Magazine - Year 1969 - Version 2
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Language: HINDI
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संगीत जो तन मन को जीवन देता है
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विश्व के यशस्वी गायक एनरिको कारूसो लिखते हैं-जब कभी संगीत की स्वर लहरियाँ मेरे कानों में गूँजती, मुझे ऐसा लगता मेरी आत्म चेतना किसी अदृश्य जीवनदायिनी सत्ता से सम्बद्ध हो गई है। मैं शरीर की पीड़ा भूल जाता, भूख प्यास और निद्रा टूट जाती, मन को विश्राम और शरीर को हल्कापन मिलता। मैं तभी से सोचा करता था कि सृष्टि में संगीत से बढ़कर मानव-जाति के लिये और कोई दूसरा वरदान नहीं है।”
कारूसो ने सारे जीवन भर संगीत की साधना की। जब एक बार एक शिक्षक ने यहाँ तक कह दिया कि तुम्हारा स्वर संगीत के योग्य है ही नहीं। तुम्हारा स्वर लड़खड़ाता है। पर निरन्तर अभ्यास और साधना से कारूसो ने संगीत साधना में अभूतपूर्व सिद्धियाँ पाई और यह प्रमाणित कर दिया कि संगीत का सम्बन्ध स्वर से नहीं हृदय और भावनाओं से है। कोई भी मनुष्य अपने हृदय को जागृत कर परमात्मा के इस वरदान से विभूषित हो सकता है।
संगीत से मनुष्य का आध्यात्मिक विकास होता है और वह सूक्ष्म सत्ता के भाव-संस्पर्श और अनुभूति की स्थिति पाता है, यह परिणाम अंतर्जगत से सम्बन्ध रखते हैं, इसलिये उस सम्बन्ध में विस्तृत अन्वेषण का क्षेत्र पाश्चात्य जगत् के लिये अभी नितान्त खाली है, मस्तिष्क, शरीर और वन्य वनस्पतियों तक में संगीत के जीवनदायी प्रभाव को आज पाश्चात्य विद्वान् और वैज्ञानिक भी मानने लगे हैं।
क बार इंग्लैण्ड के एक अस्पताल में आपरेशन के लिये एक रोगी को ले जाया जा रहा था। उस समय बाहर कि किसी मकान से संगीत की मधुर ध्वनि आ रही थी। रोगी के मन में संगीत का कुछ ऐसा प्रभव पड़ा कि वह उठ बैठा और निकलकर अस्पताल के बाहर आकर भौचक्का सा देखने लगा कि वह स्वर झंकार कहाँ से आ रही है। डाक्टरों ने देखा संगीत के प्रभाव ने उसके रोग को ही दवा दिया है।
अमेरिका के कई दन्त चिकित्सक एक विशिष्ट संगीत लहरी, विद्युत वाद्य यन्त्र से बजाकर दाँत उखाड़ते हैं। रोगियों से पूछने पर वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि संगीत की मधुर ध्वनि का असर जादू जैसा होता है और वे लोग अपना कष्ट भूल जाते हैं। महिलाओं के प्रसव के समय भी इस प्रकार के प्रयोग किए गये और यह देखा गया कि जिन स्त्रियों को प्रजनन के समय बहुत पीड़ा होती थी, उन्होंने बिना कष्ट के प्रसव किया। ‘अमिला लौमलिटा’ नामक एक महिला का वृतान्त कुछ दिन पहले एक लेख में छपा था, उसकी स्थित अष्टावक्र जैसी थी पर उसने संगीतोपचार द्वारा नया जीवन, नई तरुणाई पाई, उसका सब शारीरिक दोष जाता रहा। इटली में ‘टोरेन्टेला’ नामक नृत्य होता है, तब अनेक मधुर वाद्य बजते हैं, उनसे अनेक पागलपन के रोगी अच्छे होते देखे गये हैं।
भारतवर्ष में शास्त्रीय संगीत की शक्ति और महत्ता के सम्बन्ध में पहले बताया जा चुका है। अब उस दिशा में नई खोजें की जाने की आवश्यकता है, पर सामान्य व्यक्तियों को कथा, कीर्तन, भजन, रेडियो-संगीत छोटे-छोटे बाह्य यन्त्रों के वादन और गायन के द्वारा उसके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव का लाभ अवश्य उठाना चाहिये। संगीत स्पन्दन शरीर पर बड़ा अनुकूल प्रभाव डालते हैं।
गायन को यौगिक स्वास्थ्य साधन’ भी कहते हैं। गाते समय मुँह, जीभ और होंठ ही काम नहीं करते वरन् आवाज नाभि से खिंचती है और ब्रह्म-रंध्र तक पहुँचती है, फिर तालु से खींचकर गले से उसे निकालते हैं, इस तरह कमर से नीचे के हिस्से को छोड़कर शेष सम्पूर्ण शरीर का भीतरी व्यायाम हो जाता है, उससे बाहरी व्यायाम से भी अधिक प्रभावी परिणाम दिखाई देते हैं।
गायन से शरीर और मस्तिष्क की नाड़ियों का शोधन होता है। ज्ञान तन्तु सजग होते हैं। द्रुत, विलम्बित और मध्यम लय में गाये जाने वाले गीतों के अभ्यास से जीभ, वक्षस्थल, हृदय, श्वाँस और स्वर वाहिनी नलिकाओं, स्नायु मण्डल और नाड़ी संस्थान और हृदय की रक्त वाहिनी धमनियों में प्रभाव पड़ता है। यह अंग स्वस्थ निरोग और बलवान् बनते हैं।
गाने से नाड़ी संस्थान में लहरें उठती हैं, उससे प्रभावित होकर मन भी लहराने लगता है। इस प्रकार की तरंगें शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिये बहुत लाभदायक होती है। गाने से फेफड़े और स्वर यंत्र मजबूत होते हैं। तपेदिक आदि बीमारियों का भय नहीं रहता। जबड़े और आमाशय का भी अच्छा व्यायाम हो जाता है और यह सभी संस्थान निरोग हो जाते हैं। वाद्य संगीत के साथ गायन अथवा नृत्य का भी अभ्यास किया जाता है तो उससे सिर, गर्दन, कन्धा, छाती, पेट और पैर का भी व्यायाम हो जाता है और सारे शरीर में खून का संचार ठीक प्रकार से होने लगता है और शरीर में स्फूर्ति रहती हैं। बाँसुरी, शहनाई, बीन आदि मुँह से बजाये जाने वाले वाद्यों से जीभ, श्वाँस नली और फेफड़े स्वस्थ और मजबूत होते हैं।
संगीत का अभ्यास करना ही लाभदायक नहीं, श्रवण करना भी उतना ही प्राणप्रद होता है। सुनने से और भी स्फूर्ति, चैतन्यता और रोमांच होता है। गायन और वादन की श्रोताओं पर जो प्रतिक्रिया होती है, उसके फलस्वरूप अधिक प्यास लगना, शरीर की जलन, नशे के प्रभाव, दुर्बलता, विष के प्रभाव, मूर्छा, नींद न आना, मानसिक विक्षिप्तता, आलस्य, पीड़ा, बुखार, बार-बार दस्त और पेशाब होना, आन्तरिक दाह, रक्त-चाप खाँसी, पाण्डुरोग, कान के दर्द, हृदय की धड़कन, श्वाँस रोग आदि को आराम मिलता है। कई बार कुछ रोग असाध्य हो जाते हैं और उन पर संगीत का प्रभाव धीरे धीरे पड़ता है। धीरे धीरे विष का शमन होता है पर यह निश्चित है कि नियमित रूप से गायन का अभ्यास करने से इनसे छुटकारा अवश्य मिलता है।
गायन में स्तुति, मंगलाचरण, भगवान् का ध्यान, माता का ध्यान, छोटे बच्चों को पास बैठाकर गाना, सजावट और सौंदर्यपूर्ण स्थान जैसे देव मन्दिर, तीर्थ अथवा जलाशयों के किनारे सामूहिक रूप से गाने का प्रयोग और भी प्रभावोत्पादक होता है। प्राचीनकाल में ऐसे अवसरों-पर्व त्यौहार, पूजन, तीर्थ यात्रा, मन्दिरों आदि में संगीत अभ्यास और गायन की व्यवस्था इसलिये की जाती थी कि उन पर्वों और स्थानों के सूक्ष्म प्रभाव को तरंगित कर उसका भी लाभ उठाया जा सके।
संगीत का प्रभाव मनुष्यों पर ही नहीं पशु-पक्षियों पर भी पड़ता है। वेणुनाद सुनकर सर्प अपनी कुटिलता भूलकर लहराने लगता है। कई प्रान्तों में बहेलिये बीन बजाते हैं, उससे मुग्ध हुए हिरन, मृग निर्भय हो कर पास चले आते हैं। हालैण्ड में गायें दुहते समय मधुर संगीत सुनाया जाता है। वहाँ की सरकार ने ऐसा प्रबन्ध किया है कि जब गायें दुहने का समय हो तब मधुर संगीत ब्राडकास्ट किया जाय, ग्वाले लोग रेडियो सेट दुहने के स्थानों पर रख देते हैं। संगीत को गायें बड़ी मुग्ध होकर सुनती हैं, और उनके स्नायु संस्थान पर कुछ ऐसा प्रभाव पड़ता है कि वे 15 से लेकर 20 प्रतिशत तक अधिक दूध दे देती हैं।
अभी शक्ति तत्व के अनुसंधान का क्षेत्र बहुत विस्तृत और अव्यक्त है और जानकारी बढ़ेगी तो यह भी सम्भव हो जायेगा कि रीछ, भालू व शेर, बाघ जैसे खूँख्वार जानवरों को भी संगीत के प्रभाव से सात्विक और कोमल मनोवृत्ति का बनाया जाना सम्भव होगा। कहते है साम संगीत को सुनकर चर अचर सभी निर्विकार और अचेतन स्थिति को पहुँच जाते हैं, उसका लाभ भी तब मिल सकेगा।
संगीत का प्रभाव जीवित जगत् तक ही नहीं, वृक्ष और वनस्पति भी उससे प्रभावित होते हैं। अन्नमलय विश्व विद्यालय के वनस्पति शास्त्र के प्रधान डा. टी. सी. एन. सिंह ने ध्वनि तरंगों के द्वारा पौधों को उत्तेजित व वर्धित किये जाने की बात स्वीकार की।
केले और धान की खेती में संगीत की स्वर लहरियाँ डाली जाय तो उनके वजन और उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती देखी गई है।
संगीत एक शक्ति है इसलिये जहाँ उसका उपयोग हैं, वहाँ दुरुपयोग भी सम्भव है। आज कल संगीत के नाम पर अश्लीलता और भौंड़ापन बढ़ा है, उसे अच्छे सुमधुर और शास्त्रीय संगीत से स्थानापन्न करना और उसका लाभ उठाना बहुत आवश्यक हो गया है।
ध्वनि एक वैज्ञानिक शक्ति है। एक पौराणिक कथा है कि “त्वष्टा ऋषि से मन्त्रोच्चारण में एक स्वर की गलती हुई थी और उसका परिणाम विपरीत हो गया था। त्वष्टा इन्द्र को मारने वाला पुत्र उत्पन्न करता चाहते थे, किन्तु स्वर सम्बन्धी उच्चारण की त्रुटि से जिसे इन्द्र ने ही मार डाला, ऐसा वृत्त नामक महाअसुर उत्पन्न हो गया। स्वर लहरियों की शक्तियाँ असाधारण हैं उनका दुरुपयोग करके जनमानस और समाज को दिग्भ्रान्त किया जा सकता है और लोगों को कल्याण की दिशा में भी अग्रसर किया जा सकता है। हमें चाहिये कि स्वयं भी संगीत शक्ति का लाभ प्राप्त करें और समाज को भी उस पुण्य धारा में स्नान का सुख प्रदान करें।