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Magazine - Year 1958 - Version 2

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गायत्री-उपासना के अनुभव

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जप के प्रभाव से परीक्षोत्तीर्ण

श्री मदनमोहन जी सारस्वत जोधपुर (राजस्थान) से लिखते हैं- मेरा पुत्र ओमनारायण इस वर्ष सरदार हाई स्कूल जोधपूर से मैट्रिक की परीक्षा में बैठा। वह सब विषयों में तो पास हो गया पर हिन्दी (अनिवार्य) के पर्चे में उसका नाम फेल होने वालो की सूची में रख दिया गया। वह पहले वर्ष में भी फेल हो चुका था और इस वर्ष पूर्ण परिश्रम करने पर भी ऐसा नतीजा देखकर बड़ा दुखी हुआ और दिन में सूखकर बीमार सा हो गया। उसकी माँ ने कहा कि सवा लक्ष के जप का अनुष्ठान कर लो तो पास हो जाओगे। उसने जप का संकल्प किया। फीस दाखिल करके कापी को दुबारा जाँचने की अर्जी भेज दी 15 दिन बाद ही (ता. 19 जुलाई) उसे द्वितीय श्रेणी में पास घोषित कर दिया गया। अब वह फर्स्ट ईयर में, जसवन्त कालेज जोधपुर में पढ़ रहा है। इससे वह गायत्री माता का दृढ़ उपासक बन गया है।

मृत्यु से बच्चे की रक्षा

पकड़ी (बसन्त) जि. बलिया की गायत्री-शाखा के मन्त्री श्री महातम त्रिपाठी लिखते हैं कि मेरे भाई के जितने बच्चे होते थे सब मर जाते थे। इससे मैंने इस बार गायत्री कवच लिखकर चाँदी के ताबीज में बच्ची के गले में बाँध दिया। अब वह तीन वर्ष की हो चुकी है। बीमार तो कई बार हुई पर गायत्री माता की कृपा से सदैव रक्षा हो जाती है।

भयंकर सर्प दंशन से रक्षा

पं. नत्थूलाल जी निगोही शाहजहाँनपुर से लिखते हैं कि ता. 9 सितम्बर को ग्राम अहमदपुर जि. पीलीभीत के प. सुखलाल जी को एक भयानक विषैले सर्प ने काट लिया। लोगों ने केवल गायत्री मंत्र पढ़कर बन्द लगा दिया और इसी से झाड़-फूँक भी की। सुखलाल पहले तो बेहोश हो गया, पर तीसरे दिन गायत्री के प्रभाव से ही बिलकुल स्वस्थ हो गया। जो कोई चाहे अहमदपुर के किसी भी व्यक्ति से इस घटना की सच्चाई की जाँच कर सकता है।

प्रेत बाधा दूर हुई

श्री रामाश्रय त्रिपाठी हड़हा (हरदोई) से सूचित करते हैं कि श्रीमती मुन्नीदेवी को प्रेत सताया करता था। उन्होंने गायत्री की महिमा सुनकर मन्त्र लेखन का कार्य आरम्भ किया। एक दिन उन्हीं के परिवार के एक प्रेत पूजक व्यक्ति पर प्रेत आया और स्वयं कहने लगा- “मैं इसे सताता था और अब इसके पास ऐसी अमोध शक्ति आ गयी है कि अब मैं इसके पास नहीं जा सकता।” इस आश्चर्यजनक घटना को देखकर अब वे मुन्नीदेवी की भक्ति और भी दृढ़ हो गयी है। अब वह 130 मन्त्र रोज लिखती हैं, शाम को एक माला का जप करती हैं और त्यौहारों पर हवन भी करती हैं।

सम्पत्ति की प्राप्ति

श्री सीताराम शर्मा अध्यापक देवरवा ‘दिगौड़ा’ से लिखते हैं कि हमारे यहाँ गायत्री - शाखा की स्थापना हुई थी और मैं भी उसका सदस्य बनकर नियमित पूजा-पाठ करने लगा। इससे गायत्री माता की मेरे ऊपर कृपा हुई और इसी गाँव के निवासी मेरे एक दूर के सम्बन्धी ने मुझको अपना मकान, जिसमें मैं एक रिश्तेदार की हैसियत से रह रहा था, दे दिया। माता की उपासना करने से निःसंदेह सबका कल्याण ही होता है।

कन्या की प्राण रक्षा हुई

श्री कन्चनलाल, मंत्री गायत्री शाखा, हथौड़ा बुजुर्ग (शाहजहाँपुर) लिखते हैं कि इसी क्वार सुदी 11 को मेरी भतीजी कुसुमकुमारी को काले साँप ने काट लिया। रात को 10 बजे उसकी दशा खराब देखकर मैं उसे शहर की तरफ ले चला, पर उतने समय किसी डॉक्टर के मिलने की सम्भावना न थी। मैंने माता को सहायतार्थ पुकारा। अचानक मुझे अपने फार्म के एक नये बाबू हरीसिंह जी सामने से आते मिल गये। वे मुझे सान्त्वना देकर अपने बंगले में ले गए और दवा दी जिससे एक घण्टा में कन्या होश में आ गई और अब स्वस्थ है।

घायल होने से बचा

श्री जगतराम पस्तोर टीकमगढ़ (म.प्र.) से लिखते हैं-मेरी पाठशाला के समीप एक ट्रक-ड्राइवर मिट्टी डालते थे, उनसे परिचय हो गया। एक दिन वे टीकमगढ़ वापस जा रहे थे कि मुझ से रास्ते में भेंट हो गई। ट्रक को ठहराकर वे कहने लगे कि “चलो, टीकमगढ़ चलते हो” मैं आन्तरिक इच्छा न होते हुए भी ट्रक में बैठ गया। ट्रक के पिछले भाग में 16 बेलदार थे और मेरी बगल में सामने की सीट पर ट्रक-मालिक के एक रिश्तेदार थे। ड्राइवर नशे में था और उसने कई बार ट्रक को गलत चलाने के बाद अन्त में एक बिजली के खम्भे से टकरा ही दिया। जिस समय ट्रक टकराया मैंने माता से रक्षा की प्रार्थना की और आश्चर्य है कि ट्रक में सवार 19 व्यक्तियों में से ही ऐसा था जिसके जरा भी चोट नहीं आई थी।

कुंए में गिर जाने पर भी जान बची

हाँसलपुर गाँव से भूतपूर्व जेल वार्डर श्री पन्चसिंह जी लिखते हैं- डोल ग्यारस के अवसर पर रात के समय ग्राम निवासी रुक्मणी हरण का नाटक कर रहे थे। वहाँ एक कुँए के चबूतरे पर बैठकर 7-8 वर्ष की एक कन्या खेल देख रही थी। वह अचानक कुँए में गिर गई। आठ दस मिनट के बाद जब उसे ऊपर निकाला गया तो वह बेहोश थी। यह देखकर मैंने कहा हे वेदमाता यह कन्या होश में आ जाय तो मैं तेरी 100 माला फेरुँगा। थोड़ी ही देर में उसे होश हो गया और सब लोग वेदमाता की जय-जयकार करने लगे।

भूत भाग गया

चाँपा (विलासपूर) से वैद्य पुनीरामजी लिखते हैं एक सज्जन, जो जाति के सुनार हैं, प्रेत बाधा के कारण बड़ा दुःख पा रहे थे। भूत सब चीजों को अस्त-व्यस्त कर देता था जिससे अनेक बार पति-पत्नी में लड़ाई भी हो जाती थी। उन्होंने किसी से गायत्री मन्त्र का चमत्कारिक गुण सुनकर स्वयं ही जैसे बना तैसे ही गायत्री उपासना आरम्भ कर दी और एक दिन-रात के सात बजे हजार आहुति का हवन करने भी बैठ गये। जिस समय रात के 12 बजे तो सफेद साड़ी पहिने एक काली सी स्त्री खिड़की के पास प्रकट हुई और बोली “मैं जाती हूँ, मुझे स्थान बतलाओ अब यहाँ मैं पल भर भी नहीं ठहर सकती।” पर वे हवन करते ही रहे और नतीजा यह हुआ कि घण्टे भर बाद वह प्रेत छाया अदृश्य हो गई। तब से उस घर में शाँति है।

समय पर सहायता प्राप्त हुई

खेमराजसिंह अध्यापक हिन्दी स्कूल टिटिलागढ़ (उड़ीसा) में लिखते हैं मैंने अपने पिता की अस्थि प्रवाह के लिए 250) रुपये इकट्ठा करके रखा था, पर मेरे एक परम मित्र लड़की की शादी होने से दो सौ रुपये माँग ले गये। मुझे। किसी भी तरह प्रयाग जाकर अस्थि प्रवाह करना था। इसके लिए मैं बड़ा चिन्तित था और गायत्री माता से प्रार्थना कर रहा था। अचानक स्वप्न में मुझसे माता ने कहा “तीन दिन बाद तुझे रुपये अवश्य मिल जाएंगे।” ऐसा ही हुआ। तीसरे दिन मेरी एक मित्र से भेंट हुई जो बहुत दिन बाद आये थे। मैंने उनसे अपनी दशा बतलाई, तो वे हँसकर कहने लगे कि इसमें चिंता की क्या बात है? उसी दिन उनसे मैं रुपया ले आया और अपना कर्तव्य पूरा किया। इसी प्रकार ता. 2 जुलाई 57 को मैं मोटर बस में बैठकर एक गाँव को जा रहा था। रास्ते में मन्त्र जपने लगा। कुसुमपुरी गाँव के पास मोटर का पहिया निकल गया और गाड़ी सड़क के किनारे से पाँच गज आगे निकल गई। मैं दरवाजे के पास ही बैठा था तो भी माता ने मेरी पूर्ण रूप में रक्षा की, अन्यथा आज मैं किसी और ही लोक में पहुँच गया होता।

वेदमाता की कृपा से कार्य सिद्धि

श्री शिवशक्तिलाल जी रतलाम से लिखते हैं मेरे एक मित्र पश्चिमी रेलवे में रिकार्ड कीपर के पद पर सन् 1942 में थे। किसी अज्ञात कारण से उनको देहात के एक छोटे स्टेशन पर भेज दिया गया। वहाँ जाकर उन्होंने सवा लाख गायत्री जप 15 दिन में किया। इसके फल से उसी समय उनको पुराने पद पर भेज दिया गया। तब से उन्होंने वेदमाता की महिमा को समझकर समस्त परिवार को उसी की शरण में अर्पण कर आराधना शुरू की परिणाम आजकल वे रेलवे में एक महत्वपूर्ण पद पर हैं और 400 रु. मासिक वेतन पाते हैं और परिवार की तरफ से भी सुखी हैं। (2) मैंने भी अभी हाल में विशेष अनुष्ठान आरम्भ किया था। मेरे सन् 1952 के कुछ रुपये शासन से मिलने बाकी थे और एक महत्वपूर्ण अपील भी दायर की थी, जिसकी कोई सुनवाई ही न हो रही थी। वेदमाता की कृपा से अनुष्ठान के 4 दिन बाद ही रुपयों के पेमेंट होने की सूचना मिल गई व अपील की सुनवाई भी आरम्भ हो गई। वास्तव में माता अपने भक्तों की पुकार शीघ्र सुनती है।

18 साल बाद पुत्र का जन्म हुआ

श्री धुन्दीसिंह शर्मा (बड़ेसरा, अलीगढ़) से लिखते हैं कि हमारे यहाँ के श्री हुन्डीलाल टेलर मास्टर अखण्ड ज्योति का गायत्री अंक पढ़ने से गायत्री उपासना में संलग्न हुये थे। 1955 चैत्र की नवरात्रियों में आप तपोभूमि मथुरा भी गये थे और वहाँ आचार्य जी से अपनी मनोकामना कह सुनाई। उन्होंने साधना में लगे रहने को कहा। माता की कृपा से इसी 14 अगस्त को इनके घर में 18 वर्ष के बाद पुत्र का जन्म हुआ, जिससे सबको बड़ा आश्चर्य और प्रसन्नता हुई।

कैंसर का भयंकर रोग मिट गया

श्री कन्छोदीलाल यादव (सागर) से लिखते हैं कि मेरी माता के गले में कैंसर हो गया था। तकलीफ के कारण वे छटपटाती थी। सिविल सर्जन और अन्य डॉक्टर रोग को असाध्य बतला चुके थे। लोगों ने दूसरे बड़े शहर में जाकर इलाज कराने की सलाह दी। पर मैंने कहीं न जाकर गायत्री माता की शरण ली और इसके लिए सवालक्ष का पुरश्चरण किया। माता की कृपा से वह भयंकर रोग शीघ्र ही अच्छा हो गया।

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