
मधु (शहद) के अनुपम गुण
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(श्री जगन्नाथ प्रभाशंकर, बड़ौदा)
हम नित्य-प्रति जिन खाद्य पदार्थों का प्रयोग करते हैं उनमें दूध और मधु का महत्व बहुत अधिक है। ये दोनों शीघ्र ही पूर्ण रूप से पच जाते हैं और शारीरिक विकास तथा पोषण की दृष्टि से अद्वितीय गुणकारी सिद्ध होते हैं। हमारे देश के प्राचीन साहित्य में जगह-जगह इनकी प्रशंसा की गई है। पुराणों में जो सात समुद्र बतलाये गये हैं उनमें से एक दूध का और दूसरा मधु या शहद का माना गया है। ईसाइयों की बाइबिल में स्वर्ग का जो वर्णन किया गया है उसमें भी दूध और शहद की बहुतायत का जिक्र है। मुसलमानों के बिहिश्त में भी शहद की नहरों का होना बतलाया गया है। साराँश यह कि प्राचीन काल के सभी धर्म वालों ने शहद को एक स्वर्गीय पदार्थ माना है और आज कल भी वैज्ञानिकों ने परीक्षा करके यही निर्णय किया है कि शहद वास्तव में एक देव दुर्लभ और बहुत ही लाभकारी पदार्थ है।
शहद अनेक रोगों में बहुत हितकारी सिद्ध हुआ है। इस विषय का विस्तृत वर्णन तो चिकित्सा ग्रंथों में ही देखना चाहिये संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि पेट के रोग, ज्वर, पित्त आदि में इसके प्रयोग से थोड़े ही समय में आश्चर्यजनक फल दिखलाई पड़ता है। पेट सम्बन्धी रोगों में सबसे पहले अपना भोजन जहाँ तक हो सके सादा करना चाहिये और उसका परिमाण भी कम कर देना चाहिये। तब नित्य प्रति सुबह के समय खाली पेट कुछ गरम पानी में थोड़ा सा शहद मिलाकर पीना चाहिये। इसको एक साथ पीने बजाय धीरे-धीरे घूँट-घूँट करके उसी तरह पीना चाहिये जैसे गरम दूध और चाय को पिया जाता है। एक बार सुबह पी लेने के बाद दिन में भी तीन चार दफे इसी प्रकार कुनकुने पानी के साथ शहद मिलाकर पीना चाहिये। यदि पानी ज्यादा गर्म होगा तो हानि की आशंका है। इसको सदा भोजन से एक या आधा घण्टा पहले पीना चाहिये।
ज्वर में रोगी को किसी खाद्य पदार्थ की रुचि नहीं रहती। ऐसी अवस्था में पहले एनिमा आदि की सहायता से पेट साफ कर लिया जाय और फिर उपरोक्त विधि से घंटे-घंटे भर में कुनकुने पानी में शहद पिया जाय तो उससे बहुत लाभ पहुँचता है। इससे भोजन की रुचि उत्पन्न होती है, भूख लगती है और शरीर के बल का नाश नहीं होने पाता। अजीर्ण अथवा इसी प्रकार के अन्य रोगों के कारण बहुत से लोगों की भोजन पर से रुचि हट जाती है और भूख बन्द हो जाती है। ऐसे लोग पेट साफ करके और दो एक दिन उपवास करके उपरोक्त विधि से शहद पियें तो अवश्य लाभ होगा। यदि शरीर में किसी प्रकार का रोग न भी हो, तो भी सबेरे सन्ध्या जिस प्रकार चाय आदि का व्यवहार किया जाता है उसी प्रकार यदि साधारण गर्म पानी के साथ शहद का सेवन नियमित रूप से किया जाय तो स्वास्थ्य बराबर सुधरता जायगा और कोई शिकायत पैदा न होगी।
यदि किसी का पित्ताशय ठीक तरह से काम न करता हो तो उसके लिए भी शहद का प्रयोग बहुत उत्तम है। पित्ताशय सम्बन्धी तथा ऐसे ही दूसरे रोगों में वैद्य, डॉक्टर आदि चीनी, शक्कर, बतासा आदि खाने की मनाही करते हैं, परन्तु ऐसे रोगों में भी शहद बिना किसी आशंका के दिया जा सकता है।