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Magazine - Year 1956 - Version 2

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राजस्थान प्रान्तीय गायत्री सम्मेलन

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भारतभूमि में यज्ञीय वातावरण का एक नया अध्याय आरम्भ

इस व्यापक स्वार्थपरता के युग में हर व्यक्ति अपने व्यक्ति गत स्वार्थ को बड़ी संकुचित दृष्टि से सोचता है। संसार के अनेक क्षेत्रों के विविध व्यक्ति जिस प्रकार अपने लाभ की बात के लिए दूसरों के लाभ या परमार्थ को तिलाञ्जलि देते रहते हैं; वैसी ही भावना आज अध्यात्म क्षेत्र में भी व्यापक रूप से फैली हुई है। वैसे तो आत्म-कल्याण की साधना की दिशा में कदम ही कोई बिरला उठाता है पर जो उठाते हैं, वे भी बड़े संकीर्ण दायरे तक सीमित रह जाते हैं। अन्य परिश्रमों की भाँति इस श्रम का फल भी उन्हें मिलता ही हैं, पर वह शाश्वत सत्य उन्हें नहीं मिल पाता, जो संसारी संकीर्ण दृष्टि रखने वालों को नहीं-परमार्थ बुद्धि, विश्व-सेवा, जनहित और सर्वात्मा परमात्मा के प्रति अपना अपनत्व समर्पण कर देने वालों को होता है। गीता में ऐसी ही दृष्टि रखकर ईश्वर-उपासना करने वालों को सच्चा भक्त , योगी, ज्ञानी, संन्यासी कहा गया है और बताया गया है कि ब्रह्म निर्माण, शाश्वत शान्ति, परम समाधि एवं जीवन मुक्ति का अक्षय पुण्य ऐसी ही आध्यात्मिक स्थिति वालों को मिलना सम्भव है।

गायत्री माता की साक्षात् कृपा-सद्बुद्धि जिसे प्राप्त होती है, वह अनायास ही इस परम मंगलमय राज-मार्ग पर चलने के लिए तत्पर हो जाता है और अपना ही नहीं असंख्यों आत्माओं का कल्याण करता है, स्वयं तरता है और अपने साथ असंख्यों को तारता है, उसके सब कार्य संकीर्ण क्षेत्र की सीमा से बाहर निकलकर जन साधारण की आत्माओं को प्रकाश देने वाले बन जाते हैं, ऐसी परमार्थ बुद्धि जिन्हें प्राप्त होने लगे, उन्हें गायत्री माता का, भगवान की प्रत्यक्ष कृपा का स्पष्ट आभास मिल रहा है, ऐसा समझना चाहिए।

बड़े हर्ष की बात है कि जिस दिव्य प्रेरणा के प्रकाश में गायत्री तपोभूमि का निर्माण हुआ है वही ज्योतिर्मयी प्रेरणा भारत के अन्य प्रदेशों में भी दूर-दूर जगमगाने लगी है और अनेक साधक अपनी व्यक्ति गत साधना के साथ-साथ अन्य असंख्य आत्माओं को प्रकाश देने के लिए युग पुरुषों की भाँति कुछ कार्य करने के लिए कटिबद्ध हो रहे हैं। यों तो अपनी-अपनी शक्ति, सामर्थ्य और स्थिति के अनुसार सभी साधक गायत्री माता और यज्ञ पिता का सन्देश व्यापक क्षेत्र में फैलाने के लिए कुछ न कुछ कर ही रहे हैं, पर इन दिनों राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में जो असाधारण उत्साह दृष्टिगोचर हो रहा है, उससे धर्म की अभिवृद्धि और अधर्म के नाश का कार्य तीव्र गति से होता दीखता है।

पाँच वर्ष पूर्व उधर गिने चुने साधक थे। करवाड़ के शम्भूसिंह हाड़ा नामक एवं साधारण अध्यापक की अन्तरात्मा में माता ने जन-जन के मन-मन में प्रकाश उत्पन्न करने की प्रेरणा दी, वे अपनी सीमित शक्ति और क्षमता से साधनों को अन्तरात्मा की पूरी सचाई के साथ प्रयुक्त करते रहे, फल यह हुआ कि कोटा प्रदेश में उन्होंने गायत्री उपासकों की एक बड़ी संख्या उत्पन्न करने में सफलता प्राप्त करली। लगभग दो हजार नये साधक उस क्षेत्र में नियमित साधना करने कि लिए कटिबद्ध हो गये हैं। कितने ही साधक और कार्यकर्ता अब इस क्षेत्र में शम्भूसिंहजी से भी आगे बढ़ चले हैं, इन सब के मिलजुल कर परम निष्ठा और श्रद्धा से परिपूर्ण अत्यन्त प्रेम भावना के साथ कार्य करने का फल है कि उस क्षेत्र में सराहनीय आध्यात्मिक वातावरण तैयार हो रहा है। इन साधकों और कार्यकर्त्ताओं का विस्तृत परिचय चित्रों समेत किसी अगले अंक में प्रस्तुत करेंगे।

विशद् गायत्री महायज्ञ की पूर्णाहुति में उस क्षेत्र से बड़ी संख्या में साधक आये थे। उनमें से अनेक संकल्प करके गये कि तपोभूमि के द्वारा संकल्पित 108 यज्ञों में से एक-एक यज्ञ वे अपने अपने गाँव में करेंगे। झालरापाटन गाँव के श्री घनश्याम शर्मा नामक सज्जन की भावना तो इतनी प्रबल हुई कि पूर्णाहुति के समय ही उन्होंने प्रथम यज्ञ-का मुहूर्त निकाल लिया और केवल 15 दिन की तैयारी में सवालक्ष आहुतियों का गायत्री यज्ञ 9 कुण्डों की यज्ञशाला बनाकर अत्यन्त ही सफलतापूर्वक गत 22,23,24 मई को सम्पन्न कर दिया। सच्चे संकल्प और अन्तरात्मा से निकलने वाले उत्साह से अनेक जागृत आत्माएं अपने अन्तःकरण की प्रेरणा से सहायता करने खड़ी हो जाती हैं। झालरापाटन के यज्ञ में भी सर्वश्री चन्दालाल जी, गोकुल-प्रसाद जी, कृष्णगोपाल जी, हनुमान जी आदि कितने ही सज्जन कार्य करने में जुट गये और फिर सहयोगियों की कमी नहीं रही। उस क्षेत्र के लगभग 300 गायत्री उपासक नर-नारी दूर-दूर नगरों से आकर तीन दिन तक यज्ञ को सब प्रकार सफल बनाने के लिए वहीं निवास करते रहे। तीनों दिन के कार्यक्रम को पूर्ण सफल कहा जा सकता है, हजारों की संख्या में नर नारियों की विशाल भीड़ यज्ञ में सम्मिलित होने, परम श्रद्धापूर्वक आहुतियाँ देने के लिए आती रही। पुण्य सलिला चन्द्र भागा नदी के तट पर यज्ञ का यह एकान्त स्थान नगर में यद्यपि कुछ दूर था, फिर भी जलती दुपहरी में विशाल जन समुदाय को वहाँ आते-जाते देखकर यह सहज ही अनुमान होता था कि संसार में भौतिकवाद की पाश्चात्य हवाएं यद्यपि आँधी तूफान की तरह पूरे वेग से चल रही हैं फिर भी भारतीय जनता के रक्त में लाखों करोड़ों वर्षों से जमे हुए धार्मिक संस्कारों को नष्ट करने में वह तूफान अभी तक सफल नहीं हो पाया है और आशा की जा सकती है कि भारतीय संस्कृति बहुत देर तक इस युग के भोगवाद एवं भौतिकवाद से डटकर टक्कर लेने में समर्थ रहेगी।

झालरापाटन के यज्ञ में आचार्य जी भी गये थे। रामगंज मंडी, सुकेत, पाटन और बाँरा में भी उनके प्रवचन हुए। इन नगरों के निवासियों की विशाल जनसंख्या ने स्टेशनों पर, अपने नगर में, घरों में जैसा प्रेम-विभोर असाधारण स्वागत किया, उसे देखकर कोई भी दर्शक यह सहज अनुमान लग सकता था कि यद्यपि धूर्तों की करतूतों ने जनता के मन को धार्मिक कृत्यों के प्रति काफी उदास कर दिया है फिर भी सच्चे, त्यागी, धर्म-सेवी और तपस्वियों के लिए लोगों के मनों में भी अभी भी अपार श्रद्धा मौजूद है। इन चारों ही जगह आचार्य जी के महत्वपूर्ण प्रवचन हुए, जिनमें सद्बुद्धि रूपी गायत्री माता और त्यागपूर्ण प्रेम रूपी यज्ञ पिता को जीवन में चरितार्थ करके भारतीय संस्कृति की महान् परम्परा को जीवित जागृत रखने की उन्होंने प्रेरणा दी।

भावना और उत्साह से ओत-प्रोत उपस्थित साधकों में से प्रत्येक का यह आग्रह था कि इसी मास उसके ग्राम में भी एक यज्ञ रखा जाय। सब का आग्रह यह था कि आचार्य जी वहाँ अवश्य आवें। पर एक साथ इतने यज्ञ होना और आचार्य जी का उन सब में पहुँचना व्यवस्था की दृष्टि से सम्भव न था। इसलिए गायत्री जयन्ती के अवसर पर अगले मास सुकेत, वनवास, जुल्मी, चेचट आदि गाँवों में यज्ञों का कार्यक्रम बनाया जा सका। बाँराँ के गायत्री उपासकों का वार्षिक उत्सव इस बार गत वर्षों की अपेक्षा अधिक बड़े यज्ञ आयोजन के साथ सम्पन्न होगा ऐसी आशा की जाती है।

एक सब से बड़ा महत्वपूर्ण निश्चय जो इस दौरे के समय हुआ वह इतना महान् है कि देश भर के गायत्री उपासकों में उसे अत्यन्त ही प्रसन्नता के साथ सुना जायगा। वह निश्चय यह है कि कोटा से 30 मील दूर रामगंज मंडी नामक नगर में राजस्थान प्रान्तीय गायत्री उपासकों का एक विशाल साँस्कृतिक सम्मेलन संभवतः आश्विन सुदी 15 को होगा और 101 यज्ञ कुण्डों की विशाल यज्ञशाला में 24 लक्ष आहुतियों का हवन तथा 24 करोड़ जप होगा।

कार्य निस्सन्देह भारी है। आर्थिक तथा व्यवस्था की दृष्टि से यह बोझ हँसी खेल नहीं है। राजस्थान प्रदेश के, कोटा डिवीजन के विशेषतया रामगंज मंडी निवासियों को इसके लिए बहुत कुछ त्याग करना पड़ेगा, मनोयोग देना पड़ेगा और पसीना बहाना पड़ेगा। यह आशा तो की ही जा सकती है, जो शक्ति ऐसी उत्साहपूर्ण प्रेरणा देती है, वही शक्ति इसका बोझ उठाने वालों में समुचित बल भी देती है। अन्यथा राज-दंड, चोर दंड, दुर्भिक्ष दंड, भाग्य दंड, द्वेष दंड, वासना दंड आदि अनेक दंडों का भारी त्रास सहने वाला दुर्बल मानव-प्राणी धर्म दंड का जरा सा बोझ आते ही घबड़ा जाता है, ऐसे कार्यों को सम्पन्न बनाने के लिए असाधारण आत्म-बल की आवश्यकता पड़ती है, इसलिए जिनसे कुछ बड़ा कार्य दैवी शक्ति कराती है, उन्हें उसके समुचित आत्म-बल देने में भी वह दिव्य शक्ति कंजूसी नहीं करती। रामगंज मंडी में होने वाला वह 101 हवन कुण्डों का विशाल गायत्री यज्ञ भी अनेक कार्यकर्त्ताओं के अन्तःकरण में भावना, श्रद्धा, त्याग, श्रम और उत्साह की समुचित मात्रा देकर माता द्वारा सुसम्पन्न करा लिया जावेगा ऐसा निश्चित है। यज्ञ की निश्चित तिथियाँ अगले अंक में दे दी जावेंगी, पर अभी से इन पंक्तियों द्वारा देश भर के गायत्री उपासकों को विशेषतया राजस्थान के गायत्री उपासकों को निमंत्रण दिया जाता है कि उस अवसर पर पधारने और इस भारी कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए तत्परता प्रदर्शित करें।

यह आशा करनी चाहिए कि प्रान्तीय सम्मेलन करने का 101 हवन कुण्डों के विशाल यज्ञ जैसे बड़े आयोजन का श्रेय केवल रामगंज मंडी को ही नहीं-अन्य प्रान्त वासियों को भी मिलेगा। माता जिन्हें श्रेय देना चाहेंगी उनकी आत्माओं में प्रेरणा का उभार पैदा करेंगी, जहाँ अन्तः प्रेरणा होगी, वहाँ तीव्र इच्छा होती है वहाँ सहायकों, समर्थकों और सहयोगियों की कमी नहीं रहती, जहाँ थोड़े से भी सच्चे एवं प्रभावशाली सहयोगी मिल जावें वहाँ बड़े-बड़े साधन सहज ही इकट्ठे हो जाते हैं और साधन जुटने पर कोई कार्य पड़ा नहीं रहता। छोटे व्यक्ति महान् कार्य कर डालने में अनेकों बार आश्चर्यजनक रीति से सफल होते हैं, उनके पीछे यही ईश्वरीय नियम-शृंखला काम करती है। श्रद्धा, लगन और अन्तः प्रेरणा के अभाव में कोई कुबेर सा धनी व्यक्ति भी तृण समान परमार्थ नहीं कर सकता, क्योंकि शुभ कार्यों में आसुरी शक्तियाँ अनायास ही बहुत उदासीनता और विघ्न बाधाओं का वातावरण उपस्थित किये रहती हैं।

108 यज्ञों का संकल्प तपोभूमि में पूर्णाहुति के समय किया गया था। वह उत्साही गायत्री उपासकों द्वारा गुरुपूर्णिमा के पुनीत पर्व पर गुरु दक्षिणा के रूप में पूरा हो जायगा, यह अब तक आई हुई सूचनाओं से सुनिश्चित है, पर आगे इस देश में त्यागमय प्रेम की यज्ञीय भावना पैदा करने के लिए, सद्बुद्धि रूपी गायत्री का प्रकाश जन-जन की अन्तरात्मा में पहुँचाने के लिए, भारतीय संस्कृति का पुनरुत्थान करके पददलित मानवता को पुनः उसके स्वर्ण सिंहासन पर बिठाने के लिए विशाल गायत्री महायज्ञों की आवश्यकता है। आत्मा की व्यक्तिगत सुख-शान्ति, सत्य प्रेम, न्याय, संयम सेवा और कर्तव्य निष्ठा उत्पन्न करने के लिए, दुखी मानव जाति के अनेकों उलझी हुई समस्याओं को सुलझाने के लिए—वस्तुतः विशालकाय यज्ञों का संस्कृति सम्मेलनों का-आयोजन एक बड़ा ही अमोघ अस्त्र है। आज की स्थिति में इस महान् उपकार की इतनी अधिक आवश्यकता है, जितनी चिरकाल से कभी नहीं रही। समय पर हुई वर्षा का जो मूल्य है वही महत्व आज अनैतिकता उत्पन्न करने के लिए यज्ञीय परम्पराओं को पुनर्जीवित करने का है।

रामगंज मंडी का निश्चय सराहनीय है, प्रेरणा और प्रकाश देने वाला है। देश में अन्यत्र कहाँ से इनका अनुकरण करने का उत्साह उठता है, यह देखना है। कई स्थानों से 101 कुण्डों वाले यज्ञों की आशा है। 24 हजार और सवालक्ष के यज्ञ तो अतीव सरल हैं, इनमें झालरापाटन के घनश्यामजी जैसे साधारण स्थिति के व्यक्ति भी आश्चर्यजनक रीति से सफल हो सकते हैं। माता अपना उद्देश्य पूर्ण कराने के लिए अनेक व्यक्तियों और अनेक स्थानों को अमर बनाने वाला श्रेय देने जा रही है, देखना यही है कि ऐसे बड़भागी बनने का श्रेय किन स्थानों और व्यक्तियों को प्राप्त होता है।

*समाप्त*

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