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Magazine - Year 1966 - Version 2

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ब्राह्मण की बात सुनकर सन्त ने कहा- “तुम विन्ध्य पुरी के महात्मा प्रभु दास के पास जाओ। वे तुम्हें ऐसी पारस-मणि देंगे

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एक व्यक्ति ने अज्ञान में बहुत पाप किये। कुछ दिन में उसकी भेंट एक ईश्वर भक्त से हो गई। इन महात्मा के उपदेश से उस व्यक्ति की आंखें खुलीं और संसार के सच्चे स्वरूप का ज्ञान हुआ। इस प्रकार का आत्म-बोध हुआ तो सबसे पहले अपने पापों पर बड़ा दुःख हुआ। उसने महात्मा से प्रायश्चित का उपाय पूछा। उन्होंने बताया कि यदि वह गंगा स्नान कर ले तो उसके पाप दूर हो सकते हैं। इस पर वह व्यक्ति बड़ा प्रसन्न हुआ और गंगा स्नान के लिए चल पड़ा।

इन दिनों मोटर-गाड़ियों का प्रचलन न हुआ था। गंगा जी वहाँ से काफी दूर थीं। उस आदमी को गंगा जी का पता-ठिकाना भी मालूम न था, उसे केवल यही अनुमान था कि गंगा जी कोई बड़े जलाशय का नाम है। दिन भर चलते रहने के बाद तीसरे पहर उसे एक बड़ा तालाब मिला, उसने सोचा- बस यही गंगा जी हैं। बड़े प्रेम से कपड़े उतारे, स्नान किया और फिर कपड़े पहन कर घर लौटने की तैयारी करने लगा। तभी एक दूसरा व्यक्ति वहाँ आ पहुँचा, जिससे मालूम पड़ा कि गंगा जी तो अभी बहुत दूर है।

यात्री ने दूसरे दिन फिर पद-यात्रा प्रारम्भ की। कई दिन लगातार चलते रहने के बाद उसे एक नाला मिला। उसने उसे ही गंगा जी समझ कर स्नान किया और फिर प्रसन्नता पूर्वक घर लौटने की तैयारी करने लगा। पर एक बालक ने बताया कि वह तो एक मामूली नाला है, गंगा जी तो यहाँ से बहुत दूर हैं।

वह आदमी फिर यात्रा पर चल पड़ा। कई सप्ताह चलते रहने के बाद उसे एक बड़ी नदी मिली। इस बार उसे पक्का विश्वास हो गया कि यही गंगा जी हैं। भक्त ने बड़ी श्रद्धा के साथ स्नान किया और फिर घर लौटने की तैयारी करने लगा। इसी समय एक स्त्री ने उस नदी का नाम लेकर जयकार लगाई। यह सुनकर उस आदमी को बड़ा विस्मय हुआ कि वह जिसे गंगा समझ रहा था, वह तो एक दूसरी नदी निकली।

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