• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • ईश्वर की रचना निन्दनीय न ठहरे
    • शास्त्र-चर्चा
    • यह सृष्टि ही परमात्मामय है।
    • Quotation
    • जो कुछ है सब तोहिं
    • आत्म साक्षात्कार के लिये जप भी, तप भी
    • सत्यं-शिवं-सुन्दरम् और उनकी विवेचना
    • Quotation
    • जगद्गुरु भारत और उसका पुनरुत्थान
    • Quotation
    • जटिल नहीं, जीवन को सरल बनाइये।
    • हम आध्यात्मिक प्रगति के लिए यह करें।
    • विचारों की शक्ति अपरिमित है।
    • अहिंसा के अनन्य उपासक-भगवान महावीर
    • जीवन महान कैसे बने?
    • पुरुषार्थ धर्म है,-कामनायें बन्धन
    • सेवा योगी-स्वामी रामकृष्ण परमहंस
    • दुर्गुणों को त्यागिये, सद्गुणी बनिये।
    • माँ कस्तूरबा गाँधी
    • जीवन में कठिनाइयाँ भी आवश्यक हैं।
    • मनुष्य अपनी तुच्छता भी जाने
    • Quotation
    • स्वास्थ्य के देवदूत-कार्नेरो
    • अर्थोपार्जन के आध्यात्मिक प्रयोग
    • समाज सृष्टा-महात्मा भगवानदीन
    • अखण्ड-ज्योति सदस्यों को इतना तो करना ही चाहिए।
    • धर्मोपदेशक बन कर जन जागरण कीजिये।
    • उत्तराधिकारी और व्रतधारियों से
    • शीत ऋतु का हमारा दौरा और उसका उद्देश्य
    • आश्विन की नवरात्रि
    • नव-निर्माण का प्रेरणा प्रद साहित्य
    • काया नहीं कहाऊँगा।
    • काया नहीं कहाऊँगा (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • ईश्वर की रचना निन्दनीय न ठहरे
    • शास्त्र-चर्चा
    • यह सृष्टि ही परमात्मामय है।
    • Quotation
    • जो कुछ है सब तोहिं
    • आत्म साक्षात्कार के लिये जप भी, तप भी
    • सत्यं-शिवं-सुन्दरम् और उनकी विवेचना
    • Quotation
    • जगद्गुरु भारत और उसका पुनरुत्थान
    • Quotation
    • जटिल नहीं, जीवन को सरल बनाइये।
    • हम आध्यात्मिक प्रगति के लिए यह करें।
    • विचारों की शक्ति अपरिमित है।
    • अहिंसा के अनन्य उपासक-भगवान महावीर
    • जीवन महान कैसे बने?
    • पुरुषार्थ धर्म है,-कामनायें बन्धन
    • सेवा योगी-स्वामी रामकृष्ण परमहंस
    • दुर्गुणों को त्यागिये, सद्गुणी बनिये।
    • माँ कस्तूरबा गाँधी
    • जीवन में कठिनाइयाँ भी आवश्यक हैं।
    • मनुष्य अपनी तुच्छता भी जाने
    • Quotation
    • स्वास्थ्य के देवदूत-कार्नेरो
    • अर्थोपार्जन के आध्यात्मिक प्रयोग
    • समाज सृष्टा-महात्मा भगवानदीन
    • अखण्ड-ज्योति सदस्यों को इतना तो करना ही चाहिए।
    • धर्मोपदेशक बन कर जन जागरण कीजिये।
    • उत्तराधिकारी और व्रतधारियों से
    • शीत ऋतु का हमारा दौरा और उसका उद्देश्य
    • आश्विन की नवरात्रि
    • नव-निर्माण का प्रेरणा प्रद साहित्य
    • काया नहीं कहाऊँगा।
    • काया नहीं कहाऊँगा (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1965 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


जगद्गुरु भारत और उसका पुनरुत्थान

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 8 10 Last
एक समय था जब अपने देश भारतवर्ष को जगद्गुरु का पद मिला हुआ था। यह पद केवल एक ही विषय अध्यात्म में ही नहीं अपितु अनेकों भौतिक शिल्पों में भी मिला हुआ था। भारत की स्थापत्य कला, वस्त्र, शिल्प, शस्त्र कौशल और कृषि कार्य सदा से संसार का पथ-दर्शक रहा है। जिस समय संसार पशु-अवस्था और सभ्यता रहित स्थिति में था, भारत उस समय सभ्यता, संस्कृति तथा विविध शिल्पों के शिखर पर पहुँच चुका था।

संसार की अन्य जातियाँ जिस समय आखेट युग में कच्चे पशु माँस पर जीवित रह रही थीं उस समय भारत अग्नि का उपयोग ही नहीं अपितु सम्पूर्ण यज्ञ विधान रच चुका था। जिस समय संसार संकेतों और मौखिक ध्वनियों से वार्तालाप कर रहा था, भारत छन्दों के विधि विधान सहित ऋग्, यजु, अथर्व की रचना और सामवेद की सिद्धि कर चुका था। जिस समय संसार नग्नावस्था में विचरण कर रहा था भारत कौशेय तथा पट्ट वस्त्रों के विविध प्रकार तैयार कर चुका था।

आज संसार में जो कुछ सभ्यता और संस्कृति में ही है और संसार में जितनी भाषाएं बोली जाती हैं उनका उद्गम वेदों की देववाणी में ही है। संसार में दीखने वाली आज की सारी मनुष्यता भारतीय ऋषि मुनियों की देन है।

आत्मा, परमात्मा, प्रकृति एवं जीव, जड़ और चेतन आदि का तत्व-ज्ञान सर्वप्रथम मनीषियों ने ही खोज निकाला। मानव शरीर के मूल वैज्ञानिक तत्व “छिति, जल, पावक, गगन, समीरा” की खोज करने वाले भारतीय विज्ञानवेत्ता ही थे और मनोविज्ञान के आधार मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार के अन्तःकरण चतुष्टय के अन्वेषक भारतीय मनीषी ही थे।

भारतीय संस्कृति और मानव सभ्यता के जन्मदाता महात्माओं ने जो प्राप्त किया था वह केवल अपने तक अथवा अपने देशवासियों तक ही सीमित नहीं रक्खा, बल्कि हाथ में कमंडलु और कंठ में “कृण्वन्तु विश्वम् आर्यम्” का उद्घोष लेकर निकले और वनचरों को मनुष्यता का पाठ पढ़ाया। यही कारण है कि संसार भारत को अपना गुरु मानने पर विवश हुआ।

भारत में जहाँ एक ओर ज्ञान का विपुल भंडार था वहाँ दूसरी ओर अनन्त धन-धान्य भरा हुआ था। सर्व सम्पन्न भारतीयों को क्या आवश्यकता थी कि वे सहज सुलभ सुख साधनों का उपभोग छोड़कर ज्ञानार्जन करते और उसे संसार में फैलाते! ईश्वर की अनुभूति कर लेने वाले और अक्षय आनन्द का मार्ग निकालने वाले भारतवासियों ने साँसारिक सुख-साधनों की निःसारता बहुत शीघ्र अनुभव कर ली थी। फिर भला वे किस प्रकार उनमें लिप्त होकर अपने को सच्चे आनन्द से वंचित कर सकते थे और “वसुधैव कुटुम्बकम्” का सिद्धान्त मानने वाले आर्य किस प्रकार देख सकते थे कि उनके बन्धु अन्य मानव पशुता की कोटि में रहें। विश्व कल्याण की भावना से प्रेरित भारतीयों ने त्याग का मार्ग ग्रहण किया और संसार की तथा मानव जाति की अतुलनीय सेवा की।

भारत वर्ष का यह अनन्त गौरवपूर्ण जगद्गुरु का पद सहस्रों वर्षों तक बना रहा या यों कहना चाहिये कि वह जब तक त्याग और तपस्या का मार्ग ग्रहण किये रहा वह जगद्गुरु के प्रतिष्ठित पद पर आसीन रहा। किन्तु जब भारतवासियों ने अध्यात्मज्ञान को व्यावहारिक जीवन से निकाल कर यथार्थ के स्थान पर कल्पना लोक की वस्तु बना दिया, धर्म का स्वरूप विकृत कर दिया, तभी से उसका पतन प्रारम्भ हो गया।

इधर भारतवासियों की धर्म के नाम पर लिप्सा पूर्ण गतिविधियों और उधर भारतीय ज्ञान से तेज पाकर अनेक विश्वास घातिनी जातियों के निरन्तर आक्रमणों ने मिलकर देश के सम्मुख एक ऐसी परिस्थिति रख दी जिसे परतन्त्रता कहा जाता है। भारत को लगभग एक सहस्र वर्ष तक अपने अधःपतन का कुफल गुलामी के रूप में भोगना पड़ा।

पराधीनता की पतित अवस्था में भी भारतभूमि तत्वदर्शी और त्यागी महात्माओं के प्रसाद से वंचित न रह सकी। यही कारण था कि गुलामी के प्रलयंकर काल में भी विदेशियों, विधर्मियों एवं विजातियों की दुरभिसंधियों के बावजूद भी भारतीयता अपना स्वरूप न खो सकी।

एक ओर पतित मनोवृत्ति के देशवासी पद, प्रतिष्ठा, सुख और साधनों के लोभ के वशीभूत होकर वैदेशिकता को अन्तःकरण से स्वीकार करने और जनता को स्वीकार कराने का प्रयत्न कर रहे थे और दूसरी ओर त्यागी तपस्वी तथा निस्पृह देशभक्त महात्मा जनता को ठीक मार्ग पर चला रहे थे। यह संघर्ष सदियों तक चलता रहा और अन्त में त्याग तथा तपस्या की विजय हुई और देश स्वाधीन हुआ।

भारत स्वाधीन हुआ। किन्तु जब वह स्वाधीन हुआ उस समय तक उसका अधःपतन अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुका था। देश हर प्रकार से खोखला हो चुका था। शासन सत्ता हाथ में आने पर भारतीयों का पहला कर्त्तव्य यह था कि वे अपना मूल भूत सुधार करते। देश में ऐसी परिस्थितियाँ और अवस्थाएँ उत्पन्न करते जिस से जनता का गिरा हुआ चरित्र बल समुन्नत होता और देश पुनः उन आदर्शों को प्राप्त कर सकता जिनके बल पर वह जगद्गुरु बना था।

स्वाधीनता प्राप्त करने के बाद हम भारतीय जन्म-जन्म के विभुक्षुओं की भाँति रोटी, कपड़ा और सुख-सुविधाओं की लोलुपता में बुरी तरह डूब गये। यही कारण है कि देश का दिन-दिन पतन ही दृष्टिगोचर हो रहा है।

इस भोजन भोग की लोलुपता पूर्ण तृष्णा का फल यह हुआ कि देश और भी दरिद्र बन गया। वाँछित उपलब्धियाँ तो प्राप्त न हो सकीं, उलटा चरित्र तथा आचरण का घोरतम पतन हो गया, जिससे देश की रही-सही शक्तियाँ भी क्षीण होती जा रही हैं।

अब भी कुछ बिगड़ा नहीं है। यदि सुबह का भूला शाम को घर आ जाये तो वह भूला नहीं कहा जा सकता। अभी समय है। राष्ट्र को चाहिये कि वह लोलुपतापूर्ण तथा स्वार्थजन्य एषणाओं को छोड़कर अपने पूर्व पुरुषों की भाँति त्याग और तपस्या का जीवन ग्रहण कर अपना चरित्र बल ऊँचा करे, जिससे कि देश की गिरती हुई दशा में सुधार की सम्भावनाएँ उत्पन्न हों। देश का जब तक धार्मिक, अध्यात्मिक तथा चारित्रिक पुनरुद्धार नहीं होगा सुधार तथा उन्नति की कोई भी आशा मृग मरीचिका ही सिद्ध होगी। जब तक भोगवादी दृष्टिकोण को सामने रखते हुये भौतिक सुख साधनों को महत्ता दी जायेगी तब तक भारत का सत्य स्वरूप मिलना असम्भव सा-ही है।

इतना सब कुछ होते हुये भी यह नहीं कहा जा सकता कि देश के चारित्रिक निर्माण के लिए कुछ काम नहीं हो रहा है। जिस प्रकार पराधीनता काल में गुलामी पसन्द और स्वतन्त्रता प्रिय लोगों के अपने-अपने प्रयत्न चलते रहे हैं उसी प्रकार आज भी भोगवादी और त्यागवादियों के अपने-अपने प्रयत्न चल रहे हैं और यह विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि जिस प्रकार तब तपस्वियों की विजय हुई थी आज भी उनकी ही विजय होगी।

आज भी देश के कोने-कोने में भारत माता के सच्चे सपूत त्याग, तपस्या, बलिदान, उत्सर्ग, नैतिकता, धार्मिकता, अध्यात्मिकता तथा मनुष्यता का शंख फूँकते हुये चरित्रबल पर भारत को एक बार पुनः जगद्गुरु के पद पर प्रतिष्ठित कराने का प्रयत्न कर रहे हैं। उनका यह सत्प्रयत्न सफल होगा, इसमें संदेह की कोई गुँजाइश नहीं है।

First 8 10 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • ईश्वर की रचना निन्दनीय न ठहरे
  • शास्त्र-चर्चा
  • यह सृष्टि ही परमात्मामय है।
  • Quotation
  • जो कुछ है सब तोहिं
  • आत्म साक्षात्कार के लिये जप भी, तप भी
  • सत्यं-शिवं-सुन्दरम् और उनकी विवेचना
  • Quotation
  • जगद्गुरु भारत और उसका पुनरुत्थान
  • Quotation
  • जटिल नहीं, जीवन को सरल बनाइये।
  • हम आध्यात्मिक प्रगति के लिए यह करें।
  • विचारों की शक्ति अपरिमित है।
  • अहिंसा के अनन्य उपासक-भगवान महावीर
  • जीवन महान कैसे बने?
  • पुरुषार्थ धर्म है,-कामनायें बन्धन
  • सेवा योगी-स्वामी रामकृष्ण परमहंस
  • दुर्गुणों को त्यागिये, सद्गुणी बनिये।
  • माँ कस्तूरबा गाँधी
  • जीवन में कठिनाइयाँ भी आवश्यक हैं।
  • मनुष्य अपनी तुच्छता भी जाने
  • Quotation
  • स्वास्थ्य के देवदूत-कार्नेरो
  • अर्थोपार्जन के आध्यात्मिक प्रयोग
  • समाज सृष्टा-महात्मा भगवानदीन
  • अखण्ड-ज्योति सदस्यों को इतना तो करना ही चाहिए।
  • धर्मोपदेशक बन कर जन जागरण कीजिये।
  • उत्तराधिकारी और व्रतधारियों से
  • शीत ऋतु का हमारा दौरा और उसका उद्देश्य
  • आश्विन की नवरात्रि
  • नव-निर्माण का प्रेरणा प्रद साहित्य
  • काया नहीं कहाऊँगा।
  • काया नहीं कहाऊँगा (Kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj