
साँस्कृतिक सेवा की सक्रिय शिक्षा
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गायत्री तपोभूमि इस जिस नैतिक साँस्कृतिक एवं धार्मिक लक्ष को लेकर आगे बढ़ रही है उन आदर्शों को पहले जन साधारण के मनः क्षेत्र में गहराई तक स्थापित करना होगा, इसके बाद ही उनका कार्य रूप में परिणत होना सम्भव है। लोग अच्छे कार्य करें इसके लिए यह आवश्यक है कि पहले उनके विचार अच्छे हों। विचारों में जमे हुए कुसंस्कारों को हटाना और उनके स्थान पर सद्भावनाओं की ऋतम्भरा प्रज्ञा प्रतिष्ठापित करना यही ब्राह्मण परम्परा है। ब्राह्मण जीवन केवल इसी के लिये है कि वह स्वयं उच्च कोटि का सदाचारी एवं आदर्शवादी बनकर दूसरों को भी अपनी वाणी तथा क्रिया द्वारा इसी मार्ग पर चलने की प्रेरणा दे।
गायत्री परिवार इसी ब्राह्मण परम्परा को पुनर्जीवित करने का लक्ष सामने रखकर अग्रसर हो रहा है। धर्म प्रचारकों की - व्रतधारी साँस्कृतिक स्वयं-सेवकों की — उपाध्यायों की -एक बड़ी सेवा-सेना का संगठन इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये किया गया है। स्वाध्याय और सत्संग की परम पुनीत प्रक्रिया को सजीव रूप देकर नैतिक, धार्मिक एवं सामाजिक क्रान्ति के पथ पर यह संस्था अग्रसर होने जा रही है। दो हजार सुसंगठित शाखाओं तथा एक लाख परिजनों द्वारा इस पथ पर ठोस कदम उठाने का संकल्प शपथ पूर्वक महायज्ञ की पूर्णाहुति के अवसर पर दुहराया जायगा। इस लक्ष की पूर्ति के लिये परिवार पुनः अपने इस पूर्व घोषित लक्ष पर सक्रिय होने की प्रतिज्ञा ग्रहण करेगा। यह प्रतिज्ञा उत्सव गायत्री परिवार के ध्वजारोहण के समय सम्पन्न होगा।
इस लक्ष की पूर्ति के लिये जहाँ अनेकानेक अन्य साधनों की आवश्यकता है वहाँ वाणी और लेखनी द्वारा धर्म प्रचार करने के लिये कटिबद्ध होने के लिये सुयोग्य व्यक्तियों की भी भारी आवश्यकता है। लेखनी और वाणी, प्रेस और प्लेटफार्म यह दो प्रधान साधन हैं। हमारे लिये यह नितान्त आवश्यक है कि लेखनी और वाणी के धनी, साहित्यकार, प्रवचनकर्ता और संगीतकार तैयार किये जाएं। इसके बिना जो व्रत संस्था ने लिया है। वह पूरा न हो सकेगा।
इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये ही अब तपोभूमि का साँस्कृतिक विद्यालय काम करेगा। सुनिश्चित पाठ्यक्रम एवं नियमावली तो महायज्ञ के बाद बनेगी, पर अभी उसका ढांचा स्पष्ट है। यहाँ चुने हुये सुयोग्य शिक्षार्थी लिये जाया करेंगे जिनमें लेखक, पत्रकार, जन गायक एवं वक्तृत्व शक्ति की उपयुक्त योग्यता एवं प्रतिभा हो। हमें धार्मिक नेतृत्व करने के लिए सुयोग्य व्यक्तित्व तैयार करने हैं। इसके लिये यह विद्यालय पूरी तैयारी से काम करेगा।
संस्था के आदर्शों को प्रचारित करने के लिये अनेकों पत्र पत्रिकाएं विभिन्न क्षेत्रों से निकाली जानी आवश्यक हैं। इनमें बड़े संगठित परिवार की बौद्धिक भूख बुझाने के लिये कम से कम 10-20 पत्र-पत्रिकाएं तो लेनी ही चाहियें। हजारों लाखों पुस्तकें तथा पुस्तिकाएँ चाहिएं। जिन लोगों की इस प्रकार के प्रतिभा तथा परिस्थिति हो उन्हें मथुरा आकर केवल लेख लिखना ही नहीं- संपादन करना ही नहीं, पत्रकारिता की अनेकों अत्यन्त आवश्यक तथा व्यावहारिक जानकारियाँ भी सीखनी होंगी, जिनके द्वारा वे अपने कार्य में असफल होने से बच सकें। एक महत्वपूर्ण सेवा के साथ-साथ अपनी सम्मान पूर्ण आजीविका भी चला सकें। प्रेस खोलने, चलाने तथा उनसे समुचित काम लेने की भी व्यावहारिक शिक्षा तपोभूमि में स्थित गायत्री प्रेस द्वारा दी जायगी।पूरा कोर्स संभवतः एक वर्ष का रखना पड़ेगा। बहुत कुशल व्यक्ति छह महीने में भी वह शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे। इससे कम समय में इतनी महान् शिक्षा पूरी न हो सकेगी।
संगीत में लोक गायन, धर्मोपदेश लायक चालू गाना बजाना सुगम रीति से सिखाया जायगा! शास्त्रीय संगीत के लम्बे कार्यक्रम से बचकर सीधी और स्वल्प कालीन प्रणाली अपनाई जायगी। इस कार्य के लिये भी कम से कम छः महीने का समय रहना आवश्यक है।
प्रवचनकर्ता केवल भाषण देना ही नहीं सीखेंगे वरन् संस्था के आदर्शों के अनुरूप विचार-धारा का गंभीर अध्ययन करने के लिये सैंकड़ों हजारों ग्रन्थों का पढ़ना भी आवश्यक होगा। प्रधानतया गीता और रामायण के आधार पर प्रवचन की शिक्षा दी जायगी। गीता रामायण के अनेकों भाष्यों को पढ़ाना तथा उनके मार्मिक प्रसंगों को विशेष रूप से समझना आवश्यक है। भाषण शैली की शिक्षा तो प्रधान ही होगी।
लेखक, गायक एवं वक्ता की कला सीखने के अतिरिक्त इन शिक्षार्थियों के चरित्र एवं व्यक्तित्व को ऊँचा उठाने, आदर्श बनाने का भी पूरा-पूरा व्यावहारिक प्रयत्न किया जायगा ताकि वे सच्चे अर्थों में जन सेवक बन सकें, अपने चरित्र और कार्यों द्वारा जनता को प्रभावित करके उसे अपने आदर्शों के अनुरूप मोड़ने में सफल हो सकें।
धर्म प्रचारकों का यह साँस्कृतिक शिक्षा विद्यालय महायज्ञ के बाद ही चल पड़ेगा। नियमावली आदि भी उसी समय बन जायगी। जो लोग उपरोक्त शिक्षा के उपयुक्त अपने को समझें वे पत्र व्यवहार कर लें। भोजन व्यय उन्हें अपना करना होगा। निवास की तथा शिक्षा की निःशुल्क व्यवस्था है ही।
साँस्कृतिक पुनरुत्थान के लिये— नैतिक युग निर्माण के लक्ष की पूर्ति के लिये लेखकों, गायकों एवं वक्ताओं की भारी आवश्यकता है। हमें इसकी पूर्ति करनी होगी। इस कार्य की पूर्ति इस प्रकार की शिक्षा से ही संभव है। हमारा यह विद्यालय राष्ट्र की महत्वपूर्ण सेवा कर सकेगा ऐसी आशा है।