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Magazine - Year 1966 - Version 2

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जन्मोत्सव मनाना इस तरह आरम्भ करें।

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जन्मदिन मनाने की परम्परा सभी सभ्य देशों में है। इसकी उपयोगिता भी है और आवश्यकता भी। अखण्ड-ज्योति परिवार में इस प्रथा का प्रचलन, सामूहिक एवं व्यवस्थित रीति से आरम्भ किया जाय। इससे पारस्परिक प्रेम, सद्भाव एवं संगठन बढ़ेगा। साथ ही इस शुभ अवसर पर एकत्रित लोगों में जन-जागरण की भावनाएं जागृत करने का अवसर मिलेगा। इसके लिए विधि व्यवस्था इस प्रकार बनाई जाय।

(1) जहाँ भी अखण्ड-ज्योति पहुँचती है, वहाँ के सदस्यों में से तीन या पाँच उत्साही कार्यकर्ताओं की एक समिति सदस्यों के जन्मदिन मनाने का कार्य सुचारु रूप से चलाये।

(2) समिति सभी सदस्यों के जन्मदिन नोट कर ले। जिनके तारीखों के हिसाब से हों, वे तारीखों के हिसाब से और जिनके तिथियों के हिसाब से हों वे उस तरह नोट कर लिये जायँ। फिर उनको बारह महीनों में विभक्त करके सभी सदस्यों के पास एक निश्चित सूची की तरह पहुँचा दिये जाँय, ताकि सभी को उनकी जानकारी पहले से ही बनी रहे।

(3) जिसका जन्मदिन हो वह अपने घर पर नियत तिथि पर छोटे आयोजन की व्यवस्था करे। छोटा हवन, जन्मदिन विधान, गायन, सामूहिक जप, सत्संकल्प पाठ एवं प्रवचनों की व्यवस्था रहे। शाखा के सदस्यों के अतिरिक्त अपने निजी मित्र, परिचित, सम्बन्धी, पड़ौसी आदि भी आमंत्रित किये जाँय। उनके बैठने आदि का उचित प्रबन्ध रहे।

(4) इस समारोह में अतिथियों का स्वागत गर्मियों में शरबत, जाड़ों में तुलसी आदि की चाय जैसे सस्ते साधनों से ही किया जाय। मिष्ठान, पकवान अथवा अन्य महंगी चीजें प्रयुक्त न हों। वैसे सुपाड़ी, इलायची, सौंफ जैसी सस्ती वस्तुओं से भी काम चल सकता है। महंगी चीजें आतिथ्य में एक जगह प्रयोग हों तो दूसरी जगह उसकी प्रतिस्पर्धा चल पड़ती है और अधिक खर्चीले कार्य लोकप्रिय नहीं हो सकते।

(5) उत्सव का समय ऐसा रखा जाय जिसमें पहुँचना सबके लिए सुविधाजनक हो। प्रातः 9 बजे से पूर्व अथवा सायंकाल सूर्य अस्त के बाद का समय आमतौर से ठीक रहता है। उसमें सब लोग आसानी से सम्मिलित हो सकते हैं।

(6) हवन में जन्मदिन वाले सज्जन और उनकी पत्नी या अन्य कोई सम्बन्धी दो ही व्यक्ति आहुतियाँ दें। शेष उपस्थित लोग मन्त्रोच्चारण करें। पूर्णाहुति की आहुति सभी उपस्थित लोग दें। इस प्रकार का हवन लगभग एक रुपये में आसानी से सम्पन्न हो जाता है।

(7) आयोजन में दो-तीन घंटे से अधिक समय न लगाया जाय। आधा समय हवन आदि कर्म-काण्ड के लिए और आधा प्रवचन के लिए सुरक्षित रखा जाय। घड़ी की सहायता से सब काम हो ताकि समय का सदुपयोग हो सके।

(8) जन्मदिन संस्कार की कम से कम 10 विधान पुस्तिकाएं हर शाखा के पास रहें। जो शिक्षित व्यक्ति मंत्रोच्चारण कर सकें उन सभी के हाथ में पुस्तकें रहें। सभी लोग एक स्वर से, एक साथ मन्त्रोच्चारण करें। विधान की जानकारी इन पुस्तकों में दी गई है। जो कमी हो सो सीख लेनी चाहिए। पूजा विधान, हवन, दीपदान, पंचतत्व पूजन, मृत्युँजय हवन, व्रत धारण आदि कृत्यों का अभ्यास पहले से ही कराने वालों को होना चाहिए। पुस्तकें सभी उपस्थित शिक्षितों के हाथ में हों तो और भी अच्छा है ताकि वे लोग भी इस विधान को कराने की पद्धति से परिचित हो जाँय।

(9) आगन्तुक फूलमाला, गुलदस्ता या फूल लेकर आवें। उत्सव के अन्त में उपस्थित लोग यजमान को यह पुष्प भेंट करें, और यजमान सबको यथोचित प्रणाम अभिवादन करें।

(10) जिसका जन्मदिन हो वह इस वर्ष से एक नई अच्छी आदत अपने अभ्यास में लाने की प्रतिज्ञा करे। जल्दी सोना, जल्दी उठना, नियमित व्यायाम, नियमित गायत्री जप, स्वाध्याय, सबको आप कहना, बड़ों के चरण-स्पर्श, वेष-भूषा में सादगी, खादी पहनना, एक घंटे का पारिवारिक प्रशिक्षण आदि अनेकों अच्छाइयाँ ऐसी हो सकती हैं जो उस दिन से अभ्यास में समाविष्ट की जायँ। कोई बुराइयाँ अपने में हों तो उनमें से भी एक छोड़ी जा सकती है। इस प्रकार एक व्रत भी उस दिन लिया जाय और फिर उस पर निष्ठापूर्वक दृढ़ रहा जाय।

(11) कोई सुयोग्य व्यक्ति जीवन के महत्व एवं सदुपयोग के सम्बन्ध में प्रवचन करें। ताकि यजमान ही नहीं उपस्थित सभी लोगों को मानव जन्म के सुरदुर्लभ अवसर का श्रेष्ठतम उपयोग करने की प्रेरणा मिले। जन्मदिन पद्धति में जो श्लोक इस सम्बन्ध में दिये गये हैं उनकी व्याख्या यदि ठीक ढंग से की जा सके तो बहुत बढ़िया प्रवचन बन सकता है।

इस आवश्यकता की पूर्ति के सम्बन्ध में एक विधान व्यवस्था पुस्तक और एक उसी संदर्भ में प्रवचन पुस्तक भी इसी महीने छापी जा रही हैं। इन्हें मँगा लेने से जन्मदिन की व्यवस्था बनाने तथा प्रवचन करने में और भी अधिक सुविधा रहेगी।

(12) प्रत्येक उत्सव में उपस्थित लोगों को अगला जन्मोत्सव कहाँ, किसका कब मनाया जायगा, इसकी सूचना दे दी जाय। उपस्थित लोगों से उसमें सम्मिलित होने का अनुरोध किया जाय।

(13) जन्मोत्सवों का आरम्भ अभी उन्हीं लोगों से आरम्भ किया जाय जो अखण्ड-ज्योति के सदस्य हैं। आगे चलकर समिति अपनी सुविधा के अनुसार अन्य अनुरोध कर्ताओं के यहाँ भी वैसा प्रबन्ध कर सकती है।

छोटे बच्चों के जन्मदिन घर के लोग स्वयं ही इसी विधि-विधान से मना लिया करें। उनके लिए समिति व्यवस्था न करे। इन आयोजनों का प्रयोजन किन्हीं विचारशील व्यक्तियों को आदर्शवादिता के मार्ग पर चलने की विशेष प्रेरणा देना शाखा संगठन को सुदृढ़ बनाना है। इसलिए वह सीमित लोगों तक ही सम्भव है। अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र में कराते रहें। इस प्रकार बच्चों के, महिलाओं के जन्मोत्सवों का व्यापक प्रचलन हो जायगा तो अपने आप एक प्रेरणाप्रद लहर फैलने लगेगी। शाखा समितियाँ इसका शुभारम्भ मात्र करने का श्रेय लेंगी।

(14) यज्ञ के प्रसाद स्वरूप दूध, दही, शक्कर, जल, तुलसी पत्र से बना पंचामृत और भुने आटे की शकर मिली ‘पंजीरी’ इतना ही पर्याप्त समझा जाय। महंगे प्रसादों का प्रचलन न हो। किसी परम्परा के व्यापक बनाने में उसका सस्ता होना आवश्यक है।

(15) जीवन विद्या से विभिन्न पहलुओं पर प्रवचनों की तैयारी कार्यकर्ताओं को करनी चाहिये। ‘गीता-कथा’ के अनेक कथानक इस प्रयोजन को पूरा कर सकते हैं। किन्हीं सद्गुणों एवं सत्प्रवृत्तियों पर प्रकाश डाला जा सकता है। जिन उपायों से जीवन सुविकसित हो, ऐसे विषयों पर शाखा सदस्य प्रवचन करने का पूर्वाभ्यास करते रहें। एक ही बात हर जगह हर आयोजन में कहते रहने से वह नीरस हो जायगी।

(16) जिस प्रकार जन्मोत्सव मनाया जाता है। उसी प्रकार यदि संभव हो तो विवाहोत्सव भी मनाये जायँ। नये समाज का निर्माण प्रत्येक दाम्पत्ति-जीवन के साथ आरम्भ होता है। यदि दाम्पत्ति-जीवन की आधारशिला सुदृढ़ हो, दोनों अपने कर्तव्य वाले और एक शरीर के दो अंग बनकर रहें तो गृहस्थ में स्वर्ग का अवतरण हो सकता है और नई पीढ़ियों में श्रेष्ठ सद्गुणों का बीज बोया जा सकता है। बेकार की झिझक एवं उपहास का भय छोड़कर हममें से कुछ लोग विवाहदिनोत्सव मनाने को तैयार हो जायँ तो देखा-देखी कुछ दिनों में इसका भी प्रचलन साधारण एवं स्वाभाविक लगने लगेगा।

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