
मनुष्य तुच्छता को छोड़े और महान बने
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भारत माता चाहती हैं कि उसके पुत्रों की नस-नस में एक नवीन शक्ति का विद्युत सञ्चार हो। लोग साहसी बनें। कायरता से घृणा करें। संकीर्णता और स्वार्थपरता कायरता के चिह्न हैं। आदर्श के मार्ग पर चलते हुए जो कष्ट उठाने पड़ते हैं, उन्हें प्रसन्नतापूर्वक शिरोधार्य करना ही साहस और वीरता है। कायर घड़ी-घड़ी मरते रहते हैं पर वीर पुरुष केवल एक ही बार मरते हैं और वह भी शानदार परंपरा स्थापित करते हुए।
मनुष्य तभी तक मनुष्य है जब तक वह पशु प्रवृत्ति से ऊपर उठने के लिए संघर्ष करता रहता है। संसार पर विजय प्राप्त करना गौरव-पूर्ण है पर अपनी दुर्बलताओं ही को जीत लेना सब से बड़ी विजय है। साहित्य, विज्ञान और कला-कौशल में निष्णात होना अच्छी बात है पर मनुष्य जीवन की समस्याओं वासनाओं, भावनाओं और आकाँक्षाओं को समझना और उनके नियन्त्रण करने की विधि जानना सब से बड़ी बात है। आज की सब से बड़ी आवश्यकता है कि लोग साहसी बनें। संकीर्णता, स्वार्थपरता और तुच्छता से घृणा करें और महान बनने के लिए साहसपूर्वक कदम बढ़ाते चलें।
-स्वामी विवेकानन्द
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
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वर्ष 24 सम्पादक - आचार्य श्रीराम शर्मा अंक 06
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