतत् इच्छा और प्रयत्न के होते भी कि शीघ्र मेरा आपरेशन हो जाय, आपरेशन नहीं हुआ।

उसके बाद डाक्टर ने मुझे ‘ब्लड-सुगर’ परीक्षा के लिए भेजा किन्तु दुर्भाग्य-वश वह मशीन फेल हो गई और ‘फल’ न आ सका। मेरा एक्सरे करवाया गया और डाक्टर ने कहा कि बिना कुछ किये ही केवल दवा, इंजेक्शन तथा विश्राम से इतना अधिक आश्चर्यजनक लाभ तुम्हें हो जायगा यह तो मैंने स्वप्न में भी नहीं सोचा था। हम 1- 1॥ मास तुम्हें इसी भाँति रख कर देखेंगे कि और क्या लाभ होता है और तब आपरेशन के बारे में तय करेंगे। तब तक सुगर को भी हम कंट्रोल (बस में) कर लेंगे।’

मैं आपरेशन कराना चाहता था पर सुगर आने से मैं विचलित हो गया था। मेरे मित्रों तथा सम्बन्धियों की भी राय आपरेशन के पक्ष में इस दुर्घटना के बाद नहीं रही। कहने का तात्पर्य यह है कि 1-1॥ मास को स्थगित हो गया आपरेशन। दो ज्योतिषियों ने मुझसे कहा था कि ‘आपरेशन तो तुम्हारा होगा किन्तु अभी नहीं होगा—1-1॥ मास बाद होगा।’

गुरुवार पं॰ श्रीराम शर्मा आचार्य की प्रार्थना शुभेच्छा का प्रभाव है या डाक्टर की योग्यता का प्रभाव है या दवा का असर है या मेरा भाग्य है कि कैविटी भी बहुत कुछ अब दिखाई नहीं देती-क्या है यह ईश्वर जाने। पर मेरा विश्वास है कि सब ही चीजों का सहयोग इसमें है। संक्षेप में कहना यही हैं कि जब तक किसी चीज के होने का समय नहीँ आता तब तक वह चीज नहीं होती। इसे ही अदृष्ट नियति या भाग्य कहते हैं। अवश्य कुछ घटनायें ईश्वर द्वारा पूर्व निर्धारित होती हैं-ऐसा विश्वास मेरे कई घनिष्ठों का हो गया है जो नास्तिक तो नहीं पर नास्तिक से तो कहे ही जा सकते हैं। मेरा भी भाग्य की अनिवार्यता पर विश्वास जमने लगा है।

‘नियतिवादिता’ अकर्मण्यता नहीं सिखाती। कर्म करना तदबीर करना और फल को कृष्णार्पण कर देना, यही बात तो स्पष्ट हमारी गीता हमें सिखाती है। पूर्वजन्म एवं पुनर्जन्म का सिद्धान्त यदि सत्य है, मनुष्य को अपने पूर्व जन्म के कर्मों का अच्छा-बुरा फल भोगना पड़ता है, यदि यह सत्य है तो ‘भाग्यवादी’ सिद्धान्त भी सत्य है, इसमें कोई संदेह नहीं। भाग्यवाद कभी भी अकर्मण्यता को जन्म नहीं देता। जब आलसी अपने आलस्य का समर्थन करते हैं, भाग्य का नाम लेकर उसकी आड़ में जो अपनी अकर्मण्यता का समर्थन करते हैं तो वे न केवल धूर्त हैं वरन् समाज को भारी हानि पहुँचाने वाले हैं। ‘भाग्य’ मनुष्य की विवशता है संचित प्रारब्ध उसका नियंत्रण करता है पर पुरुषार्थ तो उसका आज का कर्त्तव्य है, इस कर्तव्य की उपेक्षा करना एक प्रकार से ईश्वर की उपेक्षा ही है। मेरे भाग्य के अटपटेपन में भी किन पुरुषार्थियों का पुरुषार्थ काम कर रहा हो, इसे कौन जानता है?

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