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Magazine - Year 1970 - Version 2

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सजीव स्वर्ग- हिमालय की पुष्प घाटी

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कामना तो आखिर कामना ही है। अर्जुन ने हठ किया तो द्रौपदी ने कह दिया-आप ला सकते हैं तो मेरे लिये नन्दन वन के वह पारिजात ला दें जो जल में नहीं, पत्थरों में पैदा होते हैं, जिनकी सुगन्ध कस्तूरी-मृग से भी मादक होती है, जिनका सौंदर्य दिव्य सौंदर्य की अनुभूति करा देता है।

अर्जुन चले और नन्दन वन पहुँचे। वहाँ के रक्षक से उन्हें युद्ध करना पड़ा, तब कहीं एक फूल द्रौपदी के लिये ला सके।

महाभारत की इस कथा में सम्भवतः कल्पना अधिक, तथ्य कम जान पड़ता हो। किन्तु यह कल्पना नहीं आश्चर्यजनक रहस्य ही है कि ऐसा नन्दन वन आज भी इसी भारत-भूमि में वैसे ही विद्यमान है जैसी महाभारत में कथा आती है। समुद्र-तल से 13200 फीट ऊँचा यह हिमालय की गोदी में स्थित स्थान आज भी ‘फूल घाटी’ के नाम से विख्यात है। प्रतिवर्ष हजारों विदेशी पर्यटक यहाँ पहुँचते और जहाँ, वहाँ की मादक छटा को देखकर मुग्ध होते हैं, वहीं यह आश्चर्य भी है कि 10-15 मील क्षेत्र में प्राकृतिक तौर पर उगते आ रहे इन हजारों प्रकार के चित्र-विचित्र पुष्पों को किसने रोपा? सारे संसार में ऐसा कोई भी स्थान नहीं जहाँ प्राकृतिक तौर पर इतने अधिक, इतने सुन्दर, इतने वर्णों के पुष्प और कहीं खिलते हों।

विशेषज्ञों का अनुमान है कि यह फल प्रकृति की उतनी अधिक देन नहीं है जितनी इस बात की सम्भावना कि यह पौधे अतीत काल में सुनियोजित ढंग से विकसित किये गये हों। सम्भव है यह कोई राजोद्यान रहा हो, यह भी सम्भव है कि यहाँ कभी किसी महर्षि का तपोवन आश्रय रहा हो। जो भी हो- महाभारत काल के बाद तो यह स्थान उन सैंकड़ों रहस्यों की तरह छुपा ही रहा जिनके लिये प्रतिवर्ष देश-विदेश के सैकड़ों पर्वतारोही भारत आते और हिमालय के आश्चर्य खोजने के प्रयत्न करते हैं।

जहाँ अनेक धार्मिक व्यक्तियों का यह विश्वास है कि हिमालय में राजाओं द्वारा छिपाये हुए खजाने हैं, यज्ञों के बहुमूल्य पात्र, आभूषण और अस्त्र हैं, वहाँ पर्वतारोहियों का यह कथन है कि हिमालय की प्रत्येक वनस्पति औषधि है। जहाँ धार्मिक लोग विश्वास करते हैं कि वहाँ अभी भी अखण्ड अग्नियाँ स्थापित हैं, ऐसे-ऐसे गुप्त आश्रम हैं जहाँ अर्द्ध-सहस्र आयु के भी सन्त-महात्मा समाधिस्थ हैं, वहाँ पर्वतारोहियों ने हिम-मानव ही कल्पना ही हिमालय में नहीं की, उनके पद-चिह्न भी देखे हैं। आदि साधना-भूमि होने के कारण हमारा भी विश्वास है कि हिमालय में अध्यात्म-विज्ञान की वह अदृश्य तरंगें, वह ज्ञान अब भी विद्यमान है जिसे प्राप्त कर इस भौतिक युग की सम्पूर्ण जड़वादी मान्यताओं, परम्पराओं, सिद्धाँतों को बालू की दीवार की तरह बदला जा सकता है। ‘पुष्प घाटी’ ऐसे-ऐसे रहस्यों की ही पुष्टि का एक प्रमाण है।

इस स्थान की सबसे पहली खोज ब्रिटिशकालीन भारतीय सेना के एक कप्तान ने की थी। उसने यहाँ के सैकड़ों प्रकार के फूलों के बीज एकत्रित कर इंग्लैंड भेजे। एक पुस्तक भी लन्दन में छापी गई, जिसमें इस फूल घाटी को प्रकृति का ‘अद्भुत चमत्कार’ कहकर पुकारा गया। तब से अनेक विदेशी खोजी आते रहे और भटक-भटक कर लौटते रहे। पर इंग्लैंड की श्रीमती जान लेग को दुबारा यह स्थान फिर मिल गया। उन्होंने यहाँ से लगभग 500 फूलों के बीज इकट्ठे कर लन्दन भेजे। अब तो वहाँ तक पहुँचने की तमाम सुविधायें हो गई हैं इसलिये कोई भी वहाँ जा सकता है, पर अभी हमारे हिमालय में ऐसा बहुत कुछ है जहाँ तक हम नहीं जा सकते। वहाँ जा सके होते और उसके अनन्त रहस्यों में से कुछ का भी पता लगा सके होते तो देखते कि हम जिन वस्तुओं के लिये विदेशों के आश्रित हैं दूसरों का मुँह ताकते हैं वह और उनसे श्रेष्ठ वस्तुएँ हम अपने ही भीतर से निकाल सकते हैं।

तीर्थ-यात्रा और आत्म-कल्याण के लिये साधनाओं की दृष्टि से अब हिमालय ही एक पुण्य स्थान बचा है। वहाँ चित्ताकर्षक शाँति हैं, अतुलित प्राण और सौंदर्य भरा है। उसमें जो एक बार इस पुष्प घाटी को ही देख आता है, उसे हिमालय का सौंदर्य भूलता नहीं। वह वहाँ बार-बार जाता है। पुष्प घाटी तक पहुँचने के लिये जोशी मठ पहुँचना पड़ता है। वहाँ से बद्रीनाथ को जाने वाली सड़क पर मध्य में गोविन्द घाट स्थान पर उतरना पड़ता है। यहाँ से पैदल चढ़ाई है और आगे घाघरिया तक की 7 मील की दूरी को पार करने के लिये पूरा एक दिन लग जाता है।

घाघरिया से कुल एक घण्टे में मुख्य घाटी पहुँच जाते हैं। उसकी दाहिनी ओर ‘कुबेर भण्डार’ पर्वत और आगे ‘कामेट चोटी’ है। बांई ओर सप्राष्टंग पर्वतों की चोटियाँ हैं। कामेट झरना सामने ही बहता हुआ आ रहा है। म्यून्डर ग्राम पर पहुँचते ही यह पुष्प घाटी मिल जाती है और अनेक प्रकार के गुलाब, कुमुदिनी, गुलदाऊदी, सिलपाड़ा, जंगली गुलाब, चम्पा, बेला, जुही और कुछ फूल तो ऐसे हैं जिनके नाम वैदिक साहित्य में हैं पर अब उनकी सही जानकारी करना कठिन है। अँग्रेजों ने इनके नाम ‘बड आफ पमडाइज, ग्लाडेओली, हिमालयन, आरकिड हिबिस्टकम’ आदि रख लिये हैं। कथींड के सफेद व बैंगनी फूलों के गुच्छे बड़े मोहक लगते हैं। बुराँस फूल तो गुलाब के सौंदर्य को भी मात देता है। जब यह बुराँस पूरी तरह अपनी ऋतु में फूलता है तो यह वन नन्दन वन या स्वर्ग से भी सुहावना प्रतीत होता है। कितना ही देखो-न तो आँखें थकती हैं और न वहाँ से हटने का ही जी करता है। वर्ष भर उसी तरह किसी-न-किसी फूल की शोभा बनी रहती है। 3000 से अधिक विभिन्न फूल विभिन्न समय में फूलते रहते हैं।

ब्रह्म-कमल यहीं पाया जाता है। कमल जल में ही हो सकता है पर प्रकृति के संसार में क्या बन्धन? उसने यहाँ पत्थरों में कमल उगाकर यह दिखा दिया कि उसकी सत्ता सर्व शक्तिमान है। यह कमल श्वेत रंग का होता है, इसकी सुगन्ध ऐसी जादू भरी होती है कि हलकी-सी महक से ही अनन्त सुख और शाँति का आभास होता है इसलिए इसका नाम ब्रह्म-कमल पड़ा है। इसे पाकर ही द्रौपदी की इच्छा पूर्ण हुई थी।

फल कहीं भी हो, वह तो प्रकृति का उन्मुक्त सौंदर्य है। जो लोग अपने घरों के आस-पास थोड़े-से भी फूलों के पौधे लगा देते हैं तो वह स्थान इतना इच्छा और आकर्षक लगने लगता है कि बार-बार वहाँ जाने का मन करता हैं, फिर एक ऐसे प्रदेश में पहुँचकर जहाँ 10 इंच से लेकर 28 इंच ऊँचाई के पौधे केवल फूलों से ही आच्छादित हों, उस स्थान के सौंदर्य तो ईश्वर या उस दिव्य आत्मा के समान है, जिससे इस सौंदर्य और आनन्द की अनुभूति ही हो सकती है, अभिव्यक्ति नहीं।

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Type: SCAN
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