Magazine - Year 1969 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
सूर्य शक्ति से आरोग्य प्राप्ति
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
हे प्रातः काल के उगते हुए सूर्य देव! आप सम्पूर्ण शक्ति के प्राण हैं। आप हर प्रकाश भर जाते हैं, जिससे प्रजा को चेतना, आरोग्य और स्वास्थ्य मिलता है।
सूर्यदेव की स्तुति में वेद भगवान- स नो भूड़ाति तन्वेत्र जुगो सजन। भाइयों, मित्रों जाओ देखो यह जो प्राची में प्रकाश पिण्ड के रूप में सूर्यदेव उग रहे है, वह हमारे शरीरों के दोष दूर करते हैं और आरोग्य प्रदान करते हैं।
एक बार एक अत्यन्त कृशवदन बालिका चिकित्सा के लिये लाई गई। उसकी त्वचा ने काम करना बन्द कर दिया था। सारी देह में खुजली उठती रहती थी। वह बिल्कुल दुबली पतली हो गई थी, स्वास्थ्य वर्धक आहार और टानिक देने पर भी न रक्त बनता था, न रक्त संचार होता था, चिकित्सक महोदय काफी परेशान हुए, उनका मस्तिष्क काम न दिया- बालिका का उपचार कैसे किया जाये।
अन्त में एक प्राकृतिक चिकित्सक की सलाह पर बालिका को कई दिन धूप में रखा गया। खाना बन्द कर दिया गया, उससे भीतर की गन्दगी समाप्त हुई और इधर धूप के कारण त्वचा में हलचल आरम्भ हुई। रोम छिद्रों से प्रकाश और आकाश तत्व का शरीर में प्रवेश होने से बालिका के शरीर में स्फूर्ति और चेतनता बढ़ने लगी। कुछ ही दिन में बालिका घर भर में सबसे ज्यादा पुष्ट हो गई। तब से उक्त परिवार के सदस्यों ने नियमित धूप सेवन का क्रम बना लिया।
धूप से प्राकृतिक अवस्था में शरीर को आरोग्य शक्ति उपलब्ध होती है, यह प्रकृति की अमूल्य देन है। जो मनुष्य ऐसे स्थान में रहते या काम करते हैं, जहाँ धूप नहीं पहुँचती वे लोग निश्चय ही निस्तेज, निष्प्रभ और पीले पड़ जाते हैं। धूप किरणों से मिलने वाली विटामिन-डी शरीर के विकास में बड़ी सहायक होती है, इसलिये गर्भावस्था से ही बालक को धूप के संस्पर्श में रखना चाहिये। अर्थात् गर्भवती स्त्रियों को प्रतिदिन प्रातःकाल भगवान् सूर्यदेव कि किरणों में रहकर काम करना चाहिये। काम न हो तो सारे शरीर को धूप से सेंकना चाहिये। यदि स्त्री धूप सेवन नहीं करती तो उसके चलने फिरने में कष्ट हो सकता है।
हड्डियों और दाँतों के विकास के लिये भी विटामिन-डी आवश्यक है। भोजन से उसकी पूर्ति संभव नहीं। बच्चों में सूखा रोग इसी के अभाव में होता है, हड्डियाँ, पाँव, और कमर लचीली और कमजोर हो जाती हैं। माँसपेशियों और हड्डियों की संधियाँ कमजोर पड़ जाती है। इसलिये आवश्यक हैं कि छोटे बच्चों को निश्चित रूप से हल्की धूप में घूमने हँसने और खेलने दिया जाये। चतुर माताएँ बच्चों को धूप में बैठकर मालिश करती हैं और थोड़ी देर के लिये, जब तक धूप बच्चे की कोमल त्वचा को सह्य हो धूप में ही लिटा देती हैं। इससे बच्चे को एक प्रकार का प्राण ही मिलता है।
स्त्रियों को अस्टोमलेशिया (हड्डी का कमजोर होना) होना इस बात का प्रतीक है कि उसने धूप से अपने आपको वंचित रखा।
सूर्य के प्रकाश में रोगियों को कुछ समय तक बैठाने से त्वचा की निष्क्रियता समाप्त हो जाती है, जिससे पाण्डुरोग ठीक हो जाता है। और भी कहा है-
अनुसूर्यभुदायतां हृदद्योतो हारमा च ते।
प्रातःकालीन नारंगी रंग वाले सूर्य के द्वारा तेरे हृदय रोग तथा पाण्डु रोग दूर हो जायें।
अब इस बात को डाक्टर भी मानते हैं कि कुछ कीटाणु ऐसे होते हैं, जो खौलते पानी में भी नष्ट नहीं होते ऐसे कीटाणु भी धूप से नष्ट हो जाते हैं। इसलिये कहना न होगा कि सूर्य हमारा जीवन रक्षक, हमारा प्रत्यक्ष देवता है।
सूर्य किरणों की अनेक जातियाँ मनुष्य के लिये वरदान ही होती हैं, उसकी अदृश्य किरणों में अवरक्त (इन फरेड रेंज) शरीर को ताप प्रदान करती हैं, यह किरणें आवरण भेद करके भी अन्दर पहुँच जाती हैं, धूप से हमें जो गर्मी मिलती है, वह उसी से प्राप्त होती है। डाक्टर लोग इन किरणों का प्रयोग कुछ विशेष बीमारियों में करते हैं।
इसी प्रकार अल्ट्रावायलेट (पराबैगनी किरणें,) किरणों का भी कोई बीमारियों में उपयोग किया जाता है। यह किरणें सबसे छोटी होती हैं, वे पृथ्वी में बहुत थोड़ी पहुँच पाती हैं, इसलिये सूर्य लैम्प की मदद से इनसे चिकित्सा का काम लिया जाता है।
सूर्य किरणें शरीर को गन्दगी से बचाती हैं, इनमें कुछ विलक्षण शक्ति होती है, जिससे वह गन्दगी को अपान मार्गों से बाहर धकेल देती है। पसीने के द्वारा भी भारी मात्रा में गन्दगी निकल जाती है। इसलिये धूप सेवन के बाद शीतल जल से स्नान अवश्य कर डालना चाहिये उससे रोम छिद्र साफ हो जाते हैं।
बौद्धिक काम करने वालों को धूप स्नान करते समय या धूप में टहलते समय सिर में तौलिया अवश्य बाँधे रहना चाहिये अन्यथा मस्तिष्क की गर्मी बढ़ सकती है पर शरीर के शेष भाग को लाभ ही होता है। हाँ, तेज धूप से बचना आवश्यक है। अभ्यास के दिनों में धूप में रहने का समय धीरे धीरे बढ़ाना चाहिये।
नियमित धूप सेवन से रोग पीड़ा दूर होती है। सिर के रोग, हृदय शूल दूर होता है। सिर-दर्द खाँसी और शरीर के जोड़ों में घुसे हुये रोगों को भी धूप की किरणों ढूँढ़ निकालती और मार भगाती है। तपेदिक रोग में भी हल्की धूप लाभदायक होती हैं। बात, पित्त और कफ को भी दूर करती हैं, ये सूर्य किरणें।
यत्री उपासना से जिन स्थूल लाभों की चर्चा की जाती है, वह सूर्यदेव की प्रकाश शक्ति का ही चमत्कार है। जिसे तरह मन में जब काम वासना के विचार उठते हैं, उसकी शारीरिक इन्द्रियों पर उत्तेजना परिलक्षित होती है, उसी प्रकार मन का ध्यान जब सूर्य लोक में करते हैं तो सूर्य की सबसे समीप वाली किरणों में मन का स्नान होता है और उसकी वह शक्तियाँ भी निश्चित रूप से शरीर में परिलक्षित होती हैं। भयंकर रोग, गायत्री उपासना से ठीक होते देखे गये हैं, वह इस वैज्ञानिक पद्धति के आधार पर ही हैं। सूर्य भगवान् का ध्यान करते हुए, धूप लेने में मानसिक शुद्धि और आत्मिक पवित्रता भी बढ़ती है, इसलिये ही सूर्य को लोक एवं परलोक दोनों प्रकार के सुखों का दाता कहा गया है।
इन लाभों को देखकर हमें सूर्य की आरोग्य दायिनी शक्ति से वंचित नहीं रहना चाहिये। शरीर ही नहीं हमारे आस-पास का वातावरण और कमरे, घर ऐसे खुले हुए होने चाहिये, जहाँ सूर्य का प्रकाश अबाध रूप से प्रवेश कर सके। जिन घरों में सूर्य की रोशनी नहीं पहुँचती, वहाँ सीलन एवं रोग के कीटाणु जन्म लेते और आक्रमण करते रहते है, इसके बावजूद धूप वाले स्थानों की वायु शुद्ध रहती है, विषैले तत्व दूर भग जाते हैं। ऑफिसों और कारखानों में काम करने वाले स्थानों में जहाँ अधिक गन्दगी फैलने की सम्भावना रहती है, वहाँ का वातावरण तो और भी खुला हुआ रहना चाहिये, जिससे सूर्य की किरणों का कार्य बन्द न हो। बन्द मिलों में काम करने वाले श्रमिक पीले पड़ जाते हैं, बीमार हो जाते हैं और उनकी कार्य क्षमता बहुत घट जाती है।
धूप मनुष्यों का जीवन है। सूर्य दृष्टि का प्राण है, प्राणों की उपेक्षा कर जीवन के अस्तित्व की रक्षा नहीं की जा सकती, इसलिये स्वस्थ, बलिष्ठ, और रोग-मुक्त रहने के लिये हमें सूर्य किरणों, सूर्य के प्राण की सब विधि उपासना करनी ही चाहिये।