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Magazine - Year 1958 - Version 2

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वह कार्य जिसे किये बिना काम न चलेगा?हर परिजन के सामने एक चुनौती के रूप में सामने आ गया।

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(श्रीराम शर्मा आचार्य )

अखण्ड ज्योति के गत अंक में आगामी कार्तिक सुदी 12 से 15 तक होने वाली पूर्णाहुति का वृत्तान्त छप चुका है। 1000 कुण्डों की 101 यज्ञशालाओं में 1 लाख होताओं द्वारा 240 लाख आहुतियाँ होने तथा सभी आगन्तुकों एवं दर्शकों के लिए निःशुल्क भोजन एवं ठहरने की व्यवस्था होने का यह संकल्प इस युग का अभूतपूर्व धर्मानुष्ठान है। इस आयोजन के छोटे-छोटे कार्य भी इतने बड़े हैं कि उनकी पूर्ति एवं व्यवस्था की बात सोचने मात्र से सिर चकराने लगता है। इतने दुर्बल कन्धों पर इतनी बड़ी जिम्मेदारी उठाने की बात सोचने से सचमुच ऐसा लगता है कि इसका सम्पन्न एवं सफल होना असंभव जैसा है, पर जो लोग मानवीय शक्ति की तुच्छता एवं अदृश्य शक्तियों की महत्ता को जानते है, उनके लिए इसमें अचंभे की कुछ बात नहीं है। मनुष्य के लिए सचमुच यह सब कठिन है, पर राई को पर्वत और सुमेरु को तृण बना देने वाली शक्ति के लिए यह सब कुछ भी कठिन नहीं है। उसी सर्व शक्तिमान शक्ति की प्रेरणा एवं पथ-प्रदर्शन में यह संकल्प किया गया है। तपोभूमि में ऐसे ही दुस्साध्य संकल्प समय-समय पर होते रहे हैं। उनके पीछे व्यक्ति विशेष का नहीं, किसी अदृश्य प्रेरक सत्ता का मार्ग-दर्शन रहा है और उसी की शक्ति से वे पूर्ण होते रहे हैं। यह इतना विशाल आयोजन जिसमें अत्यधिक जन-बल, बुद्धि-बल, व्यवस्था-बल, साधन-बल, एवं धन-बल की जरूरत पड़ेगी सामान्य मनुष्य नहीं जुटा सकता। प्रेरक सत्ता सब कुछ करेगी, सफलता सुनिश्चित है। इसके पूर्ण होने में किसी को सन्देह नहीं करना चाहिए।

विश्व-कल्याण की दृष्टि से इस महायज्ञ का लाभ अत्यधिक है। व्यापक असुरता की कुप्रवृत्तियों का समाधान करके उनके स्थान पर दैवी सत्प्रवृत्तियों की स्थापना के लिए यह एक महाअभियान है। विश्व मानव के शरीर में आसुरी अस्वस्था भर गई है, उस विष के फोड़े विभिन्न रंग-रूप के निकल पड़े हैं, अशान्ति और दुःख क्लेशों की अनेक गुत्थियाँ उत्पन्न हो गई हैं। इनके उपचार के लिए भौतिक प्रयत्न ऐसे ही हैं, जैसे फोड़े पर मरहम चुपड़ना। यह आध्यात्मिक उपचार जो गायत्री-परिवार ने आरम्भ किया है ऐसा ही है, जैसा रोगी के रक्त को शुद्ध करने के लिए औषधि-सेवन एवं आपरेशन। इस यज्ञानुष्ठान एवं साँस्कृतिक पुनरुत्थान के विशाल कार्यक्रम को विश्व-शान्ति के लिए-विश्व मानव की अधिक आरोग्यता के लिए-औषधि सेवन, आपरेशन एवं कल्प चिकित्सा जैसा आध्यात्मिक उपचार कहा जा सकता है। यह लोक-कल्याण की, मानव जाति की सेवा का उत्कृष्ट माध्यम है। इसकी सफलता में योग देना विश्व मानव की-भगवान की-पूजा का एक विवेकपूर्ण आयोजन है।

जो लोग इसमें सहयोग देंगे वे आध्यात्मिक दृष्टि से, परमार्थिक दृष्टि से एक बहुत बड़ा कार्य करेंगे। इतने विशाल धर्मानुष्ठान से जो शक्ति उत्पन्न होती है, उसे प्राप्त करके अपना आत्म-बल बढ़ावेंगे, अन्तःकरण शुद्ध करेंगे, आत्मोन्नति का द्वार खोलेंगे, साथ ही भौतिक दृष्टि से भी कुछ घाटे में न रहेंगे। पूर्णाहुति के समय उत्पन्न होने वाले प्रचंड शक्तिशाली वातावरण में उन्हें अपने कल्याण का बहुत कुछ तत्व मिलेगा। इस यज्ञ में सम्मिलित होने वाले व्यक्ति वह लाभ प्राप्त कर सकेंगे, जो साधारणतः वर्षों तक कठिन साधना करने पर भी उपलब्ध करना कठिन है। शारीरिक विकारों से त्रस्त, मानसिक अपूर्णता एवं उद्वेगों से ग्रस्त, सुसन्तति के लिए तरसने वाले, चिन्ता और भय से परेशान, आपत्तिग्रस्त व्यक्ति इस अवसर का भरपूर लाभ उठा सकते हैं। अन्तःकरण पर चढ़े हुए कुसंस्कारों को जलाने के लिए यह अवसर सोने को तपाकर शुद्ध करने जैसा ही है। भीतर के तमोगुण को हटाकर आत्मा में दिव्य सतोगुण की स्थापना ऐसे अवसरों पर ही होती है। विश्व-शान्ति, साँस्कृतिक पुनरुत्थान एवं देवत्व की अभिवृद्धि के सार्वभौम लाभ तो होंगे ही, साथ ही इस यज्ञ में सम्मिलित रहने वाले व्यक्तिगत सत्परिणामों को भी आशाजनक मात्रा में प्राप्त कर सकेंगे।

एक बहुत बड़ा लाभ गायत्री-परिवार के संगठन का होगा। वह यह कि-इस संगठन के सदस्यों की संख्या बहुत बढ़ गई है, उसमें खरे की अपेक्षा खोटे सिक्के बहुत भर गये हैं। अब समय आ गया है कि उनकी छाँट, सफाई और परीक्षा कर ली जाय। दूध पीने के लिए लैला के द्वार पर अड़े रहने वाले मजनू कौन हैं? और लैला को खून की जरूरत पड़े तो अपनी नस काट कर कटोरा भर देने वाले कौन हैं। इसकी परीक्षा अगले दस महीनों में हो जायगी? यह अवसर गायत्री-उपासकों के लिए निश्चित रूप से एक चुनौती एवं परीक्षा जैसा है। व्यक्तिगत जीवन में अनेकों कठिनाइयाँ मनुष्यों को रहती हैं। समय की कमी, फुरसत न होना, आर्थिक कठिनाई, अस्वस्थता, घर में अकेला होना, आदि अनेकों कारण गिनाये जा सकते हैं। सभी वास्तविक हैं पर यह भी इतना ही वास्तविक है कि अनेक बाधाओं के रहते हुए भी मनुष्य चाहे तो अनेक कठिनाईयों एवं व्यस्तताओं के बीच भी बहुत कुछ कर सकता है। अनेकों कर रहे हैं। प्रश्न केवल श्रद्धा-अश्रद्धा, रुचि-अरुचि, आलस्य-उत्साह का है। अब इस प्रश्न का उत्तर हम में से हरएक को देकर अपनी स्थिति किस प्रकार की है- यह स्पष्ट करना होगा।

रिवाज है कि जो स्वजन सम्बन्धी विवाह-शादी, मौत, मुसीबत में भी सम्मिलित होने नहीं पाते या सहयोग नहीं करते, उनके बारे में सोच लिया जाता है कि इनसे हमारा रिश्ता टूट गया। लोग बहुत दिन तक इसका बुरा भी मानते हैं कि अमुक सम्बन्धी हमारी लड़की के विवाह में सम्मिलित होने नहीं आया था। इसके विपरीत जो लोग जरूरत के वक्त जितना अधिक सहयोग करते हैं या उत्साह दिखाते हैं, वे उतने ही घनिष्ठ एवं आत्मीय माने जाते हैं। वक्त पर अपने पराये की परीक्षा होती है। आड़े वक्त पर काम आने या न आने की बात से सच्चे झूठे मित्रों की परख सहज ही हो जाती है। गायत्री परिवार के सदस्यों की संख्या बढ़े यह ठीक है, पर साथ ही यह भी आवश्यक है कि इनमें से खरे-खोटों की परख भी होती रहे। ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान की पूर्णाहुति इस दृष्टि से एक उचित समय है।

गायत्री परिवार के खरे परिजनों के लिए यह आवश्यक है कि वे अगले दस महीनों में पूरी तत्परता एवं जिम्मेदारी के साथ कार्य-संलग्न हों। ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान की पूर्णाहुति को सफल बनाने के लिए वही लगन रखे, जैसी कोई व्यक्ति अपने घर में विवाह-शादी होने के समय या किसी चुनाव में खड़े होने पर वोट माँगने के लिए प्रयत्न करता है। बात बिगड़ने का अवसर आता है, तो लोग अपना सब कुछ बाजी पर लगा देते हैं। इतना बड़ा आयोजन करने की घोषणा कर देने पर यदि वह असफल रहे तो यह आचार्य जी की, तपोभूमि की, ही बात नहीं बिगड़ेगी वरन् सारे गायत्री परिवार की बात बिगड़ेगी। इतनी बड़ी लोक हँसाई कराके अपनी संस्था किस मुँह से जीवित रहेगी?

ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान की पूर्णाहुति के लिए 1 लाख होताओं की आवश्यकता है। यह कार्य सबसे बड़ा एवं सबसे कठिन है। होता और यजमान भी परीक्षित रखे गये हैं। जो सवालक्ष अनुष्ठान एवं 52 उपवास करें, ऐसे श्रद्धालु साधक? एक लाख ढूँढ़ निकालना या तैयार करना सचमुच ही बहुत कठिन है। ऐसे व्यक्ति तलाश करने के लिए पहले अधिक संख्या में साधारण गायत्री उपासक गायत्री सदस्य बनाने पड़ेंगे तथा गायत्री माता एवं यज्ञ पिता का महत्व विस्तार पूर्वक अधिकाधिक जनता को समझाना पड़ेगा। इसके लिए धर्म फेरी लगाये बिना काम नहीं चल सकता। चूँकि ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान के अंतर्गत 24 लाख व्यक्तियों के ब्रह्मभोज कराने आध्यात्मिक शिक्षा देने गायत्री और यज्ञ का महत्व बताने का कार्य भी करना है। इसलिए यह दोनों कार्य एक ही विधि से धर्म-फेरी से पूर्ण होने संभव हैं।

इस वर्ष सन् 58 में 1250 करोड़ जप करना है। 1.25 लाख जप करने वाले 1 लाख याज्ञिकों की आवश्यकता इसी दृष्टि से है। यों 240 लाख आहुतियाँ 1 हजार कुण्डों में 10 हजार व्यक्ति कर सकते हैं। सवाल आहुतियाँ पूरी होने का नहीं वरन् यह है कि 1 लाख गायत्री उपासकों की श्रद्धा शक्ति का एकीकरण केन्द्रीकरण किया जाय और उनके सम्मिलित तप से 1250 करोड़ जप 10 महीने में पूर्ण हो। यह सारी प्रक्रिया एक ही कार्य पर अवलम्बित है कि अधिकाधिक लोगों तक इस वर्ष गायत्री माता का सन्देश पहुँचाया जाय। घर-घर अलख जगाया जाय- किसी व्यक्ति को यह कहने का अवसर न रहे कि हमें गायत्री और यज्ञ की महत्ता मालूम न थी अन्यथा हम भी उन्हें अपनाते। इतने बड़े ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान का पता हमें न था हम भी उसमें सम्मिलित होते। यह शिकायत करने का किसी को अवसर न रहे यह प्रयत्न हमें करना है। यों जिन पर प्रभु की विशेष कृपा होगी, जिनका कल्याण होने वाला होगा, उन्हीं की प्रवृत्ति इस ओर झुकेगी, उन्हीं की बुद्धि इसका महत्व समझेगी। सब कोई इसका महत्व नहीं समझेंगे और न इधर ध्यान देंगे, पर उनकी परिस्थिति की चिन्ता न करते हुए हमें तो अपना कर्तव्य पालन करना है। घर-घर में गायत्री माता और यज्ञ पिता के सन्देश पहुँचा देने का यही 10 महीने का अवसर है और इस अवसर का हमें एक क्षण भी गँवाये बिना पूरा-पूरा उपयोग करना है।

दो कार्यक्रम प्रत्येक सदस्य को धर्म फेरी और ज्ञान मन्दिरों की स्थापना के कार्य सौंपे गये हैं। क्योंकि इन्हीं के द्वारा जनता में गायत्री और यज्ञ की महत्ता का व्यापक प्रसार होगा और उसके फलस्वरूप 1 लाख व्रतधारी याज्ञिक प्राप्त हो सकेंगे। अब इसी कार्य में हम सबको लगना है। ज्ञान मन्दिरों की स्थापना के लिए चार-चार आने मूल्य की 52 पुस्तकों का गायत्री साहित्य छपने दे दिया गया है वह 2 महीने में फरवरी के अन्त तक छपकर तैयार हो जायगा। उसे मँगाने और भेजने की प्रक्रिया दो महीने बाद चलेगी। अभी इसी समय से आज से ही जो कार्य करने का है कि वह यह है कि सक्रिय परिजन दो-दो चार-चार की टोली बनाकर गायत्री प्रचार की तीर्थ यात्रा, परिक्रमा, धर्म फेरी करने के लिए समय निकालें। प्रत्येक घर में पूर्णाहुति का सन्देश पहुँचाने वाला कार्यक्रम सामने रहे। बड़ा नगर है तो उसके गली मुहल्ले कई दिनों में और बड़े गांवों छोटे गांवों के घरों की संख्या देखकर एक दिन में एक या एक से अधिक गाँवों की धर्म फेरी का कार्यक्रम रखा जा सकता है।

धर्म-फेरी के लिए वितरण करने योग्य गायत्री साहित्य साथ रहना चाहिए और वह घर-घर में बिना मूल्य दिया जाना चाहिए। परिपत्र और पुस्तिकाएं दोनों तरह का वितरण साहित्य छापा गया है। जहाँ कुछ विशेष आशा न हो उस घर में परिपत्र देना पर्याप्त है। जिन घर में कुछ अधिक धर्म श्रद्धा दिखाई पड़े वहाँ पुस्तक देनी चाहिए। इस प्रकार कई-कई मील के सीमा के घरों तक गायत्री यज्ञ का सन्देश पहुँचाया जाना चाहिए। इस प्रचार से प्रभावित लोगों से पुनः मिलकर उन्हें गायत्री परिवार का सदस्य एवं होता-यजमान बनाया जाना संभव हो सकेगा। अभी कई महीने यही प्रचार कार्य जारी रहना चाहिए। ज्ञान मन्दिरों की स्थापना का कार्य दो महीने बाद हाथ में लेना चाहिये।

धर्मार्थ वितरण योग्य साहित्य की धर्म-फेरी में प्रधान रूप से आवश्यकता होगी। इसलिए उसे बड़ी मात्रा में जुटाया जाना आवश्यक है। यह व्यवस्था परिजनों को ही आपस में मिलकर करनी चाहिए। इसके लिए हर सदस्य कम से कम एक मुट्ठी अन्न या एक पैसा रोज निकाले। एक छोटा धर्म घट कोई बर्तन या डिब्बा रख लेना चाहिए और सोचना चाहिए कि गायत्री माता, यज्ञ पिता, प्रकाशप्रद आचार्य को सम्मिलित भोग लगाने के लिए मुझे कम से कम एक मुट्ठी अन्न या एक पैसा अवश्य देना है। वजन बहुत थोड़ा है। इससे कई गुना खर्च तो घर के चूहे कर देते हैं। पर चूँकि धर्म का भार इस युग के कृपण आदमी से इतना भी उठाये नहीं बनता, यह कौड़ियाँ भी उसे गिन्नियों जितनी भारी लगेंगी, बीसियों दलीलें, बीसियों कठिनाइयाँ, बीसियों कुतर्कें लोग इतने तुच्छ धर्म व्यय में भी करेंगे और अपनी सारी अकल इस बात में खर्च करेंगे कि यह बोझ आपके ऊपर न पड़ने पाये और किसी प्रकार बातों की सफाई से इस झंझट से बाल-बाल बच जायँ। इन कंजूसों को छोड़ ही देना उचित है, क्योंकि इतने कृपणों के पैसे यदि यज्ञ में लगे तो विघ्न ही पड़ेगा। शेष सदस्य- हमारा विश्वास है कि अधिकाँश सदस्य इस धर्म भार को आसानी से उठा लेंगे और एक-एक मुट्ठी अन्न या एक-एक पैसे की अपेक्षा इससे कई-कई गुना अन्न उदारतापूर्वक बड़ी प्रसन्नता के साथ देने को तैयार हो जावेंगे। गायत्री परिवार के सदस्यों में ऐसे मसखरे भी अधिक हैं, जिन्होंने कौतूहलवश सदस्यता फार्म तो भरा दिया है, पर कोई कर्तव्य सामने आते ही अलग जा खड़े होते हैं। ऐसे लोग अब छट जायेंगे और वे ही सामने रहेंगे, जिनमें वस्तुतः श्रद्धा का बीज मौजूद है वे इतनी छोटी माँग से कभी भी इनकार नहीं कर सकते। हमारा पूरा और पक्का विश्वास है कि ऐसे लोग गायत्री परिवार में हैं और बड़ी संख्या में हैं।

अब हर श्रद्धालु सदस्य को पूर्णाहुति की सफलता के लिए यह दैनिक “धर्म मुट्ठी” निकालनी चाहिए। इस अन्न या पैसे को मासिक या साप्ताहिक रूप से इकट्ठा किया जाना चाहिए और इस पैसे से धर्म-फेरी का वितरण साहित्य मथुरा से मंगाते रहना चाहिए। गत अंक में छपा था कि 6 रु. में 108 पुस्तिकाएं मिलेंगी। अब उसमें और भी सुविधा हो गई है पुस्तिकाएं कुछ कम करके परिपत्र बड़ी संख्या में दिये जा रहे है। 6 रु. में 80 पुस्तिकाएं और 240 परिपत्र भेजे जा रहे हैं। जो 108 घरों की अपेक्षा 320 घरों में सन्देश पहुँचाने का कार्य करेंगे। यदि रेल द्वारा अधिक संख्या में यह साहित्य मँगाया जाय तो पोस्टेज की बचत हो सकती है। उपरोक्त साहित्य का मूल्य 5 रु. और पोस्टेज 1 रु. है। यह रेल से कम लगता है और पोस्टेज की बचत होती है। रेल से मँगाने वालों पर थोड़ा रेल भाड़ा तो लगेगा, पर 6 रु. वाला साहित्य 5 रु. में मिलने से अन्त तक बचत होगी। पर यह लाभ उन्हीं को है, जो कम से कम बीस रुपये के साहित्य मँगाये और रेलवे स्टेशन जिनके पास हो।

पूर्णाहुति के लिए धन संग्रह करने की कोई योजना नहीं है। धर्म मुट्ठी का संग्रहीत अन्न या पैसा पूर्णाहुति खर्च के लिए न लिया जायगा। यह तो केवल प्रचार साहित्य वितरण करने के लिए ही होगा। पूर्णाहुति के इतने महत्व के इतने पवित्र कार्य में बहुत उच्च कोटी की श्रद्धा से डूबा हुआ पैसा ही लगेगा और वह माँगने से नहीं बना माँगे ही आवेगा। इसलिए उसके लिए किसी से कोई याचना या अपील नहीं की जायगी। हाँ, धर्म-फेरी के लिए साहित्य वितरण के लिए हर सदस्य पर जोर डाला जा रहा है। वह हर सदस्य को करना ही चाहिए। यह किये बिना धर्म फेरी के लिए समय और साहित्य के लिए धर्म मुट्ठी दिये बिना करोड़ों घरों में गायत्री माता यज्ञ पिता का सन्देश न पहुँचाया जा सकेगा, और यदि यह न हो सकेगा तो ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान की पूर्णाहुति का संकल्प भी सफल न हो सकेगा।

परिजनों को अब कुछ करना है। जो करना है वह अभी से किया जाना चाहिए ताकि जो 10 महीने का समय शेष है, उसका सदुपयोग हो सके। जो सक्रिय सदस्य है- शाखा संचालक है, वे अपना निज का काम किसी दूसरे के सुपुर्द करे, नौकरी से कुछ महीने की छुट्टी ले लें, साधु-संन्यासी, आत्मदानी, पारिवारिक जिम्मेदारी से मुक्त, पेंशनर, पूरा समय इस प्रचार कार्य में लगा दें। अपने साथी कुछ और ढूँढ़कर धर्म फेरी के लिए निकलें। धर्म मुट्ठी को व्यापक बनाये और उस पैसे से वितरण साहित्य लेकर सुदूर क्षेत्र में अलख जगाने के लिये संलग्न हो जावें। हमें आशा और विश्वास है कि सच्चे स्वजन इस परीक्षा के अवसर पर बगलें न झांकेंगे, आगे बढ़ेंगे और अपनी कर्तव्य परायणता एवं श्रद्धा का प्रमाण उपस्थित करेंगे।

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