
यदि आप ये गलतियाँ करते हैं, तो जीवन कभी सुख शाँतिमय नहीं हो सकता
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(डॉक्टर रामचरण महेन्द्र, पी. एच. डी.
एक विद्वान जब जीवन के अन्तिम काल में पहुँचा, तब अपने समग्र जीवन के निष्कर्षों को संसार को सौंपते हुए उसने कहा था, “अपने सारे जीवन में मैंने सात जीवन सूत्रों को पकड़ा है। मेरा निश्चित मत है कि जो व्यक्ति इन सात गलतियों को नहीं करेगा, वह निश्चय ही सुखी रहेगा। ये जीवन को समस्त खतरों से बचाने वाले वे सिद्धान्त हैं। जो जीवन, समाज और संसार के सार तत्व कहे जा सकते हैं। मैंने सदा इन गलतियों से बचकर जीवन को समुन्नत बनाया है। आप भी इन गलतियों से सावधान रहें और सफलता के सुख लूटें।” आइये देखे ये सात कौन सी गलतियाँ है जिनसे हमें बचते रहना चाहिए।
1- यह भ्रम कि व्यक्तिगत उन्नति दूसरों को कुचलकर, पीछे रखकर की जाती है उत्पात का मूल है। अनेक व्यक्ति समझते हैं कि बाहर के व्यक्ति, उनके अफसर, चुगली करने वाले, या विरोधी षड़यन्त्र करके उन्हें पीछे रखे हुए है और आगे बढ़ने नहीं दे रहे हैं। यह वास्तव में गलत धारणा है। संसार में कोई किसी की उन्नति नहीं रोक सकता। सब मार्ग अलग-अलग हैं। सब की उन्नति के रास्ते खुले हुए हैं। कोई किसी का मार्ग अवरुद्ध नहीं कर सकता। हम किसी दूसरे का हक मारकर या उसे नीचे गिराकर स्वयं स्थान पर नहीं चढ़ सकते। हर एक को अलग-अलग अपना व्यक्तिगत प्रयत्न ही करना होता है, तभी वह समुन्नत होता है। अनेक ऐसे उदाहरण मिलते हैं, जिनमें ऊँचे अफसरों को नीचे गिराकर, चुगली कर या गलत तरीकों से नीचे गिरा कर ऊँचा उठने का उपक्रम किया गया है, पर ये प्रयत्न निष्फल हुए हैं। अतः व्यक्तिगत उन्नति में किसी दूसरे को बाधक न माने, न दूसरों को अनुचित रीति से गिराने का ही प्रयत्न करें। आपका मार्ग अलग ही है और वह आपके लिए सदा खुला हुआ है।
2- जो बातें बदली या सही नहीं की जा सकती, जो अवश्यम्भावी हैं, उनके लिए चिन्तित होना व्यर्थ है। हम अपना बहुत सा समय उन बातों के चिन्तन में लगाकर प्राणशक्ति का क्षय कर लेते हैं, जिन पर वस्तुतः हमारा कोई वश नहीं है, जिन्हें हम बदल ही नहीं सकते और जो हमारी पहुँच के बाहर हैं। व्यर्थ की चिन्ताएँ हमारे मानसिक स्वास्थ्य को नष्ट कर देती है और निराधार भयों से परिपूर्ण कर देती है। भय, स्वास्थ्य और शान्ति का भयानक शत्रु है। हर क्षण किसी आने वाली आपत्ति की चिन्ता करना या अनहोनी बेबुनियाद कल्पनाएं करना अपनी शक्तियों का क्षय कर लेना है। मनोवैज्ञानिकों ने परीक्षण करके देखा है कि चिन्ता से मनुष्य इतना सूख जाता है कि उसकी उत्पादक शक्तियाँ विकसित होने से पूर्व ही मारी जाती हैं।
जिन बातों पर आपका कोई वश नहीं चल सकता, उनके लिए चिन्ता करने से आपके हाथ क्या आयेगा? उलटे जो शक्ति किसी दूसरे कार्य में आपकी सहायता करती, वह नष्ट हो जायगी।
3- यह भ्रान्तिपूर्ण धारणा है कि अमुक कार्य असम्भव है, क्योंकि हम स्वयं उसे पूर्ण नहीं कर सकते। “असम्भव”, “असम्भव”- यही बुरे शब्द निरन्तर हमें पस्त हिम्मत करते रहते हैं। कोई काम हम न कर सके हों, यह एक बात है, पर वह असम्भव है या नहीं हो सकती- यह गलत है। हर कार्य जो मनुष्य कर सका है, आप भी बखूबी कर सकते हैं। ऊँचे उठ सकते हैं। शर्त यही है कि हम श्रम, लगन और धैर्यपूर्वक कार्य करते चलें-
मृतास्त एवाय यशो न येषाँ
अन्धास्त एव श्रुतिवर्जिता ये।
ये दानशीला न नपुँसकास्ते
ये कर्मशीला न त एव शोच्याः॥ (विदुर)
“जिन्होने यश पाने के लिए कोई प्रयत्न नहीं किया, वे मरे हुए हैं। जिन्होंने विद्या प्राप्त नहीं की, उनके नेत्र बन्द रहते हैं। जो किसी को कुछ नहीं देते, वे नपुँसक है। जो कर्मशील नहीं है, उनकी दशा शोचनीय है।”
4- अशर्फियों की लूट और कोयलों पर कंजूसी, दूसरे शब्दों में हम छोटे-छोटे कार्यों में फँसे रहकर बड़े और महान् कार्य, जो हम वास्तव में कर सकते हैं, नहीं करते। छोटे कार्यों में ही अपना सारा मूल्य वान समय नष्ट कर देते हैं। वह आदमी, जो बड़ी योजना, बड़ी दुकान, बड़ा कारबार, व्यापार या समाज सेवा का काम बखूबी कर सकता है, साधारण कामों में लगकर नष्ट कर देता है। यह कैसी विडम्बना है।
छोटे कार्य प्रायः आसान होते हैं। उनमें मन को कम परिश्रम करना पड़ता है, फालतू समय मजे में बीतता जाता है। इसलिए बहुत से व्यक्ति ताश खेलने, शतरंज की बाजी में मस्त, या खेल कूद, सिनेमा आदि के कुचक्र में पड़े रहते हैं। स्त्रियाँ सारा दिन छोटे-मोटे बेमतलब के कार्य, आलस्य, दिन में सोना, या फालतू पुस्तकें पढ़ने, इधर-उधर मिलने-जुलने में व्यर्थ कर देती हैं। आठ घण्टे भोजन बनाने या बच्चों के छोटे-छोटे कार्यों में नष्ट कर देती हैं, जबकि वही समय ज्यादा ऊँची और स्थायी कार्यों को पूर्ण करने में व्यय किया जा सकता है। ऊँचे दर्जे के काम अपेक्षाकृत कुछ अधिक श्रम और मानसिक देखभाल माँगते हैं। इनमें हमें प्रयत्नपूर्वक लगना पड़ता है। इनमें इच्छाशक्ति और एकाग्रता की अधिक आवश्यकता पड़ती है। स्मरण रखिये, बड़े और महत्वपूर्ण कार्य आप बखूबी पूरे कर सकते हैं। आपमें उनके लिए पर्याप्त आत्मबल है। निरन्तर उनमें लगे रहने से आप में अदम्य बल और उत्साह आ जायेगा। अपने मन की इच्छा शक्ति द्वारा आपमें अपूर्व बल जाग्रत होता है आपको शुद्ध और बलवान बनाने वाली यह इच्छा शक्ति और एकाग्रता ही है। अतः कामनाओं या उत्तेजनाओं के कारण आप जिन कामों में यकायक लग जाते है, उन्हें छोड़कर बड़े और महत्वपूर्ण कार्यों को ही हाथों में लीजिये। आज नहीं तो कल, वे अवश्य ही पूर्ण होकर रहेंगे। छोटे कामों से शक्ति बचाते रहिये या उन्हें दूसरों से कराइये।
5- स्वाध्याय की आदत न डालकर अपने मन के विकास और परिपुष्टि का पूरा-पूरा अवसर न देना एक ऐसी गलती है जिसकी उम्र भर सजा पानी पड़ती है।
स्वाध्याय मनुष्य को अपनी अपेक्षा समुन्नत और परिपक्व मनुष्यों के विचार देने का अमोघ उपाय है। उत्तम ग्रन्थों से ही कम नई योजनाएं, नई कल्पनाएं और उन्नति की नई दिशाएं पाते हैं। अतः जितनी जल्दी हो दैनिक स्वाध्याय की आदत डालनी चाहिए।
प्रतिदिन कुछ न कुछ उच्च साहित्य पढ़िये और अपने मन को पुष्टिकारक साहित्य से भरपूर करते चाहिये।
ज्ञानवान, विवेकवान और विद्वान बनने का साधन पुस्तकावलोकन ही है। पेट से कोई ज्ञानी नहीं होता वरन् परिस्थिति, संगति एवं वातावरण में रह कर तदनुसार मनोभूमि का निर्माण होता है। जिस दिशा में हमें मस्तिष्क उन्नत करना है, उस दिशा में आगे बढ़े हुए विद्वानों का सत्संग उनकी पुस्तकों द्वारा ही हो सकता है। अतः स्वाध्याय की आदत डालिये।
6-दूसरों को अपने मत, अपनी विचारधारा या आदत के अनुसार ढालने या काम करने को बाध्य करना, एक भारी गलती है।
प्रत्येक मनुष्य स्वयं अपना दृष्टिकोण, अपनी आदतें, अपना पृथक ही संसार रखता है। हम उसके सुधार का उद्योग करते हैं, तो उसे एक नये रूप में ढलना पड़ता है। नई आदत डालने में उसे कष्ट होता है। अतः वह विरोध करता है। इस विरोध से शत्रुता उत्पन्न होती है। सुधार के स्थान पर कटुता फैलती जाती है। इसलिए मिल-जुलकर कार्य निकालना ही उचित है। कोई दूसरे को सुधार नहीं सका है, हाँ विरोधियों की संख्या में अवश्य वृद्धि हुई है।
उपयुक्त गलतियों से सदा बचकर जीवन पथ पर अग्रसर होना चाहिए।