• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • VigyapanSuchana
    • मनुष्य तुच्छता को छोड़े और महान बने
    • हम और तुम
    • हम और तुम (kavita)
    • युग की वह पुकार जिसे पूरा होना ही है
    • परिवर्तन का केन्द्र बिन्दु-सद्ज्ञान
    • आत्म-निर्माण के चार आधार
    • शुभारम्भ और श्रीगणेश
    • उच्च स्तर की बढ़ती जिम्मेदारियाँ
    • हमारी नीति और क्रिया-पद्धति
    • आहार-विहार सम्बन्धी परिवर्तित दृष्टिकोण
    • स्वास्थ्य संवर्धन के सामूहिक प्रयास
    • अशिक्षा का अन्धकार दूर किया जाय
    • जन-मानस को धर्म-दीक्षित करने की योजना
    • सभ्य समाज की स्वस्थ रचना
    • इन कुरीतियों को हटाया जाय
    • सत्साहित्य सृजन-युग की एक महान आवश्यकता
    • कला और उसका सदुपयोग
    • सद्भावनाएँ बढ़ाने के लिए यह करें
    • राजनीति और सच्चरित्रता
    • युग निर्माण की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि
    • इसी मास में आपको यह करना है
    • पूर्ण जागरण (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • VigyapanSuchana
    • मनुष्य तुच्छता को छोड़े और महान बने
    • हम और तुम
    • हम और तुम (kavita)
    • युग की वह पुकार जिसे पूरा होना ही है
    • परिवर्तन का केन्द्र बिन्दु-सद्ज्ञान
    • आत्म-निर्माण के चार आधार
    • शुभारम्भ और श्रीगणेश
    • उच्च स्तर की बढ़ती जिम्मेदारियाँ
    • हमारी नीति और क्रिया-पद्धति
    • आहार-विहार सम्बन्धी परिवर्तित दृष्टिकोण
    • स्वास्थ्य संवर्धन के सामूहिक प्रयास
    • अशिक्षा का अन्धकार दूर किया जाय
    • जन-मानस को धर्म-दीक्षित करने की योजना
    • सभ्य समाज की स्वस्थ रचना
    • इन कुरीतियों को हटाया जाय
    • सत्साहित्य सृजन-युग की एक महान आवश्यकता
    • कला और उसका सदुपयोग
    • सद्भावनाएँ बढ़ाने के लिए यह करें
    • राजनीति और सच्चरित्रता
    • युग निर्माण की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि
    • इसी मास में आपको यह करना है
    • पूर्ण जागरण (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1963 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


सत्साहित्य सृजन-युग की एक महान आवश्यकता

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 16 18 Last
व्यक्ति और समाज के निर्माण में सत्साहित्य का महत्वपूर्ण स्थान रहता है। किसी देश के साहित्य की स्थिति को देखते हुए यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि वहाँ के लोगों का चरित्र कैसा होगा। विचारों का निर्माण सत्संग और स्वाध्याय से ही होता है। साहित्य की शक्ति स्थायी और प्रवचनों की अस्थायी रहती है। इसलिए साहित्य एवं उसके स्वाध्याय को प्रथम स्थान दिया गया है। युग-निर्माण योजना को सफल बनाने के लिए भी देश की विशाल जनसंख्या को देखते हुए व्यापक परिमाण में सत्साहित्य प्रस्तुत करने एवं उसे जनसाधारण तक पहुँचाने के लिए हमें एक विशाल एवं सुव्यवस्थित तंत्र विकसित करना पड़ेगा जो राष्ट्र की बढ़ती हुई ज्ञान-क्षुधा को तृप्त कर सके। विचार क्रान्ति के लिए यह सत्साहित्य हमारा प्रथम शस्त्र हो सकता है।

योजना का आरम्भ भारतवर्ष से और विशेषतया हम अपने से सम्बद्ध हिन्दू धर्म के प्रति निष्ठावान् अखण्ड-ज्योति परिवार से कर रहे हैं। इसलिए आरंभिक विचार भी इसी सीमित क्षेत्र के अनुरूप दिया जा रहा है, पर कुछ ही दिनों में इसके विश्वव्यापी क्षेत्र और समस्त भाषा, धर्म, देश और जातियों को दृष्टि में रखते हुए इसी व्यवस्था तन्त्र को विकसित करना पड़ेगा। समस्त मानव जाति को नीति, धर्म, सदाचार विवेक और कर्तव्य पालन के लिए प्रेरित करने में साहित्य भी वहीं की स्थितियों को ध्यान में रखते हुए प्रस्तुत करना पड़ेगा।

इसके लिए निम्न कार्यक्रम प्रस्तुत किये जा रहे हैं।

61—लेखकों और पत्रकारों से अनुरोध

देश की विभिन्न भाषाओं में जो लेखक और कवि आज कल लेखन कार्य में लगे हुए हैं, उनसे संपर्क बनाकर यह प्रेरणा दी जाय कि वे युग-निर्माण की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर लिखा करें। इसी प्रकार जो पुस्तक प्रकाशन का कार्य हाथ में लिए हुए हैं उन्हें मानव-जीवन में प्रकाश भरने वाला साहित्य छापने की प्रेरणा की जाय। समाचारपत्र एवं पुस्तक विक्रेताओं से भी यही अनुरोध किया जाय कि उन वस्तुओं के विक्रय में विशेष ध्यान दें जो जन कल्याण के लिए उपयोगी एवं आवश्यक हैं। इसी प्रकार वर्तमान साहित्य क्षेत्र में लगे हुए लोगों से संपर्क स्थापित करके उन्हें युग की आवश्यकता पूर्ण करने की प्रेरणा दी जाय।

62—युग-साहित्य के नव निर्माता

इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र में विशेष मनोयोगपूर्वक युग की आवश्यकता पूर्ण करने के लिए मिशनरी ढंग से काम करने वाले लेखकों एवं कवियों का एक विशेष वर्ग तैयार किया जाय जो साहित्य-निर्माण कार्य को अपना प्रधान सेवा-साधन बनाकर तत्परतापूर्वक इसी कार्य में लग सके। ऐसे अनेक व्यक्ति मौजूद हैं जिनमें इस प्रकार की प्रतिभा और सेवा भावना पर्याप्त मात्रा में मौजूद है पर आवश्यक साधन, मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन न मिलने से वे अविकसित ही पड़े रहते हैं। अपना प्रयत्न ऐसे लोगों को संगठित एवं विकसित करने का हो। इस अभिरुचि एवं योग्यता के लोगों को ढूंढ़ना, उन्हें इकट्ठा करना और आवश्यक प्रशिक्षण देकर इस योग्य बनाना हमारा काम होगा कि वे कुछ ही दिनों में युग-निर्माता साहित्यकारों की एक भारी आवश्यकता की पूर्ति कर सकें। ‘अखण्ड-ज्योति परिवार’ में इस प्रतिभा के जो लोग होंगे उन्हें सर्वप्रथम तैयार करेंगे और उनको आवश्यक शिक्षा देने के लिए जल्दी ही शिविरों की शृंखला आरम्भ करेंगे।

63—संशोधित रचनाएँ और उनका प्रकाशन

इन नवीन लेखकों की रचनाएँ देश में आजकल विभिन्न भाषाओं में छपने वाले प्रायः सात हजार पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगें इसके लिए पत्रकारों से विशेष संपर्क बनाने और उन्हें आवश्यक प्रेरणा देने कर विचार है। इसके लिए संभवतः एक देशव्यापी दौरा भी करना पड़े। प्रयत्न यह होना चाहिए कि देश भर के पत्रों में नैतिक पुनरुत्थान की विचारधारा को महत्वपूर्ण स्थान मिलने लगे।

ऐसा भी प्रबन्ध हो सकता है कि नवीन लेखकों की रचनाएँ केन्द्रीय कार्यालय में मँगाली जाया करें और यहाँ उनका संशोधन करके उन्हें सम्पादकों के पास भेजा जाया करे। कौन रचना किस पत्र के लिए उपयुक्त रहेगी उसका निर्णय भी केन्द्रीय कार्यालय से सुविधापूर्वक हो सकेगा, इसलिए ऐसी व्यवस्था भी करनी पड़ेगी।

64—प्रत्येक भाषा में प्रकाशन

युग-निर्माण के लिए आवश्यक एवं उपयुक्त साहित्य प्रकाशित करने के लिए देश की प्रत्येक भाषा में प्रकाशक उत्पन्न किये जायँ, जो व्यवसाय ही नहीं मिशन भावना भी अपने कार्यक्रम में सम्मिलित रखें और इसी दृष्टि से अपना कार्यक्रम चलावें। देश में 14 भाषाएं राष्ट्र भाषा का स्थान प्राप्त कर चुकी हैं। पन्द्रहवीं अंग्रेजी है। इन सभी भाषाओं में युग- निर्माण साहित्य स्वतन्त्र रूप से विकसित और प्रचारित होने लगे, उसके लिए आवश्यक प्रयत्न किया जाना चाहिए।

65— अनुवाद कार्य का विस्तार

जो व्यक्ति कई भाषाएँ जानते हैं वे एक भाषा का सत्साहित्य दूसरी भाषा में अनुवाद करें और उस भाषा के प्रकाशकों के लिए एक बड़ी सुविधा उत्पन्न करें। भाषाओं की भिन्नता के कारण उच्च कोटि का ज्ञान सीमाबद्ध न पड़ा रहे इसलिए यह अनुवाद कार्य भी स्वतंत्र लेखन से कम महत्वपूर्ण नहीं है। संसार के महान मनीषियों ने जो ज्ञान अपनी-अपनी भाषाओं में प्रस्तुत किया है उसका लाभ सीमित क्षेत्र में न रहकर समस्त भाषा-भाषी लोगों के लिए उपलब्ध हो ऐसा प्रयास करने से ही एक बड़ी आवश्यकता पूर्ण हो सकेगी। हिन्दी भाषा में परिवार के साहित्यकार जो उत्कृष्ट रचनाएँ प्रस्तुत करें, उनका अनुवाद जल्दी ही देश की 15 भाषाओं में हो जाया करे तो विचार विस्तार का क्षेत्र बहुत व्यापक हो सकता है। आगे चलकर तो यही प्रक्रिया विश्वव्यापी बननी है। संसार के किसी भी कोने में किसी भी भाषा में छपे उत्कृष्ट विचार विश्व भर की जनता को उपलब्ध हो सकें ऐसे प्रकाशन तन्त्र का विकास होना आवश्यक है और वह हम करेंगे भी।

66—पत्र-पत्रिकाओं की आवश्यकता

युग-निर्माण लक्ष्य में निर्धारित प्रेरणाओं को विशेष रूप से गतिशील बनाने वाले पत्र-पत्रिकाओं की बहुत बड़ी संख्या में आवश्यकता है। जीवन को सीधा स्पर्श करने वाले ऐसे अगणित विषय हैं जिनके लिए अभी कोई शक्तिशाली विचार केन्द्र दृष्टिगोचर नहीं होते। नारी-समस्या, शिशु-पालन, स्वास्थ्य, परिवार-समस्या, अर्थ-साधन, गृह-उद्योग, कृषि, पशु-पालन, समाज शास्त्र, जातीय समस्याएँ, अध्यात्म, धर्म, राजनीति, कथा-साहित्य, बाल-शिक्षण, मनोविज्ञान, मानवता, सेवा धर्म, सदाचार आदि कितने ही विषय ऐसे हैं जिन पर नाम मात्र का साहित्य है और पत्र-पत्रिकाएँ तो नहीं के बराबर हैं। आज जो पत्र निकल रहे हैं वे एक खास ढर्रे के हैं, उनमें न तो मिशिनरी जोश है और न वैसा कार्यक्रम ही लेकर वे चलते हैं। अब ऐसे पत्र-पत्रिकाओं को बड़ी संख्या में प्रकाशित होना चाहिए जो मानव जीवन के हर पहलू पर प्रकाश उत्पन्न कर सकें।

योजना के अनुरूप कम-से-कम सौ पत्र तो इन विषयों पर तुरन्त निकलने चाहिये। जिनमें आवश्यक योग्यता और उत्साह हो उन्हें इसके लिए प्रशिक्षित किया जाना आवश्यक है।

67—प्रकाशन की संगठित शृंखला

पुस्तक प्रकाशकों की एक सुगठित ऐसी शृंखला होनी चाहिए जो एक-एक विषय पर परिपूर्ण साहित्य तैयार करे। शृंखला से संबद्ध प्रकाशक एक दूसरे से अपनी पुस्तकों का परिवर्तन कर लिया करें। इस प्रकार हर प्रकाशक के पास प्रत्येक विषय का प्रचुर साहित्य जमा हो जाया करेगा। अपनी निजी दुकान चला कर, फेरी से अथवा विज्ञापन आदि से जैसे भी उपयुक्त हो उस साहित्य का विक्रय किया जाया करे। इस प्रकार एक विषय का प्रकाशक पारस्परिक सहयोग के आधार पर सभी विषयों की पुस्तकों का प्रचारक बन सकेगा। अनेक वस्तुएँ पास में होने से विक्रय सम्बन्धी समस्या भी न रहेगी।

68—समाचार पत्रों द्वारा जन-नेतृत्व

स्थानीय समस्याओं के लिए छोटे-छोटे साप्ताहिक पत्र भी हर शहर में चल सकते हैं। इन्हें किस प्रकार चलाया जाय, इसकी आवश्यक जानकारी इस विषय में दिलचस्पी रखने वाले लोगों को उपलब्ध हो। जन-नेतृत्व करने और सामयिक जन-समस्याओं को प्रकाश में लाने के लिए ऐसे समाचार पत्रों की भी आवश्यकता है। जहाँ सुविधा हो वहाँ दैनिक समाचार पत्र भी चल सकते हैं। समाचार पत्रों का प्रकाशन, मासिक विचार साहित्य से सर्वथा भिन्न प्रकार का कार्यक्रम है। इसलिए इस सम्बन्ध की जो विशेष बारीकियाँ हैं उन्हें भी विस्तारपूर्वक जानने की आवश्यकता पड़ेगी, जो इस संदर्भ में आवश्यक हैं। यह जानकारी उपयुक्त व्यक्तियों को मिल सके इसकी सुविधा हमें उत्पन्न करनी चाहिए।

69—युग निर्माण प्रेस

प्रायः प्रत्येक नगर में एक-एक युग-निर्माण प्रेस होनी चाहिए, जिसके माध्यम से उसके संचालक अपनी रोजी रोटी सम्मानपूर्वक कमा लिया करें और साथ ही उस केन्द्र से आस-पास के क्षेत्र में भावनाओं के विस्तार का कार्यक्रम चलता रहा करे। छोटे प्रेस न्यूनतम 4 हजार की पूँजी से भी चल सकते हैं। साधन सम्पन्न प्रेसों के लिए अधिक पूँजी उपलब्ध करनी पड़ेगी।

व्यक्तिगत पूँजी से या सहयोग-समितियाँ गठन करके यह कार्य आरम्भ किये जा सकते हैं। आमतौर से नये कार्यकर्ताओं को निजी अनुभव तो होता नहीं उस व्यवसाय में लगे हुए लोग बारीकियों को बताते नहीं, इसलिए ऐसे कार्यक्रम प्रायः असफल हो जाते हैं। पर जब उन्हें सांगोपांग शिक्षण उपलब्ध हो जायगा तो फिर किसी कठिनाई की संभावना न रहेगी और ऐसी प्रेस प्रत्येक नगर में चलने लगेंगे। इन केन्द्रों से विचार क्रान्ति में भारी योगदान मिल सकता है।

70-कविताओं का निर्माण और प्रसार

युग-निर्माण विचारधारा के उपयुक्त भावना पूर्ण कविताएं प्रत्येक क्षेत्रीय भाषा में लिखी जायँ। उन्हें सस्ते मूल्य पर छोटी-छोटी पुस्तिकाओं के रूप में छापा जाय। जीवन के हर पहलू को स्पर्श करने वाली प्रेरणाप्रद कविताएँ सर्वत्र उपलब्ध हों जिससे गायन सम्बन्धी जन-मानस की एक बड़ी आवश्यकता की पूर्ति हो सके। लोक गीतों में प्रेरणा भर देने का कार्य हमें पूरा करना चाहिए। गायन का कोई क्षेत्र ऐसा न बचे जहाँ उत्कर्ष की ओर ले जाने वाली कविताएँ गूँज न रही हों। स्त्रियों द्वारा गाये जाने वाले गीत मंगल अवसर की आवश्यकता के अनुरूप लिखे-छापे और उन्हें सिखाये जाने चाहिए। उच्च साहित्य क्षेत्र से लेकर हल जोतते हुए किसानों तक के गाये जाने योग्य प्रेरणाप्रद कविताओं की भारी आवश्यकता है। इसकी पूर्ति सुसंगठित योजना बनाकर की जानी चाहिए। यह अभाव किसी भी क्षेत्र में, किसी भी भाषा में रहने न पावे। इस रचनात्मक कार्य को पूरा किये बिना धरती पर स्वर्ग लाने का स्वप्न साकार न हो सकेगा। इसके लिए कवि-हृदय साहित्यकारों को बहुत कुछ करना है।

साहित्य-निर्माण की उपरोक्त दस योजनाएँ सब दृष्टियों से महत्वपूर्ण हैं। इनमें भाग लेने वाले अपना जीवन धन्य बनावेंगे और देश, जाति की भी बहुत बड़ी सेवा करेंगे। प्रतिभावान लोगों को इस क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए हम भावना-पूर्वक आमंत्रण भेजते हैं, उन्हें आवश्यक मार्ग-दर्शन मिलेगा और सहयोग भी।

First 16 18 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • VigyapanSuchana
  • मनुष्य तुच्छता को छोड़े और महान बने
  • हम और तुम
  • हम और तुम (kavita)
  • युग की वह पुकार जिसे पूरा होना ही है
  • परिवर्तन का केन्द्र बिन्दु-सद्ज्ञान
  • आत्म-निर्माण के चार आधार
  • शुभारम्भ और श्रीगणेश
  • उच्च स्तर की बढ़ती जिम्मेदारियाँ
  • हमारी नीति और क्रिया-पद्धति
  • आहार-विहार सम्बन्धी परिवर्तित दृष्टिकोण
  • स्वास्थ्य संवर्धन के सामूहिक प्रयास
  • अशिक्षा का अन्धकार दूर किया जाय
  • जन-मानस को धर्म-दीक्षित करने की योजना
  • सभ्य समाज की स्वस्थ रचना
  • इन कुरीतियों को हटाया जाय
  • सत्साहित्य सृजन-युग की एक महान आवश्यकता
  • कला और उसका सदुपयोग
  • सद्भावनाएँ बढ़ाने के लिए यह करें
  • राजनीति और सच्चरित्रता
  • युग निर्माण की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि
  • इसी मास में आपको यह करना है
  • पूर्ण जागरण (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj