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Magazine - Year 1970 - Version 2

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अब बलिदानों की बात करो (kavita)

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जाने वाले से माँग चुके अनुदान बहुत।

अब तुम भी तो प्रतिदानों की कुछ बात करो॥

तुम दुःखी हुए- दृग-नीर बहाया है उसने,

भीषण संकट से सदा बचाया है उसने,

जब-जब उदभ्रान्त हुए- समझाया है उसने,

उत्कृष्ट प्रगति का मार्ग बताया है उसने।

पर आज कह रहा है वह ‘मेरे साथ चलो’।

तो, मोह त्याग- बलिदानों की कुछ बात करो॥

द्रव्यार्जन किया बहुत- खुद से छल किया करे,

तृष्णा से क्षुधा मिटाई- दृग-जल पिया करे,

चाँदी के तारों से आत्मा को सिया करे,

जैसे पशु जीते हैं- तुम भी तो जिया करे।

वह सिखा रहा तुमको- ‘मानव बनकर जी लो’।

तो तुम भी नव सोपानों की कुछ बात करो॥

तुम अन्धकार में थे- वह ज्योति जला लाया,

देवत्व सिखाया- मार्ग मुक्ति का बतलाया,

हर दुखती रग को बड़े प्यार से सहलाया,

अपना अमूल्य तप भी तुम पर है बरसाया।

मैं कहती हूँ- ‘इतने कृतघ्न मत बनो सखे!’

उसके अमूल्य अहसानों की कुछ बात करो॥

यह विश्व आज दिग्भ्रान्त हुआ है दिशा भूल,

जन-जन के उर में चुभा हुआ अज्ञान शूल,

जीवन कानन रस-हीन हुआ- उड़ रही धूल,

वह कहता तुमसे ‘सखे! खिलादो वहाँ फूल’।

जिस स्वर को सुनकर रोता हृदय विहँस जाये।

बस, ऐसे ही रस-मय गानों की बात करो॥

तुमने सीखा है केवल लेना-ही-लेना,

मैं कहती हूँ- ‘बेहद सन्तोषजनक- ‘देना’,

मन की संतृप्ति मिटाते दो मीठे बयना,

उल्लासपूर्ण- भंवरों में नैया को खेना।

जिनकी न पूर्ण हो सकी साधना-उनके हित।

अपने सञ्चित वरदानों की कुछ बात करो॥

-माया वर्मा

-माया वर्मा

*समाप्त*

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