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Magazine - Year 1963 - Version 2

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युग-निमार्ण योजना की बौद्धिक रूपरेखा गत दो वर्षों से परिजनों के सामने प्रस्तुत करने के उपरान्त अब इस गुरु पूर्णिमा (6 जुलाई) से उसे क्रियात्मक रूप दिया जा रहा है। इस कार्य-प्रक्रिया में परिवार के प्रत्येक परिजन को भाग लेना चाहिए। घर में कोई विवाह शादी जैसा उत्साह होता है तो बच्चों से लेकर बूढ़ों तक घर के सभी नर-नारी उसमें किसी-न-किसी तरह अपनी शक्ति और योग्यता के अनुसार भाग लेते हैं। कोई भी उनमें से तटस्थ नहीं रहता। इसी प्रकार अखण्ड-ज्योति परिवार के द्वारा आरम्भ की जाने वाली युग-निर्माण योजना को एक अत्यन्त महत्वपूर्ण, अत्यन्त महान, कार्यक्रम उत्सव आयोजन माना जाना चाहिए और उसमें किसी न किसी प्रकार भाग लेने का प्रयत्न हम में से हर व्यक्ति को करना चाहिए।

आपको कुछ तो करना ही होगा

इस अंक में पिछले पृष्ठों पर 108 योजनाएँ प्रस्तुत हैं। विभिन्न योग्यता और परिस्थितियों के व्यक्तियों की क्षमता और अभिरुचि का ध्यान रखते हुए यह कार्यक्रम रखे गये हैं। इनमें से कुछ-न-कुछ कार्य अपने लिए हर स्थिति का मनुष्य चुन सकता है। दुर्बल, व्यस्त और अयोग्य व्यक्ति भी इसमें से कुछ-न-कुछ ऐसे कार्यक्रम ढूँढ़ सकता है जो उसके लिये सरल हो सकते हैं। दूसरों की सेवा न हो सके तो योजना के अंतर्गत अपना सुधार और अपना विकास करने के लिये भी कुछ प्रयत्नशील हो सकना तो संभव बन ही सकता है। अपने में जितना सुधार और परिवर्तन हम कर लेते हैं वह भी समाज, राष्ट्र और विश्व के एक अंग का ही सुधार है। आत्म-निर्माण की दिशा में तो रोगी और पराधीन व्यक्ति भी कुछ-न-कुछ कर ही सकते हैं। इस दृष्टि से हर क्षमता के व्यक्ति के लिये योजना के अंतर्गत कार्यक्रम मौजूद है। जो प्रभावशाली हैं, जिनका दूसरे कितनों से ही संपर्क हैं, वे तो अपनी प्रतिभा का उपयोग करके बहुत कुछ काम कर सकते हैं।

योजना में धन की कोई आवश्यकता नहीं हैं न उसके लिये संग्रह करने या दान, चन्दा माँगने जैसा कार्यक्रम है। धन के आधार पर चलने वाली योजनाएं सफल भी नहीं होतीं। प्रस्तुत योजना में समय और भावनाओं की ही आवश्यकता पड़ेगी सो इसके लिये चाहे तो गरीब से गरीब आदमी भी अपनी परिस्थिति के अनुसार सामर्थ्यवान हो सकता है। जिसके अन्तःकरण में जितना उत्साह साहस, परमार्थ एवं पुरुषार्थ मौजूद है वह उतना ही बड़ा क्षमता सम्पन्न माना जायेगा। योग्यताओं से नहीं भावनाओं से योजना को कार्यान्वित किया जाना है। भावनाओं से रहित परमात्मा ने अन्तःकरण को नहीं बनाया। इसलिये हमें यह आशा और विश्वास परिवार के हर व्यक्ति के प्रति प्रबल हो रहा है कि इस महत्वपूर्ण अवसर पर हमारे प्रत्येक स्वजन को हाथ बटाते हुए देखा जा सकेगा वैसा ही देखना चाहते हैं और विश्वास है कि देखेंगे भी।

गुरु -पूर्णिमा से श्रीगणेश

योजना की रूप-रेखायें दो वर्ष तक समझाने के उपरान्त अब इसी गुरु पूर्णिमा (6 जुलाई) से उसे व्यवहारिक रूप में कार्यांवित किया जा रहा है इसी दिन हमें आदेश मिला था। मुहूर्त की दृष्टि से भी यही वर्ष का सबसे श्रेष्ठ दिन इस कार्य के लिए है। इसलिये युग-निर्माण योजना का शुभारंभ-श्रीगणेश इसी शुभ मुहूर्त से किया जा रहा है। उस दिन अखण्ड-ज्योति परिवार के हर सदस्य को उपवास करना चाहिए। एकान्त सेवन और जितना संभव हो सके मौन रहना चाहिये वह हृदय मंथन का दिन होना चाहिये। “जीवन की इतनी अवधि अस्त-व्यस्त हो चली अब जो थोड़े दिन और शेष रहे हैं उनका सदुपयोग करने के लिये क्या कुछ किया जा सकता है?” यह प्रश्न अपने आपसे बराबर पूछना चाहिए। और यदि अन्तरात्मा में से यह आवाज निकले कि कुछ करना उचित और आवश्यक है तो अपनी स्थिति के अनुसार इन 108 कार्यक्रमों में से कुछ-न-कुछ अपने लिये निर्धारित कर लेना चाहिए। और उसे दूसरे दिन से ही कार्यान्वित करना आरंभ कर देना चाहिए। जो भी कदम उठाये जायं सोच-समझ कर तथा साहसपूर्वक उठाये जायं ताकि उनके लौटाने पर मनोबल के गिरने का अवसर न आए।

यह अंक जून के प्रथम सप्ताह में पाठकों के पास पहुँच जावेगा। गुरु पूर्णिमा का सबसे लगभग 1 महीना शेष रहेगा। इस एक महीने में बन पड़े तो आत्म-शुद्धि के लिए कुछ-न-कुछ विशेष उपासना करने का कार्यक्रम बनाना चाहिए ताकि आत्म-शोधन के इस अभियान के लिए आवश्यक आत्मबल प्राप्त हो सके। इसी अवधि में इस अंक को दो या तीन बार पढ़ना चाहिए और सोचना चाहिये कि हम अपनी स्थिति के अनुसार क्या कर सकते हैं। यह एक महीना हृदय-मंथन की अवधि है। प्रतिदिन कुछ समय एकान्त में बैठकर मानव जीवन की महत्ता और उसकी सफलता के लिये प्रस्तुत योजना के समन्वय के सम्बन्ध में प्रतिदिन अनेक बार सोचना चाहिये और जो कुछ आत्मा स्वीकार करे उसे कर गुजरने के लिए साहस कर ही लेना चाहिए।

जो शक्य है वही कीजिए

लम्बी चौड़ी, असंभव और झूठी प्रतिज्ञाएँ करने की किसी को भी आवश्यकता नहीं है। आज जो संभव है हम उतना ही सोचें और उतना ही करें। भविष्य में जब जैसी परिस्थितियाँ सामने आवें अपनी कार्यपद्धति को और भी अधिक सतेज किया जा सकता है। इस अंक के अन्तिम पृष्ठ पर एक फार्म ‘संकल्प श्रद्धाँजलि’ का लगा है। गुरुपूर्णिमा के दिन उपवास रख कर उसे भरना चाहिये और उसी दिन उसे मथुरा भेज देना चाहिए ताकि हम स्वजनों के हृदय और मस्तिष्क को पढ़ सकें और उसी आधार पर अगले कदम उठाने का साहस कर सकें। गुरुपूर्णिमा के दिन से जो कार्य आरम्भ किए जा रहे हैं उनका उल्लेख और आगे जिन कार्यों के करने में अभिरुचि एवं उत्साह है उनका संकेत कर देना मात्र पर्याप्त है। क्या कार्य, कितना, किस प्रकार बन पड़ेगा यह पहले से ही कुछ नहीं कहा जा सकता है। इसलिए लम्बी-चौड़ी प्रतिज्ञाएँ भावावेश में भरकर किसी को भी नहीं करनी चाहिए। इतना ही पर्याप्त होगा कि साहस, श्रद्धा और निष्ठा के साथ निरन्तर आत्म-निर्माण और लोकहित के लिए सच्चे मन से आगे बढ़ते रहने का हम निश्चय करलें।

क्षेत्र का विस्तार तो करना ही होगा

जप, ध्यान, उपवास और स्वाध्याय की तरह प्रयत्न तो हम लोगों को एकाकी ही आरम्भ करने होंगे। पर चूँकि योजना का सम्बन्ध दूसरों से भी जुड़ता है। दूसरों के कठोर मनों को मुलायम करने के लिए, अपने अनुकूल ढालने के लिए केवल आदेश कर देना मात्र न होगा वरन् उन्हें तर्क, कारण, प्रमाण, उदाहरण एवं विवेचना के आधार पर आवश्यक तथ्यों को समझाना पड़ेगा, तभी अपरिचित मनों में वह भावना उत्पन्न होगी जो युग निर्माण कार्य विस्तार के लिए आवश्यक है।

इसलिए एक अनिवमय कार्य यह भी हमें करना ही होगा कि युग-निर्माण की विचारधारा से समाज को प्रभावित किया जाय। हर व्यक्ति का एक प्रभाव-क्षेत्र होता है वही उसका समाज है। अखण्ड ज्योति परिवार के सदस्य हमारे प्रभाव-क्षेत्र में आते हैं, इसलिए हमारा समाज, हमारा संसार, हमारा सेवा-क्षेत्र वही है। पूरी शक्ति के साथ हम उन्हें ही प्रभावित करने और कार्यक्रम में लगाने का प्रयत्न कर रहे हैं। यही प्रयत्न आप लोगों को भी करना चाहिए। अपने कुटुम्बों, सम्बन्धी, मित्र, परिचित एवं प्रभाव-क्षेत्र में आने वाले व्यक्ति ही आपका समाज कहलावेंगे। उन लोगों को योजना की आवश्यक जानकारी एवं प्रेरणा मिले उसके लिए पूरा-पूरा प्रयत्न किया जाना चाहिए। तीन अरब जनसंख्या के संसार और 44 करोड़ के भारतवर्ष में हम 30 हजार ‘अखण्ड ज्योति परिवार’ के सदस्य नगण्य हैं। अपना प्रभाव-क्षेत्र न बढ़ेगा तो युग-निर्माण योजना का विकास-विस्तार कैसे हो सकेगा? इसलिए प्रगति के लिए यह आवश्यक है कि अपने प्रभाव-क्षेत्र में योजना को व्यापक और लोकप्रिय बनाने के लिए हम में से प्रत्येक व्यक्ति पूरी दिलचस्पी के साथ काम करने लगे।

योजना का प्रधान साधन शस्त्र

‘अखण्ड ज्योति’ ही अपनी प्रेरणा का एक मात्र साधन है। इसी के आधार पर तीस हजार स्वजनों को हम इस महा अभियान में संलग्न कर सकने में समर्थ हो रहे हैं। इसी माध्यम से आप सबके लिए भी योजना का क्षेत्र विस्तार कर सकना सम्भव होगा। इसलिए प्रयत्न होना चाहिए कि जिन पर भी अपना व्यक्तिगत प्रभाव हो उनके घर जाने, संपर्क बनाने और अखण्ड ज्योति पढ़ाने का पूरा-पूरा प्रयत्न किया जाय। इस एक महीने में यह अंक अपने प्रभाव-क्षेत्र के 10-20 व्यक्तियों को पढ़ा ही देना चाहिए और उनके नाम और अभिमत संलग्न फार्म में लिख कर मथुरा भेजने चाहिये। इस प्रकार इसी एक महीने में हम 30 हजार व्यक्ति 5-7 लाख व्यक्तियों तक इस प्रकाश और पुकार को पहुँचा सकने में सफल हो सकते हैं। इस कार्य को अत्यन्त महत्वपूर्ण समझा जाय और उसे आज से ही आरम्भ किया जाय।

यह भली प्रकार याद रखना चाहिये कि ‘अखण्ड ज्योति’ घाटे में चलती है। उसकी कागज, छपाई की लागत तीन रुपया बारह आना है, तीन रुपया नहीं। यह विशुद्ध पारमार्थिक प्रकाशन है। किसी को ऐसा स्वप्न में भी न सोचना चाहिये कि आर्थिक उद्देश्य के लिये उसके प्रचार की बात कही जा रही है। मिशन का क्षेत्र साधन यही होने की दृष्टि से ही इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि परिजनों के प्रभाव-क्षेत्र में पत्रिका के पढ़ाने और लोक-प्रिय बनाने में कुछ उठा न रखा जाना चाहिए। अपने घर का हर सदस्य उसे पढ़े और सुने इतना ही पर्याप्त न होगा। हर पत्रिका दस-बीस व्यक्तियों द्वारा पढ़ी और सुनी ही जानी चाहिए, योजना की सफलता का यह प्रचार कार्य एक अनिवार्य अंग होगा। इस महीने तो यह कार्य योजना का एक अविच्छिन्न अंग मानकर हम सबको करना चाहिए ताकि इस महान अभियान की जानकारी अधिकाधिक लोगों को हो सके और आपको जो कार्य आगे करना है उसके लिए सहायक एवं सहयोगी उत्पन्न हो सकें।

आरम्भ घर से कीजिए

शिक्षित लड़कियों, बहिनों, रिश्तेदारों, मित्रों और स्वजनों को अपने पैसे से पत्रिका उपहार में भी भिजवाई जा सकती है। ज्ञान-दान से श्रेष्ठ और कुछ नहीं हो सकता। इसका लाभ सबसे पहले अपने स्वजन सम्बन्धियों को ही देना चाहिए। अपने परिचितों को दो-तीन अंक चालू करा कर अपने प्रभाव-क्षेत्र में पढ़ाने का कार्य और भी सुगम हो सकता है। जो प्रभावित हो सकें उन्हें ग्राहक भी बनाया जा सकता है। प्रयत्न करने पर गुरु पूर्णिमा को श्रद्धाञ्जलि के रूप में पत्रिका के एक-दो नये ग्राहक बना देना किसी को भी कठिन नहीं हो सकता। सवाल केवल उत्साह और प्रयत्नशीलता मात्र का है। अपने पास से भी अपने प्रियजनों के नाम पत्रिकाएं चालू कराने के लिए कुछ आर्थिक त्याग कर सकना भी साधारणतः कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। इच्छा जग पड़े तो इतने छोटे प्रयत्न सभी के लिए सम्भव हो सकते हैं।

युग-निर्माण योजना का शुभारम्भ इसी गुरु पूर्णिमा से आरम्भ करते हुए हम अपने प्रत्येक परिजन से उसमें हाथ बटाने की आशा करेंगे ‘गुरु पूर्णिमा श्रद्धाञ्जलि फार्म’ की अभिव्यक्ति सभी को नियत समय पर भेज देनी चाहिए। कार्य का आरम्भ यहीं से होगा।

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